राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : शोध संस्थानों का अलग हिसाब
30-Aug-2025 5:32 PM
राजपथ-जनपथ : शोध संस्थानों का अलग हिसाब

शोध संस्थानों का अलग हिसाब

8वें वेतन आयोग के  गठन की घोषणा के बाद 43 लाख से अधिक केंद्रीय कर्मचारी अपने नए वेतन भत्तों का इंतजार कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर लेकिन देश के कई शोध संस्थानों के कर्मचारी अब भी 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों का इंतजार कर रहे हैं। फिलहाल इनकी स्थिति न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी जैसी है।

संसद के  हालिया मानसून सत्र के दौरान शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुकांता मजूमदार ने राज्यसभा में इसका खुलासा किया। उन्होंने बताया कि भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) से संबद्ध देशभर में 24 शोध संस्थान और उनके क्षेत्रीय केंद्र ऐसे हैं, जहां 7 वें आयोग के वेतन भत्ते अब तक लागू नहीं है। इनका एक संस्था रायपुर में भी है। मीडिया रिपोर्ट अनुसार इन संस्थानों को आईसीएसएसआर द्वारा ग्रांट-इन-एड नियमों के तहत आर्थिक सहायता दी जाती है। हालांकि, 1971 से चले आ रहे इन नियमों में समय-समय पर संशोधन किए गए हैं, लेकिन वेतन आयोग की सिफारिशें अब तक यहां लागू नहीं हो पाई हैं। जबकि संसदीय स्थायी समिति (शिक्षा) ने अपनी 364वीं रिपोर्ट में स्पष्ट सिफारिश की है कि  इन सभी संस्थानों और क्षेत्रीय केंद्रों में 7वें वेतन आयोग को लागू किया जाना चाहिए।समिति ने यह भी सुझाव दिया कि ये संस्थान आईसीएसएसआर से परियोजना-आधारित फंडिंग लेकर और स्वयं कमाई के विकल्प तलाश कर अपने वित्तीय बोझ को कम करें, ताकि सरकार की मदद से वास्तविक शोध और परिणाम सामने आ सकें।  इस दिशा में ठोस निर्णय के लिए एक समिति का गठन किया गया है। यह समिति आईसीएसएसआर से संबद्ध संस्थानों में 7वें वेतन आयोग को लागू करने की संभावनाओं की समीक्षा कर रही है। हालांकि, इस प्रक्रिया में कितना समय लगेगा, यह साफ नहीं है। इनके लिए आठवां वेतनमान मिल भी गया तो स्थिति-आई तो रोजी नहीं तो रोजा जैसा होगा।

बाकी नियुक्तियों की बारी

सीएम विष्णुदेव साय 10 दिन के जापान, और कोरिया दौरे से लौट आए हैं। साय के आने के साथ ही सरकार, और संगठन में हलचल शुरू हो गई है। दरअसल, सरकार और संगठन में नियुक्तियां होनी है। इस सिलसिले में प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन, और पार्टी के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश के साथ साय की बैठक भी होगी। प्रदेश भाजपा के रणनीतिकार अजय जामवाल, और पवन साय भी प्रदेश से बाहर थे। साय, दुर्ग ग्रामीण के विधायक ललित चंद्राकर के साथ तिरुपति मंदिर दर्शन के लिए गए थे। जामवाल भी असम, और दिल्ली में रहे। अब सारे नेता लौट आए हैं, तो नियुक्तियों पर कसरत चल रही है। प्रदेश भाजपा संगठन की एक और सूची जारी होने वाली है। इसमें कुछ पुराने नेताओं को जगह दी जा सकती है।

सरकार के निगम-मंडलों में भी नियुक्तियां की जाएंगी। वित्त आयोग, सिंधी अकादमी, और आरडीए-पर्यटन बोर्ड में उपाध्यक्ष व संचालकों के नाम भी तय किए जा रहे हैं। चर्चा है कि कुछ विधायकों से भी राय ली गई है। सांसदों ने भी अपनी तरफ से नाम दिए हैं। कुल मिलाकर अगले चार-पांच दिनों के भीतर सारी नियुक्तियां हो जाएंगी। देखना है कि किसको क्या कुछ मिलता है।

गौरक्षा कानून के खिलाफ बीजेपी से आवाज

छत्तीसगढ़ सहित देश के कई राज्यों में गौवंश, जिनमें गाय, बैल और सांड आते हैं, के वध और उसके मांस के उपभोग पर पाबंदी है। कानून में भैंसों की बिक्री और वध पर प्रतिबंध नहीं है। इधर भाजपा के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र में एक अलग मामला उभर गया है। वहां के शेतकारी संगठन के नेता और भारतीय जनता पार्टी के एमएलसी सदाभाऊ खोत अपनी ही पार्टी के लोगों के निशाने पर हैं। वे यहां चलाए जा रहे गौरक्षा आंदोलन का विरोध कर रहे हैं। वे कहते हैं कि उनकी गुंडागर्दी के कारण किसान नई नस्ल की गायों को आयात नहीं कर पा रहे हैं और ऐसे गौवंश जिनसे कोई आमदनी नहीं हो रही है, उनकी देखभाल करने में किसानों की आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही है।इसी तरह, महाराष्ट्र में अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को वहां की एक मजबूत कारोबारी लॉबी कुरैशी समुदाय का समर्थन मिलता रहा है। यह समुदाय मांस के ही धंधों से जुड़ा है। इनका कहना है कि हम कानून का पालन करते हुए भैंसों के बीफ बेचने निकलते हैं और हमें गौ रक्षक घेर कर मारपीट करने लगते हैं। अजित पवार अपने समर्थक वर्ग को नाराज नहीं करना चाहते थे, उन्होंने डीजीपी को लिखा है कि गौरक्षकों पर लगाम कसें, उन्हें बीफ लेकर जा रही गाडिय़ों को जबरन रोकने से मना करें। यदि गैरकानूनी परिवहन हो रहा हो तो पुलिस ही कार्रवाई करे, कोई और नहीं।

कुरैशी समुदाय और बीफ डीलर्स एसोसिएशन मुंबई तो केवल इसलिए विरोध कर रहा है कि उन्हें गौरक्षकों के कारण भैंसों के मांस का भी परिवहन करने में दिक्कत जा रही है, मगर बीजेपी एमएलसी खोत तो 2015 में बनाए गए कानून के खिलाफ ही उतर गए हैं। उन्हें अपनी पार्टी के ही नेताओं की आलोचना झेलनी पड़ रही है, मगर वे अपनी बात पर कायम है। वैसे भाजपा नेता पवार ने जो चि_ी पुलिस को लिखी है, उसकी भी आलोचना हो रही है।अपने छत्तीसगढ़ में तो सरकार गौशाला, गौ-अभयारण्य, गौ-धाम जैसी योजनाएं चला रही है। सडक़ों पर मारे जा रहे गायों की समस्या जल्द खत्म हो सकती है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि सब ठीक हो जाएगा। यहां कोई खोत जैसा नेता सामने नहीं आएगा, जो किसानों के नाम पर अपनी ही पार्टी की रीति-नीति के खिलाफ बात करे।


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