राजपथ - जनपथ
मार्शलों का क्या होगा?
सहायक शिक्षकों की तरह विधानसभा में करीब डेढ़ दर्जन मार्शल की नियुक्ति का मसला भी उलझा हुआ है। छत्तीसगढ़ विधानसभा के गठन के बाद मार्शल की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई थी, और फिर प्रेमप्रकाश पांडेय के विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद सभी को नियुक्ति दी गई।
बाद में नियुक्तियों में तकनीकी खामियों के खिलाफ कुछ लोग हाईकोर्ट गए, और फिर सभी को बर्खास्त करने के आदेश हुए। बर्खास्त सहायक शिक्षकों को कोर्ट से राहत भी मिली।
फिर सुप्रीम कोर्ट ने मार्शलों की बर्खास्तगी के फैसले को सही ठहराया है। इसके बाद से सहायक शिक्षकों की तरह मार्शलों पर बर्खास्तगी की तलवार अटकी पड़ी है। सुनते हैं कि स्पीकर की दो पूर्व स्पीकर व सचिवालय के आला अफसरों व विधि विशेषज्ञों के साथ बैठक भी की है। मार्शलों को पुनर्नियुक्ति देने के लिए कोई रास्ता निकालने पर विचार भी हो रहा है। जानकार लोग इस तरह की परिस्थिति पैदा करने के लिए एक पूर्व विधानसभा सचिव को लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं जिसकी वजह से तकनीकी त्रुटियां होती रही, और मामला उलझता गया। देखना अब आगे क्या होता है।
साय से मिल, शिक्षक हड़ताल खत्म
आखिरकार सीएम विष्णु देव साय के हस्तक्षेप के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बर्खास्त सहायक शिक्षकों की हड़ताल खत्म गई। सरकार पहले दिन से ही हड़ताली शिक्षकों की पुनर्नियुक्ति देने पर सहमत थी, और इसके लिए सीएस की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी।
पुनर्नियुक्ति की प्रक्रिया आसान नहीं था। इसमें कानूनी अड़चनें आ रही थी। कमेटी ने काफी माथापच्ची के बाद सहायक शिक्षक ( प्रयोगशाला सहायक) के रिक्त पदों पर नियुक्ति देने का प्रस्ताव तैयार किया था। पिछले छह माह से नवा रायपुर में धरना दे रहे बर्खास्त शिक्षकों को सरप्राइज देना चाहती थी, और नियुक्ति का प्रस्ताव कैबिनेट में लाने की तैयारी भी थी। इसी बीच रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने सीएम को चि_ी लिखकर बर्खास्त शिक्षकों की मांगों का समर्थन किया, और सहायक शिक्षक (प्रयोगशाला सहायक) के पद पर नियुक्ति देने की वकालत कर दी।
पत्र सार्वजनिक हुआ, तो सरप्राइज जैसा कुछ नहीं रह गया था। इसलिए प्रस्ताव रोक दिया गया। फिर शिक्षकों को समझा बुझाकर हड़ताल खत्म कराया गया। सीएम ने आश्वासन दिया है, तो खुशी खुशी हड़ताल खत्म करने पर शिक्षक तैयार हो गए।
सतनामी-सरकार!!
देश भर के अलग-अलग राज्यों में वहां की ताकतवर जातियों का राज होने का दावा किया जाता है। अब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक ऑटोरिक्शा पर सतनामी समाज के राज की घोषणा की गई है। साथ ही इस पर लिखा गया है-जरा इतिहास के पन्ने खोलकर देख, यहां के राजा हम हैं। अब ‘सतनामी-सरकार’ की इस घोषणा के बाद हो सकता है कि दूसरी जातियां भी अपनी आबादी के आंकड़े लेकर अपनी सरकार का दावा करें। हालांकि अभी 2011 के बाद की जनगणना के आंकड़े नहीं हैं, इसलिए दावे कुछ कमजोर जमीन पर खड़े रहेंगे, लेकिन 2011 के आंकड़ों को तो नकारा नहीं जा सकता।
महिला सशक्तिकरण की राह में रोड़ा
घुटकेल ग्राम पंचायत की सरपंच कुसुमलता ने सचिवों की हड़ताल के चलते जब पंचायत के सभी कार्य ठप थे, तब गांव की मूलभूत समस्याओं पर चर्चा के लिए बैठक बुलाई और सूचना देने के लिए पंचायत के लेटरपैड का उपयोग किया। यह एक सामान्य और व्यावहारिक कदम था, जिसे जनपद पंचायत नगरी के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने शासकीय आदेश मान लिया और उसे बर्खास्तगी का नोटिस जारी कर दिया। यह तो अफसर का सीधे-सीधे शक्ति का दुरुपयोग प्रतीत होता है। यह समझना जरूरी है कि लेटरपैड का इस्तेमाल केवल सूचना के लिए किया गया, कोई सरकारी आदेश जारी नहीं किया गया। ऐसे में शासकीय प्रक्रिया के उल्लंघन का आरोप न केवल हास्यास्पद है, बल्कि यह महिला नेतृत्व को दबाने का एक प्रयास भी प्रतीत होता है। हो सकता है कि लेटर पैड के उपयोग का अधिकार केवल पंचायत सचिव को हो, सरपंच को न हो, पर महिला सरपंच की नीयत तो गांव की भलाई ही थी। नया निर्वाचन होने के कारण संभवत: प्रक्रिया की उनको जानकारी भी न रही हो। अब उन्होंने कहा है कि जब तक लिखित आदेश नहीं मिलेगा, लेटरपैड का इस्तेमाल नहीं करेंगीं।
आज अनेक ग्राम पंचायतों में निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों की जगह उनके पति या अन्य पुरुष रिश्तेदार ही वास्तविक सत्ता संचालन कर रहे हैं। ऐसे में जब कोई महिला सरपंच स्वयं फैसले ले रही है, जनहित में सक्रिय है और समस्याओं के समाधान के लिए कदम उठा रही है, तो उसे प्रोत्साहित करने के बजाय धमकाने जैसी कार्रवाई हो रही है।
जनपद सीईओ की भूमिका यहां कठघरे में है। बताते हैं कि पूर्व में भी उनकी कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लगे हैं और उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी हो चुका है। नगरी के प्राय: सभी सरपंच कुसुमलता के पक्ष में खड़े हो गए हैं। यह जरूरी है कि शासन और प्रशासन जनपदों में ऐसे अधिकारियों को नियुक्त करे जो संवेदनशीलता, समन्वय और लोकतांत्रिक मूल्यों को समझते हों और उन महिला जनप्रतिनिधियों को सम्मान करते हों, जो सक्रियता से अपनी कर्तव्यों को निभाना चाहती हैं। कुसुमलता को ऊपर तक शिकायत करनी चाहिए। महिला आयोग में भी जाने का आधार बनता है।
शांत सुंदर और मीठी बोली
यह चिडिय़ा अपनी सुंदरता, मीठी बोली और शांत स्वभाव के कारण पक्षी प्रेमियों की पसंदीदा मानी जाती है। अरपा नदी की बांध के पास भैंसाझार में यह दिखी। ऑरेंज-हेडेड थ्रश, जिसे हिंदी में आमतौर पर ‘नारंगी चिडिय़ा’ या कुछ क्षेत्रों में बस ‘थ्रश बर्ड’ कहा जाता है, एक सुंदर और सुरम्य पक्षी है। इसकी खासियत इसका चमकीला नारंगी सिर और गला होता है, जो इसे दूसरी चिडिय़ों से अलग पहचान देता है। इसकी आंखें बड़ी और काली होती हैं, जो इसे और भी आकर्षक बनाती हैं। यह आमतौर पर घने जंगलों, पहाड़ी क्षेत्रों और बगीचों में पाई जाती है। यह ज्यादातर जमीन पर खाना तलाशती है और कीड़े, केंचुए, फल वगैरह खाती है। कई लोग इसे सुबह की चहचहाहट के लिए पसंद करते हैं। यह बहुत ज्यादा दिखाई नहीं देती क्योंकि इसका स्वभाव शर्मीला होता है, लेकिन अगर आप शांत और हरे-भरे इलाकों में जाएं तो इसकी मधुर आवाज आपको जरूर सुनाई दे सकती है। (तस्वीर-शिरीष दामड़े)
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