राजपथ - जनपथ
पीएम, सीएम, और डीएम की तर्ज पर !
कांग्रेस के देशभर के जिलाध्यक्षों की राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, और राहुल गांधी के साथ बैठक की खूब चर्चा हो रही है। छत्तीसगढ़ से रायपुर शहर के जिलाध्यक्ष गिरीश दुबे को छोडक़र बाकी सभी बैठक में शामिल हुए। देश के 320 जिलाध्यक्षों को आमंत्रित किया गया था। जिसमें से 315 उपस्थित हुए। पांच जिलाध्यक्ष नहीं आए, उनमें गिरीश दुबे भी थे।
छत्तीसगढ़ से रायगढ़, और बस्तर के जिलाध्यक्ष को बोलने का मौका मिला। बताते हैं कि बैठक व्यवस्था इतनी बढिय़ा थी कि पहले कांग्रेसजनों ने ऐसी नहीं देखी थी। एआईसीसी के नए भवन के हॉल में कुर्सी में जिलाध्यक्षों के नाम चिपके हुए थे। पहले किसे बोलने का मौका मिलेगा यह तय नहीं था। बैठक में खुद राहुल गांधी इशारा कर बुला रहे थे, और फिर जिलाध्यक्ष एक-एक कर अपनी बात रख रहे थे। करीब 3 घंटे चली बैठक में जिलाध्यक्षों ने ऐसी-ऐसी बात कही कि राहुल गांधी भी लोटपोट हो गए।
राजस्थान के एक जिला अध्यक्ष ने कह दिया कि उनके यहां प्रदेश में सिर्फ दो नेताओं की चलती है। बाकी किसी की पूछ परख नहीं है। राहुल गांधी ने पूछ लिया कि किन दो नेताओं की चलती है? मगर जिलाध्यक्ष कुछ बोलने से हिचकिचा रहे थे। वजह थी कि राजस्थान के बड़े नेता सचिन पायलट खुद मंच पर थे। जाहिर है जिलाध्यक्ष का इशारा अशोक गहलोत, और सचिन पायलट की तरफ था। मगर राहुल के बार-बार पूछने पर भी उन्होंने दोनों नेता का नाम नहीं लिया।
रायगढ़ के जिलाध्यक्ष अनिल शुक्ला की तरफ राहुल ने इशारा किया, और दो मिनट में ही पार्टी के भीतर गुटबाजी को अनिल शुक्ला ने जिस अंदाज में रखा, उसकी काफी तारीफ हुई।
मंच पर पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और प्रभारी पायलट भी थे। भूपेश थोड़े असहज दिखे। इन सबके बीच राजधानी के जिलाध्यक्ष गिरीश दुबे क्यों नहीं आए, इसकी चर्चा हुई। कहा जा रहा है कि पार्टी उनसे पूछताछ कर सकती है।
बैठक का लब्बोलुआब यह रहा कि पार्टी हाईकमान जिलाध्यक्षों को ताकत देने के मूड में हैं, और उनके कामकाज की हाईकमान सीधे मॉनिटरिंग करेगा, और प्रत्याशी चयन में भी उनकी भागीदारी होगी। राहुल गांधी ने संकेत दिए कि अहमदाबाद अधिवेशन में सारी बातों पर चर्चा होगी। चाहे जो कुछ भी हो, इस बैठक ने जिलाध्यक्षों को ताकत मिली है। छत्तीसगढ़ के वो जिलाध्यक्ष भी खुश नजर आए, जिनके हटने की चर्चा चल रही है। देश में भी ऐसी ही व्यवस्था है। तीन ही स्तर ताकतवर माने जाते हैं, पीएम, सीएम, और डीएम(जि़ला कलेक्टर) !

तमाम कोशिशों के बावजूद ऐसे बोर्ड जि़ंदा हैं। यही हिंदुस्तानी संस्कृति है। तस्वीर सुपरिचित लेखकसतीश जायसवाल ने फ़ेसबुक पर पोस्ट की है।
समय के साथ चिंताएं भी बदल जाती हैं?
यादों को साझा करना कई बार सहज नहीं होता, खासकर जब आज आपकी भूमिका कहीं अधिक प्रभावशाली हो। छत्तीसगढ़ के वर्तमान वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने सोशल मीडिया पर जून 2020 की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा की, जब वे भाजपा के एक कार्यकर्ता और विधानसभा चुनाव के हारे हुए प्रत्याशी थे। रायपुर बलौदाबाजार मार्ग पर वे एक ट्रक के टक्कर से गिरे बाइक सवार की मदद करते नजर आ रहे हैं, जो नशे में था। थोड़ी दूर पर एक और बाइक दुर्घटनाग्रस्त मिली। वह सवार भी नशे की हालत में था।
उस वक्त चौधरी जी ने चिंता जताते हुए लिखा-ऐसे में हमारा छत्तीसगढ़ कैसे आगे बढ़ेगा? उन्होंने सुझाव दिया था कि समाज को मिलकर नशे के खिलाफ एक सोच विकसित करनी होगी।

आज ओपी चौधरी राज्य के वित्त मंत्री हैं। राजकोषीय फैसलों की बागडोर उनके हाथ में है। उनकी सहमति रही होगी, जिसके चलते राज्य में शराब के दाम घटाए गए हैं, और नई शराब दुकानों की मंजूरी दी गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब उनकी पुरानी चिंता अप्रासंगिक हो गई है?
सोशल मीडिया पर लोग इस पोस्ट के दोबारा साझा किए जाने पर सवाल उठा रहे हैं। कई लोग पूछ रहे हैं कि अगर वास्तव में आप इतने चिंतित हैं, तो शराबबंदी के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाते? क्या अब सत्ता की जिम्मेदारियों ने आपकी संवेदनशीलता को पीछे छोड़ दिया है?


