रायपुर

रायपुर, 22 जुलाई। श्री शंकराचार्य आश्रम बोरिया कला रायपुर में चल रहे चातुर्मास प्रवचन में डॉ. स्वामी इन्दुभवानन्द ने विभिन्न प्रकार के शिवलिंगों की मार्मिक व्याख्या की। उन्होंने गुरु को भी शिवलिंग बताते हुए कहा कि शिष्य को गुरु की पूजा परमात्मा शिव के समान करना चाहिए। गुरु ही परमात्मा शिव का स्वरूप माना जाता है। गुरु के शरीर को ही शिवलिंग समझना चाहिए। गुरु की सेवा गुरु लिंग की पूजा होती है। शरीर मन और वाणी से की गई गुरु सेवा शास्त्र ज्ञान प्राप्त कराती है। अपनी शक्ति से शक्य अथवा अशक्त्य जिस बात का भी आदेश गुरु ने दिया हो, उसका पालन प्राण और धन लगाकर पवित्रात्मा से शिष्य करना चाहिए। इस प्रकार गुरु के अनुशासन में रहने वाला शिष्य ही वास्तव शिष्य कहलाता है। शिष्य को निरंतर गुरु के सानिध्य में रहने के कारण उसे पुत्र भी कहा गया है। दो प्रकार की संतान होती है एक नाद परंपरा की संतान और दूसरी बिंदु परंपरा की संतान। बिंदु परंपरा की संतान गृहस्थों की होती है और नाद परंपरा की जो संतान हैं वह गुरुओं की होती है, गुरु शिष्य के कान में मंत्र देकर उसके सूक्ष्म शरीर को बनता है इसलिए गुरु को भी पिता कहा जाता है।