रायपुर

पितृपक्ष की शुरूआत कल से हो रही है। जो 25 सितंबर तक रहेगा। इन दिनों पितरों की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। मान्यता है कि पितरों के प्रसन्न होने पर घर में बनी रहती है सुख शांति
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 9 सितंबर। भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि के साथ पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है जो आश्विन मास की अमावस्या तिथि के साथ समाप्त होगा । 15 दिनों तक चलने वाले इस श्राद्ध कर्म में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। 10 सितंबर शुरू होकर 25 सितंबर तक चलने वाले पितृपक्ष में पितरों के तर्पण और श्राद्ध के लिए काफी शुभ माना जाता है। श्राद्ध पक्ष में अन्न का भी महत्व है पितृश्राद्ध में काली मूंग,तील,जोव चावल,कुश के साथ पिंड दान और पितृश्राद्ध तर्पण किया जाता है। इस मास में कोई शुभ कार्य नही किया जाते। इस माह पिंड दान का भी विशेष महतव है। इस दिन श्राद पक्ष में कौवों को दाना डालना जरूरतमंद लोगों और ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा देना शुभ माना गया है।
शास्त्रों के अनुसार परिवार के पूर्वजों को तर्पण अलग-अलग तिथियों में किया जाता है। ,प्रतिपदा तिथि को नाना -नानी का श्राद्ध करना शुभ माना जाता है । इस दिन श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है । अविवाहित की मृत्यु होने पर पंचमी को श्राद किया जाता है। महिला की मृत्यु पर नवमी तिथि को और दुर्घटना या अकाल मृत्यु होने पर उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है । इसी तरह जिन पितरों के देहांत की तिथी याद न तो उनका श्राद्ध सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या को करना शुभ माना जाता है। एकादशी और द्वादशी तिथि को वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं ।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ और जटायु का तर्पण किया था। वहीं महाभारत के युद्ध में दानवीर कर्ण का निधन हो गया और उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई, तो उन्हें नियमित भोजन की बजाय खाने के लिए सोना और गहने दिए गए। इस बात से निराश होकर कर्ण की आत्मा ने इंद्र देव से इसका कारण पूछा। इंद्र ने कर्ण को बताया कि आपने अपने पूरे जीवन में सोने के आभूषणों को दूसरों को दान किया लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों को भोजन दान नहीं दिया। तब कर्ण ने उत्तर दिया कि वो अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानता। इस पर भगवान इंद्र ने उसे 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी ताकि वो अपने पूर्वजों को भोजन दान कर सके। इसी 15 दिन की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है।