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कौम के गम में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ, रंज लीडर को बहुत है, मगर आराम के साथ...
सुनील कुमार ने लिखा है
17-Aug-2025 4:17 PM
कौम के गम में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ, रंज लीडर को बहुत है, मगर आराम के साथ...

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अभी चार दिन पहले बहुमंजिली इमारतों में सांसदों के लिए बने हुए 184 फ्लैट्स का उद्घाटन किया है, और इनके वीडियो देखकर लोगों की आंखें फटी की फटी रह गई हैं। दिल्ली जैसे एक सबसे महंगे महानगर के, एक सबसे महंगे रिहायशी इलाके में पांच-पांच हजार वर्गफीट के ऐसे एक-एक फ्लैट के फोटो-वीडियो देश की जनता को हक्का-बक्का कर रहे हैं। देश की एक फीसदी आबादी भी पांच हजार वर्गफीट के फ्लैट, या मकान में कभी पांव भी नहीं रख पाती। पांच-पांच बेडरूम, दो-दो दफ्तर, और इसी दर्जे की बाकी सहूलियतों वाली ऐसी ऑलीशान बसाहट में रहकर सांसद अपने इलाकों की समस्याओं के बारे में अधिक शांतचित्त से सोच पाएंगे। अब सांसद के अपने धर्मसंकट, और मानसिक विरोधाभास के बारे में भी सोचना चाहिए जिनके इलाकों में गांव-गांव में स्कूलों की कहीं छत गिर रही है, तो कहीं इमारत। कहीं पुल गिर रहे हैं, तो कहीं सडक़ बह जा रही है। कहीं तो बादल फटने से पूरे गांव बह गए हैं, तो कहीं सरकारी योजनाओं में आधा-आधा दर्जन आईएएस अफसरों की गिरफ्तारी से दहशत में आए बाकी अफसर काम ही करना नहीं चाहते हैं। ऐसे विकराल संसदीय क्षेत्रों से आए हुए सांसदों से भला यह उम्मीद तो नहीं की जाती कि वे नई दिल्ली स्टेशन के भीड़भरे प्लेटफॉर्म पर धक्के खाते हुए शांतचित्त से सोच-विचार कर पाएंगे। इसके लिए पांच हजार वर्गफीट का एकदम ही आलीशान दर्जे का फ्लैट जरूरी है जिसके भीतर भी हो सकता है कि चक्कों वाले पहिए वाले स्केट्स पर आवाजाही होती होगी। 

कुछ सांसदों से पूछने पर पता लगा कि दिल्ली में सांसदों के लिए विशेष आवास योजनाएं दशकों से चली आ रही हैं, पहले दो या तीन बेडरूम वाले फ्लैट बने थे, फिर तीन या चार बेडरूम वाले, और अब ताजा उद्घाटन पांच बेडरूम वाले फ्लैट्स की इमारतों का हुआ है जिनके नाम देश की नदियों के नाम पर कृष्णा, गोदावरी, कोसी, और हुगली रखे गए हैं। करीब 45 बरस पहले दिल्ली में रायपुर के गांधीवादी-सर्वोदयी सांसद केयूर भूषण के मकान में रहने का मौका कुछ हफ्तों के लिए मुझे भी मिला था। उस वक्त वे मकान साधारण थे, लेकिन करीब आधी सदी पहले का तो वह सभी कुछ साधारण था। अब देश के अलग-अलग हिस्सों में जिस तरह गर्भवती महिलाओं को कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ रहा है, तब वे सडक़ और एम्बुलेंस तक पहुंच पा रही हैं, अधिकतर हिस्सों में इलाज की कमी है, और पढ़ाई के साधन सीमित या कमजोर हैं। आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत ने अभी हफ्ते भर पहले ही एक सार्वजनिक कार्यक्रम में इस बात पर बड़ा अफसोस जाहिर किया है, कि लोगों को जिन दो चीजों की सबसे अधिक जरूरत रहती है, वह पढ़ाई और इलाज दोनों ही लोगों की पहुंच के बाहर हैं। ऐसे में सांसदों के ये नए फ्लैट, उनके मतदाताओं को कैसे लगेंगे, इसका अंदाज लगा पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं है।

दुनिया के कुछ दूसरे देशों के बारे में पढऩे की कोशिश की, तो पता लगा कि ब्रिटेन में सांसदों को संसद के पास बड़े छोटे-छोटे फ्लैट दिए जाते हैं, या किराया भत्ता दिया जाता है। दुनिया के सबसे संपन्न माने जाने वाले महादेश अमरीका की राजधानी वाशिंगटन डी सी में सांसदों के लिए कोई फ्लैट नहीं है, और न ही उन्हें कोई किराया भत्ता मिलता। वे दूसरे सांसदों के साथ किराए के कुछ साझा कमरों में रह लेते हैं, या अपने दफ्तर में ही सो जाते हैं। कुछ के बारे में कहा जाता है कि वे कार में भी रात गुजार लेते हैं। फ्रांस में सांसदों को पेरिस में रहने के लिए भत्ता दिया जाता है, लेकिन कोई सरकारी मकान नहीं मिलता। जर्मनी में सांसदों को सिर्फ किराया भत्ता मिलता है, और वे खुद मकान ढूंढते हैं। इन तमाम देशों के मुकाबले भारत की प्रति व्यक्ति आय मूंगफली के छिलकों सरीखी है। अमरीका में प्रति व्यक्ति आय करीब 80 हजार डॉलर सालाना है, और सांसद की तनख्वाह इससे करीब दोगुना है। ब्रिटेन में प्रति व्यक्ति आय करीब 52 हजार डॉलर है, और सांसद का सालाना वेतन सवा लाख डॉलर से कुछ कम, यानी करीब 2.3 गुना। अब भारत को एक नजर देखें? यहां प्रति व्यक्ति आय 27 सौ डॉलर है, और सांसद के सालाना वेतन-भत्ते, और सहूलियतें करीब 50-60 हजार डॉलर! आम जनता के मुकाबले सांसद पर 20 गुना से अधिक औसत खर्च! चैटजीपीटी की मदद से अलग-अलग देशों में प्रति व्यक्ति आय, और वहां के सांसदों के वेतन-भत्तों के अनुपात को देखने पर बड़ी दिलचस्प तस्वीर बन रही है। ब्रिटेन में नेता जनता से 2.3 गुना अधिक पाते हैं, अमरीका में भी ठीक यही अनुपात है। कनाडा में 3.4 गुना, और जापान में भी 4 गुना तक ही सीमित है। यूक्रेन में 1.5 गुना, तुर्की में 3.7 गुना, और पाकिस्तान में करीब 15 गुना। भारत में जनता की औसत आय के मुकाबले सांसद की तनख्वाह 17-18 गुना, भत्तों सहित मिलाने पर 20 गुना, और सारी सहूलियतों को गिनने पर भारतीय सांसद भारत की जनता की औसत कमाई से 68 गुना अधिक महंगे पड़ रहे हैं।

फिर भारत में यह बात भी समझने की जरूरत है कि देश की राजधानी में बंगले या मकान से परे, अपने प्रदेश की राजधानी, या अपने चुनाव क्षेत्र में सांसद अलग से मकान-बंगले रखते हैं। इन सबकी लागत पता नहीं 68 गुना में शामिल है, या फिर उससे बाहर है। कोई हैरानी नहीं है कि कई पार्टियां लोगों को सांसद बनाने के लिए दर्जनों करोड़ रूपए लेने की चर्चाओं से घिरी रहती हैं। भारत में नेताओं, खासकर निर्वाचित या मनोनीत सांसदों और विधायकों के शान-शौकत देखकर शायर अकबर इलाहाबादी का यह शेर याद पड़ता है- कौम के गम में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ, रंज लीडर को बहुत है, मगर आराम के साथ।

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