आजकल
बिहार चुनाव के, पहले सस्पेंस, और फिर जश्न में डूबे हिन्दुस्तान में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह शायद अकेले ही रहे जिन्होंने पड़ोसी पाकिस्तान में सत्ता-संतुलन में आए एक भूचाल पर फिक्र जाहिर की। बाकी लोगों को अभी तक इस बदली हुई नौबत का खतरा समझने का वक्त शायद नहीं मिला। पिछले चार दिनों में पाकिस्तान दुनिया का अकेला ऐसा परमाणु हथियार संपन्न देश बन गया है जहां पर परमाणु हथियारों का इस्तेमाल पूरी तरह से फौज के मुखिया का एकाधिकार हो गया है। निर्वाचित प्रधानमंत्री, या मनोनीत राष्ट्रपति भी इस परमाणु-कमान से बाहर हो गए हैं, और सेना प्रमुख फील्ड मार्शल का दर्जा प्राप्त जनरल असीम मुनीर अब इस एक मामले में राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री से भी ऊपर बिठा दिए गए हैं। इसके लिए 12 नवंबर को संसद के निचले सदन में संविधान संशोधन 234-4 वोटों से पास हुआ, और 14 नवंबर को राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने इस पर दस्तखत करके इसे कानून का दर्जा दे दिया।
फिर मानो यह काफी नहीं था, तो पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के पर कतर दिए गए, और अब वह सिर्फ सिविल और क्रिमिनल मामलों की अपील का कोर्ट रह गया है। संवैधानिक विवादों पर विचार के लिए एक नया फेडरल कांस्टीट्यूटशनल कोर्ट बना दिया गया। इससे अब मौजूदा सुप्रीम कोर्ट का खुद होकर किसी मामले की सुनवाई करना खत्म हो गया है। इसका विरोध करते हुए वहां के दो सबसे बड़े जजों ने इस्तीफे भी दे दिए हैं।
हमने पहले ही दिन इस परमाणु खतरे की चर्चा अपने यूट्यूब चैनल, इंडिया-आजकल पर की थी, और अब जैसे-जैसे इसकी जानकारी सामने आ रही है, इसके खतरे बढ़ते हुए नजर आ रहे हैं। दुनिया में आज जिन देशों के पास परमाणु हथियार हैं, उन 9 देशों में से कहीं भी बिना निर्वाचित या लोकतांत्रिक-राजनीतिक नेता के, अकेले फौजी को परमाणु फैसले लेने का हक नहीं है। अमरीका में राष्ट्रपति को परमाणु हथियार इस्तेमाल करने का आखिरी हक है। रूस में राष्ट्रपति को मुख्य अधिकार है लेकिन रक्षामंत्री और फौजी जनरल की मंजूरी से वे यह फैसला लेते हैं। चीन में राष्ट्रपति को अधिकार है, और उनकी मंजूरी से ही सेना यह कर सकती है। भारत में प्रधानमंत्री परमाणु कमान के अध्यक्ष हैं, और कैबिनेट की कमेटी की मंजूरी जरूरी है। ब्रिटेन में प्रधानमंत्री को अधिकार है लेकिन संसद की एक किस्म की मंजूरी लगती है। फ्रांस में राष्ट्रपति को अधिकार है लेकिन वे सेना की सलाह से ऐसा कर सकते हैं। इजराइल में प्रधानमंत्री और मंत्री मिलकर यह तय करते हैं। उत्तर कोरिया में वहां के शासक किम जोंग-ऊन को नागरिक-मिलिट्री कमांडर के रूप में यह अधिकार है। पाकिस्तान में अभी जनरल मुनीर को जो अधिकार दिया गया है, उस पर कोई नागरिक-नेता निगरानी नहीं रख सकते, सवाल नहीं पूछ सकते।
भारत पर पाकिस्तान के जितने भी हमले पिछले पौन सदी में हुए हैं, उनमें से कुछ हमले फौजी पहल पर हुए, या फौजी तानाशाह ने भी किए। दुनिया में किसी भी फौज का रूख लोकतांत्रिक नहीं रहता, क्योंकि उसकी पूरी सोच ही दुश्मन को हराने, तबाह करने, और जंग को जीतने के लिए बनाई गई रहती है। पाकिस्तान की फौज कई बार की फौजी तानाशाही का खून चखने के बाद लोकतंत्र से वैसे भी दूर हो गई है, और वहां फौजियों का राज निर्वाचित नेताओं के ऊपर रहते आया है। निर्वाचित नेताओं को कभी जेल डालना, कभी प्रधानमंत्री बनाना, कभी ओहदे से हटा देना उनका पसंदीदा शगल रहते आया है। पाकिस्तानी फौजी जनरलों का रूख देश के इस्लामिक ढांचे के मुताबिक धर्म से लदा हुआ भी रहते आया है, और धर्म लोकतंत्र में नाजुक मौकों पर कभी लोकतांत्रिक फैसला नहीं लेने देते।
फिर पाकिस्तानी फौज के मौजूदा जनरल असीम मुनीर की ताकत को देखें, तो हाल की भारत-पाकिस्तान फौजी लड़ाई के बाद उन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि दी गई है, जो कि दुनिया में फौज की परंपराओं के खिलाफ है। फील्ड मार्शल ऐसे फौजी मुखिया को ही बनाया जाता है जिसने दो अलग-अलग मोर्चों पर देश की फौज की अगुवाई की हो। पाकिस्तान और भारत के गिने-चुने दिनों के टकराव में ऐसी कोई नौबत नहीं आई थी, न ही इस लड़ाई में पाकिस्तान की कोई जीत हुई थी कि जिसके एवज में असीम मुनीर को यह सम्मान दिया जाए। दुनिया में फौजों की सदियों पुरानी इस परंपरा को तोडक़र इस फौजी अफसर को जिंदगी भर के लिए फील्ड मार्शल का ओहदा दिया गया है। अब ऐसी अलोकतांत्रिक और बेतहाशा ताकत से लैस एक धर्मालु फौजी के हाथ भारत की ताकत के आसपास के ही परमाणु हथियार दे दिए गए हैं। दोनों देशों के पास डेढ़-डेढ़ सौ के आसपास परमाणु हथियारों का अंदाज है।
असीम मुनीर की ताकत का अंदाज इससे भी लगाया जा सकता है कि बददिमाग अमरीकी तानाशाह राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने कुछ महीने पहले उन्हें अमरीकी राष्ट्रपति भवन आमंत्रित करके अकेले उनके साथ खाना खाया था, और उनकी मनमानी तारीफ भी की थी। एक देश के निर्वाचित राष्ट्रपति का दूसरे देश के फौज-प्रमुख से इस तरह का मिलना, लंबी बैठक करना बड़ा ही अस्वाभाविक था, और परंपरा से परे था। आज दुनिया में ट्रम्प से अधिक बददिमाग और कोई नहीं है, और पाकिस्तान में असीम मुनीर से अधिक ताकतवर कोई नहीं है। फिर पूरी दुनिया में असीम मुनीर के अलावा कोई भी ऐसा फौजी नहीं है जो कि अपने रिवाल्वर के गोली चलाने की तरह कहीं परमाणु हमला अकेले ही कर सके।
आज की इस बात के आखिर में अभी कुछ महीने पहले असीम मुनीर की कही हुई एक बात याद रखने की जरूरत है जिसमें उन्होंने भारत के साथ फौजी तनातनी के संदर्भ में मई के महीने में रावलपिंडी में एक फौजी परेड में पाकिस्तान के 170 से अधिक परमाणु हथियारों का जिक्र करते हुए यह कहा था- हमारी सेना और हमारे परमाणु हथियार पाकिस्तान की हिफाजत के लिए हैं। अगर कोई हमें डुबाने की कोशिश करेगा, तो पाकिस्तान अकेले नहीं डूबेगा, एक तिहाई दुनिया को साथ ले जाएगा। हमारी ताकत इतनी है कि दुश्मन सोच लें। इसके साथ-साथ असीम मुनीर ने यह भी कहा था- कश्मीर हमारा है, और हम इसे किसी भी कीमत पर लेंगे। खुद पाकिस्तान के भीतर फौज प्रमुख को परमाणु तानाशाह बना देने का विरोध विपक्ष ने किया है, यह एक अलग बात है कि उसकी कोई ताकत आज नहीं रह गई है।
फिर भी भारत को अपनी सलामती के लिए इस ताजा खतरे पर गौर करना चाहिए।


