कोण्डागांव

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
विश्रामपुरी, 4 जुलाई। एक महिला ने सामुदायिक भवन के बरामदे को ही अपना आसरा बना लिया है। आजकल बारिश के मौसम मे वह बरामदा भी पानी से तरबतर हो जाता है। उस समय महिला को रात गुजारना मुश्किल होता है। बावजूद उसका उसी बरामदे में दिन और रात भी कटता है। सांप बिच्छू का डर अलग सताता है। किंतु मजबूरी यह है कि घर होते हुए भी महिला को वहां रहना पड़ रहा है।
महिला का नाम देवेनबाई है, जो बडेराजपुर ब्लाक के ग्राम बांसकोट की निवासी है, महिला को मानसिक रूप से कुछ अस्वस्थ बताया जा रहा है जिसके चलते उसे अपने ही घर में आश्रय नहीं मिल रहा है और वह गांव के ही सामुदायिक भवन के बरामदे को अपना घर बना ली है। आसपास से सूखी लकडिय़ां एकत्र कर वह खाना चाय आदि समय पर पकाकर खाती है।
ग्रामीणों ने बताया कि वह लम्बे अरसे से ऐसी ही स्थिति में गुजर-बसर कर रही है। घर के लोग उसे चावल दाल एवं राशन की अन्य सामग्री दे देते हैं, जिसे वह वही पका कर खाती है। पूछने पर महिला ने बताया कि वह घरवालों की उपेक्षा के चलते वहां रह रही है। उसने बताया कि उसे यहां किसी प्रकार की तकलीफ नहीं है। जब रात में वह खुले बरामदे में सोती है उस समय जहरीले जीव जंतु का डर बना रहता है। महिला को मानसिक रूप से अस्वस्थ बताया जा रहा है, किंतु वह चर्चा के समय कहीं पर भी मानसिक रूप से अस्वस्थ नहीं लग रही थी। बांसकोट के उप सरपंच अशोक सार्दुल ने बताया कि वह महिला स्वयं ही घर छोडक़र निर्जन स्थान को अपना आश्रय बनाकर रहती है। वह कई वर्षों से ऐसे ही गांव गांव में जाकर अपना गुजर-बसर करती रही है। कभी किसी बाजार के लारी में तो कभी उड़ीसा या किसी अन्य गांव पहुंच जाती है। कभी-कभी यह महिला पूर्ण स्वस्थ लगती है तो कभी कुछ मानसिक रूप से असंतुलित लगती है। महिला के पति एवं एक पुत्र ग्राम केशकाल के समीप तेंदूभाटा में रहते हैं एवं उनकी एक पुत्री ग्राम वांसकोट में ही ब्याही गई है। जहां से उसकी पुत्री के द्वारा कभी कभी उसे राशन मिलता है।
इस संबंध में समाज कल्याण विभाग कोंडागांव की उपसंचालक ललिता लकड़ा ने बताया कि ऐसी महिलाओं के लिए इस समय विभाग के पास कोई योजना नहीं है, किंतु एक एनजीओ के द्वारा बस्तर संभाग के लिए कोंडागांव जिला को मुख्यालय बनाकर संस्था खोली जा रही है। पखवाड़े भर के भीतर इसकी शुरुआत हो जाएगी जहां ऐसी महिलाओं को आश्रय मिल पाएगा।