संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ममताहीन सीएम के हिंसक बयानों से परे भी सोचने की कुछ जरूरत है...
सुनील कुमार ने लिखा है
14-Oct-2025 4:53 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : ममताहीन सीएम के हिंसक बयानों से परे भी सोचने की कुछ जरूरत है...

पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में अभी एक मेडिकल छात्रा के साथ कॉलेज के पास ही गैंगरेप हुआ, जिस पर बेहद दुख जाहिर करते हुए मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने इसे स्तब्ध कर देने वाला भी कहा। उन्होंने कहा कि कोई भी आरोपी बख्शा नहीं जाएगा, और कॉलेजों में सुरक्षा के लिए सरकार कड़ी हिदायत जारी करेगी। लेकिन इसके साथ-साथ ममता बैनर्जी के बयान के एक दूसरे हिस्से को लेकर भारी नाराजगी फैली है। ममता ने यह कहा था कि बलात्कार की शिकार लडक़ी रात साढ़े 12 बजे हॉस्टल-कॉलेज से बाहर कैसे आई थी, इस पर भी गौर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि लड़कियों को देर रात बाहर नहीं निकलने देना चाहिए, खासकर सुनसान इलाकों में सतर्क रहना चाहिए, कॉलेजों को छात्राओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इसके बाद राज्य में प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा ने ममता की जमकर आलोचना की, और इस गैंगरेप पीडि़त छात्रा के पिता ने ममता के बयान को गैरजिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि क्या महिलाओं को अपनी नौकरी छोडक़र घर बैठ जाना चाहिए? ऐसा लगता है कि बंगाल औरंगजेब के शासन में है। उन्होंने कहा कि वह अपनी बेटी को वापिस ओडिशा ले जाएंगे। यह छात्रा आधी रात के बाद कॉलेज कैम्पस के बाहर किसी दोस्त से मिलने, या उसके साथ निकली थी, और वहां से कुछ लोगों ने उसे पास में किसी सुनसान जगह पर ले जाकर उससे गैंगरेप किया था।

ममता बैनर्जी का इतिहास बलात्कार के मामलों में बड़े गैरजिम्मेदार बयानों का रहा है। वे जैसे ही मुख्यमंत्री बनी थी, एक बच्ची से बलात्कार हुआ था, और उसकी रिपोर्ट होने पर ममता ने उसे अपनी सरकार को बदनाम करने की राजनीतिक साजिश कहा था, हमने इसी संपादकीय की जगह पर कई बार उस घटना का जिक्र किया है, और ममता की गैरजिम्मेदारी को याद किया है। अपने राज में होने वाले किसी भी तरह के जुर्म को लेकर ममता तुरंत ही मुजरिमों के वकील की तरह बहस करने लगती हैं, और हर बात को राजनीतिक साजिश करार देने लगती हैं, जिससे कि उनकी साख महिलाओं के खिलाफ जुर्म के मामले में पूरी तरह चौपट हो चुकी है। लोगों को याद होगा कि बंगाल में संदेश खाली नाम की जगह पर ममता की तृणमूल कांग्रेस के एक नेता, शेख शाहजहां, और उनके साथियों पर बहुत से हिन्दू महिलाओं से बलात्कार, और उनके यौन शोषण के आरोप लगे थे। इस पर पूरे देश में बंगाल सरकार और टीएमसी के खिलाफ नाराजगी फैली थी, लेकिन उन्होंने एक रैली में कहा था कि संदेश खाली में बलात्कार की कोई घटना नहीं हुई, और भाजपा माहौल खराब करने की कोशिश कर रही है। इसके बाद लोकसभा चुनाव प्रचार में ममता ने संदेश खाली को भुला देने की अपील की थी, और कहा था कि भाजपा ने महिलाओं को पैसे देकर झूठे बयान दिलवाए हैं। इसके बाद कोलकाता के आर.जी.कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर से बलात्कार और उसके कत्ल पर ममता ने कहा था कि लड़कियां रात में ड्यूटी न करें। जब कोई मुख्यमंत्री अपने प्रदेश के सबसे भयानक जुर्म पर हर बार या तो राजनीतिक साजिश की आड़ ले, या जुर्म के शिकार लोगों को ही सावधान रहने की जिम्मेदारी सिखाए, तो ऐसी मुख्यमंत्री की कोई साख नहीं रह जाती। 2011 से लेकर अब तक ममता बैनर्जी का यही ट्रैक रिकॉर्ड है, और राष्ट्रीय महिला आयोग के अलावा सुप्रीम कोर्ट की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि ममता को अपने गैरजिम्मेदार बयान और झूठे आरोपों के लिए कटघरे में खड़ा करे।

अब जब ममता बैनर्जी के बारे में हम अपनी सोच साफ कर चुके हैं, तो बंगाल की इस ताजा घटना को लेकर कुछ सोचने की जरूरत है। सरकार और कॉलेज इन दोनों ने सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं किए, वह तो है ही, लेकिन क्या इस छात्रा ने अपनी हिफाजत की पर्याप्त फिक्र की थी? एमबीबीएस दूसरे साल की पढ़ाई में आधी रात के बाद कॉलेज के बाहर आने-जाने की कोई शैक्षणिक जरूरत हमें नहीं मालूम है। और अगर ऊंची क्लास में पहुंचने के बाद भी रात-बिरात छात्राओं की ड्यूटी मरीजों के लिए लगती है, तो भी वह कॉलेज-कैम्पस के भीतर-भीतर होती है। हमने योरप के ऐसे कई विश्वविद्यालय और शहर देखे हैं जहां पूरी रात सडक़ों पर छात्राओं का अकेले आना-जाना होते रहता है, लेकिन बलात्कार की कोई घटना वहां नहीं होती। समाज में लड़कियों के देर रात अकेले आने-जाने को लेकर जहां भी एक सहनशीलता है, वहां लड़कियां सुरक्षित हैं। लेकिन भारत में अधिकतर शहरों में, या यह कहना बेहतर होगा कि तकरीबन तमाम शहरों में आधी रात के काफी पहले से किसी लडक़ी का अकेले आना-जाना लोगों के लिए सनसनी की बात रहती है। लोग अपनी गाडिय़ों से उसका पीछा करने लगते हैं, उसके करीब जाने लगते हैं, और उसे ले जाने की कोशिशें करते हैं। इतनी देर रात अकेले आने-जाने वाली लडक़ी या महिला को आम लोग आसानी से हासिल हो जाने वाली, धंधे वाली लडक़ी समझ लेते हैं। जब समाज की हकीकत यह है, तो फिर आधी रात को अकेली लडक़ी के महिला अधिकारों की एक हसरत तो की जा सकती है, लेकिन हकीकत में इस हसरत के सांस लेने की गुंजाइश बड़ी कम है। भारत के सामाजिक वातावरण को समझने की जरूरत है क्योंकि यहां पर परंपरागत रूप से, ऐतिहासिक रूप से लडक़ी या महिला को उपभोग का सामान ही अधिक माना जाता है, उसके नागरिक अधिकार कहीं भी बराबर नहीं गिने जाते।

भारतीय समाज की इस हकीकत को समझना चाहिए कि यहां कामकाज की जगह पर लड़कियों और महिलाओं का शोषण धड़ल्ले से होता है। हर कुछ हफ्तों में हमें अपने आसपास ही ऐसे मामले सुनाई पड़ते हैं कि किसी स्कूल हेडमास्टर या प्रिंसिपल ने, किसी शिक्षक ने छात्राओं से अश्लील हरकत की। मेडिकल छात्राएं तो बालिग हो चुकी रहती हैं, लेकिन उनके शोषण की कोशिश भी कुछ जगहों पर सुनाई देती है। एक भी सामाजिक दायरा हमें ऐसा याद नहीं पड़ता जिसमें लडक़ी या महिला के शोषण की घटना हमने अपने आसपास ही न सुनी हो। इसलिए आज किसी मजबूरी में भी अगर पढऩे वाली, या कामकाजी लडक़ी या महिला को देर रात बाहर निकलना होता है, तो उसे पर्याप्त हिफाजत का इंतजाम करके ही निकलना चाहिए। महिलाओं की हिफाजत इस देश में उनके प्रतिमा रहने तक ठीक है, वरना दो-चार बरस की बच्चियों से लेकर 70 बरस की बुजुर्ग महिला तक कोई भी मर्दाना हिंसा के खतरे से परे नहीं हैं। ममता की आलोचना करने के लिए जो कहना है, हम उससे कुछ अधिक ही कहते रहते हैं, लेकिन हर लडक़ी और महिला को याद रखना चाहिए कि देर रात उनके अकेले बाहर रहने पर यौन हमले का एक खतरा उन पर बने रहता है, और बेहतर हो कि वे तैयारी और इंतजाम के साथ ही बाहर निकलें। औरत और मर्द को बराबर अधिकार देने की पश्चिम के विकसित देशों की स्थिति भारत में आने में शायद एक पूरी सदी और लग जाएगी, तब भी मर्दाना हिंसा शायद ही खत्म हो सकेगी। ममता को कोसने के साथ-साथ अपनी खुद की फिक्र करने का काम भी करना चाहिए, क्योंकि मुजरिम को सजा दिलाना ही किसी भी सरकार के हाथ में रह जाता है, बलात्कार की शिकार लडक़ी जिस त्रासदी से गुजरती है, उसके जख्मों को भर पाना एक जिंदगी में तो पूरा हो नहीं पाता।

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