संपादकीय
मध्यप्रदेश में अभी साढ़े 7 हजार पुलिस सिपाहियों की भर्ती के लिए लोगों से अर्जियां बुलाई गई। न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता 10वीं पास होना चाहिए। सिपाही बनने के लिए 9 लाख 76 हजार लोगों ने अर्जियां भरी। इतने लोग आवेदन कर रहे थे कि इस तारीख को बढ़ाना पड़ गया। 10वीं पास की जगह ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट लोग भी कतार में लगे हुए हैं। 12 हजार इंजीनियरों ने अर्जी डाली है, और करीब 42 पीएचडी प्राप्त लोग हैं। पिछले ही बरस हरियाणा में सफाई कर्मचारियों की ठेका-मजदूरी के काम के लिए 46 हजार से अधिक ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट लोगों ने आवेदन किया था। एक अखबार में छपे एक लेख में कल ही बताया गया है कि किस तरह राजस्थान में 2017 में 18 चपरासियों की भर्ती में 12 हजार से अधिक लोग इंटरव्यू में पहुंचे थे जिनमें इंजीनियर, वकील, और सीए भी थे। एक दूसरा आंकड़ा बताता है कि 2024 में आईआईटी से निकले हुए 5 छात्र-छात्राओं में से 2 को काम नहीं मिला, और यह देश का सबसे बड़ा तकनीकी शिक्षा संस्थान है। इसी तरह एनआईटी, और आईआईआईटी से निकले हुए लोग भी सरकारी आंकड़ों के मुकाबले पूरी तरह नौकरी नहीं पा रहे हैं। इस तरह देश में पढ़े-लिखे लोगों के बीच बेरोजगारी का बड़ा ही खराब हाल है।
उत्तरप्रदेश में 2021-22 में स्कूली शैक्षणिक योग्यता वाले चपरासी के काम के लिए 3 लाख 70 हजार लोगों ने आवेदन किया था जिनमें 28 हजार ग्रेजुएट थे, 37 सौ एमए थे, और साढ़े 4 सौ पीएचडी प्राप्त थे। 2022 में बिहार में रेलवे चपरासी और ट्रैकमैन जैसे ग्रुप डी के कर्मचारियों की भर्ती में 35 हजार पद थे, जिनके लिए सवा करोड़ लोगों ने अर्जियां डाली थीं। इनमें बी-टेक, एम-टेक, और एमबीए भी शामिल थे। 2023 में मध्यप्रदेश में सिपाही भर्ती में 10वीं पास की जरूरत पर 75 सौ पदों के लिए 11 लाख 80 हजार लोगों ने आवेदन किया था जिनमें 65 फीसदी ग्रेजुएट थे, 18 फीसदी पोस्ट ग्रेजुेएट थे, और बहुत से इंजीनियर, और कम्प्यूटर ग्रेजुएट भी सिपाही बनने के लिए कतार में लगे हुए थे। 2022-24 में छत्तीसगढ़ में सिपाही और शिक्षक भर्ती में सिर्फ 30 फीसदी उम्मीदवार न्यूनतम योग्यता वाले थे, और 70 फीसदी आवेदक जरूरत से बहुत अधिक पढ़ाई किए हुए थे। 2023 में तमिलनाडु में सफाई कर्मचारियों की भर्ती में प्राथमिक शिक्षा की ही शैक्षणिक योग्यता रखी गई थी, और 7 हजार पदों के लिए आवेदन करने वालों में 12 सौ ग्रेजुएट भी थे, और 180 पोस्ट ग्रेजुएट।
ऐसे आंकड़े हर बरस कई बार देश के अलग-अलग हिस्सों से आते हैं, और लोगों के मन में यह निराशा भी पैदा करते हैं कि इतना पढ़-लिखकर क्या होना है, चपरासी की नौकरी भी नहीं मिलेगी, और हकीकत भी यही है। अब यह सोचा जाए कि 10वीं पास लोगों के सिपाही बनने की जगह अगर पीएचडी प्राप्त लोग सिपाही बनते हैं, तो 10वीं के बाद उनके कम से कम 10-12 बरस इस पीएचडी में लगे होंगे। इतने ही बरस प्राथमिक शिक्षा के बाद ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट बनने में तमिलनाडु के बेरोजगारों को लगे होंगे। मतलब यह कि लोग अपनी पढ़ाई-लिखाई के मुकाबले बहुत ही कम शैक्षणिक योग्यता वाले काम पाने को भी बड़ी किस्मत मान रहे हैं। लेकिन लोगों के पढऩे-लिखने में उनका वक्त लगता है, मां-बाप पर बोझ पड़ता है, और सरकार पर तो बोझ पड़ता ही है। भारतीय सेना के लिए अग्निवीर बनने की शैक्षणिक योग्यता किसी भी तरह से स्कूली पढ़ाई से अधिक नहीं है, लेकिन जिन लोगों ने आवेदन किया उनमें यूपी-बिहार में 35-40 फीसदी उम्मीदवार ग्रेजुएट या उससे अधिक पढ़े हुए थे, जो कि कुछ साल रोजगार मिल जाने के लिए यहां पहुंचे थे। एमपी और राजस्थान में एमबीए, बीसीए, और इंजीनियर अग्निवीर बनने पहुंचे थे, जो कि कुल चार साल की नौकरी है। रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक आधा लाख से कम नियुक्तियों के लिए 30 लाख से अधिक अर्जियां 2023 में आई थीं, और इनमें 25 फीसदी से अधिक ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट थे।
देश में डिग्री की पढ़ाई के बारे में एक बार फिर सोचने की जरूरत है। हम पहले भी कई बार यह लिखते आए हैं कि स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई हर किसी के काम की नहीं होती, और अधिक पढ़-लिखकर लोग मेहनत-मजदूरी का काम करने लायक भी नहीं रह जाते। वे सरकारी नौकरी के इंतजार में उम्र सीमा गंवा बैठते हैं, और फिर सरकारी भर्ती में भ्रष्टाचार का तर्क देकर अपने को बेइंसाफी का शिकार साबित करते रहते हैं। दूसरी तरफ देश में हुनर के ऐसे लाखों काम हैं जिनके लिए समय पर कामगार नहीं मिलते हैं, और वहां एक ठीक-ठाक जिंदा रहने लायक रोजगार मिलने की गुंजाइश रहती है। हम पहले भी कई बार इस बात को उठा चुके हैं कि कामगारों की कमी से दुनिया के देश परेशान हैं। पिछले ही बरस जापान में ड्राइवरों का ऐसा अकाल पड़ा था कि कारखानों से सामान दुकानों तक नहीं जा पा रहे थे, और गोदामों से सामान ग्राहकों के घर नहीं पहुंच रहे थे। दुनिया के कई देशों में रिटायर्ड लोगों और कामगारों का अनुपात बिगड़ते चल रहा है। इस नौबत को सुधारने के लिए कई देश इस विकल्प पर विचार कर रहे हैं कि दूसरे देशों से कामगारों को आने की छूट देकर कैसे घरेलू जरूरत पूरी की जाए। भारत के बेरोजगारों के सामने भी दुनिया के ऐसे कई देशों, और दर्जनों दूसरे देशों में जाकर काम करने की संभावनाएं खड़ी हैं, लेकिन भारत की नौजवान पीढ़ी बेरोजगारी के अपने सारे बरस सरकार को कोसने में गुजार देती है, बजाय किसी हुनर को सीखने के। भारत की देश-प्रदेश की सरकारें भी अपनी बेरोजगार पीढ़ी को बाकी दुनिया की जरूरतों के मुताबिक तैयार करने के मामले में एकदम ही कमजोर हैं। देश में आज 80 करोड़ आबादी केन्द्र सरकार से मिलने वाली अनाज-राहत के भरोसे चल रही है, और रोजगार की कतारें सब मिला ली जाएं, तो वे धरती से चांद तक पहुंच जाएंगी। भारत को, और उसके प्रदेशों को ऐसी दूरदर्शिता दिखाने की जरूरत है कि स्कूल की जरूरी पढ़ाई के बाद अधिकतर छात्र-छात्राओं को उनकी क्षमता के मुताबिक अलग-अलग किस्म की ट्रेनिंग में डाला जाए, और उन्हें देश-परदेस की जरूरतों के हिसाब से तैयार किया जाए ताकि वे डिग्रीधारी बेरोजगार का सम्मान पाने के बजाय हुनरमंद कामगार बनने का रोजगार पा सकें।
चलते-चलते एक छोटी सी जानकारी, छत्तीसगढ़ के सरकारी कॉलेजों में अतिथि व्याख्याता के एक पद के लिए साढ़े 6 सौ लोगों ने अर्जी लगाई है। इन्हें कॉलेज की जरूरत के मुताबिक प्रति पीरियड कुछ सौ रूपए का भुगतान होता है, जो अधिकतम भी 50 हजार रूपए महीने से अधिक नहीं हो सकता, और यह किसी भी दिन खत्म किया जा सकता है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


