संपादकीय
पटना से दिल्ली का सफर कर रहे केन्द्रीय कृषिमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह देखकर कुछ हैरान रह गए कि उनके प्लेन के को-पायलट बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता और सांसद राजीव प्रताप रूड़ी थे। आज शिवराज जिस मोदी सरकार में मंत्री हैं, उसी मोदी सरकार में राजीव प्रताप रूड़ी तीन बरस मंत्री रह चुके हैं। अब वे मंत्री नहीं हैं लेकिन एक कमर्शियल पायलट होने के नाते वे नियमित मुसाफिर उड़ानों को भी उड़ाते हैं। हाल ही में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि इस देश के तमाम नेताओं में कुल दो ही ऐसे हैं जो मुसाफिर उड़ान उड़ाने वाले पायलट रहे, पहले राजीव गांधी, और अब राजीव प्रताप रूड़ी। उन्होंने यह बात तब कही थी जब संसद परिसर में राह चलते राहुल गांधी ने रूककर उनसे बात की थी, क्योंकि उन्हीं दिनों वे कांस्टीट्यूटशन क्लब का चुनाव भी लड़ रहे थे, जिसमें दलगत राजनीति से परे सभी सांसद एक-दूसरे से वोट मांग लेते हैं। अब चूंकि इस देश में राजनीतिक दलों के बीच कड़वाहट ने कुनैन को शक्कर की तरह मीठा दर्जा दे दिया है, इसलिए भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के बीच के चलते-चलते नमस्कार-चमत्कार को भी शक की नजरों से देखा गया था। ऐसी चर्चा के बीच ही रूड़ी ने यह साफ किया था कि वे मुसाफिर उड़ान भी उड़ाते हैं।
इस देश की राजनीति में किसी नेता को कोई पेशेवर काम करते देखना कुछ अटपटा लगता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि नेता बनने के बाद न सिर्फ नेताजी को, बल्कि उनकी आने वाली कई पीढिय़ों को भी किसी काम की कोई जरूरत क्यों होनी चाहिए? देश का माहौल कुछ ऐसा ही है कि लोग राजनीति में एक ऊंचाई पर पहुंचने के बाद उसी अनुपात में संपन्नता की ऊंचाई पर भी पहुंच जाते हैं, और दिखावे के लिए भी किसी काम करने की जरूरत महसूस नहीं करते। वैसे तो भूतपूर्व सांसद और विधायक की पेंशन भी अब जिंदा रहने जितनी हो गई है, लेकिन विधायक, सांसद, या मंत्री बनने के बाद लोग अपने पेशे या हुनर के काम को करते रहें, ऐसा कम ही सुनाई पड़ता है। आमतौर पर नेताजी और उनके बच्चे, बेटी-दामाद जमीन-जायदाद और कंस्ट्रक्शन के काम में लगते हैं क्योंकि उसी जगह पर कालेधन को बड़े अनुपात में खपाने की गुंजाइश रहती है। कुछ लोगों के आल-औलाद कारखाने खोल लेते हैं, और ये कारखाने सिर्फ मशीनों वाले नहीं रहते, कमाई करने वाले कई किस्म के धंधों वाले भी रहते हैं। इसलिए इस माहौल के बीच कुछ काम करने वाले नेता थोड़े से खटकते हैं मानो वे अपने साथी दूसरे नेताओं पर तंज कस रहे हों। तंज कसने के लिए हर बार शब्द ही नहीं लगते, कई बार बिना किसी को कहे हुए अपना खुद का कोई काम भी दूसरों पर तंज सरीखा लगता है। अब किसी बैठक में, या मंच पर जहां हर किसी के सामने महंगे ब्रांड की पानी की बोतलें रखी जाएं, वहां कोई घर से खुद उठाकर लाया गया पानी का फ्लास्क निकालकर पानी पीने लगे, तो वह औरों पर तंज ही रहता है। हो सकता है कि रूड़ी ने रोजी-रोटी के लिए यह उड़ान न उड़ाई हो, और कमर्शियल पैसेंजर प्लेन के पायलट का अपना लाइसेंस जिंदा रखने के लिए वे बीच-बीच में ऐसा करते हों, लेकिन जब एक साथी मंत्री बनकर सफर कर रहा हो, तब दूसरा साथी पायलट की वर्दी में प्लेन उड़ा रहा हो, तो यह भी कोई निजी पेशा या व्यवसाय न करने वाले महज मंत्री-नेता पर तंज सरीखा लग सकता है।
पार्षद बनते ही घोषित तौर पर अपना पेशा या कारोबार बंद कर देने वाले लोगों को भी रूड़ी से कुछ सीखना चाहिए। अगर राजनीति में, सार्वजनिक जीवन में जनता की जेब पर पलते हुए लोगों को ईमानदार बने रहना है, तो उन्हें किसी ऐसे काम की सोचना चाहिए जिसे वे कानूनी दायरे में कर सकें, या इतना आत्मविश्वास रखना चाहिए कि कार्यकाल खत्म होने के बाद वे उस काम पर लौट सकें। नेतागिरी अपने आपमें एक बड़ा मुनाफे का कारोबार है, यह सामाजिक सच तो है, लेकिन यह इज्जतदार सच नहीं है। हमने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बहुत पहले सांसद रहे केयूर भूषण को देखा हुआ है जो कि कार्यकाल खत्म होने के बाद साइकिल पर पूरा शहर घूमते थे। कुछ और नेता भी इस तरह के रहे होंगे जिनका नाम हमें तुरंत याद नहीं पड़ रहा है, लेकिन ऐसे बहुत कम रहे होंगे। अधिकतर नेता तो अपने कार्यकाल में ही इस अंदाज में कमाई करने में लग जाते हैं कि किसी दिन मुखिया बनने के लिए अगर साथियों को खरीदने की जरूरत पड़ी, तो उस दिन पैसों की कमी से काम नहीं रूकना चाहिए। अपने कार्यकाल खत्म हो जाने के बाद की जिंदगी किसी तरह कट जाए, महज उतनी फिक्र पर हसरत थमती नहीं है, लोगों की दो अलग-अलग फिक्र ट्रेन की दो पटरियों की तरह समानांतर चलती हैं, एक तो परमाणु युद्ध में दुनिया के नष्ट हो जाने तक अपने कुनबे की अगली पीढिय़ों की इंतजाम की, और दूसरी लीडरशिप की लड़ाई में खरीद-फरोख्त के लिए ताकत पूरी तैयार रखने की। जनता के बीच अपनी जमीन बनाकर रखने के बजाय देश-प्रदेश में जमीनों को अपना बनाकर रखने की हवस, और उसके पूरे हो जाने के बाद उसकी ताकत नेताओं को इतना बेफिक्र कर देती हैं कि उन्हें जनता की फिक्र की फिक्र नहीं रह जाती।
भला हो राजीव प्रताप रूड़ी का जिसने हमें नेताओं को आईने का तोहफा देने का यह मौका दिया है। एक भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री अपने हुनर को किस तरह जिंदा रख सकता है, यह देखने लायक है। कम से कम इतना तो है कि रूड़ी अगर ईमानदार रहना तय करेंगे, तो उनके पास अपनी ईमानदारी को निभाने के लायक हुनर तो है। बाकी लोगों को भी दो-नंबरी से लेकर दस-नंबरी तक के कारोबार के साथ-साथ छोटा-मोटा हुनर भी सीख लेना चाहिए। यह हुनर उन्हें बेहतर इंसान बने रहने में मदद भी कर सकता है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


