संपादकीय
जैसे किसी बहुत मामूली सी साहित्यिक पुरस्कार के लिए कई बहुत ही औसत लेखक-कवि कोशिश करने लग जाते हैं, गुटबाजी करते हैं, लॉबिंग करते हैं, उससे भी बहुत घटिया दर्जे पर उतरकर अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प नोबल शांति पुरस्कार के लिए दावा करते चल रहा है। शायद पूरी रात उसे सपने में नोबल शांति पुरस्कार का मैडल ही दिखते रहता है। अभी वह 50वीं बार भारत और पाकिस्तान के बीच का युद्ध रूकवाने का दावा कर रहा है, और भारत तकरीबन हर बार इसे गलत बतलाते आया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में साफ कहा था कि किसी भी देश के नेता ने भारत से ऑपरेशन सिंदूर रोकने को नहीं कहा था। जिस तरह एक राजनयिक और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के शिष्टाचार का तकाजा रहता है, भारत ने साफ शब्दों में ट्रम्प के दावों को सच से परे कहा है, लेकिन भारत के बहुत से हित अमरीका से जुड़े हुए हैं, इसलिए वह भारत के चुनाव आयोग की तरह राहुल गांधी के हर बयान का हमलावर जवाब मिनटों के भीतर नहीं दे रहा है। फिर भी भारत ने दर्जन भर से अधिक बार यह साफ किया है कि पाकिस्तान के साथ इसके रिश्तों में किसी तीसरे पक्ष की कोई गुंजाइश नहीं है, और ट्रम्प ने भारत से ऑपरेशन सिंदूर रोकने की कोई बात नहीं कही थी। भारत ने कहा है कि दोनों देशों फौजी अफसरों के बीच बातचीत के बाद इसे रोका गया था।
अब ट्रम्प ने एक बार फिर अपना पुराना राग दुहराया है कि उन्होंने दोनों देशों को कारोबार रोक देने की धमकी देकर यह युद्ध रोका है जो कि परमाणु युद्ध में बदलने का खतरा रखता था। उन्होंने कहा कि अभी पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख आसिम मुनीर ने उनकी तारीफ करते हुए कहा है कि उन्होंने (ट्रम्प ने) लाखों जिंदगियां बचा ली। ट्रम्प ने कहा है कि 9 महीनों में उन्होंने इतने सारे जंग खत्म करवाए हैं, सात फौजी संघर्ष खत्म करवाए हैं, और अब वे इजराइल-हमास के बीच चल रहा जंग खत्म करवाने के करीब हैं। उन्होंने तो अपने दावे में यही कहा है कि कल उन्होंने (इजराइली प्रधानमंत्री के साथ बैठक के बाद) यह जंग भी करीब-करीब खत्म करवा दी है। उन्होंने इस बैठक के बाद जिस अंदाज में अपना गाजा शांति प्लान सामने रखा है, और इसे पश्चिम के इजराइल के आलोचक देशों के साथ-साथ अरब देशों ने भी अच्छा माना है, और तकरीबन तमाम पहलू ट्रम्प के इस योजना के साथ हैं।
फिर भी नोबल शांति पुरस्कार के लिए ट्रम्प की यह हड़बड़ी बड़ी घटिया किस्म की हरकत है। पूरी दुनिया में सबसे अधिक सम्मान वाला माना जाने वाला यह नोबल शांति पुरस्कार अपने खुद को दिलवाने के लिए इस तरह बेसब्र ट्रम्प दुनिया का पहला इंसान है। कल उसने जिस तरह इजराइल और फिलीस्तीन के बीच संघर्ष रोकने के लिए एक योजना की घोषणा की, उसके शब्दों से इजराइली प्रधानमंत्री भी पूरी तरह सहमत नहीं थे, और राजनीतिक विश्लेषकों ने ट्रम्प की हड़बड़ी, और उसके दावे को लेकर यह कहा कि वे हमास को कोई संदेश नहीं दे रहे थे, बल्कि नोबल पुरस्कार कमेटी को संदेश दे रहे थे कि शांति पुरस्कार वाले मैडल को पॉलिश करवाना शुरू कर दे। पिछली करीब आधी सदी में हमें और कोई भी सामाजिक आंदोलनकारी, मानवाधिकार कार्यकर्ता, या शासन प्रमुख ऐसे याद नहीं पड़ते जिन्होंने ऐसी बेशर्मी के साथ अपने आपको नोबल पुरस्कार कमेटी के सामने पेश किया हो। एक बड़ा खतरा दुनिया के सामने आज यह है कि अगर किसी और को इस बरस यह पुरस्कार मिल गया, तो हो सकता है कि दुनिया से बदला लेने के लिए ट्रम्प दस-बीस जगह खुद ही जंग शुरू करवा दे। वैसे अब तक का रिकॉर्ड तो यही कहता है कि 24 घंटे में रूस-यूक्रेन जंग को रूकवाने का दावा करने वाला ट्रम्प आज महीनों बाद भी खाली हाथ बैठा हुआ है, और उसने इस चक्कर में नाटो के देशों के साथ अपने रिश्ते बर्बाद कर डाले हैं। पाकिस्तान से एक ताजा मोहब्बत के चलते उसने भारत के साथ चौथाई सदी में अच्छे हुए रिश्तों को तबाह कर दिया है। दिखावे के लिए यारी-दोस्ती की बातें फिजूल हैं क्योंकि ट्रम्प के फैसलों से भारत का उद्योग-व्यापार, यहां के कामगार, यहां से अमरीका जाकर काम कर रहे लाखों लोग, सब पर अनिश्चितता की एक तलवार टंग गई है।
ऐसे भयानक सनकी और बददिमाग को नोबल शांति पुरस्कार देने के बारे में आज की तारीख में तो सोचना भी नामुमकिन लगता है, और अगर फिलीस्तीन को उसका हक मिले बिना दुनिया का यह सबसे बड़ा मवाली अगर बंदूक की नोंक पर इस जंग को खत्म करवाता है, तो वह बाहुबल से गाजा की जमीन पर कब्जा करने जैसा होगा, जिस पर राज ट्रम्प का चलेगा, ट्रम्प ने जो योजना सामने रखी है, उसमें हमास के निहत्थे हो जाने, और गाजा के शासन से अलग हो जाने के बाद जो अंतरराष्ट्रीय बोर्ड गाजा को चलाएगा, उसमें ट्रम्प ने अपने आपको मुखिया रखा है।
मवालियों के ये तौर-तरीके क्या नोबल शांति पुरस्कार कमेटी को समझ नहीं आएंगे? और क्या ट्रम्प के बचे कार्यकाल में बहुत से ऐसे काम करने का खतरा बचा हुआ नहीं है जिससे कि उससे नोबल शांति पुरस्कार देने के बाद भी छीनने की नौबत आएगी?


