संपादकीय
पिछले पखवाड़े जबसे यह घोषणा हुई थी कि बहुत से सामानों में जीएसटी घटेगा, तब से बाजार में सनसनी फैली हुई थी कि नवरात्रि के वक्त सरकार की तरफ से मिलने वाली यह रियायत बाजार को एक नया उत्साह देगी। ऐसा अंदाज है कि चीजों पर औसतन 7 फीसदी जीएसटी घटा है, और बाजार के जानकार बताते हैं कि लोग तो यह तय कर चुके रहते हैं कि किस त्यौहार पर उन्हें कितना खर्च करना है, इसलिए उतनी ही रकम से बाजार में खरीदी-बिक्री 7 फीसदी बढ़ जाने का भी एक अंदाज है। अर्थशास्त्री सोचते हैं कि इससे अर्थव्यवस्था का चक्का 7 फीसदी अतिरिक्त घूमेगा। फिर केंद्र और भाजपा की राज्य सरकारों ने इस रियायत को एक उत्सव की तरह मनाना तय किया है। भाजपा और उसके नेता औपचारिक रूप से इसे एक बचत उत्सव के रूप में मना रहे हैं।
आज बाजार में जब उत्साह का सैलाब आया हुआ दिख रहा है, और चर्चाएं इसे और आगे बढ़ा रही हैं, तो ग्राहक का अपनी क्षमता से बाहर जाकर खर्च करना एक स्वाभाविक बात होगी। सभी तरह के ऑटोमोबाइल पर बड़ी कटौती दिख रही है, और जो लोग अभी तक कोई दुपहिया या चौपहिया लेने के सपने महज इसलिए देखते रह जाते थे कि उनके पास दस-बीस फीसदी रकम कम पड़ती थी, वे अब एक बार कड़ा फैसला लेकर अपनी पसंद की कोई गाड़ी ले सकते हैं, क्योंकि घटी हुई जीएसटी से गाडिय़ों के दाम खासे कम हुए हैं। इसी तरह बाकी तमाम सामान के लिए भी बाजार रियायतें भी प्रचारित कर रहा है, और फाइनेंस कंपनियां भी लोगों को तथाकथित जीरो फाइनेंस पर लोन देने के लिए माला लेकर खड़ी हुई हैं। नवरात्रि के पहले दिन के कारों के उठाव के आंकड़े बताते हैं कि टाटा की 10 हजार, हुंडई की 11 हजार, और मारूति की 30 हजार गाडिय़ां एक दिन में उठी हैं। लोगों को याद होगा कि देश के हर शहर में कार डीलरों ने बड़े-बड़े मैदानों को किराए पर लेकर वहां कारों का खुला गोदाम बना रखा था क्योंकि कार फैक्ट्रियों के अहातों में कार रखने की जगह नहीं बची थी। अब ऐसा लगता है कि यह पूरा स्टॉक दीवाली तक लोगों के घरों में पहुंच जाएगा। शहरी सडक़ों पर त्यौहारी ट्रैफिक जाम में हजारों नई गाडिय़ों का जाम और जुड़ जाएगा।
उत्सव और उत्साह के इस माहौल में ग्राहक को अपना दिमाग, और अपना दिल भी, अपनी जगह पर मजबूती से जमाए रखना चाहिए। सपने तो पूरे परिवार के बहुत से होते हैं, लेकिन भारत के एक फीसदी से भी कम परिवार ऐसे हैं जो अपने हर सपने पूरे कर सकते हैं, या फिर यह भी हो सकता है कि उनके और बहुत से ऐसे सपने हों जिनका हमें अंदाज न लगता हो। ऐसे माहौल में लोग अपनी क्षमता से बाहर जाकर खरीददारी कर सकते हैं, और बाद में उसकी किस्तें पटाते हुए, उनकी क्षमता चुक सकती है। आज आसान फाइनेंस, और कुछ मध्यमवर्गीय लोगों के पास के क्रेडिट कार्ड की वजह से लोग अंधाधुंध खरीददारी की कगार पर खड़े हैं। सामान खरीदते हुए यह अंदाज नहीं लगता कि हर बरस गाडिय़ों के बीमे पर कितना पैसा लगता है, सर्विसिंग पर कितना पैसा लगता है, और पेट्रोल-डीजल पर तो लगता ही है जिसमें कि जीएसटी की कोई कटौती नहीं हुई है। मध्यम वर्ग के दिल-दिमाग में सपने उफनते रहते हैं, लेकिन उसके दिमाग की उंगलियां कैलकुलेटर पर नहीं चलतीं। नतीजा यह होता है कि एक बार की खरीदी के बाद के खर्च उसे नए चमचमाते सामानों की चमक में नहीं दिखते। वैसे भी हिन्दुस्तानी लोग मकान बनाते हुए, शादियां करते हुए, और साल के सबसे बड़े त्यौहार की खरीददारी करते हुए दिमाग का इस्तेमाल कम ही करते हैं। तर्क यह रहता है कि मकान तो जिंदगी में एक ही बार बनता है, शादी बार-बार तो होती नहीं, और त्यौहार तो साल का सबसे बड़ा त्यौहार है।
मध्यम वर्ग को कोई सामान खरीदते हुए सबसे पहले तो यह सोचना चाहिए कि आज कमाई का जो जरिया है, जो नौकरी है, कल अगर वह नहीं रह गई, तो इन चीजों का भुगतान कैसे होगा? फिर मध्यमवर्ग अपनी बचत के आखिरी सिक्के तक को कई बार ऐसे खर्च में झोंक देता है, भुगतान की अपनी ताकत से बाहर जाकर कर्ज ले लेता है, और यह सबकुछ करते हुए वह मानकर चलता है कि आज जितनी कमाई तो जारी रहेगी ही। लेकिन आज छोटी-बड़ी कई किस्म की नौकरियों में लोगों को निकाला जाता है। एआई की मेहरबानी से पत्रकारों से लेकर अनुवादकों तक, टाइपिस्ट से लेकर लेखकों तक बहुत से लोगों की नौकरियां अब वैसे भी खत्म हो गई हैं। जहां लोगों को हटाया नहीं जा रहा, वहां भी नए लोगों को भर्ती नहीं किया जा रहा है। कब किसकी नौकरी चली जाए, किसका कारोबार ठप्प हो जाए, इसका कोई ठिकाना नहीं है। एक अकेले ट्रम्प के हमले से हिन्दुस्तान में लाखों लोग बेरोजगार हो चुके हैं, और यह ठिकाना नहीं है कि बंद हो चुके कारखाने और कारोबार कभी शुरू हो पाएंगे या नहीं। ऐसे में नौकरी खोने वाले लोगों के पास उनके ताजा खरीदे हुए नए चमचमाते सामान अपनी बकाया किस्तों के साथ मुंह चिढ़ाते खड़े रहेंगे। फिर एक दूसरी नौबत भी सोचने की जरूरत है। आज के वक्त में तरह-तरह के हादसों में और बड़ी महंगी-महंगी बीमारियों के चलते लोगों के सिर पर कब आसमानी बिजली की तरह कोई खर्च आकर गिरता है, और वह चि_ी लिखकर नहीं आता। लोगों की ऐसी पारिवारिक जिम्मेदारियां पूरी करने की कुछ ताकत तो उन्हें बचाकर रखनी चाहिए क्योंकि हर वक्त कर्ज मिल जाए, यह भी जरूरी नहीं रहता। यह भी जरूरी नहीं रहता कि सिर पर गिरी आसमानी बिजली से नुकसान कितना होता है। आज तो महंगे इलाज और महंगी दवाईयां इस हद तक नजरों के सामने हैं कि लोगों को क्षमता से बाहर जाकर भी इलाज के बारे में सोचना तो पड़ता है।
आज की बात जीएसटी-किफायत उत्सव, और त्यौहार के माहौल में लोगों को कुछ उदासी की लग सकती है, लेकिन बचत और मुसीबत की सावधानी उसी वक्त तो सुझाई जा सकती है जब लोग फिजूलखर्ची करने की खतरनाक कगार पर खड़े हुए हों। भारत के इस हिस्से में नवरात्रि से लेकर दीवाली तक ही सबसे अधिक खर्च हो जाता है, और आज अगर लोग संभलकर, सोचकर खर्च नहीं करेंगे, तो बहुत से लोग आगे चलकर परेशानी में फंसेंगे। लोगों को खर्च का उत्साह देने वाले आज बहुत से लोग हैं, पूरा बाजार है, पूरी सरकार है, लेकिन लोगों को उनके जीवन की असली आशंकाओं की याद दिलाना भी किसी की जिम्मेदारी होनी चाहिए, और इसीलिए हम यह पूरी तरह से अप्रिय चर्चा यहां पर कर रहे हैं। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


