संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : गाडिय़ों पर जात-धरम की नुमाइश पर जुर्माना तो करें
सुनील कुमार ने लिखा है
23-Sep-2025 2:42 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : गाडिय़ों पर जात-धरम की नुमाइश पर जुर्माना तो करें

गाड़ी के नंबर की जगह नगर पालिका निगम देख, यातायात पुलिस को भी लग रहा हो की इसका चालान किया जाए कि छोड़ दिया जाए....


इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले को देखते हुए उत्तरप्रदेश की योगी सरकार ने अभी एक आदेश निकाला है जो कि जाति व्यवस्था से लदे हुए उत्तरप्रदेश के लिए बड़ी अटपटी बात होगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभी 16 सितंबर को यह निर्देश दिया है कि सडक़ों पर चलने वाली किसी गाड़ी पर जाति के नाम, नारे, या स्टिकर नहीं होने चाहिए। किसी भी तरह से गाड़ी चलाने वाले या मालिक की जाति की नुमाइश नहीं होनी चाहिए। अदालत ने कहा है कि ऐसे किसी भी जाति प्रदर्शन पर मोटर व्हिकल एक्ट के तहत कार्रवाई की जाए। इसके अलावा हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस के दस्तावेजों में, किसी नोटिस में, जब तक जाति का उल्लेख कानूनी रूप से जरूरी न हो, (जैसे एसटी-एससी एक्ट के तहत दर्ज मामलों में जाति के आधार पर अलग कानून से कार्रवाई होती है) तब तक किसी की जाति का उल्लेख न किया जाए। अब यूपी सरकार ने पुलिस और अदालती रिकॉर्ड से जाति का कॉलम हटाने का आदेश निकाला है, और गाडिय़ों पर किसी भी जाति का जिक्र होने पर जुर्माना हो सकता है। सरकार ने यह भी कहा है कि सोशल मीडिया पर जाति गौरव, या जातियों के बीच मनमुटाव बढ़ाने वाले कंटेंट पर निगरानी की जाए, और कार्रवाई की जाए। यूपी सरकार ने तो यह भी कहा है कि पूरे राज्य में जाति आधारित रैलियों, और राजनीतिक आयोजनों पर रोक लगाई जा रही है। देश के मोटरवाहन अधिनियम में वाहनों पर जाति या धर्म से संबंधित कोई भी स्टिकर लगाना गैरकानूनी है, इसमें पांच सौ रूपए से लेकर पांच हजार रूपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। पिछले बरस 13 सितंबर के यूपी हाईकोर्ट के आदेश में धर्म संबंधी स्टिकर पर भी कार्रवाई करने की बात की गई थी, और कहा गया था कि सरकार जाति-धर्म से जुड़े सभी स्टिकर, बोर्ड, झंडे तुरंत हटवाए, और चालान करने के अलावा जरूरत होने पर गाड़ी जब्त भी की जाए।

अब यह मामला तो इलाहाबाद हाईकोर्ट और यूपी सरकार का है, लेकिन मोटरवाहन अधिनियम तो पूरे देश पर एक सरीखा लागू है। उसी के प्रावधानों को अदालत ने कड़ाई से लागू करने के लिए कहा है। इसलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्याय क्षेत्र से बाहर भी बाकी देश में भी इस पर अमल होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ अलग मामलों में इसी तरह के आदेश दिए हैं कि गाडिय़ों पर जाति-धर्म, राजनीतिक पार्टी, या निजी पहचान के चिन्ह लगाना कानून गलत है। दिल्ली पुलिस ने 2022 में एक अभियान चलाकर जात-धरम के स्टिकर हटवाए थे। मध्यप्रदेश में 2023 में हाईकोर्ट के आदेश पर ऐसी ही कार्रवाई हुई थी। राजस्थान में 2022 में ऐसा किया गया था। हरियाणा और पंजाब में 2021-22 से पुलिस ऐसी कार्रवाई कर रही है, वहां हाईकोर्ट ने कहा था कि ऐसे स्टिकर जातिवाद और हिंसा को बढ़ावा देते हैं। इस तरह यह बात साफ है कि मोटरवाहन अधिनियम से लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों तक बार-बार यह बात सामने आई है कि गाडिय़ों पर जात-धरम की नुमाइश करना गैरकानूनी है, और जुर्माने से लेकर गाड़ी जब्ती तक कई तरह की कार्रवाई की जा सकती है।

अब हम जमीनी हकीकत पर आएं, तो न सिर्फ निजी गाडिय़ों पर, बल्कि सरकारी गाडिय़ों पर भी जात-धरम की नुमाइश धड़ल्ले से चलती है। मुस्लिमों के बीच जो शुभ संख्या मानी जाती है, वह 786 ऐसी बहुत सी सरकारी गाडिय़ों में नंबर प्लेट पर दिखती है जिन्हें सत्तारूढ़ नेता या अफसर अपने कार्यकाल में खरीदते हैं। अब यह धर्म से जुड़ा हुआ अंक जरूर है, लेकिन यह आरटीओ का दिया हुआ नंबर भी है। हो सकता है कि यह मामला मोटरवाहन अधिनियम, और अदालतों के आदेशों में न आए, लेकिन इस एक संख्या से लोगों को यह तो दिख ही जाता है कि यह किस धर्म के व्यक्ति की गाड़ी होने की संभावना है। लेकिन आरटीओ की दी हुई नंबर प्लेट से परे अगर देखें, तो उत्तर भारत के राज्यों में, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में दसियों लाख गाडिय़ां ऐसी हैं जिनमें जात और धर्म के स्टिकर लगे हैं, किसी धर्म के  आराध्य की तस्वीरों के स्टिकर लगे हैं, तरह-तरह के धार्मिक नारे लिखे हैं। बहुत सी गाडिय़ां तो हम अपने आसपास ही ऐसी देखते हैं जिनमें नंबर प्लेट की जगह ब्राम्हण, ठाकुर, कुर्मी, जैसी कई तरह की जातियां लिख दी जाती हैं। कई गाडिय़ां ऐसी रहती हैं जिनकी नंबर प्लेटों पर नंबर तो नहीं रहता, लेकिन सिक्ख धर्म का निशान लगाया हुआ रहता है। और तो और अब तो कुछ ऐसे नंबर हैं जिनके अंकों को नंबर प्लेट पर इस तरह तोड़-मरोडक़र लिखा जाता है कि वे अंक नहीं दिखते, राम दिखते हैं। जात और धरम की नुमाइश, किसी भी ताकतवर, या अर्जी-फर्जी संगठनों के असली-नकली पदनामों वाली तख्तियां गाडिय़ों पर लगा दी जाती हैं, और ऐसी कई तख्तियां तो नंबर प्लेट की जगह लगा दी जाती हैं। मानवाधिकार के नाम पर देश में ढेर सारे फर्जी संगठन बने हैं, और उनके नाम, पदनाम के जिक्र वाली ऐसी नंबर प्लेट गाडिय़ों पर लगा दी जाती हैं जिनके पीछे पुलिस विभाग के रंग का बैकग्राउंड भी रहता है। मतलब यह कि अपनी असली या नकली ताकत की नुमाइश का कोई भी मौका लोग नहीं छोड़ते हैं।

हम तो दशकों से इस बात के खिलाफ लिखते चले आ रहे हंै, और देश का मोटरवाहन अधिनियम भी सरकारों पर यह जिम्मेदारी डालता है कि यह सिलसिला खत्म किया जाए, लेकिन निर्वाचित सरकारों के किसी भी जात, धरम, संगठन पर कार्रवाई करते हुए हाथ कांपने लगते हैं। बड़े-बड़े जात-धरम के झंडे गाडिय़ों पर लहराते रहते हैं, और सरकारों को इन्हें अनदेखा करना सहूलियत का काम लगता है। नतीजा यह होता है कि सडक़ों पर न सिर्फ आम जनता, बल्कि ट्रैफिक पुलिस भी ध्यान से यह देख लेती है कि ट्रैफिक-गुंडागर्दी करने वाले लोग किस जात-धरम के हैं, और उन्हें धरने पर उनके किस नेता का फोन तुरंत आ जाएगा। यह पूरा सिलसिला खत्म होना चाहिए। छत्तीसगढ़ में हाईकोर्ट बहुत सारे मामलों में सक्रिय है, और सरकार को कटघरे में खड़े रखता है। यह मामला सामाजिक जीवन में जात, धरम, ओहदे जैसे भेदभाव को बढ़ाने वाला है, और छत्तीसगढ़ के हाईकोर्ट को भी देश के कानून को यहां कड़ाई से लागू करने के लिए राज्य सरकार से हलफनामा लेना चाहिए। जात और धरम का जहर इतना अधिक फैल चुका है कि उसकी नुमाइश उसे और फैलाती है। अदालती दखल के बिना सरकार कुछ भी नहीं करेगी।

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