संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : क्रिकेट को लेकर तनातनी, पहले से बढ़ाए उन्माद का नतीजा, अभी और खतरे
सुनील कुमार ने लिखा है
22-Sep-2025 8:42 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : क्रिकेट को लेकर तनातनी, पहले से बढ़ाए उन्माद का नतीजा, अभी और खतरे

मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक कुछ पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाडिय़ों की तस्वीरें और उनके वीडियो छाए हुए हैं जिनमें वे भारत के साथ हुए क्रिकेट मैच के दौरान तरह-तरह के इशारों से भारत की खिल्ली उड़ाते दिख रहे थे। कभी वे बल्ले को बंदूक की तरह दिखा रहे थे, तो कभी हाथों से हवाई जहाज गिरा देने के इशारे कर रहे थे कि किस तरह ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कहा जा रहा है कि पाकिस्तान ने भारत के आधा दर्जन लड़ाकू विमान गिराए हैं। इनके अलावा हाथों की कुछ हरकतें अश्लील भी मानी जा रही है। इस टूर्नामेंट में इसके पहले भी पहले मैच के बाद भारत के खिलाडिय़ों ने पाकिस्तान के खिलाडिय़ों से हाथ मिलाने से इंकार कर दिया था जिसे खेलकूद की दुनिया में अशिष्टता माना जा रहा था। भारत में बहुत से तबकों की प्रतिक्रिया यह रही कि पहलगाम हमले के बाद और ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान से जो तनातनी चल रही थी, पाकिस्तान पर भारत सरकार ने जो आरोप लगाए थे, उन्हें देखते हुए पाकिस्तान के साथ मैच खेलना ही नहीं था। भारत की नदियों से पाकिस्तान को जाने वाले पानी को लेकर भारत सरकार ने शुरू से कहा था  कि खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते। ऐसे में भारत में बहुत से लोगों का यह मानना था कि पाकिस्तान के साथ क्रिकेट क्यों खेला जाए?

भारत सरकार की तरफ से यह सफाई दी गई थी कि चूंकि यह टूर्नामेंट दो देशों के बीच का नहीं था, बल्कि यह कई देशों के बीच का था, इसलिए भारत का इसमें खेलने से मना करना मुमकिन नहीं था। इस सरकारी कथन के जवाब में लोगों ने दुनिया के इतिहास के बड़े-बड़े अंतरराष्ट्रीय, और बहुराष्ट्रीय टूर्नामेंटों की लिस्ट गिना दी थी कि कब और किस देश ने कौन से टूर्नामेंट का बहिष्कार किया था। लोगों ने इस बात के लिए भी आलोचना की थी कि क्रिकेट के साथ विज्ञापनों और स्पांसरशिप की कमाई जुड़ी रहती है, प्रसारण से भी कमाई होती है, इसलिए सिर्फ कमाई को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान से मैच का बहिष्कार नहीं किया गया। खैर, हम दो देशों के बीच के रिश्तों में गैरजरूरी बहिष्कार के खिलाफ रहते आए हैं, और भारत सरकार के कथन से सहमति या असहमति से परे हमारा यह मानना है कि सरहद पर चल रहे तनाव से खेलकूद, कला, संस्कृति, फिल्म, टेलीविजन, साहित्य को अलग भी रखा जा सकता है। हमने इस बात की भी वकालत की थी कि पाकिस्तान से बड़ी संख्या में जो जरूरतमंद लोग बड़े इलाज के लिए हिन्दुस्तान आते हैं, उसे जारी रखा जाना चाहिए। आम लोगों की आवाजाही चलने देनी चाहिए। लेकिन दोनों देशों ने अपनी-अपनी जमीन पर जब नफरत के फतवे हवा में गूंजते हैं, तो अक्ल किनारे धरी रह जाती है। राष्ट्रवादी और युद्धोन्मादी उन्माद लोगों के तर्क और न्याय की समझ को ढांक लेते हैं। ऐसे में हर चीज के बहिष्कार के फतवे होने लगते हैं, और इस बार के तनाव से पहले भी भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले तनाव के बाद से कारोबार पर रोक चली आ रही थी, जिससे इन दोनों ही देशों का बड़ा आर्थिक नुकसान हो रहा था।

अगर कुछ लोगों को लगता है कि सरहद की लड़ाई, या दूसरे की जमीन पर आतंकी हमले गैरफौजी, गैरराजनीतिक मामलों के बहिष्कार से थम जाएंगे, तो यह नासमझी की बात है। हम तो खून और पानी साथ-साथ बहने या न बहने जैसी बात के भी खिलाफ हैं। हम पड़ोसी देश के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने के हिमायती हैं क्योंकि देश गरीब हो या अमीर हो, पड़ोसी से दुश्मनी बड़ी महंगी पड़ती है। और पाकिस्तान के क्रिकेट-बहिष्कार से भारत को भला क्या ही हासिल हो गया रहता, आज पाकिस्तान ने सऊदी अरब से जो फौजी संधि की है, वह हमारे हिसाब से तो पाकिस्तान के परमाणु बम बनाने के बाद का सबसे ताकतवर फौजी फैसला है। अगर किसी सरकार, या राजनीतिक ताकत का बस चलता, तो उन्हें ऐसी किसी संधि को रोकने की कोशिश करनी थी, लेकिन वह तो हुआ नहीं, अब क्रिकेट या टीवी कलाकारों के बहिष्कार से सिर्फ फतवों का पेट भरता है, देश की हिफाजत नहीं बढ़ती। आज पाकिस्तान-सऊदी फौजी पैक्ट से सऊदी की अथाह दौलत का जितना कुछ भी सहारा दीवालिया पाकिस्तान को मिलेगा, वह कम नहीं रहेगा, और सऊदी को अपने दुश्मनों के किसी हमले, या उनके साथ जंग की नौबत में पाकिस्तान की परमाणु हथियार क्षमता का पूरा साथ मिलेगा। इधर हिन्दुस्तान के लोग पाकिस्तान से क्रिकेट के खिलाफ रोना रो रहे हैं, और उधर शायद भारत सरकार को पाक-सऊदी इस नए याराना की खबर भी नहीं हुई। जब भी कोई देश गैरजरूरी और सतही भावनात्मक, या चर्चित मुद्दों में उलझ जाता है, तो वह असल खतरों को अनदेखा करने की कीमत पर ही ऐसा कर पाता है।

भारत और पाकिस्तान दोनों ही सरकारों के सामने अपनी जनता को संतुष्ट करना, अपने आपको राष्ट्रवादी साबित करना, अपने को पड़ोसी देश से अधिक ताकतवर साबित करना पड़ता है। यह चुनावी और राजनीतिक मजबूरी सरकारों को गैरजरूरी विवादों में उलझाकर रखती है, और सरकारें देश की सुरक्षा जरूरतों से परे महज जनधारणा प्रबंधन में लग जाती हैं। फिर भी हम इस बात का जिक्र करना चाहेंगे कि जब क्रिकेट को लेकर, पहलगाम, और ऑपरेशन सिंदूर को लेकर दोनों ही देशों में उन्माद चल रहा था, उस बीच पाकिस्तान ने सऊदी अरब के साथ यह ऐतिहासिक और असाधारण मिलिट्री पैक्ट किया है, जो कि उसकी बहुत बड़ी कामयाबी है। भारत के तमाम उन्मादी तबकों को यह देखना चाहिए कि पिछले कई दशक के उनके उन्माद से न तो पाकिस्तान का परमाणु हथियार संपन्न होना रूक पाया, न ही चीन का असाधारण समर्थन मिलना रूका, और न ही अभी सऊदी के साथ उसकी यह संधि रूकी। किसी भी समझदार देश को सतही उन्माद में अपनी जनता को उलझाकर नहीं रखना चाहिए, क्योंकि उन्माद को कोई समाज, संगठन, सरकार बढ़ा भर सकते हैं, घटा नहीं सकते। और बढ़े हुए उन्माद का हाल एक बड़े किए गए काल्पनिक राक्षस सरीखा रहता है, जिसका पेट भरना लोगों की जिम्मेदारी हो जाती है। भारत और पाकिस्तान में जनता का पड़ोसी देशों के खिलाफ पैदा किया गया, और बढ़ाया गया उन्माद ऐसा ही हो चुका है कि दोनों देश परस्पर नफे के बजाय उन्मादी नुकसान को झेलते हुए अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं, और अपनी ही कमर तोड़ रहे हैं। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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