संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : छप्परफाड़ कमाई की चाह दिमाग किनारे बैठा देती है
सुनील कुमार ने लिखा है
21-Sep-2025 4:46 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : छप्परफाड़ कमाई की चाह दिमाग किनारे बैठा देती है

पूरे देश से ही इन दिनों ऐसी खबरें आ रही हैं कि शेयर बाजार में पूंजीनिवेश का झांसा देकर, या क्रिप्टोकरेंसी में पैसा लगाकर, किसी चिटफंड कंपनी का सदस्य बनाकर लोगों को लूटा जा रहा है। यह लूट ठगी या जालसाजी से थोड़ी सी अलग इसलिए है कि डिजिटल अरेस्ट करने की धमकी देकर, जिन लोगों को ब्लैकमेल किया जाता है, निचोड़ लिया जाता है, उनसे ये मामले अलग हैं। ये मामले अधिक रकम कमाने की लालच में लोगों के खुद पूंजीनिवेश करने के हैं। इनमें दिया गया धोखा थोड़ा अलग किस्म का है, लेकिन अपनी जिंदगी भर की जमा पूंजी लुटाकर, नोटों के पेड़ पाने की लालच में ऐसा करने वाले लोग कम नहीं हैं। कल भी छत्तीसगढ़ के दुर्ग में एक आदमी-औरत पकड़ाए हैं जिन्होंने शेयर बाजार से अंधाधुंध कमाई का झांसा देकर लोगों से 12 करोड़ रूपए ठग लिए। शेयर बाजार में नामौजूद कंपनियों के नाम पर लोगों ने धोखा खाया। पिछले पांच बरस से हम हर हफ्ते चिटफंड कंपनियों के लोगों की गिरफ्तारियां देखते आ रहे हैं, लेकिन गिरफ्तारियों से बावजूद डूबी हुई रकम तो अब वापिस आ नहीं सकती।

आज बैंकों और कुछ दूसरे सरकारी वित्तीय संस्थाओं की बहुत सी भरोसेमंद योजनाएं हैं जिनमें लोग पैसा जमा करके, या लगाकर ठीकठाक कमाई कर सकते हैं। इनमें से जो योजनाएं शेयर मार्केट में पूंजीनिवेश की हैं, उनमें भी लोगों के पास यह अलग-अलग पसंद रहती है कि वे कुछ अधिक कमाई के लिए कुछ अधिक खतरे वाली कंपनियों में पूंजीनिवेश करना चाहते हैं, या अधिक सुरक्षित कंपनियों में पूंजीनिवेश वाली कम मुनाफे की योजनाओं में पैसा डालना चाहते हैं। खतरों से खेलने की ये सीमाएं सरकारी और बड़े निजी बैंकों में मौजूद हैं, और योजनाओं में काफी हद तक सीमाओं और संभावनाओं की जानकारी भी दी जाती है। ऐसी पॉलिसी या डिपॉजिट स्कीम बेचने के लिए इन सबके एजेंट भी हैं, लेकिन जो भी वित्तीय संस्थान धोखाधड़ी की नीयत नहीं रखते हैं, वे सपने नहीं दिखा सकते, वे सीमाएं और संभावनाएं बता सकते हैं। इस बीच लोगों को सपने देखने की चाह ऐसी रहती है कि वे जालसाजों की दिखाई राह पर दौड़ पड़ते हैं। आज चारों तरफ जो लोग जालसाजी के शिकार हैं, वे ऐसे ही लोग हैं जो कि नोटों का पेड़ पाने के लिए जमीन में नोट दफन करके उसे खाद-पानी देने को तैयार हो जाते हैं, और जालसाज उन नोटों को लेकर रफूचक्कर हो जाते हैं।

हम सरकार की कुछ दूसरी कमियों और खामियों की चर्चा तो करते रहते हैं जिनकी वजह से जालसाजी और धोखाधड़ी पनपती और बढ़ती हैं, लेकिन पूंजीनिवेश को लेकर हम यह नहीं कह सकते कि सरकार, या सरकार के मान्यता प्राप्त भरोसेमंद बैंकों की कमी है, उनकी योजनाएं नहीं हैं, इसलिए लोग जालसाजों की पूंजीनिवेश योजना की तरफ जाने को मजबूर होते हैं। भारत में आज सरकार की मान्यता प्राप्त और सरकारी निगरानी वाली हजारों योजनाएं लोगों के सामने हैं, लेकिन किसी भी कानूनी और जायज योजना की तरह उनके मुनाफे की एक सीमा है। और लोगों की टकसाल की रफ्तार से कमाई की हसरत ऐसी है कि उसे लेकर एक पुराना फिल्मी गाना याद आता है, कई बार यूं ही देखा है, ये जो मन की सीमा रेखा है, मन तोडऩे लगता है...। इस गाने में जिस प्रेम का जिक्र है, उसे अगर कमाई की चाहत की तरह देखें, तो लोग अपनी बुद्धि की सुझाई गई सीमा रेखा को अक्सर तोडऩे लगते हैं क्योंकि उन्हें किसी जालसाज के दिखाए गए हसीन सपनों की मृगतृष्णा हकीकत लगने लगती है।

अब कोई अनपढ़ हो, अखबारों से परे हो, तो उसे जालसाजी से अनजान रहने का संदेह का लाभ दिया जा सकता है। लेकिन जो लोग हर दिन के अखबार में एक-एक दर्जन जालसाजी की खबरें पाते हैं, वे भी अगर पहला मौका मिलते ही अगले जालसाज को अपनी सारी बचत देने को बेताब रहते हैं, तो उन्हें कौन बचा सकते हैं? अखबार आज भी अधिकतर आबादी को हासिल हैं। और अगर अखबार खुद ही किसी जालसाजी की योजना में हिस्सेदार न हों, तो वे दूसरी जालसाजी की खबरें भी छापते रहते हैं। कुल मिलाकर आज के इस डिजिटल दौर में लोगों को छपे हुए शब्दों से परे भी खबरें हासिल हैं, और उन्हें पढक़र सबक लेने को विलासिता मानते हुए 40 फीसदी जीएसटी भी नहीं है। ऐसे में अगर लोग आज भी अपनी मेहनत, या हराम की दौलत को दांव पर लगाने के लिए बेसब्र और उतारू रहते हैं, तो क्या किया जा सकता है? किसी को फर्जी ओटीपी भेजकर उसका बैंक खाता खाली कर देना एक अलग किस्म का जुर्म है, और उस जुर्म के शिकार मोटी कमाई की चाह में पूंजीनिवेश नहीं करते हैं। लेकिन जालसाजों की फर्जी योजनाओं में रातों-रात छप्परफाड़ कमाई की उम्मीद में अवैध प्लॉटिंग की जमीन खरीदने वाले जानते-बूझते लोगों की तरह पैसा लगाने वालों को कौन बचा सकते हैं? अवैध प्लॉटिंग में तो फिर भी प्लॉटिंग अवैध रहती है, जमीन के टुकड़े का अस्तित्व तो रहता है, फर्जी पूंजीनिवेश में तो फर्जी, पूंजी, और निवेश, ये तीनों ही शब्द फर्जी रहते हैं।

फिर भी चाहे लोग अपनी बेवकूफी से पैसा डुबा रहे हों, घूम-फिरकर सरकार की कुछ तो जिम्मेदारी आती ही है। सरकार को ऐसी फर्जी योजनाओं के प्रति जनता को जागरूक करने के अभियान तरह-तरह से चलाने चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद अपने प्रसारणों में कहा है कि डिजिटल अरेस्ट नाम की कोई चीज भारत में नहीं है, इसके बावजूद हर दिन देश में सैकड़ों लोग डिजिटल अरेस्ट होने के लिए बेचैन रहते हैं। ऐसे लोगों को जालसाजों और धोखेबाजों से बचाना आसान काम तो नहीं है, फिर भी सरकार को नए तरीके ढूंढने चाहिए। प्रधानमंत्री का एडवांस में दिया गया भरोसा भी जहां काम न कर रहा हो, वहां कोई और राह ढूंढी जाए, क्योंकि जालसाजी और धोखाधड़ी होने के बाद सारी कानूनी और अदालती कार्रवाई करना तो सरकार के ही मत्थे आता है।

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