संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पाक-सऊदी सैन्य-समझौते के खतरे समझने की जरूरत
सुनील कुमार ने लिखा है
20-Sep-2025 5:36 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : पाक-सऊदी सैन्य-समझौते के खतरे समझने की जरूरत

किसी देश के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हितों के बारे में वहां की जनता को भी अपनी सरकार के बयान से परे फिक्र रखनी चाहिए। सरकारों की अपनी सीमाएं रहती हैं कि वे सार्वजनिक रूप से क्या कहें, और क्या न कहें। हर सरकार तो अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प सरीखी गैरजिम्मेदार नहीं हो सकतीं, कि मुंह खोले और बकवास करे। इसलिए जनता को अपनी सरकार के कहे बिना भी कई चीजों को समझते रहने की कोशिश करनी चाहिए। अब अभी भारत के पड़ोसी, और फौजी मामलों में सबसे बड़े दुश्मन देश पाकिस्तान का सऊदी अरब के साथ एक अभूतपूर्व और चौंकाने वाला फौजी समझौता हुआ है। इस सैन्य समझौते के तहत अब पाकिस्तान और सऊदी अरब एक-दूसरे पर हुए किसी भी हमले की नौबत में उसे अपने पर हमला मानेंगे। पाकिस्तान ने चार कदम आगे बढक़र यह भी कहा है कि उसकी परमाणु क्षमता भी सऊदी अरब के साथ रहेगी। अभी तक इस समझौते की शब्दावली सामने नहीं आई है, लेकिन यह बात साफ है कि ये दोनों देश फौजी मामलों में एक-दूसरे के इतने करीब कभी नहीं थे। भारत के लिए यह फिक्र की बात इसलिए है कि पाकिस्तान परमाणु हथियार संपन्न, और आर्थिक रूप से विपन्न देश है, और सऊदी अरब परमाणु हथियार के बिना है, लेकिन उसका बहुत बड़ा खजाना है। एक सहज बुद्धि से इन दो बातों को जोडक़र देखें तो ऐसा लगता है कि यह खाली पड़े पीपल को बेघर भूत मिलने सरीखा है, एक को घर मिला, और दूसरे को किराएदार।

हम अभी इस पूरे मामले की जटिलता को समझने की कोशिश ही कर रहे हैं, क्योंकि फिलीस्तीन पर हमला करते-करते अभी इजराइल ने फिलीस्तनी संगठन हमास के नेताओं को मारने के नाम पर एक मुस्लिम देश कतर पर जिस तरह हवाई हमले किए, उससे नुकसान तो बहुत कम हुआ, लेकिन मुस्लिम देश हड़बड़ाकर जिस तरह एक साथ बैठे हैं, वैसा शायद ही पहले कभी हुआ हो। गाजा में 65 हजार लोगों का कत्ल हो गया, लेकिन मुस्लिम देशों के चेहरों पर शिकन नहीं पड़ी, लेकिन संपन्न देशों के बीच के एक देश कतर पर जरा सा हवाई हमला हुआ, तो इस्लामिक देश इकट्ठे होकर इस्लामिक नाटो बनाने की बात करने लगे। लोगों को मालूम ही है कि नाटो एक सैनिक संगठन है जिसमें योरप के देशों के साथ-साथ अमरीका भी है, और यह संगठन हाल के बरसों की लड़ाई में यूक्रेन का साथ दे रहा है, और रूस के खिलाफ खड़ा हुआ है। इसी किस्म का कोई संगठन इस्लामिक देशों के बीच बन सके, यह बहुत आसान शायद न हो, लेकिन भारत के लोगों को यह याद रखना चाहिए कि अगर ऐसा कोई संगठन बनता है, तो पाकिस्तान तो उसका अनिवार्य हिस्सा रहेगा, और भारत उसके बाहर ही रहेगा। ऐसे में परमाणु हथियार संपन्न पाकिस्तान रणनीतिक महत्व किसी भी तरह के इस्लामिक सैनिक संगठन में बहुत अधिक रहेगा, और हो सकता है कि यह उसकी मौजूदा फटेहाली का एक समाधान भी हो सके। यह बात कहना बहुत तर्कसंगत और न्यायसंगत तो नहीं होगा, लेकिन इस तस्वीर को देखने का एक सहज नजरिया यह भी हो सकता है कि अतिसंपन्न इस्लामिक देशों के हाथ आज के अतिविपन्न पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की ताकत एक किस्म से भुगतान पर हासिल रहेगी।

यह पूरी तस्वीर बहुत ही बिखरी हुई, और विशाल है, इसलिए हम सिर्फ इसके कुछ हिस्सों की चर्चा कर रहे हैं, कोई निष्कर्ष नहीं निकाल रहे हैं। सउदी अरब पाकिस्तान के साथ से हासिल किसी भी तरह की ताकत से ईरान और इजराइल, दोनों परस्पर दुश्मन देशों के खिलाफ अपना बाहुबल बढ़ा सकता है। इस तस्वीर में कुछ विरोधाभासी बातें भी हैं कि सऊदी अरब अमरीका से भी ठीक रखेगा, लेकिन इजराइल के खिलाफ रहेगा। आज इजराइल पर यह खतरा मंडरा रहा है कि अगर पाकिस्तान की परमाणु क्षमता तक सऊदी अरब की पहुंच हो गई है, तो यह सीधे-सीधे इजराइल के अस्तित्व पर एक खतरा भी है। दूसरी तरफ मुस्लिम देशों के संगठन इजराइल के खिलाफ तो हैं, लेकिन सारे के सारे देश इजराइल से फौजी-दुश्मनी निभाना चाहते हों, ऐसा भी नहीं है। इस तरह बड़े जटिल और विसंगतियों भरे हुए मुस्लिम देशों के आपसी रिश्तों पर यह ताजा पाक-सऊदी फौजी समझौता क्या फर्क डालेगा, यह अभी साफ नहीं है। लेकिन यह बात तय है कि इजराइल और अमरीका अपने मुस्लिम-विरोधी रूख के चलते तमाम मुस्लिम देशों को एक साथ बैठने का एक मौका जुटाकर दे रहे हैं, और इनकी संपन्नता किस तरह एक फौजी ताकत में बदल सकती है, यह आने वाला वक्त बताएगा।

इससे जुड़े हुए एक और पहलू पर सोचने की जरूरत है। दुनिया के कुछ बड़े राजनीतिक विश्लेषक पहले भी इस बात को लिखते आए हैं कि दुनिया में आज मुस्लिम और ईसाई बहुसंख्यक देशों के बीच सभ्यता, और संस्कृति का एक टकराव चल रहा है। इस्लामी सभ्यता, और पश्चिमी सभ्यता के बीच के टकराव का नतीजा था कि न्यूयॉर्क की इमारतों पर ओसामा-बिन-लादेन के विमानों का हमला हुआ था, और उसके पहले इराक और अफगानिस्तान पर, सीरिया और दूसरे मुस्लिम ठिकानों पर अमरीकी और पश्चिमी (ईसाई) देशों का हमला हुआ था। इसलिए मुस्लिम और ईसाई दुनिया के बीच भी आज इजराइल की वजह से एक नया ध्रुवीकरण हो सकता है, जिसका विश्लेषण हमारे लिए बहुत आसान नहीं है, लेकिन तमाम संबंधित देशों के लोगों को अपनी सरकार के घोषित बयानों से परे जाकर भी इस बारे में पढऩा चाहिए, और सोचना-समझना चाहिए।

ट्रम्प नाम के एक बेदिमाग और बददिमाग की वजह से आज पूरी दुनिया में भूचाल सा आया हुआ है, किसी देश के पैर टिक नहीं पा रहे हैं कि ट्रम्प की अगली बददिमागी से क्या होगा। हमें यह बात तो साफ लग रही है कि संपन्न मुस्लिम देशों की एक धेले की हमदर्दी भी गरीब फिलीस्तीन के साथ नहीं है, लेकिन कतर पर इजराइली हवाई हमले से अब इस्लामिक देशों की नैतिकता पर छाई हुई चर्बी पर कुछ जोर पड़ रहा है। देखते हैं आगे और किस-किस तरह के गठबंधन होते हैं। फिलहाल तो पाक-सऊदी सैन्य-समझौते की वजह से आज इस्लामिक दुनिया के हाथ मानो डेढ़ सौ से अधिक परमाणु हथियार लगे हैं। और देखना है कि चीन, रूस, और अमरीका सहित बाकी नाटो का रूख इस बदले हुए शक्ति संतुलन की तरफ कैसा रहता है।

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