संपादकीय

अमरीका के एक विश्वविद्यालय में सैकड़ों छात्र-छात्राओं के बीच एक खुली बहस में एक बड़े ट्रम्प-समर्थक और अमरीका के जाने-माने संकीर्णतावादी वक्ता और आंदोलनकारी चार्ली किर्क को एक नौजवान ने गोली मार दी। चार्ली किर्क ने बहुत पहले टर्निंग प्वाइंट यूएस नाम की एक संस्था बनाई थी, और वह स्कूल, कॉलेज, और विश्वविद्यालयों में उदारवादी सोच के खिलाफ संकीर्णतावादी सोच को पेश करने के अभियान में लगे रहता था। इस अभियान के लिए वह नफरत फैलाने की तोहमतें भी झेलता था, और बंदूकों से हर बरस अमरीका में होने वाली मौतों की कीमत पर भी वह बंदूकें रखने की आजादी की खुली वकालत करता था। जिस वक्त उसे विश्वविद्यालय में यह गोली मारी गई, उस पल भी वह बंदूकें रखने की आजादी की वकालत कर रहा था, बेकसूरों के कत्ल की कीमत पर भी। अमरीका में ऐसा माना जाता था कि कुछ राज्यों में चार्ली किर्क के रूढि़वादी अभियान ने ट्रम्प को चुनाव जीतने में मदद की। जाहिर है कि इस हत्या की खबर मिलते ही ट्रम्प ने राष्ट्रपति भवन में झंडा झुकवा दिया था, और किर्क को महान व्यक्ति करार दिया।
अमरीका का मीडिया किर्क के दिए गए नफरती, हिंसक, भेदभाव वाले, प्रवासी विरोधी, ट्रांसजेंडर विरोधी, और महिला विरोधी बयानों को अच्छी तरह दर्ज करता था। चार्ली किर्क की संस्था खुली बहस की वकालत करती थी, और इस बहस के दौरान, या इसके नाम पर यह गोरा अमरीकी लगातार नफरत की बातें फैलाता था। वह खुलेआम मंच और माईक पर कहता था कि अगर वह किसी उड़ान में किसी काले पायलट को देखता है, तो यही मनाता है कि वह ठीकठाक सीखा हुआ हो। इसी तरह सरहदी राज्यों में पड़ोस के देशों से आकर काम करने वाले मजदूरों के खिलाफ उसके बयान थे कि यह स्थानीय आबादी को बदल देने की एक रणनीति चल रही है ताकि गोरे-ग्रामीण अमरीका को बदल दिया जाए। महिलाओं और ट्रांसजेंडरों के खिलाफ, अल्पसंख्यकों के खिलाफ उसके बहुत से बयान आते थे, और उनकी वजह से भी वह अमरीका के संकीर्णतावादियों के बीच बड़ा मशहूर था।
हालांकि अभी नेपाल की घटनाओं को लेकर कुछ लोग भारत में भी यह बात कह रहे हैं कि इस देश को ऐसी हिंसा से अछूता रहना चाहिए, लेकिन भारत के नेताओं को नेपाल की घटनाओं से सबक लेना चाहिए जिनमें भ्रष्टाचार और कुनबापरस्ती, काली कमाई का अश्लील और हिंसक प्रदर्शन निशाने पर थे। हमने भी इसी जगह संपादकीय में, और अपने यूट्यूब चैनल इंडिया-आजकल के वीडिटोरियल में भी इस बात की वकालत की थी कि दुनिया के तमाम देशों को दूसरे देशों की ऐसी घटनाओं से सबक लेना चाहिए। अमरीका में अपार बंदूकें रखने की असीमित छूट की वकालत करने वाले लोगों में से एक, चार्ली किर्क को इन्हीं आखिरी शब्दों के बीच एक नौजवान ने गोली मार दी। बाद में जब इस नौजवान की कुछ शिनाख्त के साथ उसकी तलाश शुरू हुई, तो उसके परिवार ने ही उसकी खबर जांच एजेंसियों को की, और यह बताया कि यह गोरा नौजवान किर्क की नफरती बातों को लेकर परेशान था, और हाल ही में एक घरेलू रात्रिभोज के दौरान उसने चार्ली किर्क के बयानों को लेकर कहा था कि वह नफरत फैला रहा है। यह पूरा परिवार ट्रम्प समर्थक है, लेकिन उनके बीच के इस नौजवान को इस आंदोलनकारी की हिंसक और नफरती बातें परेशान कर रही थीं।
जब हम अमरीका की इस हत्या के बारे में सोचते हैं, तो लगता है कि अंधाधुंध हथियारों का समर्थन, और नफरती हिंसा को बढ़ावा किस तरह ऐसे लोगों के लिए आत्मघाती साबित हो सकते हैं। जो राष्ट्रपति का बड़ा ही चहेता हो, और राष्ट्रपति के पास जिसके गुणगान के लिए बहुत कुछ हो, उसके लिए भी अमरीका के घर-घर में फैली हुई बंदूकों में से एक बंदूक की एक गोली ही काफी साबित हुई, और 22 बरस के नौजवान हत्यारे को चार्ली किर्क की बातें ही परेशान कर रही थीं। इस नौजवान ने यह भी परवाह नहीं की कि उसके राज्य में ऐसी हत्या पर मौत की सजा हो सकती है। एक संपन्न परिवार के इस नौजवान ने पिछले दो चुनावों में वोट नहीं डाला था, वह राजनीतिक रूप से सक्रिय भी नहीं था, और यह नौजवान चर्च का एक धर्मालु सदस्य भी था। स्कूल की एक राष्ट्रीय परीक्षा में उसने 99 फीसदी नंबर हासिल किए थे, और उसे यूनिवर्सिटी के लिए एक बड़ी प्रतिष्ठित स्कॉलरशिप भी मिली थी। वह शांत रहता था, हिंसा का उसका कोई इतिहास नहीं था, लेकिन पारिवारिक खाने पर ट्रम्प-समर्थक इस परिवार में यह बात हुई थी कि चार्ली किर्क नफरत से भरा हुआ है, और वह नफरत फैला रहा है।
अमरीका के इस मामले को हम खुलासे से इसलिए लिख रहे हैं कि भारत में वैसे तो बंदूकों की संस्कृति नहीं है, अमरीका जैसी हिंसा भी यहां नहीं होती है, लेकिन चार्ली किर्क से सौ गुना अधिक नफरती बातें करने वाले बहुत से भारतीय नेता हैं, जो कि नफरत और हिंसा भडक़ाने का काम करते हैं। ऐसे नेताओं की एक लंबी लिस्ट है, और इनके सारे हिंसक और नफरती बयान वीडियो-कैमरों से अच्छी तरह कैद भी हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ अरसा पहले हेट-स्पीच पर सुनवाई करते हुए इसे पूरे देश में स्थानीय पुलिस की जिम्मेदारी माना था कि नफरती बातों पर मामला दर्ज करना अफसरों की जिम्मेदारी है, वरना उसे अदालत की अवमानना माना जाएगा। इन सबके बावजूद सुप्रीम कोर्ट की यह बात इस देश ने बड़े गहरे दफन कर दी है, और वह किसी को भी याद दिलाने के लिए बाहर नहीं निकल सकती। लोग नफरती बातें करते हैं, हिंसा फैलाते हैं, नस्लवाद, महिला विरोध के बयान देते हैं, और वे थोड़े-बहुत फेरबदल के साथ चार्ली किर्क के भारतीय संस्करण सरीखे दिखते हैं, कई मायनों में वे चार्ली किर्क के बाप सरीखे भी लगते हैं। भारतीय लोकतंत्र को लेकर यह हमारे लिए बड़ी फिक्र की बात है क्योंकि नफरत फैलाने वाले खुद भी किसी हिंसा का शिकार होने का खतरा पालकर चलते हैं। यह तो भारत के लोगों का बर्दाश्त बहुत है कि यहां अमरीका सरीखे बंदूकी-कत्ल नहीं होते, लेकिन आज पूरी दुनिया एक गांव सरीखी हो गई है, और कब किसी का बर्दाश्त जवाब दे जाए, इसका कोई ठिकाना तो है नहीं। लोकतंत्र में नफरत फैलाने की आजादी का अमरीका में तो बड़ा चलन है, लेकिन हिन्दुस्तान में लोगों को इससे बचना चाहिए। नफरत और बंदूकें कब हिंसा पर उतारू हो जाएं, इसका अंदाज लगाना मुश्किल रहता है।
भारत के जिन लोगों को फैलती हुई नफरत से डर नहीं लगता है उन्हें दो खबरों को देखना चाहिए। आज की अमरीका की एक खबर है कि ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद से वहां हिन्दुस्तानिया पर नस्लवादी हमले बढ़ते चले गए हैं। दूसरी खबर भारत की है कि यहां यूपी में एक फिल्म अभिनेत्री दिशा पाटनी के घर पर अभी गोलियां चलाई गई हैं, और चर्चित गैंगस्टर गोल्डी बराड़ ने फेसबुक पर इसकी जिम्मेदारी ली है, और कहा है कि हिन्दू संतों, प्रेमानंद महाराज, और अनिरुद्धाचार्य के बारे में इस अभिनेत्री ने जो बयान दिए थे, उससे नाराज होकर यह गोलीबारी की गई है।