संपादकीय
मध्यप्रदेश में अभी अनूपपुर के पास एक गांव में 60 साल के एक आदमी की लाश कुएं में मिली, तो पुलिस ने जल्द ही मामले को सुलझा लिया, और हत्यारों को गिरफ्तार किया। इस आदमी की तीसरी बीवी ने अपने प्रेमी और उसके साथी के साथ मिलकर पति को मारा था, और इस कुएं में डाल दिया था। पति की कहानी भी बड़ी दिलचस्प थी। जब पहली बीवी घर छोडक़र चली गई, तो उसने पत्नी की छोटी बहन से शादी कर ली। फिर जब उससे कोई संतान नहीं हुई, तो उसने इन दोनों बहनों की एक और तीसरी बहन से शादी कर ली। घर पर एक जमीन दलाल का आना-जाना था, उससे इस तीसरी पत्नी के रिश्ते बन गए। आखिर में उसने प्रेमी और उसके एक साथ के साथ मिलकर पति की हत्या की, और कुएं में फेंक दिया। इन दिनों एक भी सुबह ऐसी नहीं रहती जब अखबार में इस तरह की कोई एक खबर, कम से कम एक, न रहे। आमतौर पर तो एक से ज्यादा खबरें ऐसी रहती हैं कि पति-पत्नी, और प्रेमी-प्रेमिका में से किन्हीं तीन, या चार के बीच हिंसा में एक या अधिक लोगों की जान चली जाती है, और जो जिंदा रह भी जाते हैं, उन्हें लंबी कैद भी मिलना तय सरीखा रहता है।
अभी इंदौर और मेघालय के बीच खबरों में बना हुआ राजा रघुवंशी हत्याकांड सुनवाई के लिए मेघालय की अदालत में पहुंचा है जहां करीब 8 सौ पेज के आरोप पत्र में मेघालय पुलिस ने बताया है कि किस तरह केरल के राजा रघुवंशी का कत्ल उसकी नवविवाहिता सोनम ने बड़ी बारीक साजिश रचकर हनीमून के दौरान ही मेघालय के शिलांग में अपने प्रेमी राज कुशवाहा के साथ मिलकर कर दिया था। पुराने प्रेमी से वफा, मौजूदा पति से बेवफाई, और फिर कत्ल, ऐसा कई मामलों में हो रहा है। आज भी पतियों के हाथ मारी जाने वाली पत्नियों की संख्या मरने वाले पतियों के मुकाबले बहुत अधिक जरूर होगी, लेकिन पति किसी प्रेमिका के लिए पत्नी का कत्ल कर दे, ऐसा कम सुनाई पड़ता है। अब यह भी सोचने की जरूरत है कि जब कुल मिलाकर पत्नियों का कत्ल करने वाले पतियों का अनुपात बहुत अधिक है, तो फिर प्रेमिका के लिए पति को मार डालने वाले पति अधिक क्यों नहीं है? इसकी एक वजह तो यह भी हो सकती है कि पति को ऐसे प्रेमसंबंध छुपाने की उतनी अधिक जरूरत नहीं रहती, और भारतीय समाज में मर्द एक से अधिक औरतों से रिश्ते रखकर भी चल सकता है। दूसरी तरफ इसी समाज में महिला के अगर एक से अधिक मर्दों से संबंध हैं, तो उसे सामाजिक मुजरिम मान लिया जाता है, और आगे-पीछे उसे हिंसा का शिकार होना पड़ता है, कभी पति के हाथों, तो कभी प्रेमी के हाथों। जब कोई शादीशुदा महिला पति को छोडक़र प्रेमी के साथ शादी करना चाहती है, तो ऐसी जिम्मेदारी से बचने वाले प्रेमी भी शादीशुदा प्रेमिका का कत्ल कर देते हैं।
ऐसा लगता है कि भारत में मरने-मारने तक नौबत इसलिए अधिक पहुंचती है क्योंकि यहां तलाक का चलन कम है। गिनाने के लोग गिना सकते हैं कि भारत में इतने फीसदी लोगों का तलाक होता है। लेकिन शादीशुदा जोड़ों की संख्या के अनुपात यह बहुत कम है, और अधिकतर लोग खींचतान कर, समानांतर दूसरे रिश्ते रखते हुए भी जिंदगी गुजार लेते हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे और दूसरी सरकारी रिपोर्ट बताती है कि भारत में तलाक की दर एक से दो फीसदी के बीच है। अमरीका में यह 40 फीसदी, और योरप में 30 से 50 फीसदी के बीच है। लेकिन उन पश्चिमी देशों में पति-पत्नी के बीच जान लेने या देने के आंकड़े भारत के मुकाबले बहुत कम हैं। इसकी वजह बड़ी साफ-साफ है कि जब कानूनी रूप से जीवनसाथी से छुटकारा पाना मुमकिन है, तो फिर उसे मार डालने की जरूरत कम रहती है। लेकिन अगर उससे छुटकारा पाने की कोई आसान तरकीब न हो, अदालत और समाज तलाक को बुरा मानते हों, तो फिर उसे निपटा देना ही एक जरिया बचता है। अभी हम आंकड़े देख रहे थे, तो भारत में एक लाख शादीशुदा जोड़ों में एक से लेकर डेढ़ तक आपसी कत्ल हैं। अमरीका में यही आंकड़े आधे फीसदी के हैं, और योरप में 0.2 से 0.5 तक हैं।
इस पर समाजशास्त्रीय अध्ययन करने की जरूरत है कि शादीशुदा जोड़ों में आपसी कत्ल की नौबत कैसे टाली जा सकती है। जोड़ों के अलग-अलग हो जाने पर भी अदालतें उन पर परिवार और बच्चों की जिम्मेदारियों को कानूनी रूप से बांट सकती हैं, लेकिन एक के मरने और दूसरे के मारने पर तो एक का दुनिया से दूर, और दूसरे का जेल चले जाना होता है, जिसमें बच्चे भी बहुत बुरी तरह प्रभावित होते हैं, और अगर आश्रित मां-बाप हैं, तो उनका जीना भी मुश्किल होता है। इन तमाम बातों को देखते हुए यह समझना जरूरी है कि मरने-मारने के मुकाबले तलाक परिवार और समाज के लिए एक बेहतर विकल्प है। फिर हम पहले भी इस बात को लिखते आए हैं कि शादीशुदा जिंदगी के आपसी तनाव का खतरा घटाने के लिए किस तरह शादी के पहले एक अधिक खुलासे की बातचीत होना जरूरी है, और वैवाहिक-परामर्शदाता से बातचीत का भी चलन होना चाहिए। दूसरी बात यह भी कि लोगों को परिवारों के तय किए हुए विवाह के बजाय अपने तय किए हुए विवाह की तरफ जाना चाहिए, जिसमें बात की अनबन का खतरा कुछ कम हो सकता है। हम इसे सिर्फ एक संभावना इसलिए बता रहे हैं कि इसके समर्थन में हमारे पास कोई भी आंकड़े नहीं हैं।
शादी के बाद के तनावों को लेकर भी वैवाहिक जीवन के परामर्शदाताओं का चलन बढऩा चाहिए। इससे मरने-मारने की नौबत भी घटेगी, और वैवाहिक जीवन तनावमुक्त होकर सुखी होने की संभावना बढ़ेगी। तनावमुक्त परिवार ही बच्चों को एक बेहतर व्यक्तित्व दे सकते हैं, इस बात को भी ध्यान में रखते हुए पति-पत्नी के बीच के तनाव घटाने की पेशेवर सलाह मुहैया करानी चाहिए। इस मामले के सभी पहलुओं पर और अधिक बारीकी से लिखा जा सकता है, लेकिन जरूरत यह है कि तमाम जिम्मेदार लोग इस मुद्दे पर चर्चा करें कि क्या-क्या किया जा सकता है, सिर्फ हमारी यहां दी गई सलाह काफी नहीं हो सकती, उसके दूसरे विकल्प ढूंढने पर भी लोगों को मेहनत करनी चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)