संपादकीय
महाराष्ट्र से एक परेशान करने वाला वीडियो सामने आया है जिसमें एक जिले में तैनात आईपीएस महिला अधिकारी जब अवैध मुरम खुदाई रोकती है, तो स्थानीय लोग सीधे उपमुख्यमंत्री अजीत पवार को फोन लगाते हैं, और फोन इस अफसर को बात करने के लिए देते हैं। सामने से जब कहा जाता है कि वे उपमुख्यमंत्री अजीत पवार बोल रहे हैं, तो इस पर अंजना कृष्णा नाम की यह अफसर कहती है कि वे उनके मोबाइल पर फोन करें। इस पर अपने को अजीत पवार बताने वाला व्यक्ति खूब भडक़ता है, और इस अफसर को खूब डांटता है कि इतनी हिम्मत कैसे हो गई कि वह उनका चेहरा नहीं पहचानतीं। इसी मौके के कुछ वीडियो में अवैध खुदाई करने वाले अधिकारियों को धक्का देते भी दिख रहे हैं।
कुल मिलाकर मुद्दा यह है कि गलत काम करते पकड़ाई भीड़ के नेता ने अपने नेता, डिप्टी सीएम को फोन लगाया, और उन्होंने नेतागिरी की आदत के तहत कार्रवाई रोक देने के लिए कहा। इस पर डिप्टी सीएम की शिनाख्त के लिए जब इस अफसर ने अपने फोन पर कॉल करने कहा, तो अजीत पवार भडक़ गए। यहां पर कई सवाल खड़े होते हैं। राजधानी में बैठा डिप्टी सीएम गलत काम रोकते अफसर को अपने कार्यकर्ताओं के फोन पर रोककर सरकार का हौसला पस्त करता है, और मुजरिमों का हौसला बढ़ाता है। एक महिला पुलिस अफसर के साथ किसी मंत्री को बेहतर तरीके से पेश आना चाहिए था, लेकिन हर पार्टी, हर गठबंधन की सरकार में डिप्टी सीएम रहते-रहते अजीत पवार यह बुनियादी तमीज खो चुके हैं। एक आईपीएस अधिकारी से भी कुछ बेहतर तरीके से पेश आने की उम्मीद की जाती है क्योंकि वे अखिल भारतीय मुकाबले में चुनकर बेहतर साबित हुए लोगों में से रहते हैं, और कई अफसर राज्य के बाहर से भी आते हैं। ऐसे में उन्हें स्थानीय कार्यकर्ताओं के सामने बेइज्जत करना, डांटना-फटकारना सरकारी अमले की हिम्मत तोडऩा है। लेकिन इतना तो हम फिर भी कहेंगे कि अजीत पवार ने वही किया जो उनके दर्जे या पेशे के अधिकतर सत्तारूढ़ नेता करते हैं। कुछ ही दिन पहले हमने इसी जगह ऐसे विधायक के बारे में लिखा था जो एमपी में अपने जिले के कलेक्टर को मारने पर उतारू हो गए थे, बाद में सरकार और संगठन ने मिलकर उस मामले को ठंडा किया। दो दूसरे मामले बिहार के थे जहां पर मंत्री को लोगों ने पत्थर मार-मारकर भगाया, और वे किसी तरह लंबी दौड़ लगाकर अपने शरीर को बचा पाए। महाराष्ट्र को कुछ अधिक पढ़ा-लिखा, विकसित और सभ्य प्रदेश माना जाता है, लेकिन डिप्टी सीएम अजीत पवार की बदतमीजी देखने लायक है। अगर यह पूरा वीडियो और ऑडियो नहीं होता, तो वे सार्वजनिक आलोचना से बच भी गए रहते, और पूरे मामले को झूठा करार दे देते। लेकिन वीडियो टेक्नॉलॉजी की वजह से अब बहुत सारी घटनाओं को पूरी तरह से नकार देना संभव नहीं है। यह बात नहीं भूलना चाहिए कि आज मोबाइल फोन पर ही तरह-तरह के झांसे देने की घटनाएं हर मिनट कहीं न कहीं होती हैं, ऐसे में अगर एक अफसर ने डिप्टी सीएम से अपने खुद के फोन से कॉल करने को कहा है, तो क्या गलत किया है।
एक महिला आईपीएस अधिकारी होने की वजह से हम उनके साथ हुई बदसलूकी की अधिक आलोचना कर रहे हैं, ऐसा भी नहीं है। हम एक ट्रैफिक सिपाही पर भी सत्ता की बददिमागी उतरते देखकर उसके खिलाफ लिखते हैं। मध्यप्रदेश में जब कलेक्टर बंगले पहुंचकर विधायक ने उन पर हाथ उठाया, तो प्रदेश के आईएएस अफसरों की एसोसिएशन ने मुख्य सचिव से मिलकर विरोध दर्ज किया, लेकिन नेता पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, सत्तारूढ़ भाजपा ने भी अपने विधायक को गोलमाल शब्दों से बचाया। छोटे कर्मचारियों के साथ सत्ता की हिंसा होने तक उनके संघ अधिक मजबूती से उठ खड़े होते हैं, और छत्तीसगढ़ में अभी पिछले महीनों में एक कलेक्टर को मातहत लोगों से बदसलूकी करने पर माफी मांगनी पड़ी थी। अजीत पवार जैसा दुव्र्यवहार जो भी नेता करते हैं, उनके खिलाफ प्रदेश की अदालतों को खुद होकर नोटिस लेना चाहिए, और सत्ता को कटघरे में खड़ा करना चाहिए। सरकार में काम कर रहे लोग कई बार उन पर हो रहे जुल्मों का खुलकर विरोध नहीं कर पाते, ऐसे में सत्ता से बाहर के लोगों को पहल करनी चाहिए, जिसमें एक बड़ी जिम्मेदारी राज्य की न्यायपालिका की बनती है। वैसे तो मानवाधिकार आयोग, और महिला आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाएं भी ऐसी नौबतों के लिए बनाई गई है, लेकिन उन पर सत्ता के मनोनीत लोग बैठते हैं, और वे सत्ता के हर जुर्म को ढांकने में लगे रहते हैं। वह एक अलग लंबी बहस का मुद्दा है, लेकिन हम इतना जिक्र करना चाहेंगे कि संवैधानिक पदों पर सत्ता की पसंद को बिठाने के हम इसलिए भी खिलाफ हैं कि अपने अन्नदाता के लिए ऐसे लोग कोई असुविधा पैदा करना नहीं चाहते।
न सिर्फ सरकार पर काबिज लोग, बल्कि आज इस लोकतंत्र में जितने लोगों को भी किसी तरह की ताकत मिली है, उन सब लोगों को भी अपनी बददिमागी को काबू में रखना चाहिए, वरना जनता को चाहिए कि उनकी ऐसी खबरों, ऐसे ऑडियो या वीडियो के साथ सार्वजनिक मंचों पर, सोशल मीडिया पर उन्हें खूब बेइज्जत करे, और चारों तरफ उनसे सवाल करे। लोगों को यह भी चाहिए कि नेताओं की ऐसी खबरें और रिकॉर्डिंग संभालकर रखे, और चुनावों के वक्त उनका इस्तेमाल करे, जब नेताओं की जिंदगी का लोहा गर्म रहता है। लोकतंत्र में भी सत्ता की बददिमागी सामंती अंदाज की चलती रहती है, यह सिलसिला खत्म होना चाहिए। देश के आईपीएस एसोसिएशन को भी चाहिए कि वे अपनी एक नौजवान महिला सदस्य के साथ हुई इस बदसलूकी के खिलाफ आवाज उठाए, वरना उसका रहना और किस काम का है? महाराष्ट्र में चूंकि गठबंधन सरकार चल रही है, इसलिए मुख्यमंत्री, या प्रमुख सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के लिए भी ऐसे नाजुक मामले पर मुंह खोलना आसान नहीं होगा, लेकिन यह सिलसिला है तो शर्मनाक, और होना कहीं भी नहीं चाहिए। बाकी प्रदेशों में भी लोग संभल जाएं, क्योंकि किसी दिन अगर ऐसे अफसर अपनी नौकरी पर लात मारने को तैयार हो जाएं, और बदसलूकी के खिलाफ अदालत चले जाए, तो बदमिजाज नेताओं को लेने के देने पड़ जाएंगे। नेताओं को अपने समर्थकों की भीड़ के सामने अपनी ताकत दिखाने, और उनके जुर्म बचाने की हवस को काबू में रखना चाहिए, वरना आज हर मोड़ पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, और हर हाथ में एक मोबाइल वीडियो-कैमरा भी है।