संपादकीय

शिक्षक दिवस पर भारत में आज के दिन परंपरागत रूप से शिक्षकों के संस्मरण और उनके गुणगान छपते हैं। कुछ महानतम वैज्ञानिकों की कही या लिखी गई, या महज उनके नाम से प्रचलित और प्रचारित बातें भी सोशल मीडिया पर देखने मिल रही है कि अच्छे शिक्षक वे नहीं होते जो बच्चों को सिखाते हैं, बल्कि वे होते हैं जो बच्चों को सोचने के लिए प्रेरित करते हैं। किसी एक लेखक-शिक्षक ने आज फेसबुक पर यह भी लिखा है कि शिक्षक की परंपरागत भूमिका एआई के आने के बाद अब एकदम से बदल गई है क्योंकि एआई के बाद लोगों को उस तरह सीखने की जरूरत भी नहीं रह गई है जैसी कि पहले थी। अब जरा सोचें, कि पहले पहाड़े की किताब आती थी, और लोग न सिर्फ दो-चार-आठ-दस का पहाड़ा पढ़ते थे, याद करते थे, बल्कि वे सवैया और डेढ़ैया जैसे कुछ पहाड़े भी पढ़ते थे जो सवा या उससे ज्यादा गुना का हिसाब रहता था। अब केलकुलेटर आए, तो पहाड़ा याद करना निरर्थक हो गया। पहाड़े की जो किताब बालभारती के साथ जबर्दस्ती बेची जाती थी, वह अप्रासंगिक हो गई। अब हिसाब-किताब के लिए इम्तिहानों में भी केलकुलेटर की छूट मिलने लगी है, मतलब यह कि अब पहाड़ा याद रखने की जरूरत नहीं है। इसी तरह इंटरनेट, गूगल, और विकिपीडिया आने के बाद सामान्य ज्ञान की बहुत सारी बातें, ऐतिहासिक और दूसरे किस्म के तथ्य याद रखने की जरूरत नहीं है क्योंकि पलक झपकते पूरी जानकारी स्क्रीन पर रहती है। इसलिए याददाश्त का वह हिस्सा भी अब गुरूमंत्र नहीं रह गया। एआई के बाद तो तस्वीर और बहुत दूर तक बदलने वाली है, या कि बदल चुकी है।
हमने एआई से ही पूछा कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस आ जाने के बाद अब स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई में क्या फर्क आएगा? उसने इस सवाल और इसके पूछे जाने के वक्त की तारीफ की, और कहा कि एआई हर छात्र-छात्रा के सीखने के तरीके, और उसके प्रदर्शन का अलग-अलग विश्लेषण कर सकता है, और हर छात्र-छात्रा के लिए अलग-अलग पाठ तैयार कर सकता है, उनकी क्षमता और जरूरत के मुताबिक उस रफ्तार से पढऩे की सामग्री बना सकता है। किसी एक छात्र-छात्रा को विषय के जिस हिस्से में दिक्कत हो, उसके लिए उस हिस्से का पाठ्यक्रम एआई बढ़ा सकता है, और जिस हिस्से में उन्हें बड़ी आसानी हो, उस हिस्से से उन्हें तेजी से आगे बढ़ा सकता है। किसी छात्र-छात्रा की गलतियों को एआई तुरंत पकडक़र उन्हें सुधारने के अलग-अलग तरीके तब तक बता सकता है, जब तक उन्हें वह बात ठीक से समझ न आ जाए। इससे स्कूल या क्लासरूम की पढ़ाई जिसमें कि हर किसी के लिए एक सरीखी ताकत लगाई जाती है, वह तस्वीर बदल जाएगी, और छात्र-छात्राओं के लिए एआई निजी ट्यूशन जैसे काम करने लगेगा, मानो वह उन्हीं को अकेले को पढ़ा रहा हो।
एआई ने ही यह भी सुझाया है कि आज शिक्षकों का बहुत सा समय छात्र-छात्राओं को अभ्यास देने में लगता है, और बाद में उन्हें जांचने-परखने में। एआई इस सारे काम को बड़ी आसानी से पल भर में कर सकता है ताकि शिक्षकों के लिए बहुत सा समय बच जाए। इस बचे हुए समय का इस्तेमाल शिक्षक सचमुच पढ़ाने में, प्रेरणा देने में, कल्पनाशीलता, और रचनात्मकता में इस्तेमाल कर सकते हैं। एआई स्कूलों की हाजिरी जैसे दूसरे बहुत सारे काम खुद कर सकता है ताकि तमाम छात्र-छात्राओं से जुड़ी हुई जानकारियों को दर्ज करने, और जवाब-तलब करने का बोझ शिक्षकों पर से हट जाए। इसके अलावा एआई खुद शिक्षकों के ज्ञान, और उनकी क्षमता को बढ़ाने का काम भी कर सकता है, वे पल भर में जानकारी पाकर उसे अपनी मर्जी और समझ से ढाल सकते हैं, और अपने खास अंदाज में क्लासरूम में रख सकते हैं।
एआई ने अपनी सहूलियतें गिनाते हुए आगे कहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ऐसे आभासी शिक्षक और चैटबोट सामने रख चुका है जिनसे छात्र-छात्राएं 24 घंटे में कभी भी कोई भी सवाल पूछ सकते हैं, जवाब पाकर उससे जुड़े और सवाल भी पूछ सकते हैं, जब तक, तब तक कि उनकी जरूरत पूरी न हो जाए। एआई किसी लिखी गई सामग्री को पढक़र भी सुना सकता है ताकि आंखों पर जोर कम पड़े, और सिर्फ कानों से काम चल जाए। जिन लोगों ने एआई का अधिक इस्तेमाल नहीं किया है, वे इस बात को समझ सकते हैं कि यह गूगल की तरह सिर्फ सर्च करके, या विकिपीडिया की तरह उसमें पहले से दर्ज जानकारी को सामने रखने का काम नहीं करता, बल्कि विश्लेषण भी करता है, लिखता भी है, पहले से लिखे हुए का रूपांतरण भी कर देता है, इस तरह यह सर्चइंजन की अगली पीढ़ी नहीं है, बल्कि यह एक अलग ही बुद्धि है, जो कि छलांगें लगाकर इंसान की बुद्धि को पार करने की रफ्तार से आगे बढ़ रही है। जहां तक स्कूल-कॉलेज की किताबों, और पढ़ाई से मिलने वाले ज्ञान की बात है, तो इन मामलों में एआई काफी हिस्से में शिक्षक-शिक्षिकाओं से बेहतर साबित होगा। फिर भी व्यक्तित्व का कुछ ऐसा मौलिक हिस्सा रहेगा जिसे कि एआई नहीं पा सकेगा। यही मौलिकता शिक्षकों को दूर तक ले जाएगी, या कि इस काम में बने रहने में मदद करेगी।
कुछ महीने पहले से ब्रिटेन से ऐसी खबरें आ रही हैं कि वहां एआई ने चिकित्सा वैज्ञानिकों को कैंसर मरीजों की ऐसी दवाइयां बनाने में मदद की है जो कि किसी एक खास मरीज के लिए ही बनी है। अब हर मरीज की जरूरत के लिए एआई अलग-अलग दवा बना सकता है जो कि उसके लिए अधिकतम फायदे की, और न्यूनतम नुकसान की होगी। यह महीनों से शुरू हो चुका है, और कैंसर के बहुत से मरीज अकेले उनके लिए बनी हुई दवा पा रहे हैं, और यह सिर्फ एआई से मुमकिन हो पाया है। अब स्कूल-कॉलेज में भी हर छात्र-छात्रा की क्षमता और दिलचस्पी के मुताबिक अगर एआई अलग कोर्स, किताब, व्याख्यान, सवाल-जवाब तैयार कर दे, तो यह एक किस्म की क्रांति रहेगी। अभी तक तो पूरी की पूरी क्लास के लिए ये चीजें एक जैसी रहती हैं, और गिने-चुने शिक्षक-शिक्षिका ही ऐसे रहते हैं जो कि अलग-अलग बच्चों की अलग-अलग जरूरतों को आंककर उनके लिए ये बारीकियां अलग करते हैं। अब एआई से अगर यह होने लगता है, तो यह शिक्षण में उत्कृष्टता की एक अभूतपूर्व स्थिति रहेगी, जिसकी कल्पना भी अभी नहीं की जा सकती।
शिक्षक दिवस पर एआई का महज गुणगान करने से तस्वीर पूरी नहीं बनेगी। आज आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ने बहुत से लोगों के सोचने-समझने, और रचनात्मक लेखन, कल्पनाशील काम का बोझ खुद उठाना शुरू कर दिया है। इससे लोगों के दिमाग पर जोर पडऩा कम होने लगा है, और एआई उनके हिस्से का काम करके उन्हें, उनके दिमाग को अलाल बनाते चल रहा है। इस खतरे को अनदेखा करना भी ठीक नहीं है क्योंकि इससे इंसान की सोचने की, कल्पना की वह क्षमता मंद पड़ती चल रही है जो कि दसियों हजार साल में विकसित हुई है, और अभी पिछले साल-दो साल में ही जो कुछ लोगों के कामकाज में कुछ या अधिक हद तक गैरजरूरी हो रही है। इस खतरे के बीच से एक औजार का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है, यह देखना एक बड़ी समझ की बात होगी। एआई फिलहाल तो एक दुधारी तलवार की तरह है जिससे जरूरत की कटाई तो आसानी से हो रही है, लेकिन दूसरी तरफ हाथ कटने का खतरा भी उतना ही बड़ा मौजूद है। आज शिक्षक दिवस पर इस मुफ्त के शिक्षक को याद करना जरूरी है क्योंकि अगले शिक्षक दिवस तक यह कितनी जिंदगी पर काबिज हो चुका रहेगा, इसका अंदाज अभी खुद एआई भी नहीं लगा पा रहा है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)