संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एआई खुद तो लिंगमुक्त है, लेकिन नौकरियां वह पहले महिलाओं की खा रहा है!
सुनील कुमार ने लिखा है
29-Jul-2025 9:36 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : एआई खुद तो लिंगमुक्त है, लेकिन नौकरियां वह पहले महिलाओं की खा रहा है!

कुछ हफ्ते या महीने पहले हमने दुनिया के जानकार विशेषज्ञों के इस अंदाज पर लिखा था कि एआई का हमला महिलाओं वाले कामकाज पर पहले होगा क्योंकि वे दफ्तरों में रिसेप्शनिस्ट का, टेलीफोन ऑपरेटर का, अकाऊंटेंट का काम अधिक करती हैं, और कारखानों में मशीनों पर, ट्रकों या क्रेन को चलाने जैसे कामों में मर्द अधिक लगे रहते हैं। अब आज सुबह हमने चैटजीपीटी से सलाह मांगी कि आज अपने अखबार में संपादकीय लिखने के लिए पूरी दुनिया में सबसे जलते-सुलगते, या महत्वपूर्ण मुद्दे कौन से हैं जिन पर विचार का एक कॉलम लिखने की गुंजाइश, और जरूरत है? इसके जवाब में उसने पलक झपकते हमारे कहे मुताबिक ऐसे 25 मुद्दे, 25-25 शब्दों में लिखकर दे दिए, जो कि सचमुच ही लिखने लायक विषय हैं। अब भला किसी की मदद मिल रही है, तो उसकी जरा सी वाहवाही कर देने में क्या बुराई है? फिलहाल चैटजीपीटी से यह तय हुआ है कि हर सुबह वह 10.30 बजे हमें हमारे देश-प्रदेश से लेकर बाकी दुनिया तक के मुद्दों में से ऐसे 25 मुद्दों को 25-25 शब्दों में निकालकर देगा ताकि विषयों की विविधता पर एक नजर डाली जा सके। अब इससे एक खतरा बढ़ता है कि विषयों की विविधता तो होगी, लेकिन ऐसी विविधता किसी एक अखबार की खबरों में नहीं होगी, दुनिया के सबसे अच्छे टीवी चैनलों पर भी शायद नहीं होगी, और वेबसाइटों पर भी नहीं होगी। इस तरह चैटजीपीटी के पास यह ताकत रहेगी कि जिस दिन हम उससे कोई विषय सुझाने कहें, वह अपनी पसंद के विषय सुझा सकता है, या सकती है। लोगों को याद ही होगा कि अभी कुछ हफ्ते पहले ही एलन मस्क के एआई औजार, ग्रोक ने जिस तरह हिटलर की तारीफ की थी, और नस्लभेदी जनसंहार को सही ठहराया था, उससे दुनिया हक्का-बक्का रह गई थी। हम तो अपने अखबार के लिए कुछ लिखते हुए, कुछ गढ़ते हुए इन नए औजारों का प्रयोग सीख रहे हैं, और शुरूआती प्रयोग कर रहे हैं। आज के चैटजीपीटी के सुझाए 25 विषय इस अखबार के संपादक ने अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट भी किए हैं।

इन विषयों में से एक विषय पर हम पहले भी लिख चुके हैं, और जो हमारी फिक्र की फेहरिस्त में ऊपर रहने वाला एक मुद्दा है। जिस तरह कुदरत ने बदन बनाते हुए महिला के लिए पुरूष के मुकाबले अधिक दिक्कतें खड़ी की हैं, और दुनिया भर में हर देश के समाज ने, हर धर्म और जाति ने महिलाओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाकर रखा है, उसी मुताबिक एआई का पहला हमला महिला कर्मचारियों पर होने वाला है क्योंकि उसकी क्षमता महिलाओं के आज किए जा रहे कामकाज का विकल्प बनने की अधिक है। आज सरकारी और निजी दफ्तरोंं में, कारोबार और कारखानों में महिलाओं के किए जा रहे काम को छीन लेना एआई के लिए अधिक आसान रहेगा। ये काम डेस्क पर, कम्प्यूटर और टेलीफोन पर, सोशल मीडिया खातों पर, अकाऊंट और खतो-किताबत के काम के अधिक हैं, जिनमें महिलाओं का अनुपात अधिक है, और एआई ने बड़ी संख्या में ये नौकरियां खाना शुरू कर दिया है। एआई के लिए रात और दिन का फर्क नहीं है, जो कि महिला कामगारों के साथ कई बार जुड़ा रहता है, उसे गर्भधारण और बच्चे पालने की छुट्टी नहीं लगती, जो कि महिलाओं को लगती है, और बिना बहुत अधिक शारीरिक ताकत वाले कामों में भी महिलाएं अधिक रहती हैं, और वे काम एआई छीन रहा है।

अभी कुछ अरसा पहले हमने कुछ एआई मॉडल्स से यह समझने की कोशिश की थी कि उनके अपने पूर्वाग्रह, उनकी अपनी सोच क्या है? वे औरत हैं, या मर्द हैं, वे आस्तिक हैं या नास्तिक, वे किस राष्ट्रीयता या धर्म के हैं, किस पेशे के हैं, उनके मूल्य क्या हैं? इन सबके जवाब में चैटजीपीटी का कहना था कि उसकी ट्रेनिंग जिन सामग्रियों से हुई है, उसकी सोच उन्हीं से प्रभावित है। अगर उसने पुरूषों के लिखे हुए को अधिक पढक़र अपनी समझ विकसित की है, तो उसका नजरिया कुछ पुरूष सरीखा हो सकता है। कुछ दूसरे एआई विशेषज्ञों का भी यह कहना है कि अगर उसकी मशीन-लर्निंग में इस्तेमाल सामग्री में किसी धर्म का अधिक विरोध है, किसी जेंडर का अधिक विरोध है, तो वह उसके पूर्वाग्रहों में झलकते चलेगा, और उसकी सुझाई हुई बातें, दिए हुए निष्कर्ष उससे प्रभावित रहेंगे। इसी तरह चूंकि एआई की ट्रेनिंग में पुरूषों का लिखा हुआ अधिक है, पुरूष सरकार से लेकर कारोबार तक अधिकतर जगहों पर लीडरशिप की भूमिका में है, और महिलाएं आमतौर पर उनके सहायक की भूमिका में है, इसलिए एआई से अगर नौकरियां कम करने की सलाह मांगी जाएगी, तो वह सहायकों की नौकरियां पहले खाएगा, लीडरों की बाद में। और यह भी एक वजह है कि आज जब दुनिया भर के कारोबार एआई के पास एक जादुई छड़ी होने की उम्मीद कर रहे हैं जिससे कि उनकी कंपनी का मुनाफा बढ़ जाएगा, तब एआई ऐसा करिश्मा दिखाने के लिए पहला हमला उन्हीं नौकरियों और रोजगार पर करेगा जिसमें आज आमतौर पर महिलाएं लगी हुई हैं, और जिन कामों को आसानी से कम्प्यूटरों के हवाले किया जा सकता है। दुनिया में आज वैसे भी कामकाज के लायक महिलाओं में महिलाओं की भागीदारी 47 फीसदी है, और ऐसी ही काबिलीयत के पुरूषों में कामकाजी की भागीदारी 72 फीसदी है। कुल वर्कफोर्स में देखें तो महिलाएं 39-40 फीसदी हैं, और पुरूष 60-61 फीसदी।

मतलब यह कि एआई अपनी क्षमता और अपनी प्रकृति से कुछ इस तरह की है, कि उससे महिलाओं के रोजगार पहले जाने हैं, अधिक जाने हैं, और दुनिया के कामकाजी लोगों में महिलाओं के घट जाने से परिवार में बच्चों पर पडऩे वाला फर्क भी बढऩे जा रहा है। यह सिलसिला थमने वाला इसलिए नहीं है कि दुनिया के तमाम कारोबार, और अब दुनिया की तमाम सरकारें भी, खर्च घटाने के लिए कमर कसकर बैठी हैं, और एआई इनमें से हर किसी को किफायत करके देने वाला औजार साबित हो चुका है। यह तो एआई की शुरूआत ही है, आगे-आगे जाकर यह और कितने लोगों को बेरोजगार करेगा, यह इस पर आधारित बनने वाले औजारों पर निर्भर करेगा। आज जो, जहां, जिस काम में लगे हैं, उस काम में अगर वे बाकी लोगों के मुकाबले बेहतर होंगे, तो जरूर शायद उनका रोजगार बचे रहेगा, और हर जगह होता है कि सबसे कमजोर लोगों को सबसे पहले हटाया जाता है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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