संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इकतरफा हिंसक मोहब्बत, बचने के कुछ रास्ते...
सुनील कुमार ने लिखा है
02-Jul-2025 4:29 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : इकतरफा हिंसक मोहब्बत, बचने के कुछ रास्ते...

मध्यप्रदेश और राजस्थान की दो खबरें आज के एक अखबार में एकसाथ हैं जिनमें इकतरफा मोहब्बत के चलते सिरफिरे और हिंसक दो लोगों ने एक लडक़ी, एक महिला को मार डाला। ऐसा जगह-जगह हो रहा है, लोगों की आवाजाही, उनका उठना-बैठना, उनका लोगों के साथ संपर्क बढ़ते चल रहा है। आज शहरीकरण के साथ-साथ लड़कियों और लडक़ों की दोस्ती बढ़ रही है। ऐसे में कब किसी के मन में किसी दूसरे के लिए इकतरफा तथाकथित प्यार पनपने लगे, और वह दीवानगी की हद तक जाकर हत्यारा हो जाए, इसे समझना बड़ा मुश्किल रहता है। लेकिन आज चारों तरफ ऐसी हिंसा जितनी अधिक हो रही है, उसे देखते हुए समाज को इस उलझन को सुलझाने की जरूरत है, वरना लाशें गिरती रहेंगी।

जिस समाज में लोगों के उठने बैठने पर कम या अधिक हद तक बंदिश रहती हैं, वहां पर इकतरफा मोहब्बत का खतरा बड़ा अधिक रहता है। और यह मोहब्बत इस हद तक बावलापन पैदा कर देती है कि दुतरफा, या इकतरफा मोहब्बत जब टूटती है, तो उसके बाद भी आमतौर पर पुरूष या नौजवान युवक यह बर्दाश्त नहीं कर पाते कि उनकी पुरानी प्रेमिका की जिंदगी में उनका कोई नया प्रेमी भी आ जाए। ऐसा एक भूतपूर्व और वर्तमान का मिला-जुला प्रेम त्रिकोण भी इन दिनों कई मामलों में कातिल होने लगा है। और समाज में खबरें तो कत्ल जैसी घटना हो जाने के बाद या खुदकुशी के बाद ही आती हैं, जब तक हिंसा न हो तब तक का तो किसी को पता भी नहीं चलता कि लोगों के रिश्ते हिंसक हो रहे हैं।

अब यह समझना होगा कि लोग इकतरफा मोहब्बत का शिकार होने से बच कैसे सकते हैं? अक्सर तो यह होता है कि जिस स्कूल-कॉलेज, या जिस किशोर-नौजवान समूह में कोई एक लडक़ी बहुत अधिक खूबसूरत हो, तो कई नौजवान उसके आशिक बन जाते हैं, उन सबकी इकतरफा मोहब्बत उससे हो जाती है। लेकिन एक अनार, सौ बीमार होने पर अनार के एक-दो दाने भी किसी एक मरीज को नहीं मिल पाते। एक अकेली सुंदर लडक़ी, भला कितने प्रेमियों को बर्दाश्त कर सकती है? ऐसे में यह खतरा बड़ा रहता है कि खूबसूरत लडक़ी और औसत लडक़े के बीच की मोहब्बत अगर लडक़े की तरफ से इकतरफा है, तो जिस दिन लडक़ी मना करती है, वह लडक़ा अपने खुद के प्रति, या लडक़ी के प्रति हिंसा की बात सोचने लगता है। ऐसे में सबसे बड़ी सावधानी लडक़ों के मां-बाप को बरतनी चाहिए जो कि अपने लडक़े की किशोरावस्था शुरू होते ही उसे यह बात समझाएं कि कोई भी लडक़ी अपनी मर्जी से ही किसी लडक़े से रिश्ता रख सकती है, किसी दूसरे की चाहत को अपने सिर पर टोकरे की तरह नहीं ढो सकती। और टोकरा बनने की ऐसी हसरतें लडक़ों को सीधे जेल भिजवा सकती हैं। जिन लडक़ों के मां-बाप अपनी औलाद को समझदार और जिम्मेदार नहीं बना पाते हैं, वे बाद में अस्पताल में उनकी मलहम-पट्टी करवाते खड़े रहते हैं, या अदालत से उनकी जमानत करवाते हुए। फिर यह भी है कि लडक़े जब ऐसे किसी एक मामले में एक बार बदनाम हो जाते हैं, तो उनकी पढ़ाई-लिखाई, आगे नौकरी या किसी कामकाज की संभावना, सभी कुछ खत्म हो जाता है। दूसरी तरफ लड़कियों के मां-बाप को भी उन्हें समझाने की जरूरत है कि आज वे जिनके साथ उठ-बैठ रही हैं, उनके बारे में उन्हें अच्छी तरह तौल और परख लेना चाहिए। एक गलत लडक़े से संगत किसी लडक़ी को किसी अश्लील वीडियो में फंसा सकती है, बलात्कार या सामूहिक बलात्कार तक ले जा सकती है, और कल की जो दो घटनाएं हैं, उस तरह सडक़ों पर कत्ल भी करवा सकती हैं। इसलिए किशोरावस्था आते ही लडक़े हों, या लड़कियां, उनके मां-बाप को अपनी औलाद को व्यवहारिक समझ देनी चाहिए, जिसके बिना आज समाज में खतरे बहुत हो गए हैं।

ऐसे कई मामले हमारे सामने आए हैं जिनमें किसी लडक़े ने इकतरफा मोहब्बत जारी रखने के लिए लडक़ी को धमकाते हुए उसके कुछ फोटो-वीडियो रिवेंज-पोर्न की तरह इधर-उधर पोस्ट किए, अब उस लडक़े के मां-बाप कॉलेज से उसे निकाले जाने के बाद उसके लिए किसी औने-पौने कॉलेज का इंतजाम कर रहे हैं, और अदालत में भी खड़े हुए हैं। इकतरफा मोहब्बत को एक मानसिक रोग मानने के पहले उसे लालन-पालन की कमी से जोडऩे की जरूरत है। अब वह वक्त नहीं रह गया है जब लडक़े-लड़कियों का मिलना-जुलना ही कम होता था, आज की पढ़ाई-लिखाई, खेलकूद, ट्यूशन और कोचिंग, इनमें से हर जगह लडक़े-लड़कियों का मिलना-जुलना चलते ही रहता है, ऐसे में सर्फ की खरीददारी की तरह, पहले समझाने में ही समझदारी है।

वैसे तो अखबार के संपादकीय कॉलम में नौजवान पीढ़ी के लिए कोई नसीहत लिखना फिजूल रहता है क्योंकि उनकी जिंदगी में एक-एक मिनट की रील से अधिक लंबी किसी चीज के लिए जगह नहीं रहती है। फिर भी हम इस उम्मीद से इस मुद्दे को यहां उठा रहे हैं कि कोई शिक्षक, कोई मां-बाप, कोई पड़ोसी, या कोई अंकल-आंटी इसे पढ़ें, और मां-बाप की पीढ़ी को भी कुछ समझाएं, और किशोर-किशोरियों की पीढ़ी को भी। किशोरावस्था में अगर जिम्मेदारी और खतरे का अहसास हो जाएगा, तो फिर उनके युवक-युवती बनने पर वह अहसास खत्म नहीं होगा। ऐसे अहसास तैरने और साइकिल चलाने सरीखे रहते हैं जिन्हें एक बार सीख लें, तो फिर उन्हें भुलाए नहीं भूला जाता। आज समाज में चारों तरफ जिस परले दर्जे की हिंसा चल रही है, लोग आत्मघाती भी हो रहे हैं, और कातिल भी हो रहे हैं, लोग बदला निकालने के लिए रिवेंज-पोर्न के मुजरिम भी बन रहे हैं। इसलिए यह वक्त समझदारी सीखने का है। हमारे कम लिखे को लोग अधिक समझें। आज इस देश में किशोरावस्था और युवावस्था के प्रेम संबंधों के परामर्शदाताओं का चलन नहीं है। लोग सामान्य परामर्शदाता ही हैं। लेकिन रिलेशनशिप एडवाइजर की बड़ी जरूरत है, और मां-बाप से परे भी लडक़े-लड़कियों की वहां तक पहुंच रहना चाहिए। आज सिर्फ कुछ पत्रिकाओं के कॉलम में या कुछ वेबसाइटों पर ऐसे सवाल-जवाब आते हैं, लेकिन जिन्हें सचमुच इनकी जरूरत है, वे इन्हें पढ़ते हैं या नहीं, यह तो पता नहीं है। 

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