संपादकीय
कल जिन लोगों ने जी-7 की बैठक छोडक़र अमरीका लौटे राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प की प्रेस से बातचीत देखी होगी, वे इस बात पर हैरान होंगे कि ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमरीकी हमले के बारे में ट्रम्प ने जवाब दिया कि वे हमला कर भी सकते हैं, और नहीं भी कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि वे ऐसे फैसले आखिरी पल में लेते हैं, क्योंकि आखिरी पल तक स्थितियां बदलती रहती हैं। ट्रम्प की शक्ल में पिछले कई दशकों में हम अमरीकी राष्ट्रपति भवन में एक ऐसा सनकी तानाशाह देख रहे हैं जो कि बकरी की तरह मैं-मैं की जुबान बोलता है। हालांकि यह मिसाल देना भी हमारी नाइंसाफी है, लेकिन ट्रम्प को राष्ट्रपति बनने से पहले से अब तक जिस तरह हम हर फैसला लेते, हर धमकी देते, हर कार्रवाई करते सिर्फ अकेले देखते हैं, उससे लगता है कि अमरीकी इतिहास में भी शायद इतना बड़ा तानाशाह राष्ट्रपति कोई दूसरा नहीं बना होगा।
जिस तरह ट्रम्प अमरीका के दोस्त और दुश्मन, हर किस्म के देश की बांह मरोडक़र, उनके सिर पर बंदूक टिकाकर, उन्हें भूखे मारने की धमकी देकर अपनी मर्जी का काम करवा रहा है, वह देखना भी भयानक है। दुनिया में अब दोस्ती की परिभाषा बदल चुकी है। कल तक जो रूस आधी सदी से अधिक से अमरीका का दुश्मन था, वह अब ट्रम्प का दोस्त हो गया है, और जिस यूक्रेन को अमरीका ने इतिहास की सबसे बड़ी फौजी मदद दी थी, वह यूक्रेन अब अमरीकी राष्ट्रपति भवन में मीडिया के कैमरों के सामने बिठाकर धमकाने लायक हो गया है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साफ-साफ कहने के बाद भी ट्रम्प ने यह दुहराना बंद नहीं किया है कि उसने भारत और पाकिस्तान दोनों को व्यापार की धमकी देकर युद्ध बंद करने पर तैयार किया, वरना ये परमाणु युद्ध के कगार पर थे। भारत सरकार और मोदी इस बात को साफ कर चुके हैं कि इसमें ट्रम्प की कोई भूमिका नहीं थी, लेकिन ट्रम्प अब तक इसे 15 या अधिक बार दुहरा चुका है। वह दुनिया के हर देश के बारे में, हर मोर्चे के बारे में अपनी राय रखता है, उसे हर तीसरे-चौथे दिन बदल देता है, और वह अमरीका, संयुक्त राष्ट्र, या नाटो जैसे किसी संगठन, किसी के प्रति भी जवाबदेह नहीं है। न अमरीकी संसद के प्रति, न अमरीकी अदालतों के प्रति, और न ही अपने किसी मंत्रिमंडल के प्रति, अगर वह है तो। वह चार महीने अपने सबसे करीबी एलन मस्क को अमरीकी सरकारी मशीनरी का कत्ल-ए-आम करने के लिए जल्लाद बनाता है, और कार्यकाल खत्म होते ही ट्रम्प और मस्क एक-दूसरे का गला काटने पर उतारू हो जाते हैं।
अभी हमने चैट जीपीटी से पूछा कि ट्रम्प की सनक दुनिया को किस तरह प्रभावित कर रही है, तो उसका कहना है- ट्रम्प की सनक अक्सर नीति की जगह निजी जुनून, बदले की भावना, या लोकप्रियता की राजनीति से प्रेरित लगती है। ट्रम्प के बयानों और फैसलों में बिजली गिरने की तरह की रफ्तार है, अचानकपन है, और आक्रामकता है। उसने ईरान के खिलाफ धमकी देकर पूरे पश्चिम एशिया में युद्ध का माहौल बना दिया है, यूक्रेन पर ट्रम्प के बदले अमरीकी रूख ने योरप के नाटो देशों की फिक्र बढ़ा दी है कि अमरीका भरोसेमंद साझेदार है भी या नहीं। चैट जीपीटी का कहना है कि ट्रम्प की विदेश नीति डील की भाषा बोलती है, लेकिन उसका नतीजा अक्सर तनाव और विभाजन होता है। इस एआई ने दर्जनों मुद्दे गिनाए हैं कि एक सनकी ट्रम्प अपने मनमाने फैसलों से किस तरह दुनिया को प्रभावित कर रहा है। ट्रम्प के इस दौर में अमरीका की भूमिका समस्या सुलझाने वाले के बजाय संकट बढ़ाने वाले की बन गई है। उसने पेरिस समझौते से अमरीका को बाहर करके वैश्विक जलवायु सहयोग को झटका दिया, और कोयला-तेल कंपनियों को बढ़ावा दिया जिससे पर्यावरण को बचाने की कोशिशें धीमी हो गईं। चैट जीपीटी के मुताबिक ट्रम्प के तौर-तरीकों नेे दुनिया भर में तानाशाहों और सत्तावादियों को प्रेरित किया है, इससे भारत, ब्राजील, हंगरी, और इजराइल जैसे देशों में ट्रम्प शैली की राजनीति दिखने लगी है। जैट जीपीटी का विश्लेषण है कि संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, नाटो जैसी संस्थाओं से ट्रम्प या तो बाहर निकल गए हैं, या उन्हें अपमानित कर रहे हैं। इससे महामारी, युद्ध, या विस्थापन जैसे वैश्विक संकटों से निपटना मुश्किल हो गया है। इस एआई एप्लीकेशन का यह भी कहना है कि ट्रम्प की लीडरशिप में अब अमरीका का अघोषित नारा हो गया है- मुनाफा पहले, नैतिकता बाद में। एक वक्त अमरीका को लोकतंत्र, मानवाधिकार, और अंतरराष्ट्रीय कानूनों की फिक्र करने वाला माना जाता था, अब यह सउदी अरब और उत्तर कोरिया जैसे तानाशाह देशों से तरह-तरह की व्यापार और हथियार डील कर रहा है। अब दुनिया भर में यह संदेश गया है कि दुनिया में सब कुछ ताकत और पैसे से ही तय होता है।
हम पहले भी इस बात को लिख चुके हैं कि जमाने से चली आ रही यह सोच अमरीका पर सबसे अधिक सही साबित हो रही है कि जैसा करते हैं, वैसा भरते हैं। ट्रम्प ने जिस तरह फिलीस्तीन पर हमले के लिए इजराइल का हौसला बढ़ाया, और गाजा को दुनिया के सबसे बड़े मलबे में, और सबसे बड़े कब्रिस्तान में तब्दील करवा दिया, ठीक वैसा ही अमरीकी लोकतंत्र का हाल हो रहा है। अमरीकी लोकतंत्र आज मलबे सरीखा हो गया है, और अमरीकी आज नैतिक और लोकतांत्रिक मूल्यों, स्वस्थ कारोबार, दुनिया भर के देशों से आए लोगों की प्रतिभाओं को इस्तेमाल करने वाले देश की जगह इन्हीं सब मूल्यों का कब्रिस्तान हो गया है। शायद ट्रम्प नाम का यह बुलडोजर चार बरस तक इसी तरह तबाही करता रहेगा, तो हो सकता है कि एकबारगी गाजा के मलबे में से मकान तो पहचान में आ जाएंगे, अमरीका पहचान में नहीं आएगा। हम हिटलर पर बनी हुई कई फिल्मों को देखते हैं, तो उनमें भी हिटलर अपने फौजी अफसरों के साथ बैठक करते दिखता है। ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद से आज तक ट्रम्प के मुंह से उसकी सरकार, उसके मंत्रिमंडल, उसके साथी, अमरीका के दूसरे संवैधानिक संगठन, किसी की भी चर्चा सुनाई नहीं पड़ती। ट्रम्प एक स्वमोहन और महत्वोन्माद के शिकार मानसिक रोगी तानाशाह की तरह पूरी दुनिया को अपनी तोप की नाल की नोंक पर लेकर चल रहा है। मजे की बात यह है कि दुनिया को तबाह करने के साथ-साथ अब वह नोबल शांति पुरस्कार का दावेदार भी बन गया है। अगर ट्रम्प को नोबल शांति पुरस्कार मिलता है, तो फिर हिटलर, और ईदी अमीन को भी मिलना चाहिए। आगे-आगे देखें होता है क्या। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


