संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : भ्रष्ट आईपीएस से भरेपूरे प्रदेश में थानों के भ्रष्टाचार पर क्या ही कहा जाए...
सुनील कुमार ने लिखा है
17-Jun-2025 4:57 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : भ्रष्ट आईपीएस से भरेपूरे प्रदेश में थानों के भ्रष्टाचार पर क्या ही कहा जाए...

एक जगह अभी गुंडागर्दी के साथ बड़ी-बड़ी मशीनों से नदी से अवैध रेत खुदाई का एक मामला सामने आया, तो अवैध खुदाई करने वाले ने विरोध करने वालों पर गोली चला दी। इसके बाद की एक टेलीफोन कॉल रिकॉर्डिंग सामने आई तो पता लगा कि पुलिस थानेदार ही मुजरिमों को बचाने के लिए नीचे से ऊपर तक सेटिंग कर रहा है, उन्हें बचा लेने का भरोसा दिला रहा है, और बड़े अफसरों तक को सेट कर लेने की बात कर रहा है। इस कॉल रिकॉर्डिंग के बाद इसे सस्पेंड करने के अलावा और तो कोई रास्ता बचा नहीं था। लेकिन छत्तीसगढ़ में यही एक अकेला मामला ऐसा नहीं है जिसमें कि पुलिसवाले मुजरिमों के साथ मिले हुए दिख रहे हों। पिछले बरसों में लगातार ऐसे बड़े-बड़े मामले सामने आए हैं जिनमें सिपाही से लेकर आईजी स्तर तक के पुलिस अफसर संगठित अपराधियों के साथ भागीदारी करते पकड़ाए हैं, और ईडी की जांच के घेरे में अब तक बने हुए हैं, पता नहीं उन पर कोई कार्रवाई हो सकेगी या नहीं।

हम छत्तीसगढ़ में ही पुलिस के जुर्म की बात करें, तो आधा दर्जन आईपीएस अफसर तो महादेव ऑनलाईन सट्टे से लाखों रूपए महीने लेने के आरोपों से घिरे हुए हैं, और ईडी के छापे भी इन पर पड़ चुके हैं। ये अफसर रायपुर और दुर्ग जैसे महत्वपूर्ण जगहों पर तैनात थे, और इन जगहों पर रिश्वत लेने वाले अफसरों के घर कई तरह के धंधों का पैसा खुद चलकर आता है, लेकिन उससे भी इन्हें तसल्ली नहीं थी, और इसलिए ये देश के एक सबसे बदनाम जुर्म, महादेव सट्टे से भी पैसा ले रहे थे, ऐसा कई बयानों और हिसाबों में सामने आया है। अब जब बड़े-बड़े दिग्गज आईपीएस ऐसे आरोपों से घिरे हैं, तो फिर थाना स्तर के उन छोटे अधिकारियों-कर्मचारियों की क्या बात की जाए जो कि गांजे की तस्करी में हिस्सेदार बन जाते हैं, या अवैध शराब का कारोबार करने लगते हैं? बाजार की चर्चा तो यही बताती है कि सालों में एकाध बार स्पा सेंटरों पर खानापूरी के लिए छापा पड़ जाता है, लेकिन बाकी 364 दिन वहां धड़ल्ले से धंधा चलता है, और इलाके की पुलिस की मेहरबानी से ही चलता है। इसके अलावा पूरी-पूरी रात नशे में डूबे हुए कई तरह के क्लब बड़े शहरों में चलते हैं, जहां से निकलने वाले धुत्त लोग कई तरह के एक्सीडेंट करते हैं, कई तरह की हिंसा करते हैं। ये सब भी पुलिस को हफ्ता-महीना दिए बिना नहीं चल सकते। तमाम शराबखाने उनके लिए तय समय के बाद तक धड़ल्ले से चलते हैं, और इनसे भी इलाके की पुलिस को रंगदारी मिलती है।

अब पुलिस को जुर्म से अलग रखने का काम कैसे हो सकता है, जब बड़े-बड़े अफसर इस प्रदेश के सबसे बड़े संगठित अपराध से माहवारी पा रहे हों? वे किस मुंह से, और किस नैतिक अधिकार से छोटे कर्मचारियों पर ईमानदारी थोप सकते हैं? इंकम टैक्स से लेकर ईडी तक की जांच में ऐसे हजारों चैट सामने आए हैं कि बड़े-बड़े ताकतवर आईपीएस अफसर भूपेश सरकार के वक्त रंगदारी वसूलने वाले सत्ता के मवालियों के सामने दंडवत पड़े हुए थे। जब बड़े-बड़े अफसर सत्ता के जुर्म को बचाने के लिए अपने ही विभागों को धोखा दे रहे थे, अदालती कार्रवाई को धोखा दे रहे थे, जब सबसे भ्रष्ट लोगों को बचाने के लिए राज्य का महाधिवक्ता हाईकोर्ट जज के साथ मिलकर रात-दिन एक कर रहा था, तब ट्रैफिक सिपाहियों की कुछ सौ रूपए की वसूली-उगाही के वीडियो पोस्ट करना शर्मनाक है। यह तो आईटी-ईडी की मेहरबानी है कि सुप्रीम कोर्ट को बंद लिफाफे में उन्होंने ऐसी चैट दी, जिससे राज्य का पुलिस-प्रशासन तंत्र, और राजनीतिक सत्ता, हाईकोर्ट जैसी बड़ी अदालत, इन सबका भांडा फूट गया। अब प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी वकील अपनी जमानत के लिए एक अदालत से दूसरी अदालत भाग-दौड़ कर रहे हैं, तो ऐसे में सिपाही-थानेदार को क्या कहा जाए?

छत्तीसगढ़ में राजनीतिक सत्ता, और पुलिस प्रशासन की जुर्म में भागीदारी इतनी पुख्ता, और मौलिक-कल्पनाशील साबित हुई है कि इसे आईएएस-आईपीएस अफसरों की अकादमी में पढ़ाया जाना चाहिए कि वहां से पहले पढक़र निकले, और अब बड़े-बड़े अफसर बन गए लोग कितना आगे निकल चुके हैं। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अफसरों के जैसे फौलादी ढांचे की कल्पना की थी, उस कल्पना के नाम पर अब उन्हीं के नाम की अकादमी से निकले अफसरों ने कालिख पोत दी। और ऐसा भी नहीं था कि पिछले पांच बरस अगर इनमें से कोई अफसर जुर्म करने से मना कर देते, तो वे भूखे मर जाते। वे किसी कमाऊ कुर्सी पर न भी रहते, उनका बंगला, गाड़ी, तनख्वाह, और अर्दली तो कहीं गए नहीं रहते। जुर्म में भारी उत्साह से हिस्सेदारी इन लोगों ने मोटी कमाई के लिए ही की, वरना इन लोगों से दस फीसदी से भी कम तनख्वाह वाले लोग भी इनसे अधिक बड़े परिवार पाल लेते हैं।

छत्तीसगढ़ एक जर्जर नैतिकता वाली सरकारी मशीनरी झेल रहा है। एक-दूसरे के देखादेखी गैरकानूनी कमाई की हसरत इतनी अधिक हो गई है कि छोटे-बड़े अफसर-कर्मचारी अब तक कहीं अवैध शराब में लगे हैं, तो अवैध रेत खुदाई में तो मानो पूरे प्रदेश की सरकारी मशीनरी ही लगी हुई है। जिस दिन कार्रवाई करनी रहती है, उस दिन एक जिले में करोड़ों की मशीनें, और करोड़ों की गाडिय़ां पकड़ा जाती हैं, और इतनी की इतनी जब्ती तो पिछले कई बरसों में हर दिन हो सकती थी, लेकिन की नहीं जा रही थी। जब किसी राज्य में बरसों से सरकारी मशीनरी में भ्रष्टाचार गहराई तक पैठ जाता है, तो उसे जल्द हटाना मुमकिन नहीं हो पाता। छत्तीसगढ़ को व्यवस्था सुधारने में खासा वक्त लगेगा, क्योंकि जंगली जानवरों के बारे में जो कहा जाता है, वह बात उनसे अधिक शहरी इंसानों पर लागू होती है कि जब मुंह में एक बार खून लग जाता है, तो...।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक विख्यात जज, जस्टिस अवध नारायण मुल्ला ने एक बार भारत की पुलिस को मुजरिमों का सबसे बड़ा और संगठित गिरोह कहा था, और उनकी टिप्पणी के बाद वर्दीधारी गुंडा जैसे शब्द चल निकले थे। छत्तीसगढ़ में डीजीपी की नियमित नियुक्ति महीनों से अधर में लटकी हुई है, अभी जिन्हें जिम्मा दिया गया है, वे अरूण देव गौतम एक अच्छे और असरदार अफसर साबित हो सकते हैं, अगर उन्हें नियमित करके विभाग को सुधारने की कुछ खुली छूट दी जाए। बीते बरसों में एक के बाद दूसरे डीजीपी ने छत्तीसगढ़ पुलिस को खोखला सा कर दिया है, और पिछली कांग्रेस सरकार के पांच बरसों में पुलिस और प्रशासन दोनों की रीढ़ की हड्डियां निकालकर मेडिकल कॉलेज के एनॉटॉमी विभाग में डिस्प्ले पर लगा दी गई हैं। सरकार को नियमित डीजी के साथ, और नए मुख्य सचिव के साथ सरकारी मशीनरी को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार को जो भ्रष्ट व्यवस्था विरासत में मिली है, सरकारी मशीनरी को वही सबसे अच्छी लगती है, ताकि हरेक के कई-कई मकान-प्लॉट हो जाएं। सरकार को पुलिस और प्रशासन, दोनों के बेहतर मुखिया तय करने, और उन्हें व्यवस्था सुधारने के लिए आजादी देने का काम करना चाहिए।   (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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