संपादकीय

मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी हुई एक चर्चित अभिनेत्री शेफाली जरीवाला की कम उम्र में ही अचानक मौत हो जाने की जांच चल रही है। ऐसी चर्चा है कि वे जवान बनी रहने के लिए कई किस्म की दवाईयां लेती रहती थीं, और शायद उन्होंने खाली पेट भी ऐसी दवाईयां ले ली थीं। अब पुलिस पोस्टमार्टम करवा रही है, इसलिए हम इस मामले में अटकल लगाना नहीं चाहते, लेकिन इस किस्म की जीवनशैली के बारे में बात करना जरूर चाहते हैं कि लोग आज जवानी बरकरार रखने के लिए अपनी आर्थिक क्षमता के मुताबिक क्या-क्या नहीं कर रहे हैं, और कैसे-कैसे खतरे नहीं झेल रहे हैं?
लोगों को याद होगा कि अपनी मर्जी का रंग-रूप पाने के लिए दुनिया का सबसे चर्चित मामला पॉप सिंगर माइकल जैक्सन का था जिसने अपने चेहरे की अनगिनत प्लास्टिक सर्जरी करवाई थी, खाना-पीना तक सीमित कर दिया था, और बाद में ऐसी ही कई दवाईयों का हाथ उसकी कमउम्र में मौत के पीछे शायद था। आज प्लास्टिक सर्जरी, और तरह-तरह के कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट के लिए लोगों की कतार लगी रहती है। चेहरे की मरम्मत करवाने, उसे नया रूप देने, और बदन को नया आकार देने से बढ़ते-बढ़ते दीवानगी अब महिलाओं के उन निजी अंगों तक पहुंच गई है जिन्हें गोरा करने, उनका आकार बदलने के खुले इश्तहार होने लगे हैं। यह बात समझने की जरूरत है कि खूबसूरती के बाजारू पैमानों को बेचने वाला बाजार लोगों को मुफ्त बेचैनी बेचता है, और फिर इस बेचैनी के चलते लोग अपने बदन के साथ तरह-तरह का खिलवाड़ करने लगते हैं। न सिर्फ विकसित दुनिया में, बल्कि भारत जैसे विकासशील देश में भी सबसे ऊपर की कमाई वाले पांच-दस फीसदी लोगों में बाजार ऐसी बेचैनी का रोपा लगाने में कामयाब हो गया है, और इसके बाद वह उनकी जेब से अपनी फसल काटते चल रहा है। इस बेचैनी का हमारे पास कोई इलाज नहीं है, क्योंकि यह एक आभासी समस्या, आभासी हीनभावना, और सपनों के पीछे दौडऩे की दीवानगी है, जिसका इलाज किसी के पास नहीं हो सकता, और एक मरम्मत के बाद लोग दूसरी मरम्मत के लिए भागने लगते हैं।
लोगों को इस बात का अहसास नहीं रहता कि अमरीका से शुरू हुआ बाजार किस हिंसक तरीके से बाकी तमाम देशों पर काबू कर लेता है। वहां एक बार्बी नाम की गुडिय़ा बनाई गई, और उसके असंभव किस्म के बदन के आकार को लेकर दुनिया की लड़कियों और महिलाओं में अपने बदन को उस जैसे नाप में ढालने की दीवानगी छा गई। लड़कियां खाना-पीना छोड़ दे रही हैं, क्योंकि उन्हें जीरो साईज का फिगर चाहिए। एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव इस गुडिय़ा का पूरी की पूरी पीढिय़ों पर ऐसा पड़ा कि लोगों का खाना-पीना छूट गया। बाजार ऐसी बेचैनी लोगों के बीच मुफ्त में फैलाता है, और उसके बाद लोग खर्च खुद होकर करते हैं। एक अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा के होंठ देखकर महिलाएं और लड़कियां अपने होठों का बोटाक्स ट्रीटमेंट कराने पर आमादा हो जाती हैं, और ऐसे ट्रीटमेंट से जितने चेहरे अधिक मादक और सुंदर होते हैं, उससे अधिक चेहरे बर्बाद हो जाते हैं। आज हालत यह है कि पश्चिम के कई देशों में ऐसे कॉस्मेटिक सर्जरी और ट्रीटमेंट वाले क्लीनिक में काम करने वाली नर्सें, और दूसरी कर्मचारी अपने घर पर सस्ते में इस तरह के प्रोसीजर कर रही हैं, जिनमें लोगों की मौतें तक हो रही हैं। चीन में ऐसे हजारों गैरकानूनी क्लीनिक चल रहे हैं, जो कि चीनियों की आंखों को बड़ा करने का वायदा करते हैं।
अधिक सुंदर दिखने, अधिक वक्त तक जिंदा रहने की हसरतों की दौड़ कभी खत्म नहीं होती। लोग अमरत्व प्राप्त करने में लगे ही रहते हैं। ऐसे में यह भी समझने की जरूरत है कि आज किसी दवा, इंजेक्शन, सर्जरी, या किसी और ट्रीटमेंट से जिन लोगों ने अपने बदन के साथ खिलवाड़ किया है, उनके बदन पर इन सबका किस तरह का दूसरा असर होता होगा, और वह तुरंत सामने आएगा, या कि कुछ बरस बाद, इसका कोई अंदाज तो यह धंधा करने वाले डॉक्टरों, या गैरचिकित्सकों को भी नहीं है। लोगों को यह चाहिए कि वे अपने बदन के साथ संतुष्ट रहना सीखें। कुदरत ने हर किसी को एक मौलिक रूप-रंग, आकार-प्रकार दिया है, और खूबसूरती के जो पैमाने बाजार में चलते हैं, वे बाजारूकरण की रणनीति का हिस्सा रहते हैं। उसके बजाय लोगों को एक सेहतमंद जिंदगी के बारे में अधिक सोचना चाहिए। योग-ध्यान, कसरत और सैर, प्राणायाम, सेहतमंद खानपान, और दिल-दिमाग की संतुष्टि से लोग अधिक लंबा जी सकते हैं, अधिक खुश भी रह सकते हैं। बाजार की पूरी कोशिश रहती है कि लोगों को उनकी खाल से निकालकर किसी दूसरी खाल में डालने के ग्राहक जुटाए जाएं। लेकिन लोगों को अपने बदन में आत्मविश्वास के साथ जीना सीखना चाहिए। कुछ गिने-चुने लोग ही ऐसे हैं जो कि फैशन-मॉडल की तरह, या कि किसी अभिनेत्री की तरह अपने रूप-रंग, या अपने चेहरे-मोहरे की कमाई खाते हैं। ऐसे लोगों को जरूर किसी मुखौटे, और किसी दूसरी खाल की जरूरत रहती है। बाकी तो तमाम लोग अपने प्राकृतिक बदन के साथ बहुत अच्छे से जिंदगी के दूसरे दायरों में आगे बढ़ सकते हैं, उनका आगे बढऩा रैम्प वॉक से परे भी हो सकता है। दुनिया में 99 फीसदी लोगों को ऐसे चेहरे-मोहरे, और ऐसे बदन की जरूरत नहीं पड़ती है। लेकिन एक फीसदी लोगों को देख-देखकर बाकी 99 फीसदी लोग हीनभावना के शिकार रहें, और अपने बदन से बागी रहें, यह किसी के लिए अच्छा नहीं है, सिवाय बाजार के।