संपादकीय
दिल्ली अभी भयानक गर्मी से झुलस रही है। वहां मौसम का तापमान चाहे जितना हो, एक थर्मल कैमरे ने एक गरीब घर की दीवारों का तापमान लिया जो उसे 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक बता रहा था। बीबीसी की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत की तीन चौथाई से अधिक आबादी इस समय भयानक गर्मी की चपेट में है, और इनमें दिल्ली ऐसे जलते-झुलसते दस राज्यों में से एक है। यह रिपोर्ट बताती है कि सबसे अधिक खराब हालत महिलाओं की है, क्योंकि उन्हें घर-बाहर हर जगह काम करना पड़ता है, घर पर खाना पकाते इतनी गर्मी में चूल्हे की गर्मी और जुड़ जाती है, और बाहर काम करना एक मजबूरी है क्योंकि उसके बिना चूल्हे पर पकाने के लिए अनाज आएगा कहां से? तरह-तरह की विशेषज्ञ रिपोर्ट गरीबों पर अलग-अलग कई किस्म के खतरे बताती हैं। असंगठित मजदूरों पर एक जांच रिपोर्ट बताती है कि घरेलू कामगारों को उन्हीं मकानों में शौचालय जाने नहीं मिलता, और उससे बचने के लिए वे पानी पीने से परहेज करते हैं, और इस वजह से डी-हाईड्रेशन के शिकार हो जाते हैं। मौसम की इतनी बुरी मार से गरीबों की सेहत पर, और खासकर महिलाओं की सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है।
अब हम किसी भी विशेषज्ञ रिपोर्ट से परे एक आम समझबूझ की बात करते हैं कि दिल्ली जैसे पूंजीवादी, और सरकारी बंगले-दफ्तर से भरे हुए महानगर में अधिक गर्मी में किसकी मार किस पर पड़ती है। जब आसमान पर तपता सूरज इंसानों, जानवरों, और पेड़-पौधों पर मार करता है, उसी वक्त एयरकंडीशंड घर-दफ्तर, दुकान और गाड़ी वाले लोग अपने को ठंडा रखने के लिए अपने एसी से धधकती हुई हवा बाहर फेंकते रहते हैं। दिल्ली के व्यस्त बाजारों में दुकानों के पास से निकलें, तो वहां एसी से निकलती हवा भट्टी की तरह लगती है। और कुल मिलाकर तो यह शहर की हवा को ही गर्म करती है। दिल्ली में केन्द्र सरकार के दफ्तरों का समंदर है, देश के हर राज्य की सरकारों के दफ्तर और भवन है, सुप्रीम कोर्ट से लेकर दर्जनों दूसरी संवैधानिक संस्थाएं वहां पर हैं, अंतरराष्ट्रीय संगठनों से लेकर दुनिया के तकरीबन हर देश के दूतावास या उच्चायोग वहां पर हैं, और लोगों के पास अंधाधुंध पैसा भी है। ऐसे में आसमान की मार जितनी पड़ती है, उसी अनुपात में इस महानगर के संपन्न तबके के एयरकंडीशनरों की मार भी शहर के तापमान पर पड़ती है, और दो किस्म की गर्मी का यह मुकाबला दोनों तरफ से बराबरी पर चलता है, और जिस तरह दो तरफ की गोलीबारी के बीच बेकसूर लोग मारे जाते हैं, उसी तरह कुदरत की कहर, और सरकार या संपन्न तबकों की कहर के बीच गरीब मारे जाते हैं, झुलसते रहते हैं।
हम किसी पर्यावरण विज्ञानी की तरह बात करने के बजाय एक आम समझबूझ से इस बात को आगे बढ़ा रहे हैं, और इस चर्चा को दिल्ली पर ही सीमित रख रहे हैं क्योंकि ठंड में यह शहर ऐतिहासिक प्रदूषण का केन्द्र बन जाता है, और वहां जिंदा रहना मुश्किल रहता है। गर्मियों में यह भट्टी बन जाता है, और जिंदा रहना ठंड से भी अधिक मुश्किल हो जाता है। ऐसे में देश की सरकार को यह चाहिए कि दिल्ली के विकेन्द्रीकरण की सोचे। यह जरूरी तो नहीं है कि केन्द्र सरकार के हर संस्थान दिल्ली में हों? सुप्रीम कोर्ट या चुनाव आयोग दिल्ली में हो? अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं या दूतावास-उच्चायोग दिल्ली में हों? बहुत पहले ग्वालियर को देश की उपराजधानी बनाने की बात एक बार हुई थी। दक्षिण भारत भी कभी-कभी यह मांग करते रहा है कि वहां देश की उपराजधानी बनाई जाए। हमारा तो ख्याल है कि देश के अलग-अलग हिस्सों को दिल्ली के दफ्तरों की भीड़ बांट देनी चाहिए। केन्द्र सरकार के बहुत से संस्थान अलग-अलग प्रदेशों की राजधानियों में भेजे जा सकते हैं, और देश की राजधानी को लगातार बढ़ते हुए प्रदूषण से बचाया भी जा सकता है। वैसे भी देश की एकता के लिए यह बेहतर होगा कि राष्ट्रीय स्तर के अधिकतर संस्थान अलग-अलग प्रदेशों में पहुंचा दिए जाएं, ताकि देश भर के लोगों का उन प्रदेशों में आना-जाना होता रहे। हमने कुछ बरस पहले भी इसी जगह यह सलाह दी थी, और इससे भारत के अलग-अलग हिस्सों के बीच खुद रही खाई भी रूक सकेगी। यह कल्पना करें कि केन्द्र सरकार के, या राष्ट्रीय स्तर के कुछ संस्थान उत्तर-पूर्व चले जाएं, कुछ दक्षिण भारत में, और कुछ देश के दूसरे हिस्सों में। तो इससे देश के विकास का कुछ हिस्सा उन प्रदेशों में भी पहुंच सकेगा।
राष्ट्रीय स्तर पर जो योजनाशास्त्री हैं, उन्हें अगले 25-50 बरस की सोचते हुए राज्य सरकारों से ऐसे प्रस्ताव मंगवाने चाहिए कि वे वहां पर राष्ट्रीय संस्थाओं के लिए कितनी जगह देने को तैयार हैं? राज्य अगर जगह देंगे, तो उससे वहां पर केन्द्र सरकार बहुत सा निर्माण करवा सकेगी, और राज्य की आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी, जो कि पूरी जिंदगी कमोबेश जारी रहेंगी। इस तरह केन्द्र को राज्यों से योगदान मांगकर वहां अलग-अलग संस्थानों को भेज देना चाहिए। दिल्ली को बचाने का यह एक तरीका हो सकता है, जिससे कि केन्द्र-राज्य संबंध अधिक मजबूत भी होंगे, और पूरे देश के राज्यों के बीच बेहतर संबंध भी बनेंगे, लोग अलग-अलग प्रदेशों को बेहतर जान-समझ पाएंगे, और इन दफ्तरों में कामकाज से आने-जाने वाले लोगों के पर्यटन, और उनकी खरीददारी से अलग-अलग प्रदेशों को फायदा भी होगा। दुनिया के कई देशों में उनके बड़े शहरों के बीच अदालत, संसद, और सरकार का बंटवारा है भी। भारत में ही शेयर बाजार मुम्बई में है, और कारोबार से जुड़े हुए कुछ और संस्थानों के दफ्तर भी। सरकार को दिल्ली को बचाने के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता को बसाने की कोशिश भी करनी चाहिए।


