संपादकीय
पिछले दो-तीन दिनों से हिन्दी के अखबार एक वक्त की चर्चित अपराध कथा पत्रिका ‘मनोहर कहानियां’ की तरह दिख रहे हैं। देश के बीचोंबीच इंदौर का एक हत्याकांड जो कि हुआ तो मेघालय के शिलांग में है, और जिसमें हनीमून मनाती हत्यारोपी दुल्हन यूपी में गिरफ्तार हुई है, वह पूरे हिन्दी इलाके की सबसे बड़ी खबर बन गया है। इसकी थोड़ी सी जानकारी देना जरूरी है। इंदौर के एक नौजवान से यूपी की एक लडक़ी की शादी दोनों परिवारों के तय किए हुए हुई, और 11 मई की शादी के हफ्ते भर बाद दोनों इँदौर से हनीमून के लिए शिलांग चले गए। वहां दो-तीन दिन में ही यह नौजवान गायब हो गया, और उसकी दुल्हन भी। अभी 2 जून को इस युवक की लाश मिली, और हफ्ते भर बाद दोनों राज्यों की पुलिस ने मिलकर दुल्हन सोनम को गिरफ्तार किया। तब यह पूरी कहानी सामने आई कि उसका अपने पिता के कारखाने में काम करने वाले एक नौजवान से कुछ महीने से प्रेम चल रहा था। ऐसे में सोनम ने परिवार के तय किए हुए दूसरे रिश्ते में शादी यह सोचकर कर ली कि शादी के बाद पति की हत्या कर देंगे, फिर वह विधवा हो जाएगी, और फिर वह प्रेमी से शादी कर लेगी, और विधवा होने की वजह से पिता भी इस दूसरी शादी का विरोध नहीं करेंगे। ऐसे में इस प्रेमी ने ही भाड़े के हत्यारों का जुगाड़ किया, और हनीमून मनाती दुल्हन इन्हें अपना लोकेशन भेजती रही, और उसने सामने खड़े रहकर दस दिन के पति का कत्ल करवाया।
यह पूरी कहानी पुलिस ने मोबाइल फोन के संदेशों, उनके लोकेशन, और सीसीटीवी फुटेज को जोडक़र बनाई है, और इस घटना से किसी ताकतवर का नाम नहीं जुड़ा है, इसलिए इस पर शक करने की कोई वजह नहीं है। लेकिन सनसनीखेज हिन्दी फिल्मों से भी अधिक सनसनीखेज यह घटना हैरान करती है कि आम घरेलू लडक़े-लड़कियां भी जुर्म का कोई इतिहास हुए बिना किस हद तक जा सकते हैं, कितनी साजिश तैयार कर सकते हैं, और कितनी परले दर्जे की बेवकूफियां भी कर सकते हंै। इससे यह बात भी लगती है कि आज कोई कत्ल होने पर पुलिस को सबसे पहले पति, पत्नी, और प्रेमी-प्रेमिका को ही खंगालना पड़ता है, और बहुत संभावना रहती है कि इनके बीच से ही मुजरिम मिल जाए। सीसीटीवी कैमरों, और मोबाइल फोन कंपनियों की टेक्नॉलॉजी ने मिलकर जांच एजेंसियों के हाथ ऐसे पुख्ता सुबूत दे दिए हैं कि वे अदालत में भी खड़े रहते हैं, और सजा दिलवाने में कामयाब रहते हैं।
लेकिन इसके पीछे की वजहों को समझना चाहिए कि न सिर्फ इस एक घटना में, बल्कि ऐसी दूसरी कई और घटनाओं में कौन सी वजहें हैं जिनसे लोग ऐसे जुर्म पर उतर आते हैं? आज भी 21वीं सदी के एक चौथाई हिस्से के निकल जाने पर भी भारत में जगह-जगह ऑनरकिलिंग के नाम पर मां-बाप अपनी बेटियों को, और कई मामलों में उसके प्रेमी या मर्जी के पति को भी मार डालते हैं क्योंकि वे उस रिश्ते के खिलाफ रहते हैं। उन्हें लगता है कि लडक़ी की मर्जी को बर्दाश्त करने से बेहतर है कि बाकी उम्र जेल में गुजार देना। अपनी ही औलाद को मारकर लोग इसे अपने परिवार का सम्मान भी मान लेते हैं। ऐसे जुर्म के पहले तक तो वे किसी किस्म की सामाजिक ‘बदनामी’ की फिक्र कर सकते हैं, और कत्ल कर या करवा सकते हैं, लेकिन ऐसे जुर्म के बाद तो वे जाहिर तौर पर बरसों की कैद भुगतने वाले हत्यारे साबित हो ही जाते हैं। इस तरह भारतीय समाज में धर्म, जाति, या उपजाति के बीच फैली हुई गहरी खाई का असर दिखता है, जब लोग बेटी की मर्जी पर उसे आजाद कर देने के बजाय उसे दुनिया से ही आजाद कर देते हैं, जिंदगी से आजाद कर देते हैं। और यह भी गजब की पुरूषवादी सोच है कि लडक़े अगर अपनी मर्जी से शादी करते हैं, तो उनका परिवार कभी ऑनरकिलिंग नहीं करवाता। फिर चाहे वे दूसरे धर्म में, दूसरी जात में, या अपने ही गोत्र में शादी कर लें, अगर घर के लडक़े कोई लडक़ी ले आते हैं तो उनका परिवार उनका साथ देता है, और लडक़ी को मंजूर कर लेता है। मतलब यह कि लडक़े को तो अपनी मर्जी और पसंद का हक दिया जाता है, लेकिन लडक़ी के हिस्से के फैसले उसके पिता और भाई, चाचा और ताऊ करते हैं, और वे लडक़ी के आजाद-खयाल को उसकी मौत के लायक मान लेते हैं।
आज शादी-त्रिकोण, या प्रेम-त्रिकोण में जितना खूनखराबा हो रहा है, उसे जाति व्यवस्था के साथ जोडक़र देखना भी जरूरी है, और अलग-अलग धर्मों के बीच होने वाली शादियों से जोडक़र देखना भी ठीक है। महिला अधिकारों के नजरिए से यह अध्ययन भी जरूरी है कि प्रेम या विवाह में लडक़ी की पसंद को किस हद तक गैरजरूरी, और अवांछित मान लिया जाता है। मां-बाप की तय की हुई अधिकतर शादियों में लडक़ी को गाय की तरह एक खूंटे से खोलकर, दूसरे खूंटे से बांध दिया जाता है, और इसे ही उसकी नियति मान लिया जाता है। आज पढ़ाई-लिखाई, कामकाज, और खेलकूद जैसे कई कामों के लिए लड़कियां घर से निकलती हैं, और अगर वे अपनी बालिग जिंदगी अपनी मर्जी से तय करती हैं, तो देश के कई प्रदेशों में परिवार उनके लिए मौत भी तय कर देते हैं। जहां पर मामले मौत तक नहीं पहुंच पाते, वहां पर भी लडक़ी पर अंधाधुंध दबाव डालकर, पुलिस को खरीदकर मां-बाप शादियों को तुड़वाकर अपनी लडक़ी को तलाकशुदा दर्जे के साथ भी घर ले जाने पर गर्व पाते हैं, फिर चाहे उसकी आगे की जिंदगी में कई किस्म के समझौते क्यों न करने पड़ें। मर्जी की शादीशुदा से बेहतर घरवापिस लाई गई तलाकशुदा! यह भयानक सोच और नौबत भारतीय समाज में लडक़ी की कमजोर हालत का सुबूत हैं, और आए दिन देश में कहीं न कहीं इसके पुख्ता मामले सामने आते रहते हैं।
इंदौर के इस जोड़े के बीच हुए ऐसे भयानक जुर्म की चर्चा करते हुए हम यहां तक पहुंचे हैं, और यह बात बहुत साफ है कि अगर इस लडक़ी को अपनी मर्जी के लडक़े से शादी करने की नौबत दिखती, तो वह शतरंज की अगली दस चालों की तरह यह साजिश नहीं बनाती कि पहले किसी से शादी करे, फिर विधवा हो जाए, और फिर शादी-बाजार में उसकी कीमत घट जाने से बाप उसे अपने एक नौकर से भी शादी करने दे। यह पूरी सोच भारतीय समाज के लिए बड़ी शर्मिंदगी की नौबत है। जिस समाज को भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स के अंतरिक्ष में जाने पर गर्व होता है, वह समाज अपनी लडक़ी को दूसरी जात तक में जाने नहीं देता। यह पाखंड भारत की एक पुख्ता पहचान बन चुका है, और इस हद तक पहुंची हिंसा के बिना भी बहुत सारे ऐसे मामले रहते हैं जो कि खबरों में इसलिए नहीं आते क्योंकि उनमें हत्या और आत्महत्या नहीं हुई हैं। लेकिन टूटे दिल वाले नौजवानों के, प्रेमीजोड़ों के निराश रहने पर उनकी जिंदगी समाज के लिए वैसी उत्पादक नहीं रह जाती जैसी कि एक खुशमिजाज जिंदगी गुजारने वाले जोड़े की रहती है। समाज को अपनी क्रूरता के बारे में सोचना चाहिए जो कि मासूम नौजवानों को दूसरों या खुद के खिलाफ हिंसा के लिए मजबूर करती है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


