संपादकीय

युद्ध से गुजर रहे रूस और यूक्रेन के बीच एक शांतिवार्ता की शुरूआत हो रही है जिसमें अमरीका सहित कई देशों की अपील के बावजूद रूसी राष्ट्रपति पुतिन शामिल नहीं हो रहे हैं, और यूक्रेन के राष्ट्रपति इसी बात की मांग करते-करते खुद फिलहाल तो इस बातचीत के लिए अपने प्रतिनिधि मंडल के साथ तुर्की जा रहे हैं, लेकिन वे पुतिन के बिना इस बैठक में शामिल होंगे या नहीं, यह अभी तय नहीं है। तीन बरस के युद्ध के बाद दोनों देशों के राष्ट्रपतियों की यह पहली बैठक हो सकती थी, और हो सकता था कि पुतिन के आने पर अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भी इसमें शामिल हुए रहते, लेकिन अब दोनों देशों के कुछ दूसरे दो नंबर के नेताओं के बीच बातचीत होगी, जो कि हमारे हिसाब से एक बुरी बात नहीं है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की युद्ध के दबाव और अमरीकी मदद की अनिश्चितता के चलते हुए भारी मानसिक तनाव से गुजरते दिख रहे हैं, और दुनिया के इतिहास में यह पहला मौका था जब अमरीकी राष्ट्रपति के दफ्तर में मीडिया के सामने वे ट्रम्प से उलझ गए थे, और दोनों के बीच भारी गरमागर्मी में ट्रंप को धमकी देने तक की जरूरत पड़ गई थी। सबसे बड़े नेताओं के बीच बातचीत सुनने में तो अच्छी लगती है, लेकिन उनके खतरे भी कम नहीं रहते हैं। सबसे बड़े नेताओं के बीच अहंकार का टकराव अगर शुरू हो जाता है, तो बातचीत और शांतिवार्ता की संभावनाएं ही पटरी से उतर जाती हैं।
दुनिया एक अजीब से झंझावात से गुजर रही है। ट्रंप बांहे मरोडक़र दुनिया के किन्हीं भी दो देशों के बीच समझौता करवा रहे हैं। और अभी तो हद हो गई जब कुछ घंटे पहले खाड़ी के देशों की यात्रा पर गए हुए डोनल्ड ट्रंप ने सऊदी अरब की राजधानी में सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल शरा के साथ मुलाकात की, बातचीत की, और अमरीकी विदेश मंत्री ने सीरिया की इस अंतरिम सरकार के विदेश मंत्री से बात की। अभी अधिक वक्त नहीं हुआ है जब अमरीकी सरकार ने कल तक के विद्रोही इस सीरियाई अंतरिम राष्ट्रपति के सिर पर 10 मिलियन डॉलर का ईनाम रखा था, और उसे अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करके रखा था। अहमद अल शरा एक वक्त अलकायदा, और आईएस जैसे खतरनाक इस्लामी आतंकी संगठनों के साथ काम करते रहा, और अमरीका सहित बहुत से पश्चिमी देशों ने इसी वजह से उसे अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया था। लोगों को याद दिलाना जरूरी है कि सीरिया की आधी सदी की खानदानी हुकूमत को पलटकर इस नौजवान नेता ने खानदानी शासक असद को सीरिया छोडऩे पर मजबूर कर दिया था, और अपने उग्रवादी संगठन का राज कायम कर लिया था। चौथाई सदी से अमरीका का सीरिया के साथ लेन-देन, और रिश्ता खत्म पड़ा हुआ था, सीरिया का शासक असद, ईरान और रूस के खेमे में था, और अब ट्रंप ने न सिर्फ बिना किसी घोषित कार्यक्रम के इस नौजवान अंतरिम राष्ट्रपति से मुलाकात की, बल्कि पल भर में सीरिया पर लगे हुए गंभीर आर्थिक और दूसरे प्रतिबंधों को हटाकर सीरिया को एक नया मौका देने की घोषणा भी की है। यह एक बड़ी अजीब सी नौबत है कि अमरीका के पुराने दोस्त आज दोस्ती का दर्जा खो बैठे हैं, और उसके सबसे कट्टर दुश्मन, उसके नए यार बनकर उभर रहे हैं। ऐसी ही नई यारी के चलते ट्रंप ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन का अछूत का दर्जा खत्म किया है, और जिस यूक्रेन को अमरीका की पिछली सरकार अंतहीन फौजी मदद करते आई थी, उस यूक्रेन की बांह मरोडक़र ट्रंप उसे पुतिन से बातचीत करने, युद्धविराम करने, और यूक्रेन के आधे खनिज भंडार अमरीका को देने का काम करवा रहा है। कूटनीति के बरसों लंबे सिलिसिले से गुजरकर अंतरराष्ट्रीय रिश्ते बनने को ट्रंप ने पुरानी फैशन साबित कर दिया है, और अब बांह मरोडऩे की ताकत ही दुनिया में अकेली कूटनीति रह गई है।
ऐसी नई हकीकत के बीच यूक्रेन और रूस की बातचीत होने जा रही है, और इजराइल से अपने बहुत करीबी रिश्तों के बावजूद ट्रंप ने मध्य-पूर्व के मुस्लिम देशों से बातचीत जारी रखी है, ईरान के साथ परमाणु मुद्दे पर समझौता वार्ता चल रही है। लोगों को ध्यान होगा कि अभी-अभी ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे बहुत गंभीर फौजी टकराव को दखल देकर खत्म करवाया, और दोनों देशों के पहले खुद ने इस युद्धविराम की घोषणा की। ट्रंप के तौर-तरीके परंपराविहीन हैं, उनकी कोई पुरानी मिसाल नहीं दी जा सकती, लेकिन वे तात्कालिक रूप से तो गजब के असरदार हैं। अब देखना यह है कि दुनिया की ब्रेड-बास्केट कहे जाने वाले यूक्रेन पर रूसी हमले से शुरू हुई यह जंग क्या ट्रंप के दबाव में थम सकती है? क्या योरप के देश इस युद्ध के दबाव से निकल सकते हैं? क्या दुनिया के भूखे देशों को यूक्रेन का गेहूं एक बार फिर आसानी से मिल सकता है? क्या रूस से तेल, और गैस सभी लोग पहले की तरह खरीद पाएंगे? ऐसे बहुत से सवाल ट्रंप के तेवरों से जुड़े हुए हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच दबाव डालकर समझौता करवाने के पीछे भी कुछ लोगों को ट्रंप की यह मंशा दिखती है कि वह अपने को दुनिया का सबसे बड़ा मध्यस्थ बनाकर स्थापित कर सके। अभी उसके सामने इजराइल और फिलीस्तीन, ईरान, भारत-पाकिस्तान, रूस-यूक्रेन जैसी कई चुनौतियां बाकी हैं, और कारोबारी तेवरों के साथ-साथ ट्रंप इन मोर्चों पर कामयाब होना शायद इसलिए भी चाहता है कि उसके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी चीन ने हाल के बरसों में मध्य-पूर्व के देशों के बीच कुछ ऐसे समझौते करवाए हैं जो कि अविश्वसनीय लग रहे थे। इसके साथ-साथ चीन ने दर्जनों देशों में अपना प्रभाव बढ़ाया है, वहां पूंजीनिवेश किया है, उन्हें कर्ज दिया है, और ताइवान के साथ अपनी लड़ाई में उसने दर्जनों देशों का रूख बदलने में भी कामयाबी पाई है। इसलिए आज ट्रंप के सामने यह भी बड़ी चुनौती है कि वह चीन के मुकाबले अपने को मध्यस्थता में अधिक कामयाब साबित करके दिखाए। शायद इसीलिए इजराइल के पूरे विरोध के बावजूद उसने सीरिया से बात की है, अमरीकी प्रतिबंध हटाए हैं, अंतरिम राष्ट्रपति के सिर पर रखा गया ईनाम खत्म किया है, और सीरिया को ईरान, और चीन के संभावित खेमे से निकालकर अपने साथ लाने की एक कोशिश की है।
हमने दुनिया की इस नौबत को इसीलिए झंझावात या बवंडर कहा है कि इससे उड़ी धूल आंखों को भर चुकी है, लोगों को भविष्य दिख नहीं रहा है, और ट्रंप का बचा हुआ कार्यकाल इतना लंबा है कि दुनिया में वह और क्या-क्या कर दिखाएगा, यह किसी की भी कल्पनाओं से परे है। देखते हैं दुनिया उसके कार्यकाल के खत्म होने तक कैसी बचती है।