संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ...आदिवासियों को धोखा देकर नित्यानंद के बनाए देश कैलासा की साजिश का हुआ भांडाफोड़
04-Apr-2025 8:16 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : ...आदिवासियों को धोखा देकर नित्यानंद के बनाए देश कैलासा की साजिश का हुआ भांडाफोड़

अफ्रीका के जंगलों में बसे आदिवासियों के बारे में एक बड़ी पुरानी कहानी चलन में है, जो कि काल्पनिक भी हो सकती है, लेकिन सौ फीसदी सही भी हो सकती है। इसके मुताबिक जब चर्च के पादरी पहली बार अफ्रीकी कबीलों में आदिवासियों के बीच पहुंचे, तो उनके हाथों में बाइबिल थी, और आदिवासियों के पास उनकी जमीन थी। कुछ दशक गुजरे और आदिवासियों के हाथ बाइबिल रह गई, और जमीनें पादरियों के पास चली गई। यह कहानी दशकों से चली आ रही है जो कि धर्म की हकीकत बताती है। और कमोबेश ऐसी ही हकीकत बहुराष्ट्रीय कंपनियों, कारोबारियों, और पूंजीवादी सरकारों की भी है जो कि दुनिया के आदिवासी इलाकों में, गरीब देशों में खदानों के लिए पहुंचते हैं, या जंगल काटने के लिए। लोगों को याद होगा कि अभी कुछ बरस पहले हॉलीवुड की एक फिल्म आई थी, अवतार, जिसमें कुछ खनिजों के लिए धरती से कारोबारी या सरकारें एक दूसरे ग्रह पर जाकर हमला करते हैं, और वहां के आदिवासी आधुनिक फौजी हथियारों का मुकाबला अपनी परंपरागत आदिवासी समझ से करते हैं।

अब आज न्यूयार्क टाईम्स की एक खबर है कि भारत में यौन शोषण के कई आरोपों के बाद तरह-तरह के सेक्स-वीडियो पीछे छोडक़र यहां से भागा हुआ एक स्वघोषित धर्मगुरू, स्वामी नित्यानंद, बोलिविया में जिस जमीन को जुटाकर वहां पर एक नया स्वतंत्र देश कैलासा बनाने की घोषणा कर चुका है, वहां इस जमीन को हासिल करने में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। यह रिपोर्ट बताती है कि नित्यानंद के कुछ जमीन दलालों ने वहां के आदिवासियों से 25 साल की लीज बताकर जमीन ली, अपने आपको धार्मिक और मानवतावादी संगठन बताया, और जमीन के एवज में उन्हें एक मोटी रकम किराए पर देना तय किया। बाद में पता लगा कि नित्यानंद के शिष्यों और दलालों ने आदिवासियों को तो लीज की अवधि 25 साल बताई थी, लेकिन बाद में उसे कागजों पर एक हजार साल कर दिया। और इस तरह हजार साल की लीज दिखाकर नित्यानंद ने दस लाख एकड़ से अधिक जमीन पर अपना एक स्वतंत्र देश कैलासा बनाने की घोषणा की, और उसका पासपोर्ट तक जारी करने लगा था, उसकी नागरिकता देने लगा था। भारत के कानून से भगोड़ा यह आदमी एक देश बनाकर उसका मालिक बन बैठा है, और अब वहां की सरकार ने इसके दलालों और शिष्यों को आदिवासियों से धोखाधड़ी के जुर्म में देश से निकाल दिया है।

आदिवासियों का यही हाल है, कहीं उन्हें धर्म के हाथों शोषण झेलना पड़ता है, तो कहीं कारोबारियों के हाथों। और जहां तक सरकारों का सवाल है, तो बहुत से देशों में सरकारें ईश्वर के ऐसे स्वघोषित दलालों को बढ़ावा देती रहती हैं, क्योंकि अलग-अलग देशों में अलग-अलग धर्मों का इस्तेमाल जनता के हर तरह के शोषण में होता है जिनमें राजनीतिक शोषण भी शामिल है। जनता को जागरूक बनाना खतरनाक रहता है, क्योंकि उसके बाद वह अपने दिमाग का इस्तेमाल कर सकती है, और अपने लिए सही और गलत का फैसला ले सकती है। दूसरी तरफ धर्मगुरूओं के बरगलाने से जनता राजा को ईश्वर मानने के धोखे में हजारों बरस से रहते आई है। ईश्वर के दलाल राजा को हिफाजत दिलाते हैं, और राजा ईश्वर के ऐसे दलालों को सत्ता से मिलने वाला सुख दिलाता है। इसी में आदिवासी अपनी जमीन या तो सीधे-सीधे खो बैठते हैं, या फिर पूंजीवादी सरकारों और कारोबारियों के गठबंधन के हाथ उनकी जमीन चली जाती है। हजारों बरस से दुनिया में यही सिलसिला चल रहा है, और इसीलिए वक्फ से लेकर मठ-मंदिरों तक, और चर्च तक का साम्राज्य दुनिया के सबसे बड़े जमींदारों सरीखा है, और यह जमीन आम लोगों से हासिल की गई है।

नित्यानंद नाम का यह भगोड़ा यौन शोषक आंखें कौंधिया देने वाली एक ऐसी मिसाल है कि आदिवासियों की जमीन को किस तरह ठगा जा सकता है, किस तरह किसी देश के कानून को धता बताकर वहां जमींदार बनाया जा सकता है, और अपना एक देश बना देने का नाटक भी किया जा सकता है। लोगों को याद होगा कि एक वक्त अमरीका में भारत से गए रजनीश ने भी बहुत बड़ी-बड़ी जमीनें लेकर वहां अपना एक किस्म का साम्राज्य स्थापित कर लिया था, और फिर बाद में वहां सरकार के नियम-कानून से उनके टकराव के बाद उन्हें अमरीका छोडऩा पड़ा था। अमरीका के ओरेगॉन में रजनीश ने रजनीशपुरम बना लिया था, और उनका स्थानीय समुदायों और सरकार से टकराव होते जा रहा था। रजनीश आश्रम पर इमिग्रेशन-धोखाधड़ी के आरोप थे, और उनके अनुयायियों ने अमरीकी इतिहास का सबसे बड़ा बायो-आतंकी हमला किया था जिसमें उन्होंने सलाद बेचने वाले रेस्त्रां में सलाद में जहर मिला दिया था। इसके बाद अदालती कार्रवाई में अमरीकी कानून के मुताबिक हुए मोलभाव के बाद रजनीश को वहां से निकाल दिया गया था। इसके बाद रजनीश कभी दुबारा अमरीका नहीं गए। धर्म और आध्यात्म के नाम पर, दर्शन और प्रवचन के नाम पर दूसरे देशों में साम्राज्य खड़ा करने की यह कोशिश अकेली नहीं थी। महर्षि महेश योगी ने भी अपने किस्म के एक प्राणायाम से योरप में एक बड़ा साम्राज्य खड़ा किया था, और कई चर्चित मशहूर लोगों के अलावा उनके दसियों लाख अनुयायी हो गए थे, और हॉलैंड की पहाडिय़ों पर उनका महलनुमा साम्राज्य बना था, लेकिन वहां आदिवासियों से टकराव जैसा कोई मुद्दा नहीं था, और अपनी आध्यात्मिक छवि के ठीक खिलाफ महेश योगी का साम्राज्य दुनिया के अलग-अलग देशों में कई तरह के विवाद झेलते रहा, और आज भी भारत में उनके संगठन की जमीनों को लेकर जालसाजी और धोखाधड़ी जारी है।

हम आदिवासियों के शोषण की बात पर लौटें, तो उससे जुड़े हुए धर्म, और कर्म के कारोबारियों की साजिशों को समझना होगा, क्योंकि सत्ता इन दोनों के साथ रहती है, और आदिवासी इन तीनों के हाथों लुटते हैं।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)  


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