संपादकीय

इन दिनों लगातार बढ़ते चले जा रहे साइबर और डिजिटल जुर्म एक तरफ तो यह साबित करते हैं कि मुजरिम जांच एजेंसियों के मुकाबले बहुत अधिक रफ्तार से आगे बढ़ रहे हैं। पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियां जब तक मुजरिमों के किसी एक तौर-तरीके को पकड़ पाती हैं, तब तक वे कई दूसरे तौर-तरीके तलाश लेते हैं, और उन पर अमल करने लगते हैं। बहुत मामूली पढ़े-लिखे या कि अनपढ़ सरीखे मुजरिमों को देखकर एक बात की हैरानी जरूर होती है कि बिना किसी विशेषज्ञता के जिस तरह वे न सिर्फ मानव स्वभाव को जान-समझकर लोगों को ठगने लगते हैं, बल्कि लोगों के डिजिटल उपकरणों और ऑनलाईन एप्लीकेशनों में घुसपैठ की नई-नई संभावनाएं भी रोज ढूंढते रहते हैं। लेकिन इसके साथ-साथ एक दूसरी हैरानी इस बात पर होती है कि ऐसे होशियार मुजरिम भी यह अंदाज नहीं लगा पाते कि जुर्म के कुछ दिनों के बाद पुलिस उन तक पहुंच ही जाएगी। दरअसल डिजिटल और इंटरनेट टेक्नॉलॉजी में जुर्म की संभावनाओं के साथ-साथ उनके पकड़े जाने की संभावनाएं भी जुड़ी रहती हैं, और अधिकतर साइबर-अपराधी जांच एजेंसियों की गिरफ्त में आ ही जाते हैं। पूरी दुनिया में जो सबसे बड़े साइबर मुजरिम इंटरनेट के एक सबसे बदनाम हिस्से, डार्क वेब, पर काम करते हैं, उनके अंतरराष्ट्रीय गिरोह भी आगे-पीछे पकड़ में आ जाते हैं। अब कई देशों की जांच एजेंसियां मिलकर काम करती हैं, और पिछले कुछ बड़े भांडाफोड़ कई देशों में एक साथ छापे मारकर किए गए थे।
अब जिस तरह हिन्दुस्तान में कुछ कानूनों का असर लोगों को सजा दिलवाने में बहुत ही कम होता है, और उन्हें बिना जमानत बरसों तक जेल में रखने में अधिक होता है, इसी तरह साइबर-जुर्म, और मुजरिमों की गिरफ्तारी के बीच कुछ महीनों का ही एक औसत फासला होता है, और ऐसे मुजरिम पकड़ में आ जाते हैं, यह एक अलग बात है कि उनके जुर्म की कमाई तक एजेंसियां हर बार नहीं पहुंच पातीं, लोगों से ठगा और लूटा गया पैसा हर बार वापिस नहीं मिलता। ऐसे में सरकार और कारोबार को मिलकर लोगों को एक ऐसा साइबर-बीमा मुहैया कराना चाहिए जो कि लोगों की डूबी गई रकम की भरपाई कर सके। लोगों के जिंदगी के कामकाज सरकार के नियमों की वजह से, और बाजार की सहूलियत की वजह से अधिक से अधिक डिजिटल और ऑनलाईन होते चल रहे हैं। आज हालत यह है कि अगर आपके पास एक स्मार्टफोन नहीं है, तो आप भारत जैसे देश में जिंदगी के बहुत सारे काम नहीं कर सकते। सच तो यह है कि अगर आपके पास स्मार्टफोन नहीं है, तो आप अपने आपको शायद जिंदा भी साबित न कर सकें। ऐसे में साइबर-जुर्म और फ्रॉड से लोगों को हिफाजत दिलाना, उनके घाटे की भरपाई कर पाना सरकार और कारोबार की मिलीजुली जिम्मेदारी होनी चाहिए। सरकार को बैंकों के साथ मिलकर, या जिस मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से जालसाजी हुई है उन्हें जोडक़र एक बीमा योजना सामने रखनी चाहिए। इसमें फोन और कम्प्यूटर जैसे उपकरण बनाने वाली कंपनियों का भी हौसला बढ़ाया जा सकता है कि वे बिक्री के साथ ही जालसाजी के खिलाफ बीमा पॉलिसी भी उपलब्ध कराएं। इसके अलावा इंटरनेट और मोबाइल सेवा उपलब्ध कराने वाली कंपनियों को भी फ्रॉड के खिलाफ बीमे से जोड़ा जा सकता है। आज जब आगजनी, बाढ़, भूकम्प, चोरी, और बीमारी जैसी चीजों से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए बीमा मौजूद है, तब साइबर-फ्रॉड के खिलाफ बीमा भी रहना चाहिए।
दुनिया के बहुत से विकसित देशों में बीमे का चलन इतना आम है कि लोग उसके बिना अपने खर्च से तो दांतों का इलाज भी नहीं करा सकते। अब जलवायु परिवर्तन से मौसम की जो मार इलाकों पर पड़ रही है, उसने लोगों और बीमा कंपनियों, सबके सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। जिस तरह बाढ़, और सूखे का खतरा बढ़ रहा है, उससे फसल से परे भी शहर और पूरे-पूरे इलाके डूब जा रहे हैं। अब समुद्री तूफान और बाढ़ के नुकसान के लिए अलग से बीमा योजनाएं बन रही हैं। कुछ दशक पहले तक हिन्दुस्तान में भी फसल-बीमा नहीं होता था, लेकिन अब फसल बीमा एक आम बात है क्योंकि खेती का पूरा कारोबार कर्ज पर टिका हुआ है, और साहूकार-बैंकों को अपने कर्ज की रिकवरी की फिक्र रहती है, जो कि फसल खराब होने पर फसल-बीमा से पूरी हो पाती है।
वक्त के साथ-साथ सरकार और बाजार दोनों को लोगों के लिए साइबर-सुरक्षा का बीमा मुहैया कराना चाहिए। अगर देश की सरकार अपने स्तर पर इसे पूरे देश के लिए लागू करेगी, तो उसका प्रीमियम भी बहुत कम आएगा। अभी इस बारे में कोई चर्चा सुनाई नहीं दी है, लेकिन लोगों को अपने सांसदों को यह लिखना चाहिए कि साइबर-बीमा के बारे में संसद में चर्चा की जाए।