धमतरी

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
धमतरी, 26 अक्टूबर। देशभर में 1 नवंबर को दिवाली का पर्व मनाया जाएगा, वहीं धमतरी, बालोद और दुर्ग जिले के सरहदी गांव सेमरा-सी में 8 दिन पहले ही दिवाली मनाई गई।
24 अक्टूबर की रात ग्रामीणों ने ईष्ट देव सिरदार की विशेष पूजन किया। फिर रात 1 बजे गौरा-गौरी की बारात निकाली गई। यह गांव आज अपनी अनूठी परंपरा के कारण छत्तीसगढ़ ही नहीं, देशभर में अलग ही पहचान बनाई है। लक्ष्मी पूजा के बाद बच्चों और युवाओं की टोली ने जमकर आतिशबाजी की।
24 अक्टूबर की रात 1 बजे ईश्वर गौरा-गौरी की बारात निकली गई। पारंपरिक बाजे की धून पर रातभर गांव की विभिन्न गलियों में शोभायात्रा निकली। पर्व में धमतरी, कुरुद, पाटन, गुंडरदेही, बालोद, राजनांदगांव, दुर्ग-भिलाई, रायपुर समेत अनेक शहरों से लोग पहुंचे थे।
ग्रामीण गिरधर पांडेय, नैतिक सिन्हा, डॉ. नुरेन्द्र सिन्हा, धरम पाल ने बताया कि शुक्रवार को सुबह 8 बजे गौरा-गौरी की बारात के बाद प्रतिमा विसर्जन किया गया। सुबह 10 बजे गोवर्धन पूजन हुआ। यदुवंशियों ने घरों में जाकर गोवंशों को सोहाई बांधी। रात में बिलईडबरी महासमुंद का छत्तीसगढ़ी नाचा कार्यक्रम हुआ।
यह है मान्यता
इस गांव में सैकड़ों वर्ष पहले कोई बुजुर्ग राजा आए और यहीं बस गए। उनका नाम सिरदार था। यह गांव घन घोर जंगल से घिरा हुआ। राजा सिरदार पर गांव वालों गहरी आस्था थी। उनकी चमत्कारी शक्तियों और बातों से ग्रामीण प्रभावित थे। वे ग्रामीणों परेशानियां दूर करते थे। राजा सिरदार एक रोज शिकार के लिए गए और खुद शिकार हो गए, जिसके बाद गांव के बैगा को सपना आया कि मेरा शव इस स्थान पर है। इस सपने का जिक्र बैगा ने ग्रामीणों से किया लेकिन बैगा की बातों को ग्रामीणों ने नहीं माना। इसके बाद मुखिया को यही स्वप्न दिखाई दिया। जिसके बाद ग्रामीणों ने जाकर देखा तो घटना सही थी। उस राजा का अंतिम संस्कार वहीं किया गया। एक छोटी सी चौड़ी में मंदिर स्थापना की गई, जो सिरदार देवता के नाम से जाना गया।