बीजापुर

कागजों पर चल रहे पीलूर-सेंड्रा संकुल के 15 स्कूल, शिक्षा से वंचित हो रहे हैं बच्चे
27-Oct-2024 2:15 PM
कागजों पर चल रहे पीलूर-सेंड्रा संकुल के 15 स्कूल, शिक्षा से वंचित हो रहे हैं बच्चे

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भोपालपटनम,  27 अक्टूबर।
नक्सल प्रभावित इलाकों में सरकारी कामकाज कैसे कमर तोड़ रही है और उन इलाकों में सरकार के दावे कहां तक सच साबित हो रहे हैं, यह दिखाई पड़ता है सेंड्रा इलाके में। शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा विभाग के बड़े-बड़े दावों के बीच सेंड्रा इलाके में स्कूल कागजों पर चलाए जा रहे हैं। 

हाल यह है कि शिक्षक आदिवासी बच्चों को शिक्षा देने के लिए बिल्कुल भी संजीदा नजर नहीं आ रहे हैं। यह मामला पीलूर एवं सेंड्रा संकुल के 15 स्कूलों का है, जहां शिक्षकों के स्कूल न जाने पर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। बच्चे शिक्षक का इंतजार रोज करते हैं, लेकिन शिक्षक उस क्षेत्र में शिक्षा देने में गंभीर नहीं है। 

इधर, सरकार दावा करती हंै कि हमने बंद पड़े कई स्कूलों को खोला है, लेकिन धरातल पर स्कूलों की स्थिति दयनीय है। कई स्कूलें झोपडिय़ों में संचालित हो रही हैं तो कहीं की व्यवस्था दयनीय है। उस इलाके के स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि शिक्षा के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है, उनके बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं।

शिक्षक बच्चों को पढ़ाने पाठशाला नहीं आते हैं। कभी आते भी हैं तो घूम फिरकर वापस लौट जाते हैं और शिक्षादूत भी गंभीर नहीं हैं। ऐसे में शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाना लाजिमी है। देखा जाए तो पूरे जिले में शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई है। शिक्षा का स्तर काफी दयनीय हो चुका है। कहीं शिक्षकों की कमी तो कहीं स्कूल ही शिक्षक नहीं जाते हैं। ऐसे में बच्चे कैसे शिक्षा ले पाएंगे?

कभी कभार घूम कर आते हैं शिक्षक
सेंड्रा इलाके में संचालित स्कूलों में 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस व 26 जनवरी गणतंत्र दिवस राष्ट्रीय पर्व पर शिक्षक बीच में कभी कभार घूम कर वापस अपने घर लौटकर आ जाते हैं। उनको बच्चों की पढ़ाई से कोई वास्ता नहीं रहता है। शिक्षक यह नहीं समझते कि अपने कार्य स्थल पर रहकर बच्चों को अच्छी शिक्षा दें, शिक्षकों के अलावा उच्च अधिकारी भी इस ओर ध्यान नहीं देते, इनकी मॉनिटरिंग के लिए कभी गंभीर नहीं रहते हैं। इसका सीधा फायदा उठाते हुए शिक्षक अपने कर्तव्य से दूर भाग रहे हैं।

शिक्षादूत है, पर वह भी जिम्मेदार नहीं
सरकार शिक्षकों के अलावा ऐसे नक्सल प्रभावित इलाकों में शिक्षादूत की नियुक्ति कर काम चला रही है, लेकिन वह भी कार्य के प्रति गंभीर नहीं है। स्कूल संचालित करने में शिक्षकों के साथ स्थानीय पढ़े-लिखे युवाओं को बच्चों को पढ़ाने जिला प्रशासन ने नियुक्त किया है, लेकिन शिक्षकों के साथ उनकी भी रुचि दिखाई नहीं दे रही है।

ग्रामीण तालाण्डी संतोष ने बताया कि यह स्कूल नहीं चल रहा है। इस वर्ष तो स्कूल खुला ही नहीं है, जो टीचर आए थे, उसका पिछले साल ट्रांसफर हो गया है। दूसरा गुरूजी पटनम में रहता हैं वो कभी स्कूल नहीं आता है।

ग्रामीण महेश मड़ावी ने बताया कि यहां के गुरूजी नहीं आते हंै। आते भी हैं तो चले जाते हैं। बच्चों को बराबर नहीं पढ़ाते हैं। शिक्षा दूत भी नहीं पढ़ाते हैं। हमारे गांव में लगभग 20 बच्चे हैं। गोटा वंगाराम ने बताया कि हमारे गांव के बच्चे थोड़ा बड़ा होने से हमलोग पटनम में ले जाकर पढ़ाते हैं। यहां सर्वे नहीं होता है कि किसके घर में कितने बच्चे हैं, पढ़ाई इस वर्ष बिलकुल भी नहीं हुआ है।  खण्ड शिक्षा अधिकारी प्रवीण लाल कुड़ेम ने बताया कि सीएससी से जानकारी ली जाएगी। अगर ऐसा है तो अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
 


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