कलीम आफताब
दुनिया भर में थिएटर बंद हो रहे हैं। नौकरियां छीनी जा रही हैं। कोई नहीं जानता कि प्रोजेक्टर फिर कब चालू होंगे।
कोविड-19 संकट में सिनेमा दूसरे उद्योगों की तरह ही है। बस एक मामले में यह अलग है। अलगाव के दिनों में हम अलग-अलग स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म पर जाकर मनोरंजन तलाशते हैं और अक्सर ऐसी चीजें देखते हैं जो सिल्वर स्क्रीन के लिए बनाई गई थी।
घर पर दर्शक पहले से ज़्यादा फि़ल्में देख रहे हैं। सवाल है कि क्या महामारी ख़त्म होने के बाद सिनेमा हॉल जाने की संस्कृति लौटेगी?

इस बारे में चीन से मिले संकेत अच्छे नहीं हैं। फऱवरी 2019 में चीन के दर्शकों ने 1.63 अरब डॉलर के सिनेमा टिकट खरीदे जो एक महीने में किसी भी देश के लिए रिकॉर्ड है लेकिन फरवरी 2020 में ऐसा नहीं हुआ।
कोरोना वायरस के हमले से चीनी थिएटर बंद हो गए। मार्च में लॉकडाउन से छूट मिलने के बाद सिनेमाघरों को खोलने की कोशिश हुई तो वितरकों ने नई फिल्में रिलीज करने से मना कर दिया और दर्शक भी घर से नहीं निकले। सरकार की चि_ी मिलने के बाद 500 सिनेमाघरों को बंद करना पड़ा।
ब्रिटेन में लोकप्रिय टाइनेसाइड सिनेमा ने चंदा मांगने का अभियान शुरू किया है ताकि वह फिर से खुलने लायक रह सके। न्यूयॉर्क के मशहूर लिंकन सेंटर, जहां न्यूयॉर्क फि़ल्म फेस्टिवल होता है, वहां वित्तीय संकट के कारण कई लोगों को नौकरी से निकाला गया है।

सिनेमाघर मालिकों की तकलीफ बड़े स्टूडियो ने भी बढ़ाई है। वो हाल में ही रिलीज की गई फि़ल्मों को भी ऑनलाइन जारी कर रहे हैं। डिज़्नी ने अमरीका में प्रीमियर के एक महीने बाद ही एनिमेशन फि़ल्म 'ऑनवार्ड' को किराये पर उपलब्ध करा दिया। इसी तरह यूनिवर्सल ने 'द इनविजिबल मैन' और 'द हंट' को अपलोड कर दिया।
बर्लिन फि़ल्म फेस्टिवल में सम्मानित 'नेवर रेयरली समटाइम्स ऑलवेज' की स्ट्रीमिंग अमरीका में रिलीज़ होने के कुछ ही हफ़्ते बाद ही कर दी गई। फि़ल्म स्टूडियो को यह लग सकता है कि अगर वो सीधे घर तक पहुंचकर ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकते हैं तो सिनेमाघरों के साथ कमाई में बंटवारा क्यों करें।
असल में, स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म मुनाफ़े में जा रहे हैं और सिनेमाघर घुटनों पर आ गए हैं। घर पर मनोरंजन की मांग इतनी ज़्यादा है कि नेटफ़्िलक्स और डिज़्नी प्लस ने अपनी पिक्चर क्वालिटी घटाने का एलान किया ताकि इंटरनेट डेटा कम लगे और डाउनलोड आसान हो।

सिनेमा ने इतिहास में कई बार ऐसी संकटों का सामना किया है। दशकों से सिनेमा की मर्सिया पढ़ी जाती रही है, फिर भी 2019 में बॉक्स-ऑफिस पर कलेक्शन पहले से कहीं अधिक था।
अतीत की महामारियों से कैसे निपटा था सिनेमा?
आज की तरह एक सदी पहले भी यही चिंता थी कि वायरस के कारण सिनेमा हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। 1918 से 1920 के बीच स्पैनिश फ़्लू ने पांच करोड़ लोगों की जान ली थी। उससे ठीक पहले विश्वयुद्ध में चार करोड़ लोग मारे गए थे।
वायरस फैलने पर सिनेमाघर बंद हो गए थे, हालांकि तब की बंदी आज की तरह नहीं थी। स्थानीय नगरपालिकाओं को फ़ैसले लेने का अधिकार था। ब्रिटेन में सिनेमाघर बंद करने पर बहुत विवाद है। फि़ल्म इतिहासकार लॉरेंस नैपर के मुताबिक़ पहले विश्वयुद्ध के दौरान 'वो खुले थे और बहुत लोकप्रिय थे।'
ब्रिटिश सरकार सिनेमा को जनता की ख़ुशी के लिए ज़रूरी साधन समझती थी। लोग इससे व्यस्त रहते हैं और उनको शांत रखने में मदद मिलती है। सिनेमा से वे शराबखानों से भी दूर रहते थे। नैपर कहते हैं, 'नशे की लत अधिकारियों के लिए बड़ा मसला थी जबकि सिनेमा प्रचार का अहम साधन था। युद्ध के समय सिनेमा व्यक्तिगत, सामुदायिक और राष्ट्रीय स्तर के प्रयासों का संपर्क बिंदु था।'

ब्रिटेन में स्पैनिश फ़्लू महामारी के दौरान सिनेमा कभी बंद नहीं हुआ। हालांकि कुछ उपाय अवश्य किए गए थे। लंदन में हर तीन घंटे पर 30 मिनट के लिए सिनेमा घरों के खिड़की दरवाजे खोले जाते थे ताकि ताज़ी हवा आए। वॉल्वरहैम्प्टन में बच्चों के सिनेमा जाने पर पाबंदी थी। वहां के कालीन भी हटा दिए गए थे। वॉल्साल के सिनेमाघरों में 15 मिनट की सूचना फि़ल्म दिखाई जाती थी जिसमें डॉक्टर और मरीज होते थे।
स्थानीय स्तर पर फ़ैसले का फायदा ये था कि जहां पाबंदियां नहीं होती थीं, वहां सेल्युलाइड प्रिंट भेजकर सिनेमा दिखाना शुरू हो जाता था। एडिनबर्ग में फ़्लू की पाबंदियों के बावजूद आर्मिस्टिस डे (11 नवंबर 1918) के मौके पर सिनेमाघरों को खोलने के लिए प्रोत्साहित किया गया था और एक हफ़्ते तक हाउसफुल शो चले थे। इसी तरह अमरीका में फ़्लू फैलने पर क्षेत्रीय आधार पर सिनेमा बंद करने का फ़ैसला किया गया था।
हॉलीवुड में फ्लू का प्रकोप
हॉलीवुड के केंद्र लॉस एंजेल्स में फ़्लू का प्रकोप था। कैलिफ़ोर्निया के सिनेमाघरों को सात हफ़्ते के लिए बंद किया गया था। फि़ल्म निर्माताओं ने उस दौरान नई रिलीज़ रोक दी थी और स्टूडियो ने सिनेमा बनाना बंद कर दिया था। अमरीका के सिनेमाघरों पर फ़्लू का प्रभाव ज़रूर पड़ा लेकिन महामारी के बाद उनका स्वरूप बदला और उन्होंने ज़्यादा तरक्की की।

फिल्म लेखक रिचर्ड ब्रॉडी ने अब और तब के हालात की तुलना करते हुए न्यू यॉर्कर में लिखा है, 'कई छोटी कंपनियां बिजनेस से बाहर हो गईं। सिनेमा में एकीकरण हुआ। बड़ी कंपनियां और बड़ी हुईं। बड़े स्टूडियो बने जो निर्माण, वितरण और प्रदर्शन सब करना शुरू किया। फ़्लू और युद्ध की समाप्ति ने मेगा-हॉलीवुड को जन्म दिया जो आज फिर से दोहराया जा रहा है।'
हॉलीवुड के दर्शक भी बढ़े। 1930 के दशक में सिनेमाघरों में सबसे अधिक उपस्थिति रही।
1929 में महामंदी शुरू हुई तो भी सिनेमा ने लोगों के मनोरंजन में अहम भूमिका निभाई। दर्शकों की संख्या के हिसाब से 1939 की फि़ल्म 'गॉन विद द विंड' अब तक का सबसे सफल रिलीज़ है।
दूसरे विश्व युद्ध में भी कई कठिनाइयों के बावजूद सिनेमा फला-फूला। ब्रिटेन सहित कई देशों ने सिनेमा को प्रचार के साधन के रूप में देखा- एक ऐसी जगह जहां सूचनाएं दी जा सकें और मनोबल बढ़ाया जा सके। युद्ध शुरू होने पर ब्रिटेन में एक हफ्ते के लिए सिनेमा बंद किए गए, फिर धूमधाम से खोल दिए गए।
नैपर कहते हैं, 'सिनेमाघर सामुदायिक गतिविधियों और चैरिटी के लिए पैसे जुटाने की जगह थे। सिनेमा के ज़रिए विदेश में रहने वाले लोग अपने वतन से जुड़े रहते थे।'

टेलीविजन का खतरा
1950 के दशक से ऑडियो-विज़ुअल मनोजंरन पर सिनेमा का एकाधिकार नहीं रह गया। टेलीविजऩ आया तो सरकार भी अब सीधे लोगों के घरों तक खबरें दिखा सकती थी, इसलिए सिनेमा प्रचार का अहम साधन नहीं रह गया।
वर्तमान महामारी में सार्वजनिक सूचनाएं सीधे मोबाइल फ़ोन पर आने लगी हैं। टेलीविजन खरीदने के बाद इसे देखना मुफ़्त था। कलाकार और निर्माता अचानक छोटे बक्से से आसक्त हो गए।
1946 में ब्रिटेन और अमरीका में सिनेमा जाने के आंकड़े सबसे अधिक रहे लेकिन उसके बाद साल-दर-साल तादाद घटने लगी। 1950 के दशक की शुरुआत में कथित रूप से वामपंथ से सहानुभूति रखने वालों को सिनेमा बनाने से बाहर किया गया।
सिनेमा में सेक्स और हिंसा को नियंत्रित करने वाले हेस कोड की समाप्ति के बाद इसे नैतिक रूप से दागदार जगह के रूप में देखा जाने लगा, जबकि टेलीविजन को सुरक्षित माना जाने लगा। सिनेमा के लोग भी इसके ख़त्म होने की भविष्यवाणी करने लगे। महान निर्माता डेविड ओ सेल्ज़निक ने 1951 में कहा था कि 'हॉलीवुड मिस्र की तरह है, पिरामिडों से भरा हुआ। यह फिर कभी वापसी नहीं करेगा।'

लेकिन सिनेमा ख़त्म नहीं हुआ, बल्कि 1970 के दशक की शुरुआत में समर ब्लॉकबस्टर के आने के बाद यह फिर से जी उठा। दर्शकों की संख्या बढऩे लगी। स्टीवन स्पीलबर्ग की फि़ल्म जॉज़ (1975) के बाद फि़ल्में बडे पैमाने पर मार्केटिंग के साथ रिलीज़ होने लगीं।
वीडियो टेप की चुनौती
1980 के दशक में सिनेमा के सामने एक और चुनौती आई। टेलीविजऩ ने अगर दर्शकों की तादाद घटाई थी तो वीडियो टेप को उनको पूरी तरह ख़त्म करने वाला माना गया। 1976 में वीएचएस कैसेट आए तो फि़ल्मों को घर पर देखना मुमकिन हो गया।
फि़ल्मों के टेप किराये पर मिलने लगे तो सिनेमाघर जाने की मज़बूरी नहीं रही। लेकिन असल में इस प्रतिद्वंद्विता ने सिनेमा जाने के तजुर्बे को और बढ़ाया।
क्वेंटिन टारनटिनो ने भले ही 1980 के दशक को अमरीकी फि़ल्मों के इतिहास का सबसे बुरा दौर कहा है, लेकिन इस दशक में भी बॉक्स-ऑफि़स पर पैसा दोगुना हो गया।
सिनेमा की मौत नहीं हुई, बल्कि वीडियो से फि़ल्म स्टूडियो को आमदनी का नया जरिया मिल गया। कैसेट खरीदकर रखने से फि़ल्म के प्रति लोगों का जुनून बढ़ा और पसंदीदा निर्देशकों की नई फि़ल्मों को बड़े पर्दे पर देखने की उनकी भूख बढ़ी। बदले में सिनेमा मालिकों ने आधुनिक मल्टीप्लेक्स बनाए और बिजऩेस बढ़ा।
स्ट्रीमिंग प्लैटफॉर्म
वीडियो गया तो सिनेमा के लिए नया दुश्मन आ गया- स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म। पिछले कुछ वर्षों में नेटफ़्िलक्स और ऐमेजऩ ने सिनेमा को दोहरी मार दी है। ये घर के सोफे पर ज़्यादा से ज़्यादा फि़ल्में ऑफऱ कर रहे हैं। साथ ही उनकी क्वालिटी भी बढिय़ा है।
2015 में मशहूर सिने-स्टार डस्टिन हाफ़मैन ने कहा था, 'मुझे लगता है कि इस समय टेलीविजन सबसे अच्छा है और फि़ल्मों का दौर सबसे बुरा है। पिछले 50 साल से मैं इसमें काम कर रहा हूं। यह सबसे बुरा है।'
नेटफ़्िलक्स ने मार्टिन स्कॉर्सेसे और नोआह बुम्बाच जैसे नामचीन निर्देशकों को अपने लिए काम करने के लिए लुभाया लेकिन उन पुराने नियमों को मानने से इंकार कर दिया जो सिनेमाघरों को कुछ महीने तक स्क्रीनिंग के विशेषाधिकार देते थे।
महामारी से पहले ही सिनेमा जाने की संस्कृति कमजोर पडऩे लगी थी। 2018 में ब्रिटेन में एक दशक में पहली बार सिनेमा के टिकट सस्ते हुए। 2019 में टिकटों की कीमत और गिरीं। हालांकि बॉक्स-ऑफि़स का कुल पैसा बढ़ा लेकिन कुछ ही फि़ल्में कामयाब हुईं, जिनमें से ज़्यादातर कॉमिक-बुक सुपरहीरो वाली फि़ल्में थीं।
डिज़्नी ने 2019 में 11 अरब डॉलर कमाए लेकिन छोटे वितरक वजूद बचाने के लिए जूझते रहे। बड़े स्टूडियो ने अपने स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म बना लिए और बाज़ार पर एकाधिकार जमा लिया।
न्यू नॉर्मल
कोरोना वायरस से ग्रस्त दुनिया में स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म के साथ लड़ाई बहुत छोटी लगती है। पिछले कुछ महीनों से दुनिया भर के सिनेमाघर एक साथ झटके में बंद हुए हैं। फि़ल्मों की शूटिंग बंद हो गई है। फि़ल्म फेस्टिवल्स की तारीख़ या तो आगे बढ़ा दी गई या उन्हें रद्द कर दिया गया है।
'द फ़ास्ट एंड फ्य़ूरियस' को 2021 तक टाल दिया गया है। जेम्स बॉन्ड की नई फि़ल्म 'नो टाइम टु डाइ' को नवंबर तक रोक दिया गया है। 'ब्लैक विडो' की रिलीज़ में अनिश्चित काल के लिए देर हो गई है। दुनिया भर में करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी पर संकट है। हो सकता है कि कई सिनेमाघर अब कभी न खुलें।
फ्रांसीसी फिल्म सेल्स एजेंट एले ड्राइवर की सह-संस्थापक एडेलिन फॉन्टन टेसॉर का कहना है कि सिनेमा जगत के सामने जिस स्तर का संकट और अनिश्चितता है, उसमें भविष्य के बारे में सोचना भी मुश्किल है।
वो कहते हैं, हम कैसे किसी भी चीज़ के होने की उम्मीद कर लें और निश्चित घोषणा कर दें? अभी बहुत ज़ल्दबाज़ी होगी। अभी हम अपनी इंडस्ट्री को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। हर कोई भविष्य और नुकसान का अनुमान लगा रहा है। जो हो रहा है वह किसी एक इंडस्ट्री की बात नहीं है। इस नई दुनिया को धीरे-धीरे हमें भी अपनाना होगा।
वायरस की वजह से अविश्वसनीय चीज़ें हो रही हैं। हॉलीवुड के स्टूडियो नेटफ़्िलक्स से हाथ मिला चुके हैं। कान फि़ल्म फ़ेस्टिवल को स्थगित कर दिया गया है। सीपीएच : डीओ एक्स और विजऩ डू रील जैसे फि़ल्म फेस्टिवल ऑनलाइन हो रहे हैं। लोग अपने घर में बैठकर ही फि़ल्मों के प्रीमियर शो देख रहे हैं।
चूंकि ब्लॉकबस्टर फि़ल्में बड़ी मार्केटिंग कैंपेन पर निर्भर रहती हैं इसलिए इसकी संभावना कम है कि स्टूडियो अपनी बड़ी फि़ल्मों के लिए तुरंत कोई जोख़िम उठाना चाहेंगे, जब तक कि उनको तसल्ली ना हो कि दर्शक सिनेमा जाने के लिए फिर से तैयार हैं।
फि़लिप नैचबुल ब्रिटेन में कजऱ्न के सीईओ हैं जो सिनेमाघरों की चेन चलाते हैं। वो भी मानते हैं कि वायरस ने इंडस्ट्री को बहुत नुकसान पहुंचाया है।
वो कहते हैं, 'तत्काल की समस्या तो बॉक्स ऑफिस पर हुए घाटे को सहना है। जब सिनेमाघर खुलेंगे तो सप्लाई चेन के साथ और भी कई तरह की चुनौतियां सामने आएंगी जो अभी नहीं दिख रही हैं।'
निराश क्यों नहीं होना चाहिए?
सिनेमा अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। मौजूदा स्थिति स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म और थिएटर विंडो के प्रति नज़रिये में बड़ा बदलाव ला सकती है। कजऱ्न पहले ही ऑन-डिमांड रिलीज़ मॉडल अपना चुकी है।
नैचबुल कहते हैं, 'थिएटर और स्ट्रीमिंग डिबेट हाल में बहुत गर्मागर्मी रही है। लॉकडाउन से लोगों के देखने की आदतों पर कितना असर पड़ेगा, इस बारे में बहुत अनुमान लगाए गए हैं। मुझे नहीं लगता कि इससे कोई मदद मिलने वाली।यह स्थिति पूरी तरह अभूतपूर्व है। अभी इस पर बहस का समय नहीं है। प्रदर्शकों और वितरकों को इस समय साथ मिलकर रचनात्मक रूप से काम करने की ज़रूरत है।'
इन सारी निराशाओं के बावजूद इतिहास यही बताता है कि सिनेमा इसमें अनुकूलित होकर वापसी करेगा। 1918 की महामारी के बाद लोग सिनेमाघरों में टूट पड़े थे। वीडियो ने सिनेमा को और दिलचस्प बनाया है।
हफ्तों या महीनों तक घर में बंद रहने और टीवी और कंप्यूटर स्क्रीन पर फि़ल्में देखने के बाद बड़े पर्दे पर फि़ल्म देखना और जादुई लगेगा। घर पर फि़ल्में देखना सिनेमाघर वाली तकनीकी गुणवत्ता की बराबरी कर ही नहीं सकती और बड़े समूह के साथ फि़ल्म देखने का जो जोश अलग ही होता है। इसे देखते हुए ज़्यादातर निर्देशक यही चाहेंगे कि उनकी फि़ल्में सबसे पहले सिनेमाघरों में दिखें।
उम्मीद की कुछ और वजहें भी हैं। ग्लोबल बॉक्स ऑफि़स पर आमदनी हाल में बढ़ी है। ऑस्कर जीतने वाली फि़ल्म 'पैरासाइट' ने पश्चिमी देशों में जैसी कमाई की, उससे पता चलता है कि सिनेमा भी वैश्विक उद्यम बन गया है। मल्टीप्लेक्स के आने के बाद ख़ुद सिनेमाघर भी शानदार हो गए हैं।
नैचबुल मानते हैं कि सिनेमा अपने लिए कोई रास्ता तलाश लेगा जैसा इसने पहले किया है।
वो कहते हैं, 'युद्ध, महामारी और कई तकनीकी बदलावों को इसने झेल लिया है। अंधेरे कमरे में जमा होकर किसी महान फि़ल्म को देखने में कोई मौलिक बात है। मुझे पूरा विश्वास है कि सिनेमाघर फिर से खुलेंगे तो बड़ा जश्न होगा। दर्शक अपने घरों से निकलकर बड़े स्क्रीन पर फिल्म देखने के लिए वापस आएंगे।' (bbc.com/hindi)