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'छत्तीसगढ़' न्यूज डेस्क
सोमवार की रात सीमा पर हुई थी चीनी सैनिकों से झड़प में गम्भीर रूप से घायल था। गणेश राम कुंजाम कांकेर से थलसेना में भर्ती होने वाला एक जवान, मंगलवार को मौत हो गई। वर्ष 2011 में आर्मी ज्वाइन की थी, 1 माह पहले ही चीन बॉर्डर पर पोस्टिंग हुई थी।
इनके पिता किसान है, परिवार का अकेला बेटा था, दो बहनें, एक शादीशुदा है।
थलसेना के रायपुर कार्यालय से टेलीफोन पर इसकी पुष्टि हुई है।
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भारत-चीन सीमा पर 45 साल बाद मौत
पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में पिछली रात (15/16 जून) चीन और भारत की सेना के आमने-सामने के संघर्ष में भारतीय सेना के एक अधिकारी समेत 19 जवानों की मौत हुई है.
भारतीय सेना ने मंगलवार देर रात एक आधिकारिक बयान जारी कर कहा, ''भारत और चीन की सेना गलवान इलाक़े से पीछे हट गई है. 15/16 जून की रात यहीं पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी. झड़प और गतिरोध वाले इलाक़े में ड्यूटी के दौरान 17 भारतीय सैनिक गंभीर रूप से ज़ख़्मी हो गए थे. शून्य डिग्री से भी नीचे तापमान और बेहद ऊंचाई वाले इस इलाक़े में गंभीर से रूप ज़ख़्मी इन 17 सैनिकों मौत हो गई. यहां कुल 20 भारतीय सैनिकों की मौत हुई है. भारतीय सेना देश की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.''
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इससे पहले भारतीय सेना ने अपने बयान में एक सैन्य अधिकारी और दो जवानों की मौत की बात कही थी. बयान में यह भी कहा गया था कि दोनों देशों के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी तनाव कम करने के लिए बात कर रहे हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सीमा यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर सोमवार को दोनों देशों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को आर्मी प्रमुख के साथ समीक्षा बैठक की थी. इस बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर भी मौजूद थे
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक़ पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के पश्चिमी थिएटर कमांड के प्रवक्ता चांग शुइली का बयान पीएलए के आधिकारिक वीबो अकाउंट पर पोस्ट किया गया है. इस बयान में चांग ने कहा है कि भारत सख़्ती से अपने सैनिकों को रोके और विवाद ख़त्म करने के लिए संवाद के सही रास्ते पर आगे बढ़े.
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चांग ने कहा है, ''भारतीय सैनिकों ने अपने वादे का उल्लंघन किया और एक बार फिर से एलएसी पार किए. जानबूझकर चीनी बलों को उकसाया और उन पर हमला किया. इससे दोनों पक्षों में आमने-सामने झड़प हुई और यही हताहत की वजह बनी. मैं मांग करता हूं कि भारत अपने सैनिकों को सख़्ती से रोके और बातचीत के ज़रिए विवाद को सुलझाए.''
45 साल बाद सीमा पर किसी की जान गई
दोनों देशों की सेना पिछले महीने की शुरुआत से ही लद्दाख में आमने-सामने है. पिछले महीने दोनों देशों के सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख के पंगोंग और सिक्किम के नाकुला में हाथापाई हुई थी और तब से ही तनाव कायम है. इसके बाद से सीमा पर दोनों देशों के सैनिक बड़ी संख्या में तैनात हैं.
इससे पहले भारत-चीन सीमा पर 1975 में यानी 45 साल पहले किसी सैनिक की मौत हुई थी. तब भारतीय सेना के गश्ती दल पर अरुणाचल प्रदेश में एलएसी पर चीनी सेना ने हमला किया था. इससे पहले 1967 में नाथु ला में सीमा पर दोनों देशों की सेना के बीच हिंसक झड़प हुई थी.
भारतीय मीडिया में चीनी सैनिकों के नुक़सान की भी बात कही जा रही है लेकिन अभी तक इसकी कोई पुष्टि नहीं हो पाई है और न ही चीन ने कुछ कहा है. कहा जा रहा है कि इसका असर दोनों देशों के सभी द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ेगा और 1993 से दोनों देशों के बीच सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए जो समझौता हुआ था उस पर भी असर पड़ेगा. दोनों देशों के बीच सरहद पर पिछले 40 दिनों से तनाव है और अब तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है.
भारत ने मंगलवार को कहा कि चीन को लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल का सम्मान करना चाहिए. वहीं चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारतीय सैनिकों ने सोमवार को दो बार सीमा का उल्लंघन किया और चीनी सेना पर उकसाऊ हमला किया. चीन और भारत दोनों ने एक दूसरे पर एलएसी का सम्मान नहीं करने का आरोप लगाया.
आरोप-प्रत्यारोप
इस घटना के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने पत्रकारों के सवालों के जवाब देते हुए कहा, "छह जून को सीनियर कमांडरों की बैठक काफ़ी अच्छी रही थी और उसमें तनाव कम करने की प्रक्रिया पर सहमित बनी थी. इसके बाद मौक़े पर मौजूद कमांडरों की बैठकों का भी सिलसिला चला था ताकि उस सहमति को ग्राउंड लेवल पर लागू किया जा सके जो वरिष्ठ अधिकारियों के बीच बनी थी."
अनुराग श्रीवास्तव ने आगे कहा, "हमें उम्मीद थी कि सब कुछ आसानी से हो जाएगा लेकिन चीनी पक्ष इस सहमति से हट गया कि गलवान घाटी में लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) का सम्मान किया जाएगा.15 जून की देर शाम और रात को एक हिंसक झड़प हुई, इसकी वजह ये थी कि चीनी पक्ष ने एकतरफ़ा तरीक़े से मौजूदा स्थिति को बदलने की कोशिश की. दोनों तरफ़ से लोग हताहत हुए, जिसे टाला जा सकता था अगर चीनी पक्ष ने उच्च स्तर पर बनी सहमति ठीक तरह से पालन किया होता.''
20 सैनिकों की मौत देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, "सेना के जिन अधिकारी और जवानों ने हमारे देश के लिए अपनी जानें गवां दी हैं, उनके लिए मैं कितना दुखी हूं, ये शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. उनके सभी प्रियजनों के प्रति मैं अपनी संवेदना ज़ाहिर करता हूं. इस मुश्किल वक़्त में हम आपके साथ हैं."
राहुल गांधी इससे पहले से चीन को लेकर मोदी सरकार पर हमलावर रहे हैं. राहुल गांधी आरोप लगाते रहे हैं कि मोदी सरकार चीन के साथ सीमा पर जो कुछ चल रहा है उसे साफ़-साफ़ नहीं बता रही है.
मोदी पाँच बार चीन गए
नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद चीन के साथ संबंधों की शुरुआत गर्मजोशी से की थी. 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से कम से कम 18 बार मुलाक़ात हो चुकी है. इन मुलाक़ातों में वन-टू-वन मीटिंग के अलावा दूसरे देशों में दोनों नेताओं के बीच अलग से हुई मुलाक़ातें भी शामिल हैं. प्रधानमंत्री रहते हुए मोदी पाँच बार चीन के दौरे पर गए हैं. पिछले 70 सालों में किसी भी एक प्रधानमंत्री का चीन का यह सबसे ज़्यादा बार चीन दौरा है.
पिछले साल दोनों नेताओं की महाबलिपुरम में अनौपचारिक मुलाक़ात हुई थी. 2019 में दोबारा पीएम बनने के बाद मोदी की शी जिनपिंग से यह तीसरी मुलाक़ात थी. 1993 के बाद से दोनों देशों के बीच कई द्विपक्षीय समझौते और प्रोटोकॉल को लेकर बात शुरू हुई ताकि सीमा पर शांति बनी रहे.
चीन के साथ 90 के दशक में रिश्तों की बुनियाद 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चीन दौरे से रखी गई. 1993 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसमिम्हा राव चीन दौर पर गए थे और इसी दौरान उन्होंने चीनी प्रीमियर ली पेंग के साथ मेंटनेंस ऑफ पीस एंड ट्रैंक्विलिटी समझौते पर हस्ताक्षर किया था. यह समझौता एलएसी पर शांति बहाल रखने के लिए था.
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इसके बाद चीनी राष्ट्रपति जियांग ज़ेमिन 1996 में भारत के दौरे पर आए एलएसी को लेकर एक और समझौता हुआ. तब तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किया था. इसके बाद 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने सीमा विवाद को लेकर स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव स्तर का मेकेनिजम तैयार किया. आगे चलकर जब दस साल मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री रहे तो उनके कार्यकाल में 2005, 2012 और 2013 में सीमा विवाद को लेकर संवाद बढ़ाने पर तीन समझौते हुए. तब वर्तमान विदेश मंत्री एस जयशंकर चीन में भारत के राजदूत हुआ करते थे.
इसके बाद पीएम मोदी ने चीन के साथ रिश्तों में और गर्मजोशी लाने की कोशिश की. इसी के तहत 2018 के अप्रैल में वुहान से इन्फॉर्मल समिट की शुरुआत हुई. 2019 में इसी समिट के तहत दोनों नेताओं की मुलाक़ात महाबलिपुरम में हुई. लेकिन सोमवार की घटना के बारे में कहा जा रहा है कि यह सब पर भारी पड़ सकती है. इससे न केवल द्विपक्षीय और राजनयिक संबंध प्रभावित होंगे बल्कि सीमा पर भी चुनौतियां बढ़ने की आशंका है.(www.bbc.com)
साझा प्रयास से निकलेगा कोरोना का हल
कोरोना काल में केंद्र अपनी तमाम राज्य सरकारों को भरोसे में ले। उनकी गौर से सुने। अपने ही देश के मुख्यमंत्रियों के साथ सिर्फ ऐसे वर्चुअल सम्मेलन न बुलवाए जाएं जिनमें अक्सर प्रधान वक्ता के अलावा बाकी मुख्यमंत्री खामोश श्रोता दिखते हैं।
पहले बुद्धि से कुछ नया रचने वाले हर शख्स को कवि कहा जाता था। ब्रह्मा को भी कवि कहा गया है। इस व्याख्या का मतलब यह कि लेखक, साहित्यकार, कवि या पत्रकार जो भी हों, सब कवि हैं। प्रशासनिक अपारदर्शिता के बीच मुझको कवि बहुत याद आते हैं। प्रशासन की सटीक जमीनी रपट देना पत्रकारों का काम है जो कवि होने के कारण वहां जा सकते हैं, जहां रवि यानी सूरज की रोशनी नहीं जाती। पर हमारी बेपनाह ताकतों से लैस नौकरशाही की गति नाना कारणों से दो दिन चले अढ़ाई कोस की होती आई है। इसलिए अब जब रोग-शोक से घिरी जनता की जरूरतें तात्कालिक हों तो मीडिया की रिपोर्ट का महत्व बढ़ जाता है। कई बार किस तरह उसे आसन्न अनहोनी का आभास नौकरशाही से पहले मिल जाता है। यह पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त एक अमेरिकी पत्रकार लॉरेंस राइट की रचना ‘दि एंड ऑफ अक्टोबर’ (प्रकाशन: नॉफ, अमेरिका) के अंश पढ़ते हुए दिखता रहा।
अप्रैल, 2020 में छपे इस उपन्यास में एक (काल्पनिक) घातक वायरस कॉन्गोली, इंडोनेशिया से निकल कर एक टैक्सी चालक के हज पर जाने से पहले मध्य एशिया और फिर पूरी दुनिया में अकल्पनीय तेजी से छा जाता है। उपन्यास का नायक एक वायरो लॉजिस्ट है जो विश्व में आने वाले समय में महामारी फैलाने वाले वायरसों पर शोध कर रहा है। उसने खुद इंडोनेशिया की यात्रा के दौरान उस चालक की टैक्सी में सफर किया था। अब अमेरिका वापिस अपनी लैब और राजकीय चिकित्सा तंत्र में वह गंभीर खामियां पाता है। और जैसे-जैसे कथा वस्तु आगे बढ़ती है तो यह लगातार साफ होता जाता है कि कॉन्गोली वायरस का टीका बनने से पहले यह दुनिया में लाखों जानें ले लेगा। हर देश अपने नेतृत्व और सामर्थ्य के आधार पर जब इस अनजान दुश्मन से घरेलू स्तर पर लड़ेगा तो वहां राज-समाज में पहले से मौजूद कई तरह की संस्थाओं और प्रशासनकी खामियां, छुपा नस्लवाद, अमीरों के खिलाफ गरीबों का आक्रोश और राष्ट्रवादी तानाशाहों की साम्राज्यवादी सोच यह सब राज सतह पर खुल जाएंगे। जब यह होगा तब दुनिया में हर जगह महायुद्ध, अकाल और स्वास्थ्य सेवाओं के तार-तार होने की खबरें मिलेंगी। और बेरोजगार युवा और अभिभावक हीन बच्चों की भीड़ सड़क पर उतर कर दंगा फसाद करने लगेगी।
उपन्यास यह भी साफ दिखाता है कि ऐसे ग्लोबल आपातकाल में तमाम राष्ट्रीय- अंतराष्ट्रीय संस्थाएं भी लाचार नजर आएंगी। और उनपर सालों से काबिज बड़े देश और नौकरशाह दार्शनिक बयानबाजी और परस्पर दोषारोपण से अपना बचाव करेंगे। उपन्यास में अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा संस्था होम लैंड सिक्योरिटी की एक उप-सचिव महोदया जब बाबुओं की तरह प्रेसवार्ता में पत्रकारों को महामारी पर ब्रीफ करने नाम पर दुश्मन देशों के खतरनाक मंसूबों पर बात छेड़ देती हैं, तो एक पत्रकार उनको टोक कर कहता है कि मोहतरमा सबको पता है कि इस महामारी का कारक एक नया वायरस है, यह भी, कि निरोधक टीका बनने में अभी साल भर लग जाएगा। युद्ध जब होगा तब होगा, पर आपकी नादानी से लाखों लोग आपके उस कल्पित युद्ध से नहीं, महामारी से मर चुके होंगे।
भारत में भी जब कोविड के ताजा ब्योरों और उनसे निबटने की सरकारी व्यवस्था पर चर्चा हो, बीच में सरकारी नुमाइंदे और प्रवक्ता लोग वास्तविक स्थिति की बजाय भारत की नियंत्रण रेखाओं पर पाकिस्तानी या चीनी अतिक्रमण के गड़े मुर्दे उखाड़कर अपने पूर्व वर्ती निजाम को अपने से बदतर साबित करने में जुट जाते हैं। जनता के लिए इस समय कहीं बड़ा जरूरी घरेलू मसला बचे रहने का है। अपने परिजनों की गंभीर बीमारी के बीच उनके लिए हस्पताली बिछौनों और आयातित चिकित्सा उपकरणों तथा सुरक्षा कवचों को पाना है। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे आठ जून को खुल गए हैं, पर रोगियों के लिए अधिकतर हस्पतालों के द्वार अभी तक बंद हैं। ऐसे में इकतरफा लॉकडाउन को लागू करने के बाद तालाबंदी खुलवाई का सारा दारोमदार राज्य सरकारों पर डाला जा रहा है। हमेशा की तरह कुछेक राज्यों के राज्यसभा के चुनाव भी सर पर हैं। लिहाजा बीमारी के साथ भीषण तूफान से गुजरे बंगाल और महाराष्ट्र की प्रदेश सरकारों को मदद की राशि बढ़ाने की बजाय विपक्ष द्वारा राज्य के प्रबंधन पर सवाल उठाए जाने लगे हैं। प्रतिपक्षियों का भोंपू बना मीडिया का एक भाग तो सिर्फ राज्य सरकारों की नाकामी के पुराने प्रकरण उजागर कर रहा है। उधर, गरीबी के बीच भी वहां बेहद खर्चीली वर्चुअल रैलियों के आयोजन किए जा रहे हैं। कड़े सवाल उठाने वाले कई कवियों पर तो राष्ट्रद्रोह की धाराओं के तहत विस्मयकारी क्रिमिनल मुकदमों की बाढ़ आ गई है। उधर, भीतर से बंट गए मीडिया में जब शाम को बतकही का अनर्गल सिलसिला शुरू होता है, तो प्रतिपक्ष शासित राज्यों की दुर्दशा के बखिये ऐसी तटस्थ निर्ममता से उधेड़े जाते हैं जैसे वे भारतीय संघ के सदस्य नहीं, शत्रु इलाके हों।
यह सिर्फ भ्रम है कि इस महामारी से शेष विश्व से पहले उबर आया चीन अमेरिका से कमतर बना रहेगा। यह ठीक है कि एशिया हो कि यूरोप, अमेरिका हर धड़े को भारत जैसे महादेश की दोस्ती की बहुत जरूरत है। लेकिन अंत में जाकर हमारी दोस्ती की कीमत हर देश हमारी आर्थिक और सामरिक ताकत तथा घरेलू स्थिरता के पैमानों पर ही जांचेगा। उन सबकी अपनी माली हालत महामारी से जूझने में बहुत तेजी से बिगड़ी है और वे पाई-पाई दांत से पकड़ रहे हैं। इस समय हम उनको अपने चिरंतन, ‘भारत विश्वगुरु रहा है’, ‘बुद्ध, महावीर और गांधी का भारत शांतिदूत है’, ‘सस्ता, सुंदर और टिकाऊ माल तैयार करने में हमारी बड़ी आबादी हमारी सबसे बड़ी ताकत होगी’ जैसे जुमलों-दावों से नहीं रिझा सकेंगे। वे सब महाजनी संस्थाएं पहले भारतीय अर्थव्यवस्था की अपनी भरोसेमंद संस्थाओं की रेटिंग्स देखेंगी, जो बहुत उजली नहीं दिखतीं। लिहाजा दुनिया के देश अपनी पूंजी हमारे यहां तुरंत रोप देंगे, इसका भरोसा नहीं। राजनय में भी यह अस्पष्ट है कि सीमा विवाद पर रूठे हुए नेपाल या चीन बिना कोई छूट पाए हमारी तरफ झुक जाएंगे। वजह यह नहीं, कि पड़ोसी आजकल विश्वासघाती बनगए हैं, बल्कि यह कि दुनिया में मनुष्य हों कि देश, उनकी असमर्थता के क्षणों में साया भी साथ छोड़ देता है। भारत की सकल उत्पाद दर की रेटिंग्स को सुधारने के लिए जरूरी है कि हमारा नेतृत्व ठकुरसुहाती करने में पटु बाबूशाही या खुशामदी नेताओं की बजाय बिना बदले की भावना के, बगैर चिड़चिड़ाए उपेक्षित पत्रकारों, अर्थशास्त्रियों, वैज्ञानिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का स्थिति का विश्लेषण भी गौर से सुने। वे सब मनसे भारतीय हैं और वे भी अपने देशवासियों का हित चाहते हैं उनका अहित नहीं। आज मुख्यधारा मीडिया को अपने बस में कर लेना बहुत दूर नहीं ले जाता। खुले सोशल मीडिया पर कही बातें और दिखाई गई छवियां भी दुनिया भर में चुटकी बजाते वायरल हो रही हैं। और उनकी मदद से अमेरिका से एशिया तक किसी भी सरकारी स्वांग का सच दुनिया तुरंत पकड़ सकती है। इसलिए सरकार के बाबू लोग, प्रतिनिधि और दलीय प्रवक्ता इस भारत नामक घर के भांडे चौराहों पर न फोड़ें। कम से कम अभी तो रोजाना पोस्टर, होर्डिंग या वर्चुअल रैली से आगामी चुनाव जीतने के आकर्षण से बचा जाए और विपक्षी राज्य सरकारों के महामारी से निपटने की अक्षमता, उनकी विपन्नता, और कानून-शासन की पालना प्रयासों पर अमानवीय गाज न गिराई जाए। यह करना जिस शाख पर हम सब बैठे हैं उसी पर कुल्हाड़ी चलाना साबित होगा। कहीं बेहतर हो, इस समय केंद्र अपनी तमाम राज्य सरकारों को भरोसे में ले। उनकी गौर से सुने। अपने ही देश के मुख्यमंत्रियों के साथ सिर्फ ऐसे वर्चुअल सम्मेलन न बुलवाए जाएं जिनमें अक्सर प्रधान वक्ता के अलावा बाकी मुख्यमंत्री खामोश श्रोता दिखते हैं।
कोविड की चुनौती का सकारात्मक नतीजा तभी निकलेगा जब हम नई प्राथमिकताओं को समझ कर संयुक्त कोशिशों से अपनी सारी आर्थिक, प्रशासनिक और समाज कल्याण से जुड़ी सरकारी संस्थाओं को सिरे से बदलेंगे। हमारे अपने पैर तले जमीन मजबूत हो, तभी हम अंतरराष्ट्रीय शक्ति संतुलन का मध्य बिंदु बनकर दुनिया से सीधे आंख मिला कर बात कर सकते हैं।(www.navjivanindia.com)
गुजरात में डायन बताकर महिलाओं से मारपीट
ओडिशा में अलग-अलग घटनाओं में जादू-टोने के संदेह में तीन लोगों की हत्या का मामला सामने आया है. वहीं बालासोर ज़िले में काला जादू करने के संदेह में एक वृद्ध और उनकी बेटी से मारपीट कर उन्हें गोबर मिला पानी पीने के लिए मजबूर किया गया.
ओडिशा के मयूरभंज और रायगढ़ जिलों में अलग-अलग घटनाओं में जादू-टोना के शक में एक महिला समेत तीन लोगों की हत्या कर दी गई. वहीं, बालासोर जिले में एक बुजुर्ग और उनकी बेटी से मारपीट की गई और गोबर मिला पानी पीने के लिए मजबूर किया गया.
जादू-टोना के शक में एक आदमी ने कथित तौर पर अपनी सगी चाची की हत्या की और कटे हुए सिर को लेकर 13 किलोमीटर चलकर मयूरभंज थाने में खुद को पुलिस के हवाले किया.
ट्रिब्यून इंडिया की खबर के मुताबिक यह घटना 15 जून को घटी. आरोपी बुधुराम सिंह ने पुलिस को बताया कि उसने चंपा सिंह (60), जो उसकी सगी चाची है, का इसलिए सिर कलम कर दिया क्योंकि उसे शक था कि तीन दिन पहले हुई उसकी बेटी की मौत के लिए वही जिम्मेदार थी.
उसका कहना है कि उसकी चाची चंपा जादू-टोना करती थी. दोनों बुधुराम और मृत महिला मयूरभंज जिले के नुआसाही गांव के निवासी हैं और दोनों ही आदिवासी समुदाय से हैं.
खुंटा पुलिस थाना प्रभारी स्वर्णलता मिंज़ ने बताया कि आरोपी ने उस कुल्हाड़ी को भी पुलिस के हवाले किया जिससे उसने चंपा को मारा था. महिला की धड़ को पुलिस ने अपने कब्जे में लिया और पोस्टमार्टम के लिए भेजा.
पुलिस के सूत्रों ने बताया कि चंपा सिंह विधवा थी और वारदात के वक्त वो अपने घर के सामने आंगन में सो रही थी. आरोपी कथित तौर पर महिला को वहां से घसीटकर ले गया और सिर काट दिया.
हालांकि घटना के समय वहां बहुत से लोग मौजूद थे लेकिन किसी ने भी बुधुराम को रोकने की कोशिश नहीं की, जो अपनी सगे चाची को मार रहा था.
पुलिस ने बुधुराम को गिरफ्तार किया और हत्या का मामला दर्ज किया. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया.
आंकड़े बताते हैं कि ओडिशा में 2010 से अब तक सालाना जादू-टोने के शक में औसतन 60 हत्याएं होती हैं और ज़्यादातर आदिवासी क्षेत्रों में ही होती हैं. उनमें से लगभग 12 हत्याएं अकेले मयूरभंज जिले में ही होती हैं.
इसी तरह की एक और घटना ओडिशा के रायगढ़ा जिले में हुई. सेसखल पुलिस थाने के अंतर्गत बडाकोशापाड गांव के प्रेमानंदा मंडंगी ने अपने पड़ोसी जादूमनी मंडंगी (45) और पोली मंडंगी (50) की हत्या की.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक प्रेमानंदा ने इसके पहले आरोप लगाया था कि उनके परिवार में तीन लोगों को जादुमनी और पोली ने जादू-टोना करके मार दिया.
तीन महीने पहले गांव में एक बैठक हुई थी जिसमें जादुमनी और पोली को जादू-टोना करने के जुर्म में 3,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया. हालांकि उन्होंने जुर्माना नहीं भरा.
पुलिस ने प्रेमानांदा को गिरफ्तार किया और मृतकों के शवों को बरामद किए. हत्या की खबर पुलिस को मृतकों के परिजनों से मिली थी.
बालासोर जिले में एक अन्य घटना में जादू टोना के संदेह में एक बुजुर्ग व्यक्ति और उसकी बेटी के साथ मारपीट की गई और गोबर मिला पानी पीने के लिए मजबूर किया गया.
पुलिस ने बताया कि जिले के नीलगिरि क्षेत्र के परशुराम बारिक नामक व्यक्ति पर लोगों को काला जादू करने का संदेह था. करीब 60 की सख्या में पड़ोसी और ग्रामीणों ने उन पर हमला कर दिया.
उन्होंने कहा कि बारिक के पड़ोसी शांतिलता की बहू बीमार पड़ी थी. इलाज के लिए झाड़-फूंक करने वाले को बुलाया गया. उन्होंने कुछ अनुष्ठान करने के बाद बारिक के जादू-टोना करने की बात कही.
इसके बाद अन्य ग्रामीणों ने उसे एक पेड़ से बांध दिया और उसके साथ मारपीट की. जब उनकी बेटी पुसांजलि ने उसे बचाने की कोशिश की तो उसके साथ मारपीट की गई और दोनों को गाय के गोबर का पानी पीने के लिए मजबूर किया गया.
गुजरात में डायन होने के संदेह में मां-बेटियों के साथ मारपीट
गुजरात के दाहोद जिला के सागटला तालुका के डभवा गांव में 14 जून की रात डायन होने के संदेह में एक महिला और उसके 12-17 साल की दो बेटियों के साथ मारपीट की गई.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पुलिस ने बताया कि कथित तौर डायन होने के संदेह में दूर के रिश्तेदारों ने 42 वर्षीय महिला और उसकी 12-17 साल की दो बेटियों के साथ मारपीट की.
सागताला पुलिस थाने में दर्ज शिकायत के मुताबिक कानबेन बारिया और उनकी दो बेटियां खेतों में काम करने के लिए गई थीं. तभी आरोपी उन पर डंडों और कुल्हाड़ी से हमला कर दिया.
शिकायत में कहा गया है कि हथियारबंद हमलावर उन पर डायन होने और उनके परिवारों को परेशान करने का आरोप लगाया. जब वे महिला पर हमला कर दिया तो उसकी बेटियां उन्हें बचाने की कोशिश की तो उनके साथ भी मारपीट की गई.
पीड़ित की सास ने हमले को देखा और अपने बेटे को सूचित करने के लिए शोर मचाती हुई दौड़ी. ग्रामीणों को आते देख हमलावर वहां से भाग गए.
जाते हुए कानबेन को धमकी दे गए कि वह जादू-टोना करना बंद कर दे वरना उसे और उसकी बेटियों को मार दिया जाएगा.
पुलिस ने बताया कि तीनों को तुरंत निकटतम स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां से उन्हें गोधरा के सिविल अस्पताल रेफर कर दिया गया. उनकी हालत स्थिर है.
मामले की जांच कर रहे अधिकारी अमर पुवार ने कहा, ‘इन परिवारों के बीच जमीन से संबंधित पुराने झगड़े भी थे. हम उस दिशा में भी जांच कर रहे हैं. अभी तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है, जांच चल रही है.’
शिकायत के आधार पर सात लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 143 (गैरकानूनी बैठक में भागीदारी), 147 (दंगा करने के लिए सजा), 148 (दंगा, घातक हथियार से लैस), 323 (जानबूझकर घायल करना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान), 506 (2) (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया गया है. (thewirehindi.com)
एक जवान की कोरोना वायरस से मौत हो चुकी है
जम्मू-कश्मीर में ड्यूटी पर तैनात 70 सीआरपीएफ जवानों में कोरोना वायरस संक्रमण की पुष्टि हुई है. बीते हफ़्ते अनंतनाग में तैनात एक सीआरपीएफ जवान की कोरोना से मौत हो गई थी.
जम्मू-कश्मीर में सीआरपीएफ के 70 जवानों में कोरोना वायरस संक्रमण की पुष्टि हुई है. एक जवान की कोरोना वायरस से मौत हो चुकी है.
एनडीटीवी के मुताबिक ये जवान जम्मू और कश्मीर में लॉ एंड आर्डर ड्यूटी पर तैनात हैं. सुरक्षा बलों की दिल्ली हेडक्वार्टर ने इसकी पुष्टि की है.
बीते आठ जून को अनंतनाग में तैनात एक सीआरपीएफ जवान की कोरोना से मौत होने की जानकारी आई थी.
अधिकारियों ने बताया कि संक्रमित लोगों के संपर्क में आने वालों को तलाशा जा रहा है ताकि उन्हें क्वारंटीन किया जा सके.
14 जून को जम्मू-कश्मीर में सीआरपीएफ के दस जवानों और पांच पुलिसकर्मियों में कोरोना वायरस संक्रमण की पुष्टि हुई थी. अधिकारियों ने बताया था कि इनमें से किसी ने भी कहीं की यात्रा नहीं की थी.
बीते पांच दिन में तीसरी बार सीआरपीएफ के कर्मी संक्रमित पाए गए थे. उससे पहले 10 जून को बल के 28 जवानों में संक्रमण की पुष्टि हुई थी, शनिवार को 24 जवान संक्रमित पाए गए थे.
जम्मू-कश्मीर प्रशासन के के मुताबिक जम्मू और कश्मीर में मंगलवार को 78 नए कोरोना वायरस संक्रमण के मामले सामने आए हैं, जिसमें 16 जम्मू डिवीजन से और 62 कश्मीर डिवीजन से हैं.
इसके साथ ही जम्मू कश्मीर में 2,454 सक्रिय मामलों के साथ कुल संक्रमण के मामलों की संख्या 5,298 है. अब तक 63 लोगों की जानें जा चुकी हैं.
बता दें कि देशभर में विभिन्न केंद्रीय सुरक्षा बलों में अब तक 14 लोगों की कोरोना वायरस से मौत हो चुकी है.
बीते 10 जून को दिल्ली में तैनात सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के एक जवान की मौत हो गई थी. उससे पहले भी बीएसएफ के दो जवानों ने कोरोना के चलते जान गंवाई थी.
इसके अलावा कोविड -19 से केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) में पांच, केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीएपीएफ) में चार और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) में एक कर्मचारी की मौत हो चुकी है.(thewirehindi.com)
'देश के लिए दिया सबसे बड़ा बलिदान'
भारत और चीन के बीच हिंसक झड़प में शहीद हुई कर्नल संतोष बाबू के माता-पिता को अपने बेटे पर गर्व है। भले ही उन्होंने अपना इकलौता बेटा खो दिया लेकिन उन्हें खुशी है कि उनके बेटे ने देश के लिए सबसे बड़ा बलिदान दिया है।
हैदराबाद। लद्दाख में 15 जून की रात भारत और चीन की सेनाओं के बीच हुई हिंसा में भारत के 20 जवान शहीद होने की खबर सुनकर किसी की आंखों में आंसू हैं तो किसी के सीने में गुस्सा लेकिन एक शख्स ऐसा भी है जिसे सिर्फ गर्व है। सीमा पर देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए कर्नल संतोष बाबू के पिता बी उपेंदर बेटे के जाने से टूट जरूर गए हैं लेकिन हारे नहीं हैं। वह कहते हैं, 'देश के लिए मरना सम्मान की बात है और मुझे मेरे बेटे पर गर्व है।' कर्नल संतोष की पत्नी संतोषी को सबसे पहले उनके शहीद होने की सूचना दी गई। उनका पार्थिव शरीर आज शम्साबाद एयरपोर्ट से सूर्यपेट सड़क के रास्ते लाया जाएगा।
ता था ऐसा दिन आएगा...
बैंक से रिटायर हो चुके कर्नल संतोष के पिता बताते हैं कि कर्नल ने अपने 15 साल के सेना के करियर में कुपवाड़ा में आतंकियों का सामना किया है और आर्मी चीफ उनकी तारीफ कर चुके हैं। उपेंदर ने ही कर्नल को सेना जॉइन करने के लिए प्रेरित किया था और उन्हें पता था कि इसमें खतरे भी हैं। वह कहते हैं, 'मुझे पता था कि एक दिन आएगा जब मुझे यह सुनना पड़ सकता है जो मैं आज सुन रहा हैं और मैं इसके लिए मानसिक रूप से तैयार था। मरना हर किसी को है लेकिन देश के लिए मरना सम्मान की बात है और मुझे अपने बेटे पर गर्व है।'
वापस आकर बात करूंगा'
कर्नल संतोष ने आंध्र प्रदेश के कोरुकोंडा में सैनिक स्कूल जॉइन किया था और उसके बाद सेना के नाम अपना जीवन कर दिया था। उन्होंने 14 जून को अपने घर पर बात की थी और जब पिता ने उनसे सीमा पर तनाव के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, 'आपको मुझसे यह नहीं पूछना चाहिए।
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मैं आपको कुछ नहीं बता सकता हूं। हम तब बात करेंगे जब मैं वापस आ जाऊंगा।' यह उनकी अपने घरवालों से आखिरी बातचीत थी। अगली रात को ही कर्नल संतोष गलवान घाटी में शहीद हो गए । कर्नल ने अपने पैरंट्स को बताया था कि जो टीवी पर दिखाई दे रहा है, जमीन पर सच्चाई उससे अलग है।
'देश के लिए सबसे बड़ा बलिदान दिया'
कर्नल संतोष के पिता ने बताया, 'मैं सेना जॉइन करना चाहता था लेकिन कर नहीं सका। जब मेरा बेटा 10 साल का था तब मैंने उसमें यूनिफॉर्म पहनकर देश की सेवा करने का सपना जगाया।' सैनिक स्कूल में पढ़ने के बाद कर्नल संतोष NDA चले गए और फिर IMA। कर्नल के पिता और मां मंजुला तेलंगाना के सूर्यपेट में रहते हैं। उनकी पत्नी संतोषी 8 साल की बेटी और 3 साल के बेटे के साथ दिल्ली में रहती हैं।
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कर्नल के पिता कहते हैं, '15 साल में मेरे बेटे को चार प्रमोशन मिले। पिता के तौर पर मैं चाहता था कि वह खूब ऊंचाइयां चूमे। मैं जानता था कि सेना के जीवन में अनिश्चितता होती है, इसलिए हमें संतोष है कि उसने देश के लिए सबसे बड़ा बलिदान दे दिया।'
खो दिया इकलौता बेटा'
कर्नल की मां अपने बेटे की राह देख रही थीं। वह उनसे हैदराबाद ट्रांसफर लेने के लिए कहती थीं ताकि वह परिवार के पास आ सकें। वह कहती हैं, 'मैं खुश हूं कि उसने देश के लिए अपना जीवन दे दिया लेकिन मां के तौर पर दुखी हूं।
मैंने अपने इकलौता बेटा खो दिया।' वह याद करती हैं, 'उसकी पढ़ाई के लिए पिता ने कोरुकोंडा के पास ट्रांसफर ले लिया। लॉकडाउन से पहले वह दिल्ली में छुट्टी पर था। लॉकडाउन की वजह से छुट्टी एक्सटेंड हो गई और एक महीने पहले लेह के पास ड्यूटी पर चला गया।' (navbharattimes.indiatimes.com)
उन्हें दो बार जान से मारने का प्रयास किया गया
- Saumya Jyotsna
जब आप कुछ अच्छा करने की ओर आगे बढ़ते हैं तो आपके रास्ते में कई परेशानियां आती हैं, जिनसे आप टूटकर बिखरने लगते हैं। ऐसा कई बार होता है, जब परिस्थिति आपके विपरीत हो जाती है। जाहिर-सी बात है, जिंदगी कभी एक तरह से चलती भी नहीं है क्योंकि तभी पता चलता है कि आप जीवित हैं और आपकी सांसें चल रहीं हैं। जब कभी हम लीक से हटकर चलने के बारे में सोचते हैं, तब हमारे रास्ते में कई परेशानियां खड़ी हो जाती हैं। कुछ ऐसा ही हुआ था सुमैरा अब्दुल अली के साथ। जब उन्होंने अवैध खनन के खिलाफ अपनी आवाज़ को बुलंद करने का काम शुरु किया था।
सुमैरा मुंबई की पर्यावरणविद हैं और आवाज़ फाउंडेशन की संस्थापक हैं। वे कंवर्सेशन सब कमेटी की को चेयरमैन और एशिया के सबसे पुराने व सबसे बड़े एनवायरोमेंटल एनजीओ, द बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी की सचिव भी हैं। फिलहाल वे गवर्निंग काउंसिल मेंबर हैं। सुमैरा का जन्म 22 मई 1961 को मुंबई में हुआ था। सुमैरा भारत के सर्वोपरि पर्यावरणविद के रूप में अपनी खास पहचान रखती हैं। वे पिछले बीस साल से ध्वनि प्रदूषण और अवैध रेत खनन के प्रति लोगों को जागरूक कर रही हैं। साल 2002 में सुमैरा के नेतृत्व में आवाज़ फाउंडेशन द्वारा ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ मुहिम चलाई गई थी, जिसे लोगों का व्यापक सर्पोट मिला था। धीरे-धीरे यह मुहिम भारत के कई राज्यों तक फैलनी शुरु हो गई। जैसे- बनारस, बैंगलोर और पुणे। आवाज़ भारत की पहली ऐसी संस्था है, जो ध्वनि प्रदूषण का डाटा इकट्ठा करती है।
इसके साथ ही सुमैरा ने साल 2002 में मध्यरात्रि से बॉम्बे पर्यावरणीय एक्शन ग्रुप और दो डॉक्टरों के साथ लाउडस्पीकर के उपयोग की अनुमति देने के लिए शोर नियमों के ढील के खिलाफ बंबई उच्च न्यायालय में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी। उन्होंने साल 2004 और साल 2006 में ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ एक व्यापक सेमिनार का आयोजन किया था। साल 2003 के बाद से ही वे ध्वनि प्रदूषण, अवैध रेत खनन, अवैध निर्माण, जैव विविध वनों में खनन, समुद्री प्रदूषण और तेल फैलने, पर्यावरण के अनुकूल त्योहारों, पेड़ों की सुरक्षा और पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर ‘आवाज़ फाउंडेशन’ के माध्यम से व्यक्तिगत रूप से काम किया है।
बच्चों के तंबाकू बिक्री पर कानून जैसे नागरिक मुद्दों पर भी उन्होंने काम किया है। उन्होंने जनहित के कार्यकर्ताओं की सुरक्षा के लिए एक एनजीओ आंदोलन का आयोजन किया था। जिसका नाम ‘मूवमेंट अगेनिस्ट इंटिमिडेशन, थ्रेट एंड रिवेंज अगेनिस्ट ऐक्टिविस्ट'(MITRA) है। सुमैरा के लिए पर्यावरण को बचाना सबसे ज्यादा जरुरी है। उन्होंने अलग-अलग प्लेटफाॅर्म के माध्यम से लोगों को पर्यावरण से होने वाले नुकसान से न सिर्फ अवगत कराया है, बल्कि उनसे बचने के तरीकों से भी अवगत कराया है।
सुमैरा के अनुसार पर्यावरण को बचाने की मुहिमों में अभी बहुत कमी है।
साल 2004 की एक घटना है, जिसमें रेत माफिया ने उन्हें दो बार जान से मारने का प्रयास किया गया था। उन्होंने अपने जीवन का यह बुरा दौर भी देखा है लेकिन उनके इरादों में कभी कमी नहीं आई, बल्कि वे और तत्परता के साथ अपने काम में जुट गईं। पर्यावरण के क्षेत्र में सुमैरा के उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें अशोक फैलोशिप और मदर टेरेसा अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है।
इस विषय पर हुई बातचीत में सुमैरा कहती हैं कि पर्यावरण बचाने की खातिर जान जोखिम में डाली मगर लेकिन हार नहीं मानी। आखिर जीत मेरी हुई। ध्वनि प्रदूषण को लेकर सुमैरा कहती हैं कि उन्होंने ध्वनि प्रदूषण की बढ़ती समस्या को देखते हुए उसे नियंत्रण करने का प्रयास किया। एक वेबसाइट में प्रकाशित उनके इंटरव्यू में उन्होंने कहा है, ‘मेरे एक परिचित शख्स उस समिति का हिस्सा थे, जो उच्च न्यायालय द्वारा गठित की गई थी। मुंबई का ध्वनि प्रदूषण कम करने के लिए सुझाव देना उस समिति का काम था। वह एक मैरिज हॉल के पास अपना काम कर रहे थे। रिपोर्ट टाइप करने में उन्हें मेरी जरूरत पड़ी। उनकी रिपोर्ट टाइप करते हुए मुझे पहली बार ध्वनि प्रदूषण की भयावहता का पता चला। एक जानकारी में इतनी ताकत थी कि उसके बाद हर रोज़ शहर का शोर-शराबा मुझे परेशान करने लगा। करीब दो साल बाद 2002 में मैं अपने उन्हीं परिचित के साथ ध्वनि प्रदूषण कम करने की दिशा में काम करने लगी। उनकी कानूनी जानकारी का लाभ लेते हुए सबसे पहले मैंने अदालत में जनहित याचिका दायर करके शहर के कुछ इलाकों को शांत क्षेत्र घोषित कराने में अदालती सफलता हासिल की, जब मेरा पहला ही प्रयास प्रभावशाली रहा, तो मुझे कई लोगों ने बधाई के साथ शोर से होने वाली खुद की परेशानियों से अवगत कराया।
मैं जानती हूं कि त्योहार खुशियों के लिए होते हैं और शोर-शराबा स्वास्थ्य के लिए घातक बीमारी है, जिसका उत्सव से कोई लेना-देना नहीं। मैं इसी बीमारी को मिटाने में जुटी हूं। लोगों को जागरूक करने के लिए मैं मुंबई की सड़कों पर एक विशेष ऑटोरिक्शा संचालित कराती हूं, जिसकी बॉडी पर सैकड़ों हॉर्न लगाए गए हैं। ये हॉर्न लोगों का ध्यान इस तरफ ले जाते हैं कि सड़कों पर हॉर्न का किस तरह बेजा इस्तेमाल किया जाता है। इस ऑटो पर ‘हॉर्न नॉट ओके प्लीज’ लिखा है। साथ ही मैंने रेत खनन माफियाओं के विरुद्ध भी अपनी मुहिम छेड़ रखी है।‘
इस तरह सुमैरा पर्यावरण को बचाने के लिए तत्परता से काम कर रही हैं। सुमैरा के अनुसार पर्यावरण को बचाने की मुहिमों में अभी बहुत कमी है। उनके अनुसार कोरोना जैसी बीमारी भी पर्यावरण असंतुलन के कारण हो रही है। वे मानतीं हैं कि पर्यावरण को बचाने के लिए पॉलिसी का निर्माण होना चाहिए, जिससे लोग भी तमाम तरह की परेशानियों से बच सकें।
(यह लेख पहले फेमिनिज्म इंडिया की वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ है ) (hindi.feminisminindia.com)
पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीन की सेना के साथ झड़प में कम से कम 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए हैं। एएनआई ने सरकारी सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी है।
नई दिल्ली, 16 जून। पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में सोमवार को चीन की सेना के साथ झड़प में कम से कम 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए हैं। भारतीय सेना ने देर शाम इसकी पुष्टि की। सूत्रों ने बताया है कि यह संख्या और भी बढ़ सकती है। इससे पहले दिन में एक अफसर समेत तीन जवानों के शहादत की खबर आई थी। उसके बाद से ही दिल्ली में ताबड़तोड़ बैठकों का दौर जारी रहा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को दो बार लद्दाख के हालात को लेकर समीक्षा बैठक की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी मौजूदा हालात से अवगत करा दिया गया है।
भारत ने मंगलवार को कहा कि पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प क्षेत्र में ‘यथास्थिति को एकतरफा तरीके से बदलने के चीनी पक्ष के प्रयास’ के कारण हुई। विदेश मंत्रालय ने साफ कहा है कि पूर्व में शीर्ष स्तर पर जो सहमति बनी थी, अगर चीनी पक्ष ने गंभीरता से उसका पालन किया होता तो दोनों पक्षों की ओर जो हताहत हुए हैं उनसे बचा जा सकता था।
सोमवार देर शाम झड़प में दोनों पक्षों को नुकसान हुआ है। भारत में 20 सैनिकों की शहादत की खबर तो चीन को डबल नुकसान हुआ है। समाचार एजेंसी ANI की रिपोर्ट के मुताबिक चीन को भारी क्षति पहुंची है। उसके 43 सैनिक हताहत हुए हैं। हालांकि चीन ने आधिकारिक तौर पर अभी कुछ भी स्वीकार नहीं किया है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ‘सीमा प्रबंधन पर जिम्मेदाराना दृष्टिकोण जाहिर करते हुए भारत का स्पष्ट तौर पर मानना है कि हमारी सारी गतिविधियां हमेशा एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) के भारतीय हिस्से की तरफ हुई हैं। हम चीन से भी ऐसी ही उम्मीद करते हैं।’
दिल्ली में गहमागहमी, रक्षा मंत्री की अहम बैठक
गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प के बाद से पूर्वी लद्दाख में हालात की समीक्षा के लिए मंगलवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शीर्ष सैन्य अधिकारियों के साथ लगातार दो बैठकें की। सिंह ने सोमवार की रात की झड़प और क्षेत्र में संपूर्ण स्थिति के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अवगत कराया है। पांच हफ्ते से भी ज्यादा समय से इस क्षेत्र में दोनों पक्षों के बीच तनाव बना हुआ है। भारतीय सेना ने कहा है कि चीन को भी नुकसान हुआ है।
सूत्रों ने बताया कि सिंह ने विदेश मंत्री एस जयशंकर, प्रमुख चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत और तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ बैठक की। इसमें पूर्वी लद्दाख में जमीनी हालात की व्यापक समीक्षा की गई। किसी भी हालात से निपटने के लिए भारत की तैयारियों पर भी विचार-विमर्श किया गया। यह पता चला है कि सरकार ने पूर्वी लद्दाख में पेंगॉन्ग सो, गलवान घाटी, डेमचोक और दौलत बेग ओल्डी जैसे इलाकों में भारत की सैन्य क्षमता को आगे और मजबूत करने का फैसला किया है।
सूत्रों ने बताया कि तकरीबन एक घंटे चली बैठक के बाद सिंह ने समग्र हालात के बारे में प्रधानमंत्री मोदी को अवगत कराया। (navbharattimes.indiatimes.com)
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
रायपुर, 16 जून। दिव्यांगता के बावजूद हुनर के बलबूते गुजर बसर करने का जज्बा रखने वाले बलौदाबाजार के कामगार सोमवार को श्रमिक टे्रन से गाजियाबाद से छत्तीसगढ़ पहुंचे। इनके अलावा उम्र के आखिरी पड़ाव में भीख मांगकर गुजार करने वाले उम्रदराज कुछ लोगों की भी घर वापसी हुई।
'छत्तीसगढ़' संवाददाता से कुछ कामगारों ने अपने अनुभवों को साझा किया। बलौदाबाजार लकडिय़ा गांव के पोलियोग्रस्त कामदेव गीत लहरे ने बताया कि गांव में उनकी पत्नी, मां और बच्चे रहते हैं। पोलियोग्रस्त होने के कारण गांव में उन्हें कोई काम नहीं देता था इसलिए थकहार कर वह पड़ोसी गांव के एक व्यक्ति के कहने पर गाजियाबाद चले गए थे। वहां रहते हुए 50 रूपए रोजी पर उन्होंने दो पहिया, चार पहिया गाडिय़ों में सीट कवर लगाना सीखा। काम अच्छे से सीख लेने पर कंपनी ने उन्हें काम पर रख लिया। ढाई सौ, तीन सौ की दर से उन्हें रोजी मिलने लगी और उनकी जिंदगी संवर गई।
कामदेव कहते हैं गांव में भले चंगों को तो काम मिलता नहीं है फिर हमें कौन काम देगा? कोई हमारे ऊपर भरोसा ही नहीं करता है। गांव तो लौट गए हैं लेकिन काम नहीं मिला तो वापस गाजियाबाद जाएंगे।
36 वर्षीय, 8वीं पढ़े बुलाकी बंजारे ने बताया कि उनकी 3 लड़कियां हैं जो गांव में पढ़ रही हैं। गाजियाबाद में रहकर उन्होंने सीट कवर का काम सीख लिया है। उन्हें उम्मीद है कि हुनर की बदौलत अब गांव में उन्हें काम मिल जाएगा, लेकिन काम न मिलने पर गांव छोड़कर गाजियाबाद जाना उनकी मजबूरी होगी। बुलाकी कहते हैं 75 प्रतिशत विकलांगता के बावजूद मैंने सीट कवर का काम सीखकर अपने परिवार का सहारा बना लेकिन अफसोस कि हम पर लोग भरोसा नहीं करते हैं। रोजगार दिलाने के नाम पर हम दिव्यांगों से भी पैसे वसूल लेते हैं।
बलौदाबाजार के सकरी गांव की बुजुर्ग सुशीला बाई की गांव वापसी हो गई है। फिलहाल वह क्वॉरंटीन सेंटर में है। सुशीला के बेटे वरू टंडन ने बताया कि उनकी छोटी सी दुकान है। उनके 3 भाई और 5 बहनें हैं लेकिन मां सुशीला गांव के और लोगों के साथ गाजियाबाद में रहते हुए भीख मांगकर गुजारा करती है। बीच-बीच में वह गांव आती रहती थी लेकिन इस बार कोरोना के कारण गांव वापस आई है।
गाजियाबाद में रहकर भीख मांग कर गुजारा करने वाली बलौदाबाजार की विमला और उनके पति काशीराम गांव वापस नहीं आ पाए।
फोन पर उनकी बेटी मनीषा ने बताया 6 महीने पहले मां-पिताजी, पति और बच्चों के साथ वह गाजियाबाद आई थी लेकिन छत्तीसगढ़ वापसी के लिए फार्म नहीं भर पाई जिसके कारण टे्रन चूक गई।
मनीषा ने बताया कि उसका पति हमाली का काम करता है और मां-बाप भीख मांगकर गुजारा करते हैं। गांव में बहन भाई हैं, लेकिन पेट की खातिर मां-बाप गाजियाबाद में ही रहते हैं। यहां गांव के और लोग भी इसी तरह गुजारा करते हैं। जिस दिन टे्रन से वापसी के लिए फोटो वगैरा जमा हो रहा था उस दिन उसके पति काम पर चले गए थे जिसके कारण वह लौटने से चूक गए।
चीनी मीडिया ने भी अपने सैनिकों की मौत मानी
लद्दाख में चीनी सेना के साथ झड़प में एक अधिकारी सहित तीन भारतीय सैनिकों की मौत हुई है
लद्दाख में चीनी सैनिकों के साथ हिंसक टकराव में भारत के एक सैन्य अधिकारी सहित तीन सैनिकों की मौत हो गई है. सेना के एक बयान के मुताबिक यह टकराव गलवान घाटी नाम के इलाके में हुआ. बताया जा रहा है कि भारत के तीनों सैनिकों की मौत पथराव से लगी चोटों के चलते हुई. सेना का कहना है कि दूसरे पक्ष में भी मौतें हुई हैं हालांकि अभी इनकी संख्या पता नहीं चल सकी है. चीनी मीडिया ने भी अपने सैनिकों के हताहत होने की बात कही है. चीन सरकार के मुखपत्र माने जाने वाले द ग्लोबल टाइम्स के संपादक हू शिन ने अपने एक ट्वीट में यह भी कहा है कि चीन के संयम को भारत उसकी कमजोरी न समझे.
फिलहाल शांति बहाली के लिए दोनों पक्षों के सैन्य अधिकारी बैठक कर रहे हैं. भारत और चीन के बीच लद्दाख से सटी सीमा को लेकर पिछले कुछ समय से तनाव चल रहा है. हाल में भी इस इलाके में दोनों पक्षों के बीच हिंसक झड़पों की खबर आई थी. लेकिन उसके बाद शांति बहाली के प्रयास शुरू हुए और कुछ ही दिन पहले चीन का बयान आया कि दोनों देश सीमा विवाद को लेकर एक सकारात्मक सहमति तक पहुंच गए हैं. इसके बाद पूर्वी लद्दाख के कई सीमाई इलाकों में दोनों देशों की सेनाओं के आपसी सहमति से दो से ढाई किमी पीछे हटने की भी खबर आई थी. लेकिन ताजा घटना ने हालात फिर गरमा दिए हैं.
उधर, चीन ने आरोप लगाया है कि दो भारतीय सैनिक उसके इलाके में घुस गए थे जिसके बाद तनाव शुरू हुआ. उसका यह भी कहना है कि भारत को कोई एकपक्षीय कार्रवाई करते हुए माहौल बिगाड़ने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. दूसरी तरफ, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ताजा टकराव को लेकर सीडीएस बिपिन रावत और तीनों सेना प्रमुखों के साथ एक बैठक की है.
भारत और चीन के बीच करीब साढ़े तीन हजार किलोमीटर लंबी सीमा है. बीते कुछ समय से लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं का जमावड़ा बढ़ा है. सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला है कि चीन लद्दाख के पास एक एयरबेस का विस्तार कर रहा है. तस्वीरों से यह भी खुलासा होता है कि चीन ने वहां लड़ाकू विमान भी तैनात किए हैं. इसके बाद भारत ने भी इस इलाके में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाई है.
पार्टी नेताओं की हत्या और गिरफ्तारी के बावजूद...
जगत पुजारी या भीमा मंडावी जैसे भाजपा नेता बस्तर की राजनीतिक बिसात पर छोटे मोहरे रहे हैं. उन्होंने रायपुर स्थित अपने आकाओं की सहमति के बिना अपनी चालें नहीं चली होंगी.
-आशुतोष भारद्वाज
इतिहास की द्वंद्वात्मकता अपने पात्रों के साथ रोचक खेल खेलती है. हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के दंतेवाड़ा उपाध्यक्ष जगत पुजारी की छत्तीसगढ़ में माओवादियों की कथित मदद के आरोप में गिरफ्तारी ने एक बार फिर उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र में अतिवामपंथी विद्रोहियों और दक्षिणपंथी नेताओं के बीच निकट गठजोड़ को उजागर किया है.
इस गठजोड़ में राजनीतिक सौदे और भौतिक सहायता शामिल रहे हैं. इसे दो बार हत्याओं का झटका भी लगा — 2013 में भाजपा के तत्कालीन दंतेवाड़ा उपाध्यक्ष शिवदयाल सिंह तोमर और 2019 में भाजपा के तत्कालीन विधायक भीमा मंडावी की हत्या. लेकिन फिर भी ये संबंध फलता-फूलता रहा.
पुजारी, और रमेश उसेंडी नामक एक व्यक्ति, के खिलाफ माओवादियों को एक ट्रैक्टर समेत विभिन्न सामग्रियों की आपूर्ति के आरोप में छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है. उल्लेखनीय है कि राज्य में माओवादी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए 2005 का ये कानून भाजपा की रमन सिंह सरकार ने लागू किया था.
पुजारी की गिरफ्तारी ने ‘शहरी नक्सली’ रूपी कल्पित शत्रु के खिलाफ भाजपा के दावों की कलई खोल दी है. इसने माओवादी इलाकों में पार्टी की विश्वासघाती राजनीति को भी उजागर करने का काम किया है.
पुजारी, और रमेश उसेंडी नामक एक व्यक्ति, के खिलाफ माओवादियों को एक ट्रैक्टर समेत विभिन्न सामग्रियों की आपूर्ति के आरोप में छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है. उल्लेखनीय है कि राज्य में माओवादी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए 2005 का ये कानून भाजपा की रमन सिंह सरकार ने लागू किया था.
दंतेवाड़ा भाजपा जिला उपाध्यक्ष जगत पुजारी (बाएं) को 13 जून को उसके साथी आरोपी रमेश उसेंडी के साथ गिरफ्तार किया गया था.
पुजारी की गिरफ्तारी ने ‘शहरी नक्सली’ रूपी कल्पित शत्रु के खिलाफ भाजपा के दावों की कलई खोल दी है. इसने माओवादी इलाकों में पार्टी की विश्वासघाती राजनीति को भी उजागर करने का काम किया है.
दंतेवाड़ा में भाजपा की राजनीति में एक और मोड़ तब आया जब माओवादियों ने 9 अप्रैल 2019 पार्टी के तत्कालीन विधायक मंडावी की हत्या कर दी. तब दो दिन बाद ही बस्तर में लोकसभा चुनावों के लिए मतदान होना था.
क्या भाजपा सांठगांठ की बात कभी मानेगी?
कुछ लोगों को लगता था कि मंडावी की हत्या के बाद भाजपा सतर्क हो जाएगी और छापामारों से दूरी बनाने लगेगी. लेकिन पुजारी के खिलाफ पुलिस के मामले से यही लगता है कि राजनीतिक फायदे के लिए पार्टी कुछेक बलिदानों से भी परहेज नहीं करेगी.
ऐसे में कहीं बड़ा मुद्दा ये है: बस्तर की राजनीतिक बिसात पर भाजपा के मंडावी, तोमर, कश्यप और पुजारी जैसे नेताओं की हैसियत छोटे मोहरे मात्र की रही है. रायपुर स्थित अपने आकाओं की सहमति के बिना उन्होंने अपनी चालें नहीं चली होंगी. ये तय नहीं है कि क्या जांच एजेंसियां कभी इन संपर्कों की तह में जा पाएगी. लेकिन इससे एक सवाल ज़रूर खड़ा होता है: क्या भाजपा कभी बस्तर में अपने गंदे खेल की बात स्वीकार करेगी? राष्ट्रवाद पर थोथी बयानबाज़ी में जुटी रहने वाली पार्टी ने भारत में सबसे लंबे समय से जारी विद्रोह के गुप्त पोषण का काम किया है. उग्रवादियों के साथ भाजपा के गुप्त और विश्वासघाती सौदों के बिना ये अलग किस्म का ही जंगल होता.
(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनकी आगामी पुस्तक ‘द डेथ स्क्रिप्ट’ में नक्सल उग्रवाद का लेखाजोखा है. यहां व्यक्त विचार निजी है.) (hindi.theprint.in)
लद्दाख़, अक्साई चीन के बीच भारत-चीन सीमा के नज़दीक
कमलेश मठेनी
बीबीसी संवाददाता
भारत और चीन के बीच सीमा पर पिछले कई हफ़्तों से तनाव की स्थिति है. वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देश अपने सैनिकों की मौजूदगी बढ़ा रहे थे.
अक्साई चीन में स्थित गलवान घाटी को लेकर दोनों देशों के बीच इस तनाव की शुरुआत हुई थी.
भारत का कहना है कि गलवान घाटी के किनारे चीनी सेना के कुछ टेंट देखे गए हैं. इसके बाद भारत ने भी वहाँ फ़ैज की तैनाती बढ़ी दी है. वहीं, चीन का आरोप है कि भारत गलवान घाटी के पास रक्षा संबंधी ग़ैर-क़ानूनी निर्माण कर रहा है.
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मई में दोनों देशों के बीच सीमा पर अलग-अलग जगह टकराव हो चुका है. नौ मई को नॉर्थ सिक्किम के नाकू ला सेक्टर में भारतीय और चीनी सैनिकों में झड़प हुई थी. उसी दौरान लद्दाख़ में एलएसी के पास चीनी सेना के हेलिकॉप्टर देखे गए थे. इसके बाद भारतीय वायुसेना ने भी सुखोई समेत दूसरे लड़ाकू विमानों से पेट्रोलिंग शुरू कर दी.
सोमवार को वायुसेना प्रमुख आरकेएस भदौरिया ने भी चीन का ज़िक्र किया था.
उन्होंने कहा, “वहां कुछ असामान्य गतिविधियां देखी गई थीं. ऐसी घटनाओं पर हम क़रीब से नज़र रखते हैं और ज़रूरी कार्रवाई भी करते हैं. ऐसे मामलों में ज्यादा चिंता की ज़रूरत नहीं.”
वहीं, थलसेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने दोनों देशों की सेनाओं के बीच टकराव के बाद पिछले हफ़्ते कहा था कि चीन के साथ लगी सीमा पर भारतीय सैनिक अपनी ‘स्थिति’ पर क़ायम हैं. सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास का काम चल रहा है.
उन्होंने ये भी बताया था कि इन झड़पों में दोनों देशों की सेनाओं के सैनिकों का व्यवहार आक्रामक था इसलिए उन्हें मामूली चोटें भी आई हैं.
चीन का भारत पर आरोप
चीन ने इस तनाव की वजह भारत को बताया है. चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स में सोमवार को प्रकाशित एक आर्टिकल में गालवन नदी (घाटी) क्षेत्र में तनाव के लिए भारत को ज़िम्मेदार बताया गया है.
अख़बार ने चीनी सेना के हवाले से कहा, “भारत ने इस इलाक़े में रक्षा संबंधी ग़ैर-क़ानूनी निर्माण किए हैं. इसकी वजह से चीन को वहां सैन्य तैनाती बढ़ानी पड़ी है. भारत ने इस तनाव की शुरुआत की है. लेकिन, हमें यक़ीन है कि यहां डोकलाम जैसे हालात नहीं बनेंगे जैसा साल 2017 में हुआ था. भारत कोविड-19 की वजह से आर्थिक परेशानियों से जूझ रहा है और जनता का ध्यान हटाने के लिए उसने गालवन में तनाव पैदा किया.”
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ग्लोबल टाइम्स ने ये भी लिखा है कि गालवन घाटी चीनी इलाक़ा है. भारत द्वारा उठाए गए क़दम सीमा संबंधी मुद्दों पर भारत और चीन के बीच हुए समझौते का उल्लंघन करते हैं. भारत मई की शुरुआत से ही गालवन घाटी में सीमा पार कर रहा है और चीनी इलाक़े में घुस रहा है.
क्यूं अहम है गालवन घाटी
गलवान घाटी विवादित क्षेत्र अक्साई चीन में है. गलवान घाटी लद्दाख़ और अक्साई चीन के बीच भारत-चीन सीमा के नज़दीक स्थित है.
यहां पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) अक्साई चीन को भारत से अलग करती है. अक्साई चीन पर भारत और चीन दोनों अपना दावा करते हैं. ये घाटी चीन के दक्षिणी शिनजियांग और भारत के लद्दाख़ तक फैली है.
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार एसडी मुनि बताते हैं कि ये क्षेत्र भारत के लिए सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये पाकिस्तान, चीन के शिनजियांग और लद्दाख़ की सीमा के साथ लगा हुआ है. 1962 की जंग के दौरान भी गालवन नदी का यह क्षेत्र जंग का प्रमुख केंद्र रहा था.
कोरोना के बीच सीमा पर तनाव
एक तरफ़ पूरी दुनिया कोरोना वायरस से लड़ रही है. भारत में भी मामले एक लाख के पार जा चुके हैं और चीन पर यूरोप और अमरीका बार-बार सवाल उठा रहे हैं. ऐसे में दोनों देशों के एक नए विवाद में पड़ने की वजह क्या है.
एसडी मुनि कहते हैं कि भारत इस वक़्त उन क्षेत्रों में अपना दावा मज़बूत करना चाहता है जिन्हें अपना मानता है पर वो विवादित हैं.
वह बताते हैं, “इसकी शुरुआत तो 1958 से हो गई थी जब अक्साई चीन में चीन ने सड़क बनाई थी जो कराकोरम रोड से जुड़ती है और पाकिस्तान की तरफ़ भी जाती है. जब सड़क बन रही थी तब भारत का ध्यान उस पर नहीं गया लेकिन सड़क बनने के बाद भारत के उस समय के प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उस पर आपत्ति जताई थी. उस वक़्त से ही भारत कह रहा है कि अक्साई चीन को चीन ने हड़प लिया है.”
लेकिन, तब भारत ने इस पर कोई सैन्य कार्रवाई नहीं की थी. अब कार्रवाई इसलिए हो रही है क्योंकि भारत को अपना दावा करना है. जैसा कि पीओके और गिलगित-बालतिस्तान को लेकर भारत ने अपना दावा मज़बूत करना शुरू कर दिया है. उसी संदर्भ में अक्साई चीन में भी गतिविधियां हो रही हैं. लेकिन, अब चीन को इससे परेशानी होने लगी है.
एसडी मुनि बताते हैं कि चीन गालवन घाटी में भारत के निर्माण को ग़ैर-क़ानूनी इसलिए कह रहा है क्योंकि भारत-चीन के बीच एक समझौता हुआ है कि एलएसी को मानेंगे और उसमें नए निर्माण नहीं करेंगे. लेकिन, चीन वहां पहले ही ज़रूरी सैन्य निर्माण कर चुका है और अब वो मौजूदा स्थिति बनाए रखने की बात करता है. अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए अब भारत भी वहां पर सामरिक निर्माण करना चाहता है.
भारत की बदलती रणनीति
पीओके से लेकर अक्साई चीन पर भारत की बदलती रणनीति की वजह क्या है. क्या भारत असुरक्षित महसूस कर रहा है या वो आक्रामक हो गया है.
एसडी मुनि के मुताबिक़ भारत आक्रमक नहीं हुआ है बल्कि मुखर हो गया है. जिन जगहों पर वो अपना अधिकार बताता रहा है अब उन पर अधिकार जताने भी लगा है.
वह कहते हैं कि 1962 के मुक़ाबले आज का भारत बहुत सशक्त भारत है. आर्थिक दृष्टिकोण से भी ये मज़बूत है. उसके अलावा चीन जिस तरह से उभरकर आया है उससे ख़तरा बढ़ा हुआ है. पाकिस्तान से भी भारत के संबंध बेहद ख़राब चल रहे हैं और इससे ख़तरा ज़्यादा बढ़ जाता है. ऐसे में भारत सरकार को लग रहा है कि उसे अपनी सीमाओं को सुरक्षित करना चाहिए. अगर अक्साई चीन में भारत सैन्य निर्माण करता है तो वहां से चीन की सेना की गितिविधियों पर नज़र रख पाएगा.
वहीं, ग्लोबल टाइम्स ने एक रिसर्च फेलो के हवाले से लिखा है कि गालवन घाटी में डोकलाम जैसी स्थिति नहीं है. अक्साई चीन में चीनी सेना मज़बूत है और तनाव बढ़ाने पर भारतीय सेना को इसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है.
इस संबंध में जानकारों का मानना है कि चीन की स्थिति वहां पर मज़बूत तो है जिसका भारत को नुक़सान हो सकता है. लेकिन, कोरोना वायरस के चलते चीन अभी कूटनीतिक तौर पर कमज़ोर हो गया है. यूरोपीय संघ और अमरीका उस पर खुलकर आरोप लगा रहे हैं जबकि भारत ने अभी तक चीन के लिए प्रत्यक्ष तौर पर कुछ ख़ास नहीं कहा है. ऐसे में चीन भारत से संतुलित रुख़ अपनाने की उम्मीद कर रहा है. भारत इस मोर्चे पर चीन से मोल-तोल करने की स्थिति में है.
क्या देशों पर बढ़ेगा दबाव
कोरोना काल में दो देशों की सीमाओं पर तनाव पैदा होने से क्या उन पर दबाव बढ़ेगा. चीन ने भारत पर कोरोना के मामलों से ध्यान भटकाने के लिए सीमा विवाद पैदा करने का आरोप लगाया है.
इस एसडी मुनि कहते हैं कि कोरोना वायरस से लड़ाई अपनी जगह है और देश की सुरक्षा अपनी जगह. चीन भी दक्षिण चीन सागर में अपने सैन्य निर्माण का विस्तार कर रहा है. दुनिया कोरोना वायरस से निपटने में व्यस्त है लेकिन फ़ौज तो कोरोना वायरस से नहीं लड़ रही है. फ़ौज अपना काम करेगी. ये सामरिक महत्व के मसले हैं जो कोरोना से पहले भी थे, अब भी हैं और आगे भी रहेंगे. इसलिए चीन का ये दावा ठीक नहीं है.(www.bbc.com)
कर्नल तेलंगाना के, और एक जवान तमिलनाडु
भारत और चीनी सेनाओं के बीच झड़प में जिन भारतीय सैनिकों की मौत हुई है, उनमें एक कर्नल तेलंगाना के सूर्यापेट ज़िले के रहने वाले हैं और एक जवान तमिलनाडु के रामानाथपुरम ज़िले से हैं.
मारे गए कर्नल का नाम संतोष बाबू है जो चीनी सीमा पर पिछले डेढ़ साल से तैनात थे.
कर्नल संतोष बाबू 16-बिहार रेजिमेंट में थे. उनकी पत्नी और दो बेटे हैं.
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कर्नल संतोष की मां मंजुला ने बताया कि उन्हें भारतीय सेना ने सोमवार दोपहर को यह सूचना दी थी जबकि कर्नल की पत्नी दिल्ली में रहती हैं.
कौन हैं तमिलनाडु के जवान
वहीं, तमिलनाडु के जवान का नाम पलनी (40 वर्षीय) है, जिनकी सीमा पर हिंसक झड़प में मौत हुई है.
उनके भाई ने बीबीसी तमिल को इसकी पुष्टि की है. पलनी बीते 22 सालों से भारतीय सेना में थे.
हालांकि, एक जवान की अभी तक पहचान ज़ाहिर नहीं की गई है.
जवान पलनी
वहीं, चीनी पक्ष की ओर से किसी के मारे जाने या घायल होने के बारे में चीनी सरकार या सेना ने अभी तक कोई जानकारी नहीं दी है.
लेकिन चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स के एक संपादक ने ट्वीट करके चीनी पक्ष में भी नुक़सान होने की पुष्टि की है.
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई.के. पलनीसामी ने ट्वीट करके राज्य के जवान की मौत पर दुख जताया है और उनके गांव की जानकारी दी है.
पलनी के भाई भी सेना में
पलनी के भाई इतायाक्कनी भी सेना में हैं और राजस्थान में तैनात हैं. उन्होंने बीबीसी तमिल सेवा के साईराम से बात की और कहा कि वो अपने घर के लिए रवाना हो रहे हैं.
उन्होंने कहा, "बीती रात सेना के कर्मचारियों ने मुझे फ़ोन करके बताया कि लद्दाख में झड़प के दौरान मेरे भाई की मौत हो गई है. उनके अंतिम संस्कार के लिए मैं राजस्थान से अपने घर जा रहा हूं."
इतायाक्कनी ने बताया कि उनके भाई से आख़िरी बार उनकी बात 10 दिन पहले हुई थी.
उन्होंने कहा, "उन्होंने मुझे बताया था कि वो शहर से लद्दाख सीमा की ओर जा रहे हैं जहां पर नेटवर्क की समस्या होगी. तो उन्होंने मुझे कहा कि अगली फ़ोन कॉल में वक़्त लगेगा."
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इतायाक्कनी ने कहा कि उनके सेना में भर्ती होने की वजह उनके भाई ही थे.
उन्होंने कहा, "यह मेरे परिवार के लिए बहुत बड़ा नुक़सान है. मैं कल्पना नहीं कर सकता हूं कि मेरी भाभी और दो बच्चे इस समय किन परिस्थितियों से गुज़र रहे होंगे."
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
भिलाई नगर 16 जून (शाम 6.30 बजे)। श्री शंकराचार्य मेडिकल कॉलेज के आईसीसीयू एवं कैथ लैब तथा जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र सेक्टर 9 अस्पताल के रेडियोलॉजी विभाग को आज सील कर दिया गया है।
जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर गंभीर सिंह ठाकुर ने बताया कि श्री शंकराचार्य मेडिकल कॉलेज में कोरोना संक्रमित मरीज पाए जाने के बाद संबंधित आईसीसीयू एवं कैथ लैब को आज सील कर दिया गया साथ ही संक्रमित मरीज के प्राइमरी कांटेक्ट में आए अस्पताल के डॉक्टर सहित 25 पैरामेडिकल स्टाफ को क्वारंटाइन कर दिया गया है। इसी प्रकार से सेक्टर 9 अस्पताल के रेडियोलॉजी विभाग में कोरोना संक्रमित डॉक्टर के कारण विभाग को पूरा सील कर दिया गया है । डॉक्टर के प्राइमरी कांटेक्ट में रहे अस्पताल के करीब 50 कर्मचारियों को सुरक्षा के दृष्टिकोण से क्वारंटाइन कर दिया गया है।
पॉवर कंपनी पौने 17 सौ करोड़ खर्च करने से बच रही, हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना भी
रायपुर, 16 जून। धरमजयगढ़ में मंगलवार को हुई करंट से हाथी की मौत के मामले में आरटीआई कार्यकर्ता नितिन सिंघवी ने विद्युत वितरण कंपनी और वन विभाग के अधिकारियों को दोषी ठहराते हुए आरोप लगाया है कि विद्युत वितरण कंपनी न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करते हुए वन क्षेत्रों में मापदंडों से नीचे जा रही बिजली लाइनों तथा लटकते हुए तारों और बेयर कंडक्टर (नंगे तार) को कवर्ड तारों में बदलने से बचने के लिए रुपए 1674 करोड़ खर्च करने से बच रही है और इसके कारण से हाथी समेत अन्य वन्य प्राणियों की मौतें करंट से हो रही है। छत्तीसगढ़ निर्माण के पश्चात कुल 157 हाथियों की मृत्यु हुई है जिसमें से 30 हाथियों की मृत्यु विद्युत करंट के कारण हुई है।
छत्तीसगढ़ में लगातार विद्युत करंट से हाथियों की हो रही मौतों के मामले में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका क्रमांक 5/2018 नितिन सिंघवी विरुद्ध छत्तीसगढ़ राज्य नामक याचिका लंबित रहने के दौरान विद्युत वितरण कंपनी ने कहा था कि वन क्षेत्रों से नीचे जा रही विद्युत लाइनों और लटकते हुए तारों और बेयर कंडक्टर (नंगे तारों) को कवर्ड कंडक्टर में बदलने के लिए वन विभाग, विधुत वितरण कंपनी को रुपए 1674 करोड़ रुपए दे तो वह एक वर्ष के अंदर में सभी सुधार कार्य कर देगी।
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छत्तीसगढ़ शासन ने इस राशि की मांग भारत सरकार व पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से की। जिसके जवाब में भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय तथा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्णयों का हवाला देते हुए पत्र लिखकर आदेशित किया कि छत्तीसगढ़ राज्य में टूटे विधुत तार एवं झूलते हुए विद्युत लाइनों से हाथियों और अन्य वन्य प्राणियों की मृत्यु के लिए छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी जवाबदेह है तथा उपरोक्त वर्णित सुधार कार्य विद्युत वितरण कंपनी अपने वित्तीय प्रबंध से करेगी।
एक वर्ष पूर्व 19 जून को प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी ने प्रबंध संचालक छत्तीसगढ़ राज्य विधुत वितरण कंपनी को भारत सरकार के निर्णय से अवगत करा दिया तथा 15 दिन के अंदर कार्य योजना तैयार कर प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी को भेजने को कहा। वन विभाग के प्रमुख सचिव ने भी प्रमुख सचिव ऊर्जा को पत्र लिखकर रुपए 1674 करोड़ स्वयं के वित्तीय प्रबंध से करके आवश्यक सुधार कार्य करने के लिए कहा अन्यथा न्यायालय के आदेश के अनुसार वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 एवं उसके अंतर्गत निर्मित नियम, इंडियन पेनल कोड 1860, इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 तथा अन्य सुसंगत विधियों के अंतर्गत डिस्कॉम के विरुद्ध वैधानिक कार्यवाही की जावेगी।
सिंघवी ने आरोप लगाया की विद्युत वितरण कंपनी न तो सुधार कार्य करा रही है न ही अपने वित्तीय प्रबंध से 1674 करोड़ की व्यवस्था कर रही है। हद तो तब हो गई जब वन विभाग लगातार ऊर्जा विभाग को पत्र लिख रहा था तो 9 माह पश्चात मार्च 2020 में ऊर्जा विभाग ने वन विभाग को पत्र लिखकर फिर कहा कि विधुत वितरण कंपनी के प्रस्ताव के अनुसार रुपए 1674 करोड़ उपलब्ध कराएं। इससे स्पष्ट है की विधुत वितरण कंपनी न्यायालय के आदेश का पालन नहीं कर रही है तथा न्यायालयों के आदेशानुसार सुधार कार्य भी नहीं करा रही है जिससे हाथियों सहित अन्य वन्यजीवों की मौतें हो रही है।
हाईकोर्ट ने पहले ही जताई थी चिंता
याचिका के निर्णय दिनांक 12 मार्च 2019 में विधुत करंट से हाथियों की मृत्यु धरमजयगढ़ क्षेत्र में अधिक होने के कारण धर्मजयगढ़ क्षेत्र में प्रगति पर ठोस कदम उठाने के निर्देश छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने दिए थे परंतु उसके बाद भी आज हाथी की मौत धर्मजयगढ़ के क्षेत्र में होने से ही स्पष्ट होता है कि विद्युत वितरण कंपनी किसी भी रुप से न्यायालय के आदेशों का पालन नहीं कर रही है।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने फील्ड के अपने समस्त अधिकारियों से यह जानना चाहा कि वर्ष 2019 में उन्होंने ऐसे प्रकरणों में विद्युत वितरण कंपनी और भू स्वामियों के विरुद्ध क्या कार्यवाही की है? परंतु पिछले एक वर्ष में 8 रिमाइंडर भेजे जाने के बाद में भी अधिनस्थों ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक को यह नहीं बताया की विद्युत करंट से वन्य प्राणियों की मौत के मामले में उन्होंने क्या कार्रवाई की। इससे स्पष्ट है कि वन विभाग के फील्ड के अधिकारी विद्युत करंट से वन्यजीवों की मौत के मामले में बिल्कुल भी गंभीर नहीं है।
सिंघवी ने कहा कि धरमजयगढ़ में हो रही विद्युत करंट से हाथियों की मौत के मामले में उच्च न्यायालय द्वारा भी चिंता बताए जाने के बावजूद आज हुई विद्युत करंट से हाथी की मौत के मामले में विधुत वितरण कंपनी के इंजीनियर तथा वन विभाग के लापरवाह अधिकारी जिम्मेदार है इनके विरुद्ध कार्यवाही होनी चाहिए।
नगदी समेत 52 लाख के सामान, चाकू , कार-बाइक जब्त
6 किमी के दायरे में सीसीटीवी फुटेज खंगालने पर पकड़ाए
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
रायपुर, 16 जून। राजधानी रायपुर आसपास चाकू दिखाकर डकैती, ट्रक लूट व अपहरण की दो बड़ी घटनाओं को अंजाम देने वाले 7 युवक पकड़े गए। पुलिस ने उनके कब्जे से लूट की मेटाडोर-ट्रक, दोनों वाहनों में लोड फार्चून-चॉकलेट, कार, बाइक, 6 बटनदार चाकू, 3 मोबाइल व नगदी जब्त की है। जब्त सामानों की कीमत करीब 52 लाख रुपये आंकी गई है, पूछताछ जारी है।
पकड़े गए आरोपियों में शंकर ताण्डी (22) बीएसयूपी कालोनी खालबाड़ा सड्डू, अजय देवांगन (35) शास्त्री नगर फोकट पारा देवेन्द्र नगर, उत्तम चक्रवर्ती (29) गांधी नगर पंडरी, जयराम बघेल (20)बीएसयूपी खालबाड़ा सड्डू, राकी राणा (22)देवेन्द्र नगर, कुलदीप सिंह (30)अनुराग पंडरी, जीतू पान (22) तरूण नगर पंडरी शामिल हैं। ये सभी युवक आदतन अपराधी बताए जा रहे हैं। पुलिस इन दोनों घटनाओं को लेकर मामला दर्ज कर जांच में लगी थी। पुलिस को इस दौरान 6 किमी के दायरे में सीसीटीवी फुटेज खंगालने के बाद सफलता मिली। सभी 7 आरोपी पकड़ लिए गए।
पुलिस ने आज इस मामले का खुलासा करते हुए मीडिया को पूरी जानकारी दी। बताया गया कि सहदेव सिंह राजपूत ने विधानसभा पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि वह ग्राम डोमाडीह कनकबिरा रायगढ़ का निवासी है तथा ड्राइवरी करता है। 14 जून को वह एक ट्रक में फार्चुन प्रभात टाकिज तेलघानी अन्नपूर्णा ट्रांसपोर्ट रायपुर से भरकर अपने कंडक्टर अमर नाथ के साथ रायगढ़ जा रहा था। रिंग रोड नं. 3 ग्राम बरौदा के पास गाड़ी पंचर हो गई। इसकी जानकारी उसने ट्रक से नीचे अपने सेठ अनिल अग्रवाल को फोन पर दी। वहीं साथी ड्राइवर ओम से वह स्टेपनी के बारे में बात कर ही रहा था कि ट्रक को कोई अज्ञात व्यक्ति कंडक्टर अमर नाथ को डरा-धमकाकर उसका अपहरण करते हुए ट्रक समेत धरसींवा की ओर ले भागा। ट्रक की कीमत 10 लाख रूपये एवं फॉर्चून की कीमत 3 लाख रुपये आंकी गई थी।
दूसरी घटना मंदिरहसौद थाना क्षेत्र की है। अनिल भारद्वाज निवासी ग्राम कनेरी गाजीपुर यूपी ने ट्रक लूट की मंदिरहसौद पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। उसने पुलिस को बताया था कि 10 जून की रात वह ट्रक लेकर जलगांव महाराष्ट्र पहुंचा। वहां से वह चाकलेट भरकर कलकत्ता पहुंचाने के लिए निकला था, तभी 12 जून की आधी रात वह रिलायंस पेट्रोल पंप उमरिया थाना मंदिरहसौद के पास ट्रक को रोड किनारे खड़ा कर अपने कंडक्टर राहुल भारद्वाज के साथ लघुशंका के लिए चला गया। इसी समय एक सफेद रंग की कार ट्रक के पास पहुंची और उसमें से चार लोग नीचे उतरे। दो कंडक्टर को पकड़कर कार में बैठाने लगे और दो ट्रक में बैठकर उसकी तलाशी लेने लगे। इस दौरान वे चाकू दिखाकर डराते-धमकाते हुए कंडक्टर की जेब में रखे 20 हजार रूपये नगद, मोबाइल, ट्रक एवं ट्रक में लोड चॉकलेट लेकर फरार हो गए। इसकी कीमती 12 लाख 35 हजार रूपये आंकी गई थी।