-मयंक भागवत
मुंबई पुलिस ने इस हफ़्ते विवादित बुल्ली बाई ऐप मामले में तीन लोगों को गिरफ़्तार किया है. पुलिस ने मुक़दमा दर्ज करने के 24 घंटों के भीतर अभियुक्तों की पहचान कर ली. कई राजनेताओं और सोशल मीडिया यूजर्स ने पुलिस पर त्वरित कार्रवाई करने का दबाव भी बनाया था.
मुंबई पुलिस ने विशाल कुमार को बेंगलुरु, श्वेता सिंह और मयंक रावल को उत्तराखंड से गिरफ़्तार किया है.
मुंबई पुलिस ने 2 जनवरी को मुक़दमा दर्ज किया था और इस मामले में 23 जनवरी को पहले संदिग्ध को हिरासत में ले लिया.
अभियुक्तों की पहचान के बाद गिरफ़्तारी करने के लिए पुलिस की एक टीम को बेंगलुरु और दूसरी को उत्तराखंड भेजा गया.
इस मामले में पुलिस इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी फ़ील्ड वर्क कर रहे हैं.
लेकिन दूसरी तरफ़ दिल्ली पुलिस पर ऐसे ही एक मामले में कार्रवाई न करने को लेकर सवाल उठ रहे हैं. दिल्ली पुलिस ने ये मामला करीब छह महीने पहले दर्ज किया था लेकिन उसकी जांच में कोई ख़ास प्रगति नहीं हो सकी है.
ये मामला ऐसे ही एक विवादित ऐप सुल्ली डील्स को लेकर था. इस ऐप को लेकर भी सोशल मीडिया पर ख़ूब हंगामा हुआ था और कार्रवाई की मांग उठी थी.
सुल्ली डील्स मामले में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 8 जुलाई 2021 को आईपीसी की धारा 354ए (महिला का शील भंग) के तहत मुक़दमा दर्ज किया था.
दिल्ली पुलिस का कहना है कि उसने गुरुवार को बुल्ली बाई मामले में मुख्य अभियुक्त नीरज बिश्नोई को असम से गिरफ़्तार किया है. मुंबई पुलिस का कहना है कि फिलहाल दोनों मामलों में संबंध के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है.
इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर चर्चित मुसलमान महिलाओं की तस्वीरों का इस्तेमालकरके उनकी नीलामी की गई थी.
दिल्ली पुलिस को इस मामले की जांच शुरू किए हुए छह महीने हो चुके हैं लेकिन अभी तक पुलिस ने इस मामले में कोई गिरफ़्तारी नहीं की है.
समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता और अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर चिन्मय बिस्वाल ने कहा, "होस्टिंग प्लेटफॉर्म देश के बाहर स्थित है. दिल्ली पुलिस को राजधानी की सरकार से आपराधिक मामले में आपसी सहयोग समझौते (एमएलएटी) के तहत अनुमति मिल गई है. मामले की जांच की जा रही है."
लेकिन बुल्ली बाई मामले में मुंबई पुलिस की त्वरित कार्रवाई के बाद दिल्ली पुलिस पर ऐसे ही पुराने मामले में कार्रवाई न करने को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
अंग्रेज़ी अख़बार 'द हिंदू' से बात करते हुए दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने अपना नाम न ज़ाहिर करते हुए कहा, "मुंबई पुलिस ने उन लोगों को गिरफ़्तार किया है जो ऐप को बढ़ावा दे रहे थे. ये ऐप बनाने वाले नहीं हैं. हम ऐप बनाने वालों को पकड़ना चाहते हैं क्योंकि ये सब रुकना चाहिए."
बीबीसी ने दिल्ली पुलिस का पक्ष जानने के लिए दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता से संपर्क किया लेकिन ये रिपोर्ट लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं मिल सका है.
इन दोनों ही ऐप के बीच एक समानता ये है कि दोनों को गिटहब पर होस्ट किया गया है. गिटहब दुनिया का सबसे बड़ा ओपन सोर्स डेवलपर प्लेटफॉर्म है जिसका इस्तेमाल करके ऐप बनाया जा सकता है.
इस प्लेटफॉर्म पर यूज़र अपने ऐप के कोड अपलोड करते हैं ताकि दूसरे डेवलपर उनका इस्तेमाल कर सकें और समीक्षा कर सकें. इन कोड में बदलाव करके नए ऐप भी डेवलप किए जाते हैं.
बीबीसी न्यूज़ मराठी से बात करते हुए मुंबई पुलिस के कमिश्नर हेमंत नागराले ने कहा, "अभी ये नहीं कहा जा सकता कि ये दोनों मामले एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं या नहीं. हमने अभी जांच शुरू ही की है और हमारी जांच शुरुआती स्तर पर है."
लेकिन, मुंबई पुलिस के साइबर सेल के अधिकारियों को लगता है कि बुल्ली बाई मामले में गिरफ़्तार एक अभियुक्त का संबंध सुल्ली डील्स मामले से हो सकता है.
साइबर सेल के एक अधिकारी ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बीबीसी को बताया, "हमें ये पता चला है कि विशाल सुल्ली डील्स ऐप का भी फॉलोवर था लेकिन अभी हमारे हाथ कोई ठोस सबूत नहीं लगा है."
जब मुंबई पुलिस कमिश्नर से दिल्ली पुलिस की जांच में हो रही देरी पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस की जांच पर वो कोई टिप्पणी नहीं करेंगे.
दिल्ली पुलिस और मुंबई पुलिस की कार्रवाई की हो रही है तुलना
दिल्ली पुलिस ने सुल्ली डील्स मामले में छह महीनों तक कोई गिरफ़्तारी नहीं की है लेकिन मुंबई पुलिस ने 24 घंटों के भीतर ही गिरफ़्तारियां शुरू कर दीं.
दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है जबकि मुंबई पुलिस महाराष्ट्र सरकार के अधीन है.
दोनों ही पुलिस एजेंसियां अपना काम करने में बेहद सक्षम है और उनके पास जांच करने के लिए पर्याप्त संसाधन भी हैं. हमने एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी और सेवानिवृत्त न्यायाधीश से पूछा कि वो दोनों जांच एजेंसियों के काम की कैसे तुलना करेंगे.
सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीजी कोलसे पाटिल कहते हैं, "दिल्ली पुलिस सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है, ऐसे में अगर उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की तो इस पर हैरत नहीं होनी चाहिए."
हालांकि, मुंबई पुलिस की कार्रवाई के बाद केंद्रीय सूचना प्राद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैश्णव ने कहा है कि भारत सरकार इस मामले पर दिल्ली पुलिस और मुंबई पुलिस के साथ मिलकर काम कर रही है.
न्यायाधीश कोलसे ने कहा, मुंबई पुलिस ने जो त्वरित कार्रवाई की है, उसकी तारीफ़ की जानी चाहिए. ऐसी गतिविधियों में शामिल लोगों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करनी चाहिए.
कोलसे कहते हैं, "मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाई जा रही है, ऐसे में हमें मुंबई पुलिस की कार्रवाई का स्वागत करना चाहिए."
पूर्व आईपीएस अधिकारी और सेवानिवृत्त अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक पीके जैन का कहना है कि ये पूरी तरह जांच एजेंसी पर निर्भर करता है कि वो किस मामले को कितना तरजीह देती है.
वो कहते हैं, "साइबर क्राइम बहुत ज़्यादा बढ़ गए हैं. ये जांच एजेंसी पर निर्भर करता है कि वो किस मामले को कितनी गंभीरता से लेती है और कैसे उसकी जांच करती है."
पीके जैन ने कहा, "दिल्ली पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया होगा इसलिए ही वो उसकी जड़ तक नहीं पहुंच पाई. आज के दौर की तकनीक की मदद से ऐसे मामलों को आसानी से सुलझा लिया जाता है."
वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि देश में पुलिस के पास साइबर अपराध के हज़ारों मामले आते हैं और ऐसे में हर मामले की गंभीरता से जांच कर पाना संभव नहीं है.
पीके जैन कहते हैं, "पुलिस के पास जांच के लिए कितने लोग उपलब्ध हैं? क्या मामले की वजह से क़ानून व्यवस्था की स्थिति पैदा हो सकती है? पुलिस इन्हीं आधार पर ये तय करती है कि किस मामले की जांच तेज़ी से करनी है और किसकी नहीं."
जैन कहते हैं, "किसी मामले को सुलझाना इस बात पर भी निर्भर करता है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से कितना सहयोग मिल पा रहा है. भारत सरकार ने इस संबंध में क़ानून सख़्त किए हैं. लेकिन कई बार जानकारियां मिल पाने में भी समय लग जाता है. ऐप भी कई बार जांच एजेंसियों के साथ तुरंत सहयोग नहीं करते हैं."
मुंबई पुलिस ने कैस सुलझाया बुल्ली बाई मामला?
मुंबई पुलिस ने बुल्ली बाई मामले में एक जनवरी को मुक़दमा दर्ज किया था. पुलिस ने बुल्ली बाई ट्विटर अकाउंट और उसे फॉलो करने वालों पर नज़र रखनी शुरू की.
मुंबई पुलिस के कमिश्नर बताते हैं, "इस अकाउंट के पांच फॉलोवर थे. एक फॉलोवर खालसा विचारधारा का लग रहा था."
मुंबई पुलिस के संयुक्त आयुक्त अपराध (जेसीपी) मिलिंद भारांबे बताते हैं, "हमें पता चला कि एक खालसा विचारधारा वाला भी इस अकाउंट का फॉलोवर है, ये अकाउंट हमें अभियुक्त विशाल कुमार झा तक ले गया."
मुंबई के पुलिस कमिश्नर बताते हैं, "उन्होंने कोशिश की थी कि ऐसा लगे कि इस ऐप को खालिस्तानी विचारधारा के समर्थकों ने बनाया है. अभियुक्त विशाल झा ने एक खालसा समर्थक की फ़र्ज़ी पहचान का इस्तेमाल किया ताकि पुलिस उस तक न पहुंच पाए."
सभी पक्षों को संवेदनशील बनाने की ज़रूरत
सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी मीरा बोरावांकर कहती हैं कि सभी पक्ष जो इस जांच में शामिल हैं उन्हें संवेदनशील बनाने की ज़रूरत है.
मीरा कहती हैं, "हमें सिर्फ़ पुलिस को ही नहीं बल्कि अभियोजकों और न्यायिक अधिकारियों को भी संवेदनशील बनाना है. ऐसे साइबर अपराधियों तक पहुंचने और उन्हें गिरफ़्तार करने के लिए हमें अपनी जांच एजेंसियों की क्षमताओं को भी बढ़ाना है. ये अपराधी बहुत शातिर हैं और ये लड़कियों, महिलाओं और बच्चों की ज़िंदगी बर्बाद कर रहे हैं. ऐसे मामलों की जांच को अंजाम तक पहुंचाना सबसे ज़रूरी है."
"ऐसे साइबर अपराधियों को रोकने के लिए आपराधिक न्याय व्यवस्था के विभिन्न अंगों और समाज के बीच समन्वय व सहयोग भी ज़रूरी है."
मीरा बोरावांकर ने कहा कि सबसे ज़रूरी ये है कि ऐसे मामलों की गंभीरता से जांच की जाए.
वो कहती हैं, "महिलाओं और लड़कियों को निशाना बनाने वाले इस तरह के साइबर अपराध मानसिक पीड़ा भी देते हैं. बच्चों तक को शिकार बनाया गया है. कई बार जागरुकता की कमी और कई बार शर्म के कारण पीड़ित भी सामने नहीं आ पाते हैं. इसी वजह से इस तरह के साइबर अपराधी बच निकलते हैं. ऐसे में साइबर अपराधों की गंभीरता से जांच करना और भी अहम हो जाता है." (bbc.com)