राष्ट्रीय
नई दिल्ली, 23 नवंबर । केंद्र सरकार ने रविवार को कहा कि वेतन संहिता, 2019 उचित वेतन, सामाजिक सुरक्षा और शोषण से सुरक्षा जैसे उपायों के जरिए कर्मचारियों के हितों की रक्षा करती है और कार्यस्थल पर सम्मान और स्थिरता सुनिश्चित करती है। वेतन संहिता, 2019, उन चार श्रम संहिताओं में से एक है, जिन्हें अधिनियमित किया गया है। इसमें में वेतन और भुगतान संबंधी चार श्रम कानूनों, वेतन भुगतान अधिनियम, 1936, न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948, बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 शामिल हैं। यह श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और नियोक्ताओं के लिए अनुपालन को आसान बनाने के बीच तालमेल स्थापित करती है।
यह संहिता श्रम विनियमन को सुव्यवस्थित और मजबूत बनाने के लिए प्रमुख सुधार है। साथ ही, यह प्रमुख शब्दों की परिभाषाओं का मानकीकरण करती है, प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करती है, अस्पष्टता को कम करती है और नियोक्ताओं के लिए तेज, समयबद्ध न्याय सुनिश्चित करती है। सरकार ने आगे कहा कि यह समान वेतन और प्रतिनिधित्व के जरिए महिला श्रमिकों का भी समर्थन करती है और समावेशी भागीदारी को बढ़ावा देती है। सभी श्रमिकों के लिए उचित वेतन और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए, यह उत्पादकता और श्रम कल्याण को बढ़ावा देती है। वेतन संहिता, 2019 की धारा 5, सभी कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन का वैधानिक अधिकार स्थापित करती है, और इसके दायरे में संगठित और असंगठित, दोनों क्षेत्र शामिल हैं। इससे पहले, न्यूनतम वेतन केवल अनुसूचित रोजगारों पर लागू होता था, जो करीब 30 प्रतिशत कार्यबल को कवर करता था। संहिता के नियम 6 के साथ धारा 13, कर्मचारियों से बिना पर्याप्त पारिश्रमिक के अत्यधिक काम लेने से रोकने के लिए सामान्य कार्य घंटों को सीमित करती है। यदि कर्मचारी सप्ताह में 6 दिन से कम काम करता है, तो कार्य अवधि सप्ताह में 48 घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए।
जहां काम करने के दिनों में ढील की स्थिति दी गई है, तो वहां कार्य अवधि एक दिन में 12 घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसमें विश्राम के लिए अंतराल भी शामिल है। वेतन संहिता, 2019 की धारा 3 के अनुसार, कर्मचारियों द्वारा किए गए समान या समान कार्य के लिए भर्ती, वेतन या रोजगार की शर्तों के मामले में लिंग के आधार पर, जिसमें ट्रांसजेंडर पहचान भी शामिल है, कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। लिंग के आधार पर अनुचित वेतन असमानताओं को दूर किया जाएगा और समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित किया जाएगा। वेतन संहिता, 2019 भारत के श्रम बाजार में निष्पक्षता, समता और समावेशिता को बढ़ावा देती है। समान वेतन मानकों और सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करके, यह श्रमिकों के अधिकारों और नियोक्ताओं, दोनों के हितों की रक्षा करती है। कुल मिलाकर, यह आर्थिक न्याय व्यवस्था को मजबूत करती है, औपचारिकता को प्रोत्साहित करती है और श्रम की गरिमा को बढ़ाती है। --(आईएएनएस)
पटना, 23 नवंबर । बिहार विधानसभा चुनाव 2025 शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया। इस चुनाव में जीत के लिए सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी, हालांकि चुनाव परिणाम एनडीए के पक्ष में आया। जबकि कई दलों का सूपड़ा साफ हो गया। इस चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। चुनाव के लिए मतगणना के करीब आठ दिन गुजरने के बाद अब राजनीतिक दलों में इसका साइड इफेक्ट देखने को मिल रहा है। 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव प्रशांत किशोर और उनकी जन सुराज पार्टी के लिए पहली बड़ी चुनावी परीक्षा थी, लेकिन यह पार्टी पूरी तरह असफल रही। प्रशांत किशोर की छवि के आधार पर तैयार किए गए एक आक्रामक और व्यापक प्रचार अभियान के बावजूद, जन सुराज शुरुआती उत्साह को वोटों में नहीं बदल सकी।
ये पार्टी प्रदेश की 243 में से 238 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद एक भी सीट नहीं जीत पाई। चुनाव परिणाम के बाद पार्टी ने पंचायत से लेकर प्रदेश स्तर के सभी समितियों को भंग कर दिया है। बताया गया कि पार्टी की सभी समितियों को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया है और अगले डेढ़ माह के दौरान नए सिरे से संगठन को खड़ा किया जाएगा। गौरतलब है कि चुनाव परिणाम के बाद राजद के नेता और चुनाव में महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री चेहरा तेजस्वी यादव अब तक सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आए हैं। ऐसे में वे विरोधी पार्टियों के निशाने पर आ गए हैं। इधर, कांग्रेस में भी चुनाव का साइड इफेक्ट दिख रहा है। कांग्रेस का असंतुष्ट खेमा अब खुलकर प्रदेश नेतृत्व को हटाने की मांग को लेकर सामने आया है।
दो दिन पहले प्रदेश कार्यालय के सामने इन लोगों ने धरना दिया। बताया जाता है कि असंतुष्ट खेमे के प्रमुख नेता अब दिल्ली जाकर आलाकमान से मुलाकात करेंगे और प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम को हटाने की मांग करेंगे। इन दोनों पर असंतुष्ट कांग्रेसियों ने टिकट बेचने का आरोप लगाया है। इधर, प्रदेश कांग्रेस की अनुशासन समिति की ओर से 43 कांग्रेसियों को भी कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जहां 89 सीटों पर जीत दर्ज की थी, वहीं राजद 25 सीटें ही जीत सकी थी। कांग्रेस को सिर्फ छह सीटों पर संतोष करना पड़ा। --(आईएएनएस)
जयपुर, 21 नवंबर । लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती में मतदाता सूची की शुद्धता सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। इस प्रक्रिया की रीढ़ माने जाने वाले बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) अपने क्षेत्र में घर-घर जाकर न केवल फॉर्म वितरित करते हैं, बल्कि डिजिटाइजेशन और सत्यापन जैसे तकनीकी कार्यों को भी सटीकता से पूरा करते हैं। मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण–2026 के दौरान राजस्थान के विभिन्न जिलों में कई बीएलओ ने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद उल्लेखनीय कार्य करते हुए कर्तव्यपरायणता की मिसाल पेश की है। श्रीगंगानगर की समेस्ता और मसूदा की कमला इसी निष्ठा और महिला शक्ति का प्रेरक उदाहरण हैं। कमला 4 किलोमीटर पैदल चलकर ढाणियों तक पहुंचने वाली कर्तव्यनिष्ठ बीएलओ हैं। मसूदा विधानसभा क्षेत्र की भाग संख्या 215 की बीएलओ श्रीमती कमला ने मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान असाधारण समर्पण दिखाया।
ब्यावर जिले के गांवों, कस्बों और दुर्गम ढाणियों में चल रही इस व्यापक मुहिम में मार्ग, नेटवर्क और परिवहन से जुड़ी कठिनाइयां आम हैं, लेकिन कमला इन बाधाओं से कभी विचलित नहीं हुईं। सोबड़ी गांव से प्रतिदिन लगभग 4 किलोमीटर पैदल चलकर खेतों और बिखरी ढाणियों तक पहुंचना किसी सामान्य कार्य की तरह नहीं। कई स्थानों पर नेटवर्क नहीं मिलता, कभी वाहन न मिलने पर पूरा रास्ता पैदल तय करना पड़ता, फिर भी कमला ने धैर्य, साहस और कर्तव्यनिष्ठा को अपना आधार बनाए रखा। दिन भर घर-घर जाकर गणना प्रपत्र भरवातीं और शाम को घर लौटकर कमजोर नेटवर्क में भी डिजिटाइजेशन पूरा करतीं—यह उनका रोज का अनुशासन बन गया। कमला ने 18 नवंबर तक फॉर्म वितरण और डिजिटाइजेशन दोनों कार्य शत-प्रतिशत पूरे कर दिए। यह केवल उनकी मेहनत नहीं, बल्कि सामुदायिक सहयोग, टीम भावना और कर्तव्य के प्रति गहरी निष्ठा का परिणाम है। 19 नवंबर को अपना लक्ष्य पूरा करने के बाद भी कमला ने आराम नहीं किया। उन्होंने पड़ोसी बूथों के बीएलओ को फॉर्म भरने और डिजिटाइजेशन में स्वयं जाकर सहयोग देना शुरू कर दिया। श्रीगंगानगर के राउप्रा विद्यालय (7 एलएनपी) की सेकेंड ग्रेड टीचर समेस्ता के पास गंगानगर विधानसभा क्षेत्र की भाग संख्या 160 का बीएलओ प्रभार था। एक ओर घर में 7 माह की छोटी बेटी और 5 साल का बेटा, दूसरी ओर फील्ड में मतदाता सूची पुनरीक्षण का भारी कार्य, लेकिन इस दोहरी जिम्मेदारी के बावजूद समेस्ता ने अपने कर्तव्य से एक कदम भी पीछे हटना स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अपने पति होशियार सिंह के सहयोग से घर-परिवार की जिम्मेदारी संभालने का निर्णय लिया और स्वयं फील्ड में पूरी ऊर्जा से जुट गईं।
अपने क्षेत्र के 983 मतदाताओं को गणना प्रपत्र वितरित करने के बाद उन्होंने 806 प्रपत्रों का डिजिटलीकरण समय पर पूरा किया। मातृत्व और प्रशासनिक कार्यों का यह संतुलन उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और कर्तव्यनिष्ठा का अद्भुत उदाहरण है। उन्होंने बताया कि इस अभियान में सभी समाज के लोगों ने उनका भरपूर सहयोग किया, जिससे कार्य की गति और गुणवत्ता दोनों बेहतर हुईं। समेस्ता को जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा ‘उल्लेखनीय कार्य पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनके समर्पण, साहस और अदम्य जज्बे का प्रतीक है। समेस्ता और कमला की कहानियाँ केवल व्यक्तिगत उपलब्धियां नहीं, बल्कि एक बड़ा संदेश देती हैं कि जब महिलाएं जिम्मेदारी उठाती हैं, तो परिणाम असाधारण होते हैं। इन दोनों महिला बीएलओ ने यह साबित किया है कि समर्पण, साहस और निष्ठा मिलकर लोकतंत्र की जड़ों को और गहरा करती हैं। इन महिलाओं के जज्बे की मुख्य निर्वाचन अधिकारी श्री नवीन महाजन ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान विशेष सराहना की। उन्होंने कहा, “घर और फील्ड दोनों की जिम्मेदारी निभाते हुए लक्ष्य हासिल करना वास्तव में प्रशंसनीय और अनुकरणीय है।” -(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 23 नवंबर । दुबई एयर शो 2025 में तेजस विमान हादसे में शहीद हुए फाइटर पायलट नमन स्याल के पार्थिव शरीर को रविवार को स्वदेश लाया गया। भारतीय वायुसेना के सी-130 विमान के माध्यम से लाए गए पार्थिव शरीर को दक्षिणी वायु कमान के एयरबेस पर पूर्ण सैन्य सम्मान के साथ प्राप्त किया गया। शहीद नमन स्याल मूलत हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला के निवासी थे। एयरबेस पर आयोजित सम्मान समारोह के दौरान भारतीय वायुसेना के अधिकारियों और जवानों ने शहीद पायलट को अंतिम नमन किया। सैन्य बैंड की शोक ध्वनि के बीच वायुसेना के दस्ते ने शहीद नमन स्याल को गार्ड ऑफ ऑनर दिया। इस अवसर पर वायुसेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि राष्ट्र पायलट नमन स्याल के सर्वोच्च बलिदान को कभी भुला नहीं पाएगा।
दक्षिणी वायु कमान के सभी अधिकारी एवं कर्मियों ने शहीद के परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की। वायुसेना का का कहना है कि इस कठिन घड़ी में वे नमन स्याल के परिवार के साथ खड़े हैं और परिवार को पूरा साथ व समर्थन करेंगे। वायुसेना ने यह भी कहा कि देश की सुरक्षा में लगे हर वीर के परिवार का सम्मान और देखभाल उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। शहीद सम्मान के बाद नमन स्याल का पार्थिव शरीर विशेष विमान से उनके कांगड़ा स्थित पैतृक गांव के लिए रवाना किया गया। यहां उनका अंतिम संस्कार पूर्ण सैन्य सम्मान के साथ किया जाएगा। कांगड़ा में स्थानीय प्रशासन, सेना, पूर्व सैनिक संगठन और हजारों नागरिक उनके अंतिम दर्शनों के लिए एकत्र हो रहे हैं। गौरतलब तेजस विमान के हादसे ने पूरे देश को गमगीन कर दिया है। दुबई एयर शो-2025 में शुक्रवार को भारतीय वायुसेना का अत्याधुनिक स्वदेशी लड़ाकू विमान एलसीए तेजस एक प्रदर्शन उड़ान के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस हादसे में पायलट की मृत्यु हो गई। वायुसेना ने दुर्घटना की गहन जांच के लिए कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी ऑर्डर की है। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, यह घटना उस समय हुई जब तेजस निर्धारित एरोबेटिक अभ्यास के लिए उड़ान पर था।
वायुसेना ने के मुताबिक तेजस विमान दुबई एयर शो-25 के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। घटना के संबंध में अन्य तथ्यों की पुष्टि की जा रही है। वायुसेना ने बताया कि हादसे में पायलट दुबई एयर शो-2025 में भारतीय वायुसेना का अत्याधुनिक स्वदेशी लड़ाकू विमान एलसीए तेजस एक प्रदर्शन उड़ान के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस हादसे में पायलट की मृत्यु हो गई वायुसेना ने दुर्घटना की गहन जांच के लिए कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी ऑर्डर की है। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, यह घटना उस समय हुई जब तेजस निर्धारित एरोबेटिक अभ्यास के लिए उड़ान भर रहा था। दुर्घटना के कारणों की पुष्टि फिलहाल नहीं हो सकी है। वायुसेना द्वारा विस्तृत जानकारी जुटाई जा रही है। वायुसेना ने बताया कि हादसे में पायलट को गंभीर चोटें आईं, जिससे उनकी मृत्यु हुई। भारतीय वायुसेना ने इस दुर्घटना पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा है कि वे पायलट की मृत्यु से हुई इस अपूरणीय क्षति पर गहरा दुख प्रकट करती है और इस कठिन समय में शोकाकुल परिवार के साथ मजबूती से खड़ी है। वायुसेना का जांच दल उड़ान के तकनीकी, परिचालन और सुरक्षा से जुड़े हर पहलू का विस्तृत अध्ययन करेगा, ताकि हादसे के वास्तविक कारणों की पुष्टि हो सके। --(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 23 नवंबर । भारत और जॉर्जिया के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच दोनों देश के व्यापार का विस्तार करने के लिए बैठक हुई, जिसमें फोकस नए क्षेत्रों की पहचान करने, बाजार पहुंच में सुधार करने, वस्त्र, परिधान, कालीन और मूल्यवर्धित रेशम उत्पादों में सहयोग बढ़ाने पर किया गया। यह जानकारी वस्त्र मंत्रालय द्वारा रविवार को दी गई। मंत्रालय ने बताया कि केंद्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) के सदस्य सचिव और अंतरराष्ट्रीय रेशम उत्पादन आयोग (आईएससी) के महासचिव पी. शिवकुमार के नेतृत्व में भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने 17-21 नवंबर 2025 के दौरान जॉर्जिया में एक सफल बहु-क्षेत्रीय बैठक संपन्न की, जिसका उद्देश्य रेशम उत्पादन, वस्त्र, परिधान और कालीन व्यापार में सहयोग को मजबूत करना था।
प्रतिनिधिमंडल ने 11वें बीएसीएसए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन - कल्टुसेरी 2025 में भाग लिया जहां शिवकुमार ने आईएससी का प्रतिनिधित्व करते हुए उद्घाटन भाषण दिया और पारंपरिक रेशम ज्ञान में भारत के नेतृत्व और रचनात्मक एवं सांस्कृतिक उद्योगों में इसकी प्रासंगिकता के बारे में बताया। इस यात्रा के दौरान, सीएसबी ने अपने नए "5-इन-1 सिल्क स्टॉल" का प्रदर्शन किया, जो शहतूत, ओक तसर, उष्णकटिबंधीय तसर, मूगा और एरी रेशमों का एक उत्कृष्ट उत्पाद है। यह उत्पाद भारत की समृद्ध रेशम विरासत का एक अनूठा प्रतिनिधि है, जिसकी बाजार में प्रबल संभावनाएं हैं। प्रतिनिधिमंडल ने विश्वविद्यालयों, रेशम उत्पादन प्रयोगशालाओं, अनुसंधान केंद्रों, वस्त्र कंपनियों, परिधान निर्माताओं, कालीन व्यापारियों और जॉर्जियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (जीसीसीआई) सहित प्रमुख जॉर्जियाई संस्थानों के साथ बातचीत की। इन वार्ताओं में द्विपक्षीय वस्त्र व्यापार को बढ़ाने, उद्योग सहयोग को बढ़ावा देने और रेशम उत्पादन में संयुक्त अनुसंधान की संभावनाओं पर जोर दिया गया। मंत्रालय ने बताया कि इस यात्रा के दौरान रेशम उत्पादन अनुसंधान, वस्त्र एवं परिधान व्यापार में भारत-जॉर्जिया सहयोग को मजबूत हुआ है। साथ ही, कालीनों और उच्च मूल्य वाले वस्त्रों सहित व्यापार विविधीकरण के लिए नए रास्ते की पहचान की गई और संस्थागत साझेदारी और तकनीकी सहयोग के लिए मार्ग बनाए गए। --(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 22 नवंबर । बच्चों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति देश में चिंता का विषय बन गई है। हाल के दिनों में दिल्ली, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों से ऐसी खबरें आईं जो किसी भी देश और समाज के विकास में बाधक हैं। बच्चों ने दबाव न झेल पाने की दशा में खुदकुशी कर ली। इस मुद्दे को मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट ने बेहद गंभीर मानते हुए अभिभावकों से अपील की कि वे आत्महत्या से जुड़े संकेतों को पहचानें और उस पर काम करें। पिछले कुछ हफ्तों में कुछ ऐसे मामले सामने आए जिसमें किसी मानसिक दबाव या पीड़ा से गुजर रहे स्कूली छात्र ने खुदकुशी का रास्ता चुना। हाल ही में दिल्ली के राजेन्द्र प्लेस मेट्रो स्टेशन से कूद कर दसवीं में पढ़ने वाले 16 साल के बच्चे ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। वहीं रीवा (मध्य प्रदेश) के एक निजी स्कूल में पढ़ने वाले 11वीं के छात्र ने भी आत्महत्या कर ली। उसका सुसाइड नोट भी बरामद किया गया था। वहीं जयपुर में तो एक बच्ची ने स्कूल की चौथी मंजिल से कूद कर जान दे दी।
विशेषज्ञों की राय है कि ये बच्चों में बढ़ते मानसिक दबाव का नतीजा है। खासकर शहरी इलाकों में स्थिति जटिल है। लेडी हार्डिंग कॉलेज में मनोचिकित्सक डॉ शिव प्रसाद ने आईएएनएस से बातचीत में माना, "विश्व स्तर पर किशोरों में डिप्रेशन और एंग्जाइटी के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है। लेकिन कई अभिभावक और शिक्षक इसे आलसपन या अरुचि का नाम दे देते हैं।" उन्होंने आगे कहा, "शुरुआत में बच्चे में भावनात्मक और व्यवहार संबंधी बदलाव के संकेत दिखने लगते हैं। ये माता-पिता और शिक्षकों के लिए चेतावनी है। अक्सर देखा जाता है कि बच्चा परिवार, दोस्तों या उन गतिविधियों से दूरी बनाने लगता है जिनमें उसे कभी रुचि हुआ करती थी। वो बहुत चिड़चिड़ा हो जाता है, उसे गुस्सा आने लगता है, किसी बात की बहुत फिक्र करने लगता है, और अचानक उसके व्यक्तित्व में कुछ बदलाव दिखने लगता है।" विशेषज्ञ के अनुसार उसका पढ़ाई से अचानक ही मोहभंग हो जाता है, सिर या पेट दर्द की शिकायत करता है, स्कूल या कोचिंग जाने से बचने की कोशिश करता है, उसका वजन या तो गिरने लगता है या फिर तेजी से बढ़ने लगता है और वो समाज से खुद को अलग-थलग कर लेता है। दिल्ली के एक जाने-माने अस्पताल में बाल, किशोर और फोरेंसिक मनोचिकित्सक डॉ. आस्तिक जोशी ने आईएएनएस को बताया, "हाल ही में ऐसी घटनाएं सामने आईं जिसमें छोटे बच्चों ने खुदकुशी कर ली। ऐसे में यह जरूरी है कि हम युवाओं में आत्महत्या से जुड़े संकेतों को पहचानें, साथ ही बचाव, दखल और इलाज के उपाय करें।" जोशी ने आगे कहा, “अक्सर, आत्महत्या करने वाला बच्चा या टीनएजर, सुसाइड करने की कोशिश करने से पहले किसी अपने को अपना इरादा बता देता है। इसके अलावा, कोशिश करने से पहले बच्चे का मूड खराब होने या व्यक्तित्व में बदलाव की आशंका बढ़ जाती है।
सुसाइड की कोशिश करने से पहले व्यवहार में बदलाव हो सकते हैं, जैसे सोशल दूरी, नशीली दवाओं का ज्यादा इस्तेमाल, बिना सोचे-समझे गुस्सा करना और अपनी चीजें छोड़ देना।” विशेषज्ञों ने बढ़ते शैक्षिक दबाव और बढ़ती प्रतिस्पर्धा संस्कृति की ओर इशारा किया, जहां बच्चों को माता-पिता या टीचरों को निराश करने का डर रहता है। कम मनोरंजन के साथ लंबे कोचिंग घंटे भी मेंटल हेल्थ को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अकेलेपन का एहसास करने के अलावा, बच्चों को सामाजिक और साथियों के दबाव का भी सामना करना पड़ता है; वे "फिट" होना चाहते हैं या साथियों की उपलब्धियों की बराबरी करना चाहते हैं। ये तुलनाएं सोशल मीडिया के साथ-साथ साइबरबुलिंग से और बढ़ जाती हैं, जो अक्सर बड़ों से छिपी रहती हैं। विशेषज्ञों ने माता-पिता से एक सुरक्षित इमोशनल स्पेस बनाने की अपील की, जहां वे बच्चों से उनकी भावनाओं के बारे में पूछें, न कि सिर्फ मार्क्स या एकेडमिक्स के बारे में, और जरूरत पड़ने पर प्रोफेशनल मदद लें। जोशी ने कहा, “लोगों के साथ मिलना जुलना, स्किल-बेस्ड साइकोथेरेपी का इस्तेमाल करना, स्कूलों के साथ मिलकर काम करना, और भविष्य में सुसाइड की कोशिश की संभावना को कम करने के लिए जरूरत के हिसाब से दवाओं का इस्तेमाल करना, इस समस्या को हल करने के लिए उठाए जा सकने वाले संभावित कदम हैं।” --(आईएएनएस)
यूपी में गोमांस रखने के शक में हुई मॉब लिंचिंग के दस साल पुराने एक बहुचर्चित केस को यूपी सरकार ने वापस लेने का फैसला किया है. घटना में मारे गए अखलाक के परिजनों ने सरकार के फैसले पर हैरानी समेत दुख जाहिर किया है.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट -
दिल्ली से लगे यूपी के ग्रेटर नोएडा इलाके के बिसाहड़ा गांव में 28 सितंबर 2015 को घर में गोमांस रखने की अफवाह पर एक उन्मादी उग्र भीड़ ने 52 वर्षीय अखलाक को उनके घर से बाहर निकालकर इतना मारा-पीटा कि उनकी मौत हो गई. अखलाक के बेटे दानिश को भी इस घटना में गंभीर चोटें आई थीं. अखलाक की पत्नी इकरामन ने उसी रात थाने में शिकायत दर्ज कराई थी जिसमें दस नामजद और चार-पांच अज्ञात लोगों पर हत्या में शामिल होने के आरोप लगाए गए थे.
घटना काफी सुर्खियों में रही और देश-विदेश की मीडिया में इसकी चर्चा होती रही. घटना के तीन महीने बाद यानी दिसंबर 2015 में पुलिस ने अपनी चार्जशीट दायर की जिसमें 15 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था. बाद में इस मामले में अभियुक्तों की कुल संख्या 19 हो गई. साल 2016 में एक अभियुक्त की मौत हो गई और बाकी 18 अभियुक्त जमानत पर बाहर आ गए.
घटना के 10 साल बाद, अब उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट में एक आवेदन पत्र दाखिल किया है, जिसमें कहा गया है कि इस मामले में गवाहों के बयानों में विरोधाभास है और 'सामाजिक सद्भाव की बहाली' के लिए सरकार ने कोर्ट से केस को वापस लेने की अनुमति मांगी है. इस मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होनी है.
लेकिन राज्य सरकार के इस फैसले से मुहम्मद अखलाक के परिजन गहरे सदमे में हैं. परिवार वालों ने इसे न्याय का अपमान बताते हुए कहा है कि यदि मुकदमा वापस लिया गया, तो वे सरकार के इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देंगे.
अखलाक के परिवार का पलायन
इस घटना के बाद अखलाक का पूरा परिवार गांव छोड़कर चला गया था और उसके बाद कभी वापस नहीं लौटा. अखलाक की पत्नी इकरामन बेगम घटना के बाद से ही आगरा में बड़े बेटे के साथ एक छोटे से फ्लैट में रह रही हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहती हैं, "मेरा सब कुछ उजड़ गया. मेरा पति, मेरा घर, मेरे लोग. दुनिया ने मेरे पति को मरते देखा, हत्यारों को देखा लेकिन जांच करने वालों को कुछ नहीं दिख रहा है. यदि ऐसा ही है तो फिर इंसाफ कहां है.”
अखलाक की पत्नी इकरामन ने पुलिस को दी गई अपनी शिकायत में कहा था, "28 सितंबर, 2015 की रात घर पर उनका पूरा परिवार सो रहा था. करीब साढ़े दस बजे कुछ दक्षिणपंथी हिंदुओं का एक गुट लाठी, लोहे के रॉड, तलवार और तमंचा लिए उनके घर में घुस गया और उन पर गाय को मारने और उसका मांस खाने का आरोप लगाकर अखलाक और उनके बेटे को पीटने लगा. इस घटना में अखलाक की मौत हो गई और उनके 22 वर्षीय बेटे दानिश को गंभीर चोटें आईं."
क्या हुआ था?
दरअसल, 28 सितंबर की रात को ग्रेटर नोएडा के बिसाहड़ा गांव में कथित तौर पर लाउडस्पीकर पर घोषणा की गई कि अखलाक ने गाय को मारकर उसका मांस फ्रिज में रखा हुआ है. यह खबर इलाके में तेजी से फैल गई और फिर तमाम लोगों ने लाठी-डंडे लेकर अखलाक के घर पर धावा बोल दिया.
इस मामले ने देशभर में आक्रोश पैदा किया. घटना के कुछ दिन बाद ही कुछ लोगों की गिरफ्तारियां हुईं. इस घटना के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे. इस घटना के बाद ही 'मॉब लिंचिंग' शब्द व्यापक रूप से इस्तेमाल होने लगा.
केंद्र में करीब डेढ़ साल पहले ही नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी थी. लेकिन अखलाक की मौत के कई दिन बाद प्रधानमंत्री ने इस पर टिप्पणी की थी, जिसे लेकर उनकी काफी आलोचना भी हुई थी. उत्तर प्रदेश में उस वक्त अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी सत्ता में थी.
इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं पर ये आरोप भी लगे कि वे इस घटना से जुड़े हमलावरों का बचाव कर रहे हैं.
सभी अभियुक्त जमानत पर
दिसंबर 2015 में पुलिस ने अपनी चार्जशीट दायर की, जिसमें 15 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था. इसमें एक नाबालिग और एक स्थानीय बीजेपी नेता के बेटे के नाम भी शामिल थे. बाद में इस मामले में चार नाम और जोड़े गए जिससे अभियुक्तों की कुल संख्या 19 हो गई. बाद में एक अभियुक्त की मौत हो गई.
अखलाक के परिवार के वकील मोहम्मद यूसुफ सैफी ने डीडब्ल्यू को बताया कि फिलहाल इस मामले में 18 अभियुक्त हैं और इस समय ये सभी जमानत पर बाहर हैं.
अब योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी की बीजेपी सरकार ने अखलाक की मॉब लिंचिंग के मामले में अभियुक्तों के खिलाफ सभी मामलों को वापस लेने की कार्रवाई शुरू कर दी है. नोएडा के अतिरिक्त जिला सरकारी वकील भाग सिंह भाटी के मुताबिक, राज्य सरकार ने अभियोजन वापस लेने के लिए औपचारिक अनुरोध भेजा है. मीडिया से बातचीत में उन्होंने बताया कि आवेदन सूरजपुर अदालत में प्रस्तुत किया गया और इस पर 12 दिसंबर को सुनवाई होगी.
सरकार क्यों वापस ले रही है केस?
सरकार ने केस वापसी के लिए कोर्ट में जो आवेदन दिया है उसमें दावा किया गया है कि गवाहों के बयानों में विरोधाभास हैं. अखलाक की पत्नी इकरामन ने दस अभियुक्तों के नाम बताए थे जबकि उनके बेटे दानिश ने 19 अभियुक्तों के नाम बताए थे. इसके अलावा जब्त हथियारों में तलवार या पिस्तौल नहीं बल्कि सिर्फ लाठियां, रॉड और ईंटें मिलीं थीं. आवेदन में गोमांस की बरामदगी और परिवार के खिलाफ लंबित गो-हत्या के केस का भी जिक्र है. अखलाक की पत्नी ने अपनी एफआईआर में दावा किया था कि हमलावरों के पास तमंचे और तलवारें भी थीं लेकिन पुलिस को घटनास्थल पर ये चीजें नहीं मिलीं.
सरकार के आवेदन में लिखा है, "उसी गांव का निवासी होने के बाद भी वादी और अन्य गवाहों ने अपने बयानों में अभियुक्तगणों की संख्या में बदलाव किया है.”
आवेदन में यह भी कहा गया है कि घटनास्थल से बरामद मांस को फोरेंसिक रिपोर्ट ने गोमांस बताया है.
दरअसल, साल 2016 में अखलाक के परिवार के खिलाफ गोवध कानून के तहत एक मामला दर्ज किया गया था, जो अब भी अदालत में लंबित है. हालांकि अखलाक के परिवार वालों ने इस बात का कई बार खंडन किया है कि उनके यहां फ्रिज में जो मांस मिला था वो गाय का नहीं बल्कि बकरे का था.
भारत में गाय की हत्या एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है. हिंदू समुदाय गाय को पवित्र मानता है और उत्तर प्रदेश देश के उन 20 राज्यों में से है एक है जहां गोहत्या पर प्रतिबंध लागू है.
केस वापसी के यूपी सरकार के फैसले पर हैरानी जताते हुए अखलाक के परिवार के वकील यूसुफ सैफी कहते हैं कि सरकार का ये फैसला कानूनी रूप से गलत है. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "यह भीड़ हिंसा का मामला है. गवाह बयान दे चुके हैं. यहां सामान्य टेम्पलेट लागू नहीं हो सकते. यदि केस वापसी की इजाजत मिली तो दस साल की अदालती लड़ाई एक आदेश से मिट जाएगी. लेकिन यदि ट्रायल कोर्ट ने मुकदमा वापस लेने की मंजूरी दे दी तो हम लोग इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील करेंगे.”
गौहत्या पर हत्या कितनी जायज?
दादरी में गोमांस रखने की अफवाह के बाद भीड़ ने एक व्यक्ति का कत्ल कर डाला. इस घटना पर हमने लोगों से पूछी उनकी राय. जवाब परेशान करने वाले हैं.
50 साल के मोहम्मद अखलाक की जान एक अफवाह के कारण गयी, जो वॉट्सऐप के जरिए फैली. वॉट्सऐप संदेशों में लिखा गया कि उसने गाय को काटा है. फेसबुक पर कई लोगों ने इस हत्या को जायज बताया है. हालांकि कुछ ऐसे समझदार भी मिले जो मिलजुलकर रहने का आग्रह कर रहे हैं.
योगेंद्र पांडेय ने लिखा है, "दादरी मे जो कुछ हुआ, वह किसी भी सभ्य समाज मे स्वीकार्य नहीं है, पर क्या यह सच्चाई नहीं है कि इसी तरह ईशनिंदा की अफवाह उड़ाकर हर साल सैकड़ों निर्दोष पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अरब मुल्कों में मौत के घाट उतार दिए जाते हैं? क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती ही है."
फरीद खान ने लिखा है, "इन कट्टरवादी ताकतों का मुकाबला मिलजुल कर और आपसी ऐतेमाद कायम करके ही किया जा सकता है. आजकल जिस तरह उकसावे की राजनीति करके मुसलमानों के साथ व्यवहार किया जा रहा है, वह ना तो किसी प्रकार उचित है, न ही इस देश की एकता व अखंडता के लिए शुभ संकेत है. कल को अगर यही मजलूम मुसलमान मजबूर होकर हथियार उठा ले, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा?"
कुलदीप कुमार मिश्र ने बीफ के निर्यात की ओर ध्यान दिलाते हुए सवाल किया है, "गोमांस के निर्यात में भारत ने विश्व रिकार्ड बना डाला! ब्राजील को पीछे छोड़ कर पहले स्थान पर कब्जा! (2015 का आंकड़ा दिया जा रहा है!) और देश में गाय का मांस खाने पर प्रतिबंध लगता है."
अजय राज सिंह ठाकुर की टिप्पणी, "भीड़ ने जो किया, वह निश्चित ही बहुत गलत और असभ्य था. कुछ भी करने से पहले उस बात कि सच्चाई को जानना चाहिए था. गौ माता और नारियां, दोनों का समान रूप से सम्मान होना चाहिए. ऐसा व्यवहार बहुत ही खेदजनक और शर्मनाक है!!"
कमलकिशोर गोस्वामी लिखते हैं, "हजारों बार देखा है मैंने भारतीय लोकतंत्र को तार तार होते. सत्तर बरस की आजादी लाखों बरस की सभ्यता और ऐसा जंगलीपन. सौ लोगों की भीड़ जो अब कई गांवों में तब्दील हो गई है. सोशल मिडिया पर लोग इतना गंद लिख रहे हैं एक दूसरे के खिलाफ पर कुछ नहीं हो रहा. क्या कहें ऐसे लोकतंत्र पर और क्या कहें उन महानुभवों को जिन्होंने हमें ऐसे लोकतंत्र का तोहफा दिया."
हरिओम कुमार का कहना है, "जिन देशों की आबादी ज्यादा होती है उन देशो में लोकतंत्र काम नहीं करता. खासकर जिन देशों की एक बहुत बड़ी आबादी अनपढ़ हो." इसी तरह रली रली ने लिखा है, "लगाया था जो उसने पेड़ कभी, अब वह फल देने लगा; मुबारक हो हिन्दुस्तान में, अफवाहों पे कत्ल होने लगा." गोपाल पंचोली ने एक अहम बात कही, "गाय और सूअर, फिर आ गई अंग्रेजों वाली राजनीति!"
भारत में खानपान की आदतें केवल व्यक्तिगत पसंद नहीं बल्कि धर्म, जाति, क्षेत्र और आय पर आधारित एक जटिल समीकरण से जुड़ी हैं. देखिए सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में कौन लोग गाय या भैंस का मांस खाते हैं.
राष्ट्रीय सैंपल सर्वे ऑफिस एनएसएसओ के 2011-12 के आंकड़ें दिखाते हैं कि भारत में करीब 8 करोड़ लोग बीफ या भैंस का मीट खाता है.
आंकड़ों के अनुसार बीफ यानि गौमांस और भैंस का मीट खाने वाले ये लोग सभी धर्मों और राज्यों में पाये जाते हैं. इन 8 करोड़ लोगों में करीब सवा करोड़ हिन्दू हैं.
एनएसएसओ के आंकड़ों से हाल के सालों में मीट की खपत बढ़ने का पता चलता है. इस सर्वे में करीब एक लाख लोगों से आंकड़ें इकट्ठे किए गए. देखा गया कि हफ्ते और महीने की औसत अवधि में एक परिवार खाने की किन चीजों पर कितना खर्च करता है.
विश्व में मांस की खपत का लेखाजोखा करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था एफएओ की 2007 में जारी 177 देशों की सूची में भारत को अंतिम स्थान मिला. 43 किलो के विश्व औसत के मुकाबले भारत में प्रति व्यक्ति सालाना मांस की खपत मात्र 3.2 किलो दर्ज हुई.
एफएओ बताता है कि दुनिया भर में लोगों की क्रय क्षमता बढ़ने, शहरीकरण और खानपान की आदतें बदलने के कारण मांस की खपत बढ़ी है. भारत में खपत विश्व औसत से काफी कम है लेकिन वह बीफ, भैंस के मांस और काराबीफ का सबसे बड़ा निर्यातक है.
भारत में धर्म के आधार पर गाय या भैंस का मांस खाने वाला सबसे बड़ा समुदाय 6 करोड़ से अधिक मुसलमानों का है. संख्या के मामले में इसके बाद सबसे अधिक हिन्दू समुदाय आता है. जबकि प्रतिशत के अनुसार मुसलमानों के बाद ईसाई आते हैं.
मुसलमानों के अलावा अनुसूचित जाति और जनजाति (एससी/एसटी) गाय या भैंसों का मीट खाने वाला सबसे बड़ा तबका है. हिन्दुओं में इसे खाने वाले 70 फीसदी से अधिक लोग एससी/एसटी, 21 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग और करीब 7 फीसदी उच्च जातियों से आते हैं.
क्या है राज्यों में "गाय" की स्थिति
भारत में गौहत्या को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है. हाल में राजस्थान में तथाकथित गौरक्षकों द्वारा एक व्यक्ति को इतना पीटा गया कि उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई. डालते हैं एक नजर इसके संवैधानिक प्रावधान पर.
राज्यों का अधिकार
हिंदू धर्म में गाय का वध एक वर्जित विषय है. गाय को पारंपरिक रूप से पवित्र माना जाता है. गाय का वध भारत के अधिकांश राज्यों में प्रतिबंधित है उसके मांस के सेवन की भी मनाही है लेकिन यह राज्य सूची का विषय है और पशुधन पर नियम-कानून बनाने का अधिकार राज्यों के पास है.
गौहत्या पर नहीं प्रतिबंध
केरल, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे राज्यों में गौहत्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है. हालांकि संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत गौहत्या को निषेध कहा गया है.
आंध्रप्रदेश और तेलंगाना
इन दोनों राज्यों में गाय और बछड़ों का वध करना गैरकानूनी है. लेकिन ऐसे बैल और सांड जिनमें न तो प्रजनन शक्ति बची हो और न ही उनका इस्तेमाल कृषि के लिये किया जा सकता हो और उनके लिये "फिट फॉर स्लॉटर" प्रमाणपत्र प्राप्त हो, उन्हें मारा जा सकता है.
राज्य में गाय, बैल और सांड का वध निषेध है. गोमांस को खाना और उसे स्टोर करना मना है. कानून तोड़ने वाले को 7 साल की जेल या 10 हजार रुपये जुर्माना, या दोनों हो सकता है. लेकिन विदेशियों को परोसने के लिये इसे सील कंटेनर में आयात किया सकता है. भैंसों को मारा जा सकता है.
असम और बिहार
असम में गायों को मारने पर प्रतिबंध है लेकिन जिन गायों को फिट-फॉर-स्लॉटर प्रमाणपत्र मिल गया है उन्हें मारा जा सकता है. बिहार में गाय और बछड़ों को मारने पर प्रतिबंध है लेकिन वे बैल और सांड जिनकी उम्र 15 वर्ष से अधिक है उन्हें मारा जा सकता है. कानून तोड़ने वाले के 6 महीने की जेल या जुर्माना हो सकता है.
हरियाणा
राज्य में साल 2015 में बने कानून मुताबिक, गाय शब्द के तहत, बैल, सांड, बछड़े और कमजोर बीमार, अपाहिज और बांझ गायों को शामिल किया गया है और इनको मारने पर प्रतिबंध हैं. सजा का प्रावधान 3-10 साल या एक लाख का जुर्माना या दोनों हो सकता है. गौमांस और इससे बने उत्पाद की बिक्री भी यहां वर्जित है.
गुजरात
गाय, बछड़े, बैल और सांड का वध करना गैर कानूनी है. इनके मांस को बेचने पर भी प्रतिबंध है. सजा का प्रावधान 7 साल कैद या 50 हजार रुपये जुर्माना तक है. हालांकि यह प्रतिबंध भैंसों पर लागू नहीं है.
दिल्ली
कृषि में इस्तेमाल होने वाले जानवर मसलन गाय, बछड़े, बैल, सांड को मारना या उनका मांस रखना भी गैर कानूनी है. अगर इन्हें दिल्ली के बाहर भी मारा गया हो तब भी इनका मांस साथ नहीं रखा जा सकता, भैंस इस कानून के दायरे में नहीं आती.
महाराष्ट्र
राज्य में साल 2015 के संशोधित कानून के मुताबिक गाय, बैल, सांड का वध करना और इनके मांस का सेवन करना प्रतिबंधित है. सजा का प्रावधान 5 साल की कैद और 10 हजार रुपये का जुर्माना है. हालांकि भैंसों को मारा जा सकता है.
अनिल कपूर: कॉकरोच, कॉकरोच...
श्रीदेवी: कॉकरोच, क क क, कहां है, कहां है कॉकरोच, कहां है?
अनिल कपूर: वो, वहां...हमारी तरफ़ देख रहा है.
श्रीदेवी: तुम, तुम कॉकरोच से डरते हो?
अनिल कपूर: मेमसाब, डरता तो मैं शेर से भी नहीं हूं, हां मगर कॉकरोच से डरता हूं!
जिन लोगों ने अरुण वर्मा और सीमा के किरदारों से सजी मिस्टर इंडिया फ़िल्म देखी होगी, उन्हें ये सीन ज़रूर याद होगा. एक ऐसी फ़िल्म जो साल 1987 में रिलीज़ हुई थी, पर आज भी मोबाइल या टीवी पर कोई सीन दिख जाए तो नज़रें ठहर जाती हैं.
लेकिन आज हम ना तो अरुण बने अनिल कपूर की बात करेंगे और ना ही सीमा बनीं श्रीदेवी की. आज बात करेंगे इस सीन के तीसरे किरदार कॉकरोच की, जिसे हिंदी में तिलचट्टा कहते हैं.
वे किचन में इधर से उधर रेस लगाते दिखते हैं, रात के वक़्त रसोई के बर्तनों में घूमते हैं, दरारों से झांकते हैं, एंटीना बाहर निकालकर डराते हैं. और मुसीबत ये है कि बार-बार भगाने के बावजूद लौट आते हैं.
दुनिया में कॉकरोच की यूं तो 4500 से ज़्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन इनमें से क़रीब 30 इंसानी बस्तियों और बसावट में मिलते हैं. कॉकरोच ब्लाटोडिया ऑर्डर से ताल्लुक से रखते हैं, जिनमें टर्माइट या दीमक भी गिने जाते हैं.
पृथ्वी पर कब से दौड़ रहे हैं कॉकरोच?
एक और ख़ास बात है कि ये कॉकरोच सदियों पुराने हैं. इतने पुराने कि ये डायनासोर से पहले भी थे और आज भी हैं.
इन्हें पृथ्वी के सबसे पुराने कीड़े-मकोड़ों में गिना जाता है. यहां तक कि जीवाश्म से जुड़े सबूत बताते हैं कि कॉकरोच की जड़ें कार्बोनिफ़ेरस दौर से जुड़ी हैं. लेकिन ये दौर था कौन सा?
ये बात है 35 करोड़ साल पुरानी. जी हां, आपनी सही पढ़ा. 35 करोड़ साल पहले भी कॉकरोच मौजूद थे. दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज में डिपार्टमेंट ऑफ ज़ूलॉजी के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉक्टर नवाज़ आलम ख़ान इस बारे में बताते हैं.
डॉक्टर ख़ान ने बीबीसी हिन्दी से कहा, ''कॉकरोच के बारे में सबसे पहले ये जान लीजिए कि ये डायनासोर से भी पुराने हैं. हम पुरानी बात करते हैं तो मिजोज़ोइक दौर की बात करते हैं. डायनासोर इसी दौर में हुआ करते थे.''
''इस दौर में जुरासिक पीरियड भी हुआ, जिन्हें डायनासोर का गोल्डन पीरियड कहा जाता है और इससे पहले कार्बोनिफ़ेरस ऐरा हुआ, जिसमें एनशिएंट लाइफ़, एनशिएंट एनिमल यानी प्राचीन जीव-जंतु पाए जाते थे. कॉकरोच तब भी मौजूद थे. ये क़रीब 30-35 करोड़ साल पहले भी थे, और आज भी हैं.''
मेरठ की चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ ज़ूलॉजी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉक्टर दुष्यंत कुमार चौहान भी इस बात की तस्दीक करते हैं.
उनका कहना है, ''कॉकरोच, डायनासोर से भी ज़्यादा पुराने हैं. इन्हें इनवर्टिब्रेट ग्रुप में रखा गया है. वर्टिब्रेट जीव-जंतु इनके बाद आए हैं. वर्टिबेट का मतलब है वे जीव, जिनमें रीढ़ की हड्डी होती है. कॉकरोच का आगमन डायनासोर से भी पहले हुआ था. बाकी जीव जो आए, वे इनके बाद वजूद में आए हैं.''
लेकिन इतने लंबे वक़्त तक टिके रहना इतनी बड़ी बात क्यों है? डॉक्टर नवाज़ आलम ख़ान के मुताबिक दिलचस्प है कि करोड़ों साल में अलग-अलग तरह के बदलाव आए हैं. पर्यावरण, मौसम, हालात, सभी कुछ बदले हैं. इन्हीं बदलावों की वजह से तब से अब तक बहुत सारे ऑर्गेनिज़्म या जीव ऐसे हैं, जो ख़त्म हो गए या गायब हो गए. इसका सबसे बड़ा उदाहरण डायनासोर हैं.
''डायनासोर के अलावा और भी बहुत सारे ऑर्गेनिज़्म ग़ायब हो चुके हैं. लेकिन कॉकरोच के साथ ऐसा नहीं हुआ. वे जैसे थे, आज भी कमोबेश वैसे ही हैं. इतने लंबे अरसे में इनमें बदलाव तो आए हैं, लेकिन वे बहुत छोटे-छोटे हैं, कोई बड़ा बदलाव ऐसे देखने में नहीं आता.''
इसलिए कॉकरोच इतने ख़ास हो जाते हैं कि ये करोड़ों साल से बने हुए हैं और साथ ही इनकी शारीरिक संरचना में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है.
सिर कटने पर भी ज़िंदा रह सकता है कॉकरोच
कॉकरोच का शरीर अपने आप में कुदरत का एक करिश्मा है. इसके शरीर को तीन हिस्सों में बाँटा जाता है. हेड, थोरेक्स और एब्डोमन. हेड सिर हो गया, एब्डोमेन पेट के हिस्से को मान लीजिए और इन दोनों के बीच को थोरेक्स कहा जाता है.
साथ ही आगे की तरफ़ हमें इसके जो दो एंटीना जैसे दिखते हैं, वे इसके सेंसरी ऑर्गन होते हैं, यानी इन्हीं की मदद से वे अपने आसपास के माहौल और सामान को टटोलते हैं.
डॉक्टर दुष्यंत कुमार चौहान ने कहा, ''कॉकरोच के शरीर पर हमें जो काला-गाढ़ा भूरा जैसा खोल नज़र आता है, उसे एग्ज़ोस्केलेटन कहा जाता है. ये काफ़ी मज़बूत होता है और काइटन से बना होता है. काइटन वही चीज़ है, जिससे हमारे नाख़ून बने होते हैं. एग्ज़ोस्केलेटन को आप बाहरी खोल कह सकते हैं, कॉकरोच की आउटर कवरिंग कह सकते हैं. और ये काफ़ी प्रोटेक्टिव होता है, यानी कि उसे सुरक्षा देता है, उसे बचाए रखता है. पर्यावरण में आने वाले बदलाव और दुश्मन, दोनों से इसकी रक्षा करता है.''
आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि कॉकरोच का सिर कट जाए या कुचल जाए तो भी वह जीवित रह सकता है. लेकिन कैसे?
डॉक्टर नवाज़ आलम ख़ान बताते हैं कि जैसे इंसान के शरीर में दिमाग या ब्रेन होता है, और वह पूरे शरीर को चलाता है, ठीक इसी तरह कॉकरोच के शरीर में गैंगलियोन होते हैं. लेकिन ये सिर्फ़ इनके सिर में न होकर शरीर के अलग-अलग हिस्सों में होता है. इनके शरीर में बहुत सारे नर्व मिलकर गैंगलियोन बनाते हैं. इनके सिर में भी गैंगलियोन होता है, थोरेक्स में भी होता है और एब्डोमन में भी होता है.
कॉकरोच के सिर में जो गैंगलियोन होता है, उसे सुपराइसोफेगियल गैंगलियोन या सबइसोफेगियल गैंगलियोन बोलते हैं. ये मिलकर ब्रेन का फंक्शन कर सकते हैं, इसलिए इन्हें कॉकरोच का ब्रेन कह दिया जाता है.
डॉक्टर ख़ान बताते हैं, ''अगर कॉकरोच का सिर कट जाता है तो थोरेक्स गैंगलियोन और एब्डोमिनल गैंगलियोन रेस्पॉन्ड करता है और उनकी बॉडी को कंट्रोल करने लगता है. ऐसे में ये एक हफ्ते तक जीवित रह जाते हैं. इंसान नाक या मुंह से सांस लेते हैं. लेकिन कॉकरोच के शरीर में छोटे-छोटे छेद होते हैं, जिन्हें स्पाइरेकल्स कहते हैं. वे इनके रेस्पिरेटरी सिस्टम का काम करते हैं. ये उन्हीं से सांस लेते हैं. ये शरीर के अलग-अलग हिस्सों में होते हैं तो ये उन्हीं से गैस एक्सचेंज कर सकते हैं, मतलब सांस ले सकते हैं. इसलिए सर कटने पर भी ये ज़िंदा रहते हैं.''
जब ये बिना सिर के सांस ले सकता है, तो फिर हफ़्ते भर में इसकी मौत क्यों हो सकती है?
डॉक्टर ख़ान इसका जवाब देते हैं, ''कॉकरोच बिना खाए एक महीना तक जीवित रह सकता है, लेकिन बिना पानी के यह हफ़्ते भर ही ज़िंदा रह पाता है, क्योंकि यह डिहाइड्रेशन नहीं झेल पाता. अगर इसका सिर कट गया या कुचल गया तो इसका मुंह नहीं बचेगा और उस सूरत में यह पानी नहीं पी सकता. बिना पानी के यह एक हफ़्ते तक गुज़ारा कर जाएगा, लेकिन उससे ज़्यादा मुश्किल है. इन्हें पानी ज़रूर चाहिए होता है, नमी ज़रूर चाहिए होती है.''
नई दिल्ली, 21 नवंबर । भारत के मुख्य न्यायधीस (सीजेआई) बीआर गवई, जो 23 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। उन्होंने ने शुक्रवार को प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट की हालिया राय में अपनाई गई 'स्वदेशी व्याख्या’ पर अपने विचार रखे। उन्होंने बताया कि शीर्ष अदालत ने विदेशी कानूनों की बजाए भारतीय फैसलों और भारतीय न्याय परंपरा को तरजीह दी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने टिप्पणी की कि अब फैसलों में ‘भारतीयता की नई हवा’ चलने लगी है। इस पर मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा: कल के फैसले में हमने एक भी विदेशी उदाहरण का उपयोग नहीं किया, बल्कि पूरी तरह स्वदेशी व्याख्या पर भरोसा किया। एसजी मेहता ने कहा कि 5-जजों की कॉन्स्टिट्यूशन बेंच ने अमेरिकी और ब्रिटिश सिस्टम को भारत के संवैधानिक ढांचे से बहुत ध्यान से अलग किया है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि आपने कहा कि हमारा अपना ज्यूरिस्प्रूडेंस है और जजमेंट ने सिर्फ 110 पेज में सब कुछ जवाब दे दिया।
यह एक नई बात है। जजमेंट एक जजमेंट होना चाहिए, न कि लॉ रिव्यू के लिए कोई आर्टिकल। यह बातचीत सुप्रीम कोर्ट के कोर्टरूम नंबर 1 में सेरेमोनियल बेंच प्रोसिडिंग्स के दौरान हुई, जो सीजेआई गवई के रिटायरमेंट से पहले का आखिरी कार्यदिवस था। जस्टिस सूर्यकांत 24 नवंबर को भारत के 53वें चीफ जस्टिस के तौर पर चार्ज लेंगे। उन्होंने जस्टिस गवई की 'एक हाई स्टैंडर्ड' सेट करने के लिए तारीफ की और 'कानून के राज के प्रति उनकी अटूट लगन' की तारीफ की। जस्टिस गवई ने पहले सुप्रीम कोर्ट के सबसे सीनियर जज को भारत का चीफ जस्टिस (सीजेआई) अपॉइंट करने के पुराने रिवाज के मुताबिक, जस्टिस कांत को अपना सक्सेसर रिकमेंड किया था। कोर्ट में हल्के-फुल्के माहौल था यह खचाखच भरा हुआ था। ऐसे जब एक वकील ने सीजेआई गवई के सम्मान में उन पर फूल बरसाने की कोशिश की, तो कोर्टरूम में हंसी की लहर दौड़ गई। जैसे ही उन्होंने एक पैकेट खोला और पंखुड़ियां बिखेरने की तैयारी की, सीजेआई ने तुरंत दखल दिया, 'नहीं, नहीं, मत फेंको… इसे किसी को दे दो।' -(-आईएएनएस)
नई दिल्ली, 21 नवंबर । केरल और उत्तर प्रदेश में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया पर उठते विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई हुई। कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। साथ ही, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले पर अगली सुनवाई 26 नवंबर को होगी। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि एसआईआर प्रक्रिया चुनाव आयोग द्वारा लागू की जा रही वह कवायद है जिसके तहत मतदाता सूची की गुप्त तरीके से पहचान और सत्यापन किया जा रहा है। इस प्रक्रिया को लेकर कानूनी और नैतिक दोनों स्तरों पर सवाल खड़े हुए हैं और इसी को चुनौती देते हुए कई याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं। केरल सरकार, राज्य की राजनीतिक पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) और अन्य की तरफ से दायर याचिका में एसआईआर प्रक्रिया को तुरंत रोकने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि केरल में स्थानीय निकाय चुनाव की अधिसूचना 9 और 11 दिसंबर के लिए पहले ही जारी की जा चुकी है। ऐसे में इस दौरान एसआईआर की प्रक्रिया चलाना न तो व्यावहारिक है और न ही निष्पक्ष चुनाव व्यवस्था के अनुकूल है। याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि सभी सरकारी स्कूलों के शिक्षक चुनाव की ड्यूटी में व्यस्त हैं, ऐसे में उनसे एसआईआर का कार्य करवाया जाना संभव नहीं है। केरल सरकार ने याचिका में यह भी कहा था कि लोकल बॉडी इलेक्शन के लिए सरकार को 1 लाख 76 हजार से ज्यादा सरकारी और क्वासी-गवर्नमेंट कर्मचारियों और 68 हजार सिक्योरिटी स्टाफ चाहिए। पिटीशन में कहा गया है कि एसआईआर के तहत 25,668 और अधिकारियों की जरूरत है, जिनमें से कई ट्रेंड इलेक्शन स्टाफ के उसी लिमिटेड पूल से लिए गए हैं।
केरल पंचायत राज एक्ट, 1994 और केरल म्युनिसिपैलिटी एक्ट, 1994 के तहत कानूनी डेडलाइन का जिक्र करते हुए राज्य सरकार की अर्जी में कहा गया कि 21 दिसंबर से पहले एलएसजीआई चुनाव पूरे करना कानूनी तौर पर जरूरी है। साथ ही एसआईआर कराने से एडमिनिस्ट्रेशन पर दबाव पड़ेगा और चुनाव आसानी से होने पर बुरा असर पड़ेगा। उत्तर प्रदेश में चल रही इसी प्रक्रिया को कांग्रेस के बाराबंकी से सांसद तनुज पूनिया ने चुनौती दी है। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि एसआईआर प्रक्रिया मतदाता सूची को प्रभावित करने और चुनावी निष्पक्षता पर संदेह पैदा करने वाली है। सुप्रीम कोर्ट ने तनुज पूनिया की याचिका पर भी चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। --(आईएएनएस)
अयोध्या, 21 नवंबर । अयोध्या में राम मंदिर परिसर के शिखर पर 'ध्वजारोहण' के कार्यक्रम की तैयारियां जोरों पर हैं। सफाई से लेकर सुरक्षा के खास बंदोबस्त किए गए हैं। 25 नवंबर को लगभग चार घंटे चलने वाले कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई बड़े नेता शामिल होंगे। अयोध्या में तैयारियों के बीच राम जन्मभूमि परिसर के निकास मार्ग पर 'सुग्रीव पथ' नाम का साइनबोर्ड लगाया गया है। लोक निर्माण विभाग ने ध्वजारोहण समारोह से पहले यह बोर्ड लगाया। इसी बीच, अयोध्या नगर निगम ने 'ध्वजारोहण' कार्यक्रम से पहले खास सफाई अभियान चलाया। मेयर गिरीश पति त्रिपाठी ने आईएएनएस से कहा, "हमने शहर के अलग-अलग कॉलेजों के स्टूडेंट्स को इकट्ठा किया है और आज हम एक सफाई रैली निकाल रहे हैं।" उन्होंने कहा कि 25 नवंबर को भव्य कार्यक्रम है। अयोध्या में अभी स्वच्छता और उत्सव का वातावरण है। लोग स्वच्छता के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं।
मेयर ने लोगों से अपील की कि वे अपने घर, अपने आसपास और अपने पर्यावरण को अच्छा रखें। उन्होंने कहा कि हम लगातार सफाई कैंपेन चला रहे हैं। नगर आयुक्त जयेंद्र कुमार ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रेरणा से अयोध्या नगर निगम की तरफ से स्वच्छता सप्ताह मनाया जा रहा है। इसी क्रम में शुक्रवार को स्वच्छता रैली निकाली गई। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी के 25 नवंबर को अयोध्या के दौरे से पहले भारत-नेपाल बॉर्डर तक सुरक्षा काफी कड़ी कर दी गई है। महाराजगंज के एसपी सोमेंद्र मीणा ने कहा, "आने वाले सभी बड़े इवेंट्स को देखते हुए, पूरे बॉर्डर एरिया में अलर्ट जारी कर दिया गया है और सभी बॉर्डर गांवों में लोकल कमेटियों की मीटिंग्स ऑर्गनाइज की गई हैं। एहतियात के तौर पर, सभी फुटपाथों पर चेकपॉइंट्स बनाए गए हैं और एसएसबी के साथ, लोकल पुलिस लगातार बॉर्डर पर कड़ी निगरानी रख रही है।" उन्होंने बताया कि होटल, सराय और सड़क किनारे खाने की जगहों की चेकिंग की जा रही है। सभी जगहों पर चेकपॉइंट्स लगाए गए हैं। सुरक्षा के तौर पर फुटपाथ बनाए गए हैं और अधिकारियों को भी बॉर्डर इलाकों में लगातार एक्टिव रहने का निर्देश दिया गया है। --(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 21 नवंबर । वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आगामी बजट 2026-27 की तैयारियों के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर और एनर्जी सेक्टर के पक्षकारों के साथ बातचीत की। यह जानकारी वित्त मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को दी गई। यह वित्त मंत्री की दसवीं प्री-बजट बैठक है। इससे पहले वित्त मंत्री स्टार्टअप, पर्यटन और आतिथ्य, और अर्थशास्त्रियों के साथ प्री-बजट बैठक कर चुकी हैं। वित्त मंत्रालय की ओर से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर किए एक पोस्ट में कहा गया, "वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आगामी बजट 2026-27 की तैयारियों के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर और एनर्जी सेक्टर के एक्सपर्ट्स के साथ नई दिल्ली में दसवीं प्री-बजट बैठक की।"
मंत्रालय ने आगे बताया कि इस बैठक में भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार, रेलवे बोर्ड के चेयरमैन, विद्युत मंत्रालय, पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय और सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव शामिल हुए। इससे पहले वित्त मंत्री ने पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्र के प्रतिनिधियों के साथ नौवीं प्री-बजट बैठक की थी। इसका उद्देश्य आगामी बजट को लेकर इंडस्ट्री के सुझाव लेना था। इस बैठक में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी, वित्त मंत्रालय के आर्थिक विभाग एवं पर्यटन मंत्रालय के सचिव और भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार शामिल हुए। आगामी बजट की तैयारियों के लिए वित्त मंत्री लगातार अलग-अलग सेक्टर्स से जुड़े लोगों के साथ बैठक कर रही हैं। पिछले हफ्ते वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश के बड़े अर्थशास्त्रियों के साथ बैठक की थी। इस बैठक में मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी. अनंत नागेश्वरन के साथ आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) से कई वरिष्ठ अधिकारी और कई अर्थशास्त्री शामिल हुए। वहीं, वित्त मंत्री ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) एवं स्टार्टअप के प्रतिनिधियों के साथ आगामी बजट पर इनपुट के लिए भी बैठक कर चुकी हैं। इस बैठक में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे। --(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 21 नवंबर । उत्तर प्रदेश की पुलिस ने फरीदाबाद मॉड्यूल और राइसिन आतंकी षड्यंत्र का भंडाफोड़ किया। दक्षिण भारत में आईएसआई राइसिन केमिकल अटैक प्लान कर रहा था। इससे पाकिस्तान भी बेनकाब हुआ है। फरीदाबाद मॉड्यूल और राइसिन टेरर प्लॉट का पर्दाफाश होने से एक बात तो साफ हो गई है कि पाकिस्तान भारत के अंदर किस तरह से गहराई तक घुसपैठ करने की कोशिशों में जुटा हुआ है। बता दें, दिल्ली के लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास ब्लास्ट करने वाले फरीदाबाद मॉड्यूल ने करीब 3,000 किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट जमा कर लिया था। इससे साफ जाहिर है कि भारत में तबाही मचाने के लिए कितने बड़े स्तर पर हमलों की प्लानिंग की जा रही थी। वहीं, दूसरी ओर दक्षिण भारत में भी एक खतरनाक आतंकी साजिश रची जा रही थी। गुजरात एंटी टेररिज्म स्क्वॉड (एटीएस) ने हैदराबाद के रहने वाले 35 साल के अहमद मोहियुद्दीन सैयद को राइसिन आतंकी हमले की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया। पुलिस ने खुलासा किया है कि फरीदाबाद मॉड्यूल जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा है। वहीं राइसिन की साजिश इस्लामिक स्टेट खोरासान प्रोविंस (आईएसकेपी) की बनाई योजना का हिस्सा है।
ये दोनों आतंकी समूह आईएसआई के इशारे पर काम करते हैं। इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों ने कहा कि अगर दोनों मामलों की गहराई से जांच की जाए, तो यह साफ है कि आईएसआई सिर्फ उत्तर भारत में ही नहीं, बल्कि दक्षिण में भी तबाही मचाने की योजना बना रहा है। अधिकारियों ने कहा कि पाकिस्तान का गेम प्लान फॉल्ट लाइन का फायदा उठाना है। पाकिस्तान उत्तर भारत में विक्टिम कार्ड और दक्षिण में भाषा कार्ड खेलकर भारत में विभाजन की स्थिति पैदा करने की साजिश रच रहा है। आईएसकेपी ने साउथ को नॉर्थ से अलग करने के इरादे से एक राइसिन टेरर अटैक करने का प्लान बनाया था। अधिकारियों ने बताया कि दोनों प्लान बड़े थे। अगर उनकी साजिश कामयाब हो जाती, तो इसका नतीजा हमारी सोच से भी परे हो सकता था। फरीदाबाद केस में, पूरे नॉर्थ इंडिया में ब्लास्ट करने का प्लान था। काउंटर-टेररिज्म अधिकारियों ने कहा कि इससे भी ज्यादा खतरनाक राइसिन प्लान होता, जिसे साउथ इंडिया को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा था। गुजरात एटीएस की जांच में पता चला कि खदीजा ने सैयद और उसके साथियों को ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारने का निर्देश दिया था। सैयद ने 10 किलोग्राम अरंडी के बीज खरीदे। उसने तेल निकालने के लिए कोल्ड-प्रेस मशीन का इस्तेमाल किया। उसने जांच करने वालों को बताया और फिर उसे एसीटोन के साथ मिलाया। उसके बाद उसने राइसिन जहर को एक ड्रम में स्टोर कर लिया।
सैयद और उसका हैंडलर कई महीनों से इस ऑपरेशन की प्लानिंग कर रहे थे। भारत में मुसलमानों पर तथाकथित ज़ुल्म के बारे में बात करने के साथ-साथ, उन्होंने भाषा के झगड़े पर भी चर्चा की। यह एक वजह हो सकती है कि सैयद के प्लान में साउथ इंडिया को शेष भारत से अलग करना शामिल था। मामले में अब इस बात की जा रही है कि क्या सैयद ने पानी की जगहों, खासकर पीने के पानी में जहर मिलाने का प्लान बनाया था। यह बहुत असरदार है, और अगर इसे पी लिया जाए, तो इंसान को या तो लंबी बीमारी हो सकती है या मल्टीपल ऑर्गन फेलियर से उसकी मौत हो सकती है। एक्सपर्ट्स ने कहा कि जानलेवा डोज से मौत 36 से 72 घंटों के अंदर हो सकती है। इससे भी खतरनाक बात यह है कि इसका कोई खास एंटीडोट नहीं है, और इससे प्रभावित इंसान को सपोर्टिव मेडिकल केयर की जरूरत होगी। वहीं इससे बचने की उम्मीद भी काफी कम होगी। यह लंबे समय से आईएसकेपी के प्लान का हिस्सा रहा है, और इंटेलिजेंस एजेंसियों ने बार-बार चेतावनी दी है कि ऐसे ग्रुप इंडिया में बायोटेरर लॉन्च करने की कोशिश करेंगे।
इन्वेस्टिगेटर पाकिस्तान लिंक की भी गहराई से जांच कर रहे हैं। रिसिन टेरर मॉड्यूल और फरीदाबाद मॉड्यूल जैसे बड़े प्लॉट, इतने बड़े पैमाने पर प्लान किए गए ऑपरेशन नहीं हो सकते थे, अगर उन्हें पाकिस्तान से इंस्टीट्यूशनल सपोर्ट न मिला होता। एक अधिकारी ने कहा कि यह साफ़ है कि पाकिस्तान ने उत्तर और दक्षिण भारत के लिए दो अलग-अलग टेरर मॉड्यूल तैनात किए थे और वे इतने बड़े पैमाने पर हमले करना चाहते थे कि पूरा देश डर जाए। -(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 21 नवंबर । हिंदी सिनेमा और टेलीविजन की दुनिया में कई ऐसे स्टार्स हैं, जो हमेशा से पशु अधिकारों के लिए आवाज उठाते आए हैं। रवीना टंडन और सोनाली बेंद्रे से लेकर रूपाली गांगुली तक स्ट्रीट डॉग्स के लिए आवाज उठाती रही हैं। अब सोनाली बेंद्रे ने आवारा कुत्तों को लेकर दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के नकारात्मक प्रभाव बताए हैं और डिटेल के साथ एक पोस्ट शेयर किया है। सोनाली बेंद्रे खुद का पॉडकास्ट शो चलाती है, जो पशु अधिकारों और उनकी परवरिश पर बात करता है। इसी पॉडकास्ट शो के साथ एक्ट्रेस ने स्ट्रीट डॉग्स को लेकर पोस्ट शेयर किया है जिसमें लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कई नकारात्मक प्रभाव सामने आने वाले हैं। हमारे पास कुत्तों को रखने के लिए शेल्टर होम नहीं है, इतने सारे कुत्तों को साथ रखने से उनमें बीमारियों का खतरा बढ़ जाएगा और जो लोग कुत्तों से नफरत करते हैं, वे गलत तरीकों से उनके साथ दुर्व्यवहार करेंगे।
पोस्ट में लिखा है कि लोकल लोग स्ट्रीट डॉग्स को खाना देकर अपना प्यार जताते हैं लेकिन शेल्टर में जाने के बाद उनका ध्यान रखना मुश्किल होगा, क्योंकि वहां ये देखने वाला कोई नहीं होगा कि उन्हें खाना खिलाया गया है या नहीं। इस पोस्ट को शेयर कर सोनाली ने लिखा, "वे सुरक्षा करते हैं, साथ देते हैं और बदले में कुछ नहीं मांगते। इस तरह का एक भी फ़ैसला हमारे जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।" बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक रेलवे स्टेशन, पार्क और बाकी सार्वजनिक जगहों से स्ट्रीट डॉग्स को हटाकर शेल्टर होम में रखा जाना है। कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए पशु प्रेमियों ने फैसले के खिलाफ याचिका डाली थी और 7 नवंबर को कोर्ट ने फैसले में किसी भी तरह का बदलाव करने से इनकार कर दिया था। सोनाली बेंद्रे पशु अधिकारों और डॉग्स की पेरेंटिंग पर शो होस्ट करती है, जिसका नाम है "द हैप्पी पॉडकास्ट"। एक्ट्रेस के शो पर डॉग्स से प्यार करने वाले कई बड़े चेहरों को देखा जा चुका है। इसके अलावा, उन्हें टीवी रियलिटी शो 'पति-पत्नी और पंगा' में देखा गया था। --(आईएएनएस)
जयपुर, 21 नवंबर । अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बेटे डोनाल्ड ट्रंप जूनियर इस सप्ताह एक शादी में शामिल होने के लिए शुक्रवार शाम को उदयपुर पहुंचेंगे। इससे पहले उन्होंने शुक्रवार को आगरा के ताजमहल का दीदार किया। ताजमहल का दीदार करने के बाद वे गुजरात के जामनगर में वनतारा भी पहुंचे। डोनाल्ड ट्रंप जूनियर स्पेशल एयरक्राफ्ट से खेरिया एयरपोर्ट पहुंचे। जिस शाही शादी में शामिल होने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के बेटे भारत आए हैं, उसका आयोजन उदयपुर में 21 और 23 नवंबर तक होगा। शादी का मुख्य प्रोग्राम ऐतिहासिक जग मंदिर पैलेस में आयोजित किया जाएगा। यह पैलेस पिछोला झील के बीच में है। वहीं, शादी से जुड़े तमाम सेलिब्रेशन सिटी पैलेस कॉम्प्लेक्स के अंदर मानेक चौक पर आयोजित किए जाएंगे।
सूत्रों के मुताबिक, ट्रंप जूनियर शहर के सबसे लग्जरी होटलों में से एक 'द लीला पैलेस' उदयपुर में रुकेंगे। 21 से 23 नवंबर तक उनके तीन दिवसीय प्रवास के लिए, होटल के सभी 82 कमरे और तीन लग्जरी सुइट्स उनके और अन्य मेहमानों के लिए पूरी तरह से बुक हो गए हैं। अमेरिकी अरबपति राम राजू मंटेना की बेटी नेत्रा मंटेना और अमेरिकी मूल के दूल्हे वामसी गादिराजू की शादी उदयपुर के इस मशहूर होटल में हो रही है। ट्रंप के बेटे इसी शादी में शामिल होने के लिए यहां पहुंचे हैं। ट्रंप जूनियर महाराजा सुइट में रहेंगे, जिसकी कीमत 10 लाख रुपये प्रति रात है। रॉयल सुइट, जिसकी कीमत 7 लाख रुपये प्रति रात है, को भी बुक किया गया है। इस दौरान सामान्य मेहमानों को प्रवेश की अनुमति नहीं होगी। ट्रंप जूनियर के आने-जाने के लिए होटल के अंदर एक कॉरिडोर बनाया गया है और होटल की कोई गाड़ी इस्तेमाल नहीं हो रही है। ट्रंप जूनियर शाम 5.15 बजे चार्टर्ड एयरक्राफ्ट से डबोक एयरपोर्ट पर उतरेंगे। वहां से वह सीधे होटल जाएंगे और शाम 6 बजे जेनाना महल में एक म्यूजिकल कॉन्सर्ट में शामिल होंगे।
इसके बाद वह 22 और 23 नवंबर को शादी के इवेंट्स में शामिल होंगे। होटल के इंटीरियर में दीवारों और छतों पर सोने का काम है, जबकि बेडरूम और किचन में बारीक चांदी की डिटेलिंग है। होटल से, गेस्ट्स लेक पिछोला के शानदार नजारों का मजा ले जा सकते हैं और सभी तरह के खाने के लिए इंटरनेशनल डिशेज का एक क्यूरेटेड मेन्यू भी मिलेगा। अधिकारियों ने बताया कि लेक सिटी में हाई-प्रोफाइल लोगों के आने के बाद हाई सिक्योरिटी और खास इंतजाम किए गए हैं। एक्ट्रेस अमायरा दस्तूर ने गुरुवार को वेलकम डिनर होस्ट किया, जिसमें राजस्थानी मांगणियार आर्टिस्ट्स की परफॉर्मेंस हुई। वहीं शादी में ऋतिक रोशन, रणवीर सिंह, शाहिद कपूर, माधुरी दीक्षित, कृति सेनन, जैकलीन फर्नांडीज, वाणी कपूर, जान्हवी कपूर और फिल्ममेकर करण जौहर समेत कई बॉलीवुड स्टार्स सेलिब्रेशन में शामिल होने के लिए चार चार्टर फ्लाइट्स से उदयपुर आएंगे। --(आईएएनएस)
तिरुपति, 21 नवंबर । राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को तिरुमाला पहाड़ी पर स्थित श्री वेंकटेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना की। वह सुबह पद्मावती गेस्ट हाउस से निकलीं और तिरुमाला की परंपरा का पालन करते हुए सबसे पहले श्री भू वराहस्वामी मंदिर में दर्शन किए। इसके बाद वह तिरुमाला मंदिर पहुंचीं, जहां तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के अध्यक्ष बीआर नायडू, कार्यकारी अधिकारी अनिल कुमार सिंघल और अन्य अधिकारियों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। मंदिर के पुजारियों ने परंपरा के अनुसार उनका 'इस्तिकपाल' स्वागत किया। इसके बाद मंदिर में द्वारस्तंभ पर प्रार्थना करने के बाद राष्ट्रपति ने भगवान का दर्शन किया। उनके साथ आंध्र प्रदेश के बंदोबस्ती मंत्री अनम रामनारायण रेड्डी भी मौजूद रहे।
बाद में, राष्ट्रपति को रंगनायकुला मंडपम में पुजारियों ने 'वेदाशिर्वचनम' का आशीर्वाद दिया। टीटीडी चेयरमैन और ईओ ने राष्ट्रपति को श्रीवारी तस्वीरें, तीर्थ प्रसादम, टीटीडी 2026 कैलेंडर और डायरी भेंट कीं। इस कार्यक्रम में टीटीडी बोर्ड के सदस्य पनबाका लक्ष्मी, जानकी देवी, भानु प्रकाश रेड्डी और अन्य लोग भी मौजूद रहे। राष्ट्रपति मुर्मू गुरुवार को तिरुपति पहुंची थीं। उन्होंने तिरुचनूर में श्री पद्मावती अम्मावारी मंदिर में दर्शन और पूजा की। इसके बाद, गुरुवार शाम को वे तिरुमाला पहुंचीं, जहां आंध्र प्रदेश की गृह मंत्री वंग्लापुडी अनिता और टीटीडी अधिकारियों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया।
तिरुमाला मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद, राष्ट्रपति हैदराबाद के लिए रवाना हुईं, जहां वह सिकंदराबाद में राष्ट्रपति निलयम में भारतीय कला महोत्सव 2025 का उद्घाटन करेंगी। भारतीय कला महोत्सव के दूसरे एडिशन में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, गोवा, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव की रिच कल्चरल, खाने-पीने और आर्टिस्टिक परंपराओं को दिखाया जाएगा। राजभवन में रात्रि विश्राम के बाद राष्ट्रपति मुर्मू शनिवार को आंध्र प्रदेश के श्री सत्य साईं जिले में पुट्टपर्थी जाएंगी। वहां प्रासंति निलयम में श्री सत्य साईं बाबा की 100वीं जयंती के समारोह में विशेष सत्र में शामिल होंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को इस जयंती समारोह का उद्घाटन किया था। --(आईएएनएस)
न्याय की उम्मीद में बीते दिन, महीने, साल...थानों और अदालतों के अनगिनत चक्कर.
निठारी हत्याकांड के पीड़ित परिवारों के लिए अब ये सब एक बेमानी की तरह है.
11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने निठारी हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त रहे सुरिंदर कोली को इस केस से जुड़े आख़िरी मामले में भी निर्दोष बताते हुए बरी कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि सुरिंदर कोली को जिन सबूतों के आधार पर पिछली अदालतों ने दोषी ठहराया और सज़ा दी, वह क़ानूनी तौर पर अवैध, अविश्वसनीय और विरोधाभासी थीं.
लेकिन जेल से रिहा होते सुरिंदर कोली की तस्वीरों को देखकर पीड़ित परिवार पूछ रहे हैं, ''अगर ये निर्दोष है, तो दोषी कौन है. हमारे बच्चों की जान किसने ली?''
इस मामले में एक और अभियुक्त रहे मोनिंदर सिंह पंधेर को अदालत पहले ही बरी कर चुकी है.
नोएडा के सेक्टर-31 स्थित निठारी गाँव में पीड़ित बच्चों के अब चार परिवार ही बचे हैं.
ज़्यादातर परिवारों ने गाँव के साथ-साथ अदालती लड़ाई से भी मुँह मोड़ लिया है.
जिन पीड़ित परिवारों से हमारी बात हुई, उनमें से एक ने जहाँ अपनी आठ साल की बेटी को खोया, तो एक की बेटी की उम्र 10 साल थी.
ये दोनों ही मामले बलात्कार और हत्या से जुड़े थे, इसलिए हम इन परिवारों की पहचान ज़ाहिर नहीं कर रहे.
वहीं रामकिशन का बेटा हर्ष महज़ साढ़े तीन साल का था
ये मामला किडनैपिंग और हत्या से जुड़ा था. इसलिए हम इस परिवार की पहचान उनकी सहमति से ज़ाहिर कर रहे हैं.
'उनके घर से सारे सबूत मिले'
10 साल की एक बच्ची का परिवार निठारी के एक झोपड़ी में रहता है.
जब हम वहाँ पहुँचे, तो वह हमें पहले से ही मीडिया के कुछ लोगों से बात करती नज़र आईं.
उनकी बातों में पीड़ा, क्रोध और हताशा साफ़ नज़र आ रहे थे.
वो कहती हैं, ''वह कहता है कि हम निर्दोष हैं. इसी के घर से कंकाल, कपड़े बरामद हुए, हमारी लड़की के चप्पल, कपड़े और खोपड़ी उसके घर के नाले के अंदर मिला. दो किलो वाली काली पॉलिथीन में केवल खोपड़ी निकली थी और तब भी कह रहा हम निर्दोष हैं.''
वो बताती हैं, ''हम तो यही सोचकर लड़ते रहे कि कैसे भी इसको फांसी लगे. जो था हमारे पास घर, ज़मीन सारा बेचकर केस में लगा दिया. पर आज क्या हाथ लगा? निराशा.''
केस लड़ते-लड़ते हुई माली हालत का ज़िक्र करते हुए उनकी आँखों से आँसू निकलने लगते हैं.
साड़ी के आंचल से आँसुओं को हटाते हुए वह कहती हैं, ''ये झोपड़ी है, इसमें किराए पर रहते हैं. ये कपड़े हैं. इससे 100-200 कमाते हैं और खाते हैं. उम्र जैसे-जैसे बढ़ रही है काम भी नहीं हो पाता.''
वहीं उनके पति और बच्ची के पिता पूछते हैं, ''आख़िर पंधेर नहीं दोषी था, कोली नहीं दोषी था तो कौन था? उसके घर में कौन ऐसा करता रहा. अब भगवान ही इसका फ़ैसला करेगा."
"इसके घर के बराबर में हड्डियाँ और सिर मिले, सारी चीज़ें उसके घर में मिलीं. और क्या सबूत चाहिए? उस वक़्त मीडिया जो दिखा रहा था, सब झूठ था? अगर ये ठीक से जाँच करें तो अब भी उनको फाँसी लगेगी, नहीं तो फिर भगवान है.''
'हमने तो मान लिया कि वह निर्दोष हैं'
निठारी हत्याकांड में अपने साढ़े तीन साल के बेटे को खोने वाली पूनम मोनिंदर पंधेर के चर्चित डी-5 बंगले से महज़ सौ मीटर की दूरी पर रहती हैं.
हम उनके पास दोपहर के तक़रीबन तीन बजे पहुँचे थे. उन्होंने हमसे ये कहते हुए बात करने से मना कर दिया कि उनके लिए अब इस केस के बारे में बात करना बहुत तकलीफ़देह है.
उनके पति राजकिशन ही बात करेंगे.
राजकिशन ने कहा, ''देश-दुनिया को निठारी हत्याकांड की सच्चाई पता है. इस हत्याकांड के सबूत सबने देखे हैं, पुलिस के सामने कबूलनामा हुआ है. सीबीआई ने फांसी की सज़ा सुनाई है. इन सबके बावजूद अगर कोर्ट को लगता है कि सुरिंदर निर्दोष है, तो हमने भी मान लिया है कि वह निर्दोष ही है. हम अब अपने जख़्मों को हरा नहीं करना चाहते. न ही इस केस को दोबारा शुरू करवाना चाहते हैं. हम न्याय का इंतज़ार करते-करते थक चुके हैं.''
हालाँकि सुरिंदर कोली ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को दिए अपने बयान में कहा था कि बच्चों की हत्या, रेप से जुड़े सभी कबूलनामे उनसे दबाव में करवाए गए थे.
'हमारे बच्चे भी चले गए और न्याय भी नहीं मिला'
निठारी हत्याकांड में अपने आठ साल की बच्ची को गँवाने वाली महिला पुलिस और सीबीआई की भूमिका पर सवाल उठाती हैं. उनका आरोप है कि जाँच ठीक से किया ही नहीं गया.
वह कहती हैं, ''डीएनए टेस्ट कराए हमारे, तो क्या अब हम मान लें कि वो हमारे नहीं कुत्ते-बिल्लियों के बच्चे थे. अब तो नौकर भी छूट रहा है, मालिक भी छूट गया. हमारे बच्चे भी चले गए और हमें न्याय भी नहीं मिला. हमारे काम-धंधे छूटे. एक साल भूखे-प्यासे भटके, कहाँ-कहाँ नहीं गए कोई हमसे पूछे. एक झटके में छोड़ दिया, निर्दोष बताकर...हमें दुख नहीं है?
अपनी नम आँखों से वह पूछती हैं, ''हमारे फूल जैसे बच्चे को किसने मारा? इतनी बेदर्दी से...ऐसे कोई जानवर को भी नहीं मारेगा..कितना दुख होता है, बताओ.''
क्या था मामला?
मोनिंदर पंधेर और सुरिंदर कोली दोनों को साल 2009 में बलात्कार, हत्या, सबूतों को नष्ट करने और अन्य आरोपों से जुड़े मामलों में ग़ाज़ियाबाद की एक सीबीआई अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई थी.
11 मामलों में कोली इकलौते अभियुक्त थे और दो मामलों में उन्हें पंधेर के साथ सहअभियुक्त बनाया गया था.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने साल 2023 में कोली को केस से जुड़े 12 मामलों में बरी कर दिया. साथ ही मोनिंदर भी अपने ख़िलाफ़ दर्ज दो मामलों में निर्दोष साबित हुए.
कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि जाँच ख़राब तरीक़े से की गई है और "सबूत इकठ्ठा करने के बुनियादी मानदंडों का खुलेआम उल्लंघन किया गया है."
कोर्ट ने अपने फ़ैसले में क्या कहा था?
कोर्ट के इस फ़ैसले को समझाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता पारस नाथ सिंह कहते हैं, ''इस केस में कोई परिस्थितिजन्य साक्ष्य नहीं थे. इसलिए कोली के जो भी क़बूलनामे सीबीआई ने दर्ज किए थे, उन्हें कोर्ट ने भरोसे के लायक नहीं माना. क़ानून के मुताबिक़ कबूलनामा ख़ुद से किया हुआ होना चाहिए, किसी डर या दबाव में नहीं.''
308 पन्ने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले की कॉपी के पेज नंबर 47 पर लिखा है, '' कोली 60 दिनों तक पुलिस कस्टडी में रहे लेकिन इन 60 दिनों में कभी भी उनकी मेडिकल जाँच नहीं हुई, जिससे शारीरिक प्रताड़ना जैसी संभावनाओं पर संशय बरकरार रहता है. केवल साल 2007 में एक मेडिकल सर्टिफ़िकेट लाया गया, जिसकी विश्वसनीयता को पुष्ट करने के लिए डॉक्टर को गवाही के लिए नहीं पेश नहीं किया गया."
फ़ैसले में लिखा गया है कि जिस मैजिस्ट्रेट के सामने कोली के कथित कबूलनामे दर्ज किए गए उन्होंने भी इस चीज़ को लेकर संतुष्टि नहीं ज़ाहिर की कि अभियुक्त ने ये बिना किसी के दबाव के कहा है.
हाई कोर्ट ने इस चीज़ को हाइलाइट किया कि अभियोजन पक्ष ने समय-समय पर अपने स्टैंड बदले.
शुरुआती केस कोली और हाउस नंबर डी-5 के मालिक मोनिंदर पंधेर के ख़िलाफ़ दर्ज किया गया था.
जो चीज़ें स्पॉट से मिलीं, उनके लिए भी दोनों को ज़िम्मेदार माना गया.
लेकिन समय के साथ सारी चीज़ों के लिए कोली को ही दोषी ठहराया जाने लगा.
जाँच के अलग-अलग स्तर पर अभियोजन पक्ष के सबूत भी बदलते रहे और आख़िर में केवल कोली का कबूलनामा ही इकलौता आधार रह गया, जिसकी विश्वसनीयता पहले से ही सवालों के घेरे में थी.
11 नवंबर को कोली के ख़िलाफ़ लंबित आख़िरी मामले में फ़ैसला सुनाते हुए सीजेआई बीआर गवई की बेंच ने कहा, "जिन सबूतों को कोर्ट ने अपर्याप्त और अविश्वसनीय बताकर कोली को पहले ही 12 मामलों में बरी कर दिया था. उन्हीं सबूतों के आधार पर एक मामले में उसे दोषी बनाए रखना संवैधानिक रूप से सही नहीं है."
कोर्ट ने माना कि निठारी में जो अपराध हुए वो बहुत डरावने थे और जिन परिवारों ने अपने बच्चे खोए, उनकी तकलीफ़ शब्दों में नहीं बयां की जा सकती. लेकिन इतनी लंबी जाँच के बाद भी असल अपराधी कौन है, यह पक्के सबूतों के साथ साबित नहीं हो पाया है.
कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा, ''क़ानून किसी को सिर्फ़ शक के आधार पर दोषी नहीं ठहरा सकता. चाहे शक कितना ही बड़ा क्यों न हो, अदालत को ठोस सबूत चाहिए. अदालत ने साफ़ कहा कि न्याय करने के दबाव में क़ानूनी नियमों को दरकिनार नहीं किया जा सकता.''
कोर्ट ने आख़िर में पुलिस और एजेंसियों की जाँच प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए.
कोर्ट ने कहा, ''अगर जाँच समय पर, पेशेवर तरीक़े से और संविधान के नियमों के मुताबिक हो, तो सबसे मुश्किल मामलों में भी सच सामने लाया जा सकता है. लेकिन निठारी मामले में ऐसा नहीं हुआ. लापरवाही और देरी ने पूरी जाँच को कमज़ोर कर दिया और उन रास्तों को भी बंद कर दिया जहाँ से असली अपराधी तक पहुँचा जा सकता था.''
नतीजा ये है कि मोनिंदर सिंह पंधेर और सुरिंदर कोली दोनों सभी मामलों में निर्दोष साबित हो चुके हैं और अब रिहा भी हैं.
लेकिन कोर्ट के फ़ैसले ने उन परिवार के लोगों को हताश और परेशान ज़रूर किया है, जिनके बच्चों की हत्या हुई.
वो सवाल कर रहे हैं कि आख़िर उनके बच्चों की जान किसने ली?
कोर्ट के इस फ़ैसले ने उनके ज़ख्मों को न केवल हरा कर दिया है बल्कि कई सवाल अब भी उन्हें परेशान कर रहे हैं.
क्या था निठारी कांड?
साल 2005 से 2006 के बीच दिल्ली से सटे नोएडा के निठारी गाँव में एक के बाद एक कई बच्चों और युवतियों के ग़ायब होने की घटना सामने आई थी.
इन बच्चों और बच्चियों के परिजनों ने स्थानीय थाने में इन मामलों से जुड़ी शिकायत की लेकिन पुलिस पर महीनों तक अनदेखी के आरोप लगे.
आख़िरकार पुलिस ने जाँच शुरू की, तो पंधेर के घर के पीछे के नाले से 19 कंकाल बरामद किए गए. मोनिंदर सिंह पंधेर और सुरिंदर कोली को गिरफ़्तार किया गया.
मामला सीबीआई तक पहुँचा, जाँच एजेंसी को अपनी खोजबीन के दौरान मानव हड्डियों के कुछ हिस्से और 40 ऐसे पैकेट मिले जिनमें मानव अंगों को भरकर नाले में फेंक दिया गया था.
जाँच आगे बढ़ी और साल 2009 में ग़ाज़ियाबाद की सीबीआई अदालत ने एक मामले में दोनों को फाँसी की सज़ा सुनाई.
लेकिन बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट से होते हुए मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा और कोर्ट ने अपने फ़ैसले में दोनों ही अभियुक्तों को निर्दोष बताया.
पटना, 19 नवंबर । बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को मिले प्रचंड बहुमत के बाद अब सरकार बनाने की कवायद तेज हो गई है। इस बीच, बुधवार को बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया है। बुधवार को मुख्यमंत्री आवास में जदयू विधायक दल की बैठक हुई। इस बैठक में सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नेता चुन लिया गया। इस बीच, भाजपा प्रदेश कार्यालय में भाजपा विधायक दल की बैठक शुरू हो गई है, जिसमें भाजपा विधायक दल का नेता चुना जाएगा। इसके बाद शाम को एनडीए विधायक दल की बैठक होगी। इस बैठक में नीतीश कुमार के फिर से नेता चुने जाने की संभावना है। जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा ने कहा कि आज विधायक दल की बैठक है, जिसमें नीतीश कुमार को विधायक दल का नेता चुना जाएगा। शाम को राज्यपाल से मिलकर सरकार के गठन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। उन्होंने बताया कि गुरुवार को गांधी मैदान में शपथ ग्रहण समारोह होगा। बिहार चुनाव के परिणाम को लेकर पूरे देश में उत्साह है। शपथ ग्रहण समारोह गांधी मैदान में होना निर्धारित है। इसे लेकर गांधी मैदान में व्यापक तैयारी की जा रही है। इस समारोह में आम से खास लोगों के जुटने की संभावना को देखते हुए उसी तरह की तैयारी की जा रही है। इस बीच, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मंगलवार की शाम गांधी मैदान पहुंचकर नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह की तैयारियों का निरीक्षण किया। नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह 20 नवंबर को प्रस्तावित है। निरीक्षण के क्रम में मुख्यमंत्री ने मंच पर अतिथियों के बैठने की व्यवस्था एवं अन्य उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं के संबंध में अधिकारियों से विस्तृत जानकारी ली थी। उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव में एनडीए को कुल 202 सीटें मिली हैं। भाजपा ने 89 सीटों पर जीत दर्ज की। दूसरे नंबर पर नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) 85 सीटों के साथ है। वहीं, चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति (आर) का स्ट्राइक रेट भी बेहतर रहा। पार्टी ने 29 सीटों पर चुनाव लड़ा और 19 पर जीत दर्ज की, जो एनडीए में तीसरे नंबर की सबसे बड़ी पार्टी और पूरे बिहार में चौथे नंबर की पार्टी रही। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को पांच और राष्ट्रीय लोक मोर्चा को चार सीटों पर जीत मिली है। (आईएएनएस)
पुट्टपर्थी, 19 नवंबर । दिग्गज क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर बुधवार को आंध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी में श्री सत्य साईं बाबा के जन्म शताब्दी समारोह में पहुंचे, जहां उन्होंने श्री सत्य साईं बाबा से जुड़ी अपनी यादों को साझा किया। तेंदुलकर ने बताया कि बाबा अक्सर उनके मन की बात को जान लेते थे, जो उनके लिए अविश्वसनीय होता था। इस दौरान तेंदुलकर ने विश्व कप 2011 से जुड़ा एक किस्सा भी साझा किया। सचिन तेंदुलकर ने समारोह में कहा, इस जगह ने हम लाखों लोगों को बहुत सुकून, उद्देश्य और दिशा दी है। जब मैं यहां खड़ा होता हूं, तो मुझे याद आता है कि बाबा ने हमारे जीवन में कितने योगदान दिए और हमें बेहतर इंसान बनाया। सचिन तेंदुलकर ने बताया कि बचपन में उनका हेयरस्टाइल श्री सत्य साईं बाबा की तरह ही था। उन्होंने कहा, "मुझे याद है, मैं सिर्फ 5 साल का था और मैं जहां भी जाता था, मेरे स्कूल और मेरे आस-पास के लोग मुझे "वो जो छोटा बच्चा है ना, जिसके बाल सत्य साईं बाबा जैसे हैं" कहकर बुलाते थे। ऐसा सिर्फ इसलिए था, क्योंकि मैंने 5 साल की उम्र तक बाल नहीं कटवाए थे। मेरे बाल भी वैसे ही लंबे थे। मैं उस समय समाज के लिए बाबा के योगदान को समझने में बहुत छोटा था। मैं उनसे पहली बार 90 के दशक के मध्य में व्हाइटफील्ड में मिला था और तब से मुझे उनसे कई बार मिलने का सौभाग्य मिला है।" उन्होंने कहा, "बाबा में यह क्षमता थी कि चाहे आप कहीं भी हों वे आपके मन में, आपके साथ रह सकते थे। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि मेरे मन में कई सवाल चल रहे थे। बिना पूछे ही, बाबा ने उन सवालों के जवाब दे दिए। यह मेरे लिए एक अविश्वसनीय अनुभव था। क्योंकि मैं सोच रहा था, उन्हें कैसे पता चला कि मेरे मन में क्या चल रहा था? उन्होंने पहले ही जवाब दे दिया था, मुझे आशीर्वाद दिया था, मुझे दिशा दी थी।" सचिन तेंदुलकर ने बताया कि साल विश्व कप 2011 से पहले श्री सत्य साईं बाबा ने उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद की थी। उन्होंने कहा, "2011 से पहले मैं कई विश्व कप खेल चुका था। मुझे पता था कि यह मेरा आखिरी विश्व कप हो सकता है। हम बेंगलुरु में एक कैंप में थे। इसी बीच मुझे एक फोन कॉल आया और बताया गया कि बाबा ने मेरे लिए एक किताब भेजी है। यह सुनकर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई। मैं जानता था कि यह विश्व कप हमारे लिए बेहद खास होगा। इस किताब ने मुझे आत्मविश्वास और आत्मबल दिया। (आईएएनएस)
बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की जीत ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचा है।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया की कुछ रिपोर्टों और विश्लेषणों में इस जीत के लिए महिलाओं को किया गया कैश ट्रांसफऱ और एनडीए की राजनीतिक चतुराई को श्रेय दिया गया है।
कुछ विश्लेषणों ने इसे बिहार की सामाजिक-राजनीतिक दिशा में बड़ा मोड़ करार दिया है।
इनमें कहा गया है कि ये देश के राजनीतिक समीकरणों को नए सिरे से परिभाषित कर सकती है।
ब्रिटिश अख़बार ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ में ग्लोबल इन्वेस्टर और स्तंभकार रुचिर शर्मा ने लिखा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारत के 'जो बाइडन' में बदल गए थे।
उन्होंने लिखा है, ‘उन्हें भाषणों के लिए मंच पर तो लाया जाता था लेकिन बाक़ी समय वे सहयोगियों के घेरे में रहते थे, जो बोलने में उनकी भूल-चूक, सूनी निगाहों और याददाश्त गिरने से चिंतित रहते थे।’
‘इसके बावजूद नीतीश के नेतृत्व में उनके गठबंधन ने चुनावी जीत हासिल कर ली जबकि उनकी सेहत से जुड़ी समस्याएं बाइडन से भी ज़्यादा गहरी लग रही थीं।’
नीतीश कुमार की जो बाइडन से तुलना
रुचिर शर्मा लिखते हैं, ‘पिछले 30 सालों से मैं भारत के राष्ट्रीय और हर साल होने वाले राज्यों के चुनाव को कवर कर रहा हूँ। यह मेरा बिहार का छठा दौरा था। यहाँ की हरी-भरी लेकिन दलदली ज़मीन पर भीषण गऱीबी की छाप दिखती है। मुझे उम्मीद थी कि नीतीश कुमार की सेहत और ठहरा हुआ विकास बड़े मुद्दे होंगे।लेकिन मैंने पाया कि नीतीश के पारंपरिक समर्थक आज भी उनके लंबे कार्यकाल में किए गए कामों के लिए शुक्रगुजार हैं।’
‘वे उनकी सेहत पर चर्चा को भी अपमान मानते हैं। उन्हें वोट न देना तो दूर की बात है।’
‘दो दशक पहले सत्ता संभालने से पहले 13.5 करोड़ लोगों वाला ज़मीन से घिरा प्रदेश ऐसी जगह थी, जिसे 'सभ्यता भूल चुकी' है। जिसे अंधकार वाला प्रदेश और जंगल राज के नाम से जाना जाता था।’
रुचिर शर्मा लिखते हैं, ‘लेकिन अपने पहले कार्यकाल में नीतीश कुमार ने कानून-व्यवस्था को दुरुस्त किया, सडक़ें और पुल बनवाए। दूसरे कार्यकाल में उन्होंने गांवों में बिजली पहुंचाई।’
‘लेकिन पिछले दो कार्यकाल में नीतीश कुमार अगले क़दम नहीं उठा पाए। नौकरियां पैदा करने में वो नाकाम रहे। पूर्णिया शहर के आसपास सबसे बड़ा ‘उद्योग’ मखाना प्रोसेसिंग है। हर तीन में से दो बिहारी परिवारों में कम से कम एक सदस्य रोजगार के लिए राज्य से बाहर है।’
‘अगर बिहार एक देश होता, तो यह लाइबेरिया से भी गऱीब और दुनिया का 12 वां सबसे गरीब देश होता।’
‘फिर भी कुमार की जीत भारत में आशा और बेबसी के टकराव के बारे में बहुत कुछ कहती है।’
‘नीतीश कुमार के शासन के शुरुआती दशक में बिहार की औसत आय देश के बाकी हिस्सों के साथ बढऩे लगी थी लेकिन अब फिर से पीछे हो गई है।’
‘कुल सरकारी खर्च राज्य की जीडीपी का 34 फीसदी है जो राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुना है। आधा खर्च सामाजिक योजनाओं पर जाता है।’
रुचिर शर्मा लिखते हैं कि नीतीश कुमार ने काफी हद तक नए वादे कर चुनावी जीत हासिल की है। इससे राज्य का खर्च जीडीपी का और तीन फीसदी बढ़ जाएगा।
चुनाव शुरू होने से ठीक पहले नीतीश कुमार ने लाखों महिलाओं को 10,000 रुपये ट्रांसफर करना शुरू किया था। यह लगभग 110 डॉलर है, लेकिन बिहार की औसत वार्षिक आय 70,000 रुपये के मुकाबले काफ़ी अच्छी रकम है।
इसे छोटे बिजनेस के लिए ‘मनी’ बताया गया।
नीतीश कुमार और बीजेपी ने महिलाओं को ये पैसा देकर पारंपरिक जाति और सांप्रदायिक वोट बैंक को तोडऩे की रणनीति पर काम किया।
दूसरी ओर आरजेडी ने इतना बड़ा वादा किया कि कोई उसे सच नहीं मान सका। जैसे कि हर परिवार को एक सरकारी नौकरी।
रुचिर शर्मा लिखते हैं कि कुमार की जीत एक ग्लोबल ट्रेंड को दिखाती है। जहां विकसित लोकतंत्रों में लोग सत्तारूढ़ नेताओं के प्रति शत्रुता दिखा रहे हैं, वहीं विकासशील देशों में उल्टा हो रहा है।
वो लिखते हैं, ‘भारत में 2000 के दशक से पहले मुख्यमंत्री 70 फीसदी चुनाव हार जाते थे। अब वे वापसी कर रहे हैं और इस दशक में आधे से ज़्यादा चुनाव जीत रहे हैं। बुजुर्गों के प्रति सम्मान, धीमी प्रगति की आध्यात्मिक सी स्वीकृति और सत्ता तंत्र पर बढ़ता नियंत्रण।’
‘ये सब बताते हैं कि भारत में ‘जो बाइडन जैसे’ नेता कैसे जीत सकते हैं।’
एसआईआर प्रक्रिया के बाद अहम जीत
बिहार में नीतीश कुमार की जीत को शानदार बनाते हुए ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने लिखा है ये चुनाव इसलिए भी चर्चा में था क्योंकि मतदान से पहले मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर बदलाव किए गए थे। इस पर काफी हंगामा मचा था।
अख़बार लिखता है, ‘इस प्रक्रिया में 40 लाख से ज़्यादा नाम हटा दिए गए। विपक्ष का आरोप था कि यह प्रक्रिया अव्यवस्थित और अराजक थी और जिन लोगों के नाम हटाए गए, वे ज़्यादातर उनके समर्थक थे।अब एसआईआर कही जाने वाली ये प्रक्रिया दूसरे राज्यों में भी शुरू होने वाली है।’
‘चुनाव आयोग और मोदी की भारतीय जनता पार्टी ने इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा कि सूची से मृत, डुप्लीकेट और फर्ज़ी मतदाताओं को हटाया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने एनडीए की जीत का श्रेय व्यापक सामाजिक गठबंधन बनाने और अपने नेतृत्व में लोगों के भरोसे को दिया।’
‘उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में क़ानून-व्यवस्था सुधारने और महिलाओं के जीवन में बेहतरी लाने वाली योजनाओं ने नीतीश कुमार की छवि मज़बूत की।’
महिलाओं को दी गई दस हजार रुपये की राशि को विपक्ष ने सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग कहा। उसका कहना था कि इससे मोदी के गठबंधन को अनुचित लाभ मिला।
अखबार लिखता है, ‘विपक्ष लंबे समय से मोदी पर चुनावी प्रक्रिया को अपने पक्ष में झुकाने का आरोप लगाता रहा है। हाल में विपक्ष ने चुनाव आयोग के खिलाफ अभियान तेज किया है और उस पर ‘वोट चोरी’ में मदद करने का आरोप लगाया है।’
अख़बार लिखता है, ‘विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा कि हरियाणा के चुनाव में चुनावी गड़बडिय़ों ने नतीजे पलट दिए। अपने एक प्रेजेंटेशन में उन्होंने स्क्रीन पर एक युवती की फोटो दिखाई और दावा किया कि यही तस्वीर 10 बूथों में 22 वोटर आईडी पर अलग-अलग नामों के साथ इस्तेमाल की गई है।’
अखबार ने लिखा, ‘बिहार में मतदाता सूची की यह सफाई राष्ट्रीय चुनाव के ठीक एक साल बाद हुई। उस चुनाव में राज्य ने एनडीए को दो दर्जन से अधिक लोकसभा सीटें दी थीं, जिससे उन्हें तीसरा कार्यकाल मिला। विपक्ष का तर्क था कि अब चुनाव से ठीक पहले इतनी बड़ी कटौती के दो ही मतलब हो सकते हैं। या तो लोकसभा चुनाव संदिग्ध मतदाता सूची पर लड़ा गया था या फिर राज्य चुनाव में बड़े पैमाने पर मतदाताओं को वंचित कर भाजपा नतीजों को प्रभावित करना चाहती है।’
‘चुनाव आयोग ने शुरू में 65 लाख नाम काट दिए थे, यह कहते हुए कि एक-तिहाई लोग मृत हैं और बाकी या तो कहीं और चले गए हैं या उनके नाम दो बार दर्ज थे।’
‘राजनीतिक अवसरवाद के प्रतीक बन गए हैं नीतीश’
ब्लूमबर्ग ने बिहार में नीतीश कुमार की जीत के लिए महिलाओं को पैसे देने का जिक्र किया है।
ब्लूमबर्ग स्तंभकार एंडी मुखर्जी ने लिखा है, ‘आखिरी क्षणों में, सरकार ने एक रोजगार कार्यक्रम के नाम पर लाखों महिलाओं के बैंक खातों में पैसा जमा करा दिया। नीतीश फिर से सत्ता में लौट आए और एनडीए ने राज्य की 243 सीटों में से 202 सीटें जीत लीं।’
एंडी मुखर्जी लिखते हैं, ''जाति के आधार पर मतदाताओं की पसंद एक हद तक पहले की तरह बँटी रही। लेकिन इस बार कैश ने उन सभी मतदाताओं को एक साथ कर दिया।’
वो लिखते हैं, ‘सितंबर से शुरू होकर 1.2 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपये (113 डॉलर) दिए गए। जो महिलाएं इस राशि का उपयोग किसी छोटे व्यवसाय की शुरुआत में करेंगी, उन्हें आगे और फंड देने का वादा किया गया है। हालांकि महिलाओं को पैसे देकर रिझाने वाला पहला चुनाव नहीं था।’
मुखर्जी लिखते हैं, ‘क्या बिहार की महिलाओं ने एक खऱाब सौदा करना मंजूर किया? राज्य के पास जेन ज़ी के लिए देने को बहुत कम है। 2021 में यहां हर एक लाख लोगों पर सिफऱ् आठ कॉलेज थे, जो राष्ट्रीय औसत का चौथाई हिस्सा है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में सिर्फ छह फीसदी लोग काम करते हैं और शहरी महिलाओं की श्रम भागीदारी दर सिर्फ 16 फीसदी है।’
‘2001 से 2011 के बीच बिहार से 90 लाख लोग पलायन कर गए। भारत ने पिछले 14 वर्षों से जनगणना नहीं कराई है। लेकिन इस तथ्य को देखते हुए कि पिछले तीन दशकों में बिहार की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी और घट गई है। यह मानना ठीक हो सकता है, बिहार अब भी बड़ी संख्या में श्रमिक खो रहा है। इसके बावजूद एक नई राजनीतिक पार्टी, जिसने जाति को पीछे रखकर मजबूरन पलायन को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की, एक भी सीट नहीं जीत सकी।’
मुखर्जी लिखते हैं, ‘नीतीश कुमार बिहार की आधुनिक राजनीति के भीतर बसे हुए राजनीतिक अवसरवाद का प्रतीक बन चुके हैं। उनकी पार्टी नाममात्र की समाजवादी है। चुनाव परिणामों के बाद जब उनके एक वरिष्ठ नेता टीवी चैनलों से बात कर रहे थे, तब उनके पीछे चे ग्वेरा की तस्वीर लगी थी। फिर भी नीतीश, जो सत्ता में बने रहने के लिए कई बार पाला बदल चुके हैं, हिंदुत्ववादी बीजेपी के साथ हैं।’
‘दरअसल, पिछले साल के आम चुनाव में जब भाजपा अप्रत्याशित रूप से बहुमत खो बैठी, तब मोदी को प्रधानमंत्री बनाए रखने में नीतीश की भूमिका महत्वपूर्ण रही।’ ‘फिर भी बीजेपी ने बिहार की राजनीति में अपनी मौजूदगी मज़बूत कर ली है। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि मोदी ने कांग्रेस पार्टी को एक राजनीतिक रूप से अहम राज्य में लगभग पूरी तरह ख़त्म कर दिया है। राहुल गांधी, जिन्होंने चुनाव आयोग पर भाजपा के साथ मिलकर ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाया है, कहते हैं कि वे ऐसे नतीजों से हैरान हैं जो उन्हें कभी निष्पक्ष लगते ही नहीं थे। उनकी पार्टी को सिर्फ छह सीटें मिलीं।’
‘निराश कांग्रेस नेताओं के बीच यह सवाल उठना तय है कि जब उनके नेता ही चुनावों को धांधली वाला बताते हैं, तो फिर चुनाव लडऩे का क्या मतलब है। चुनाव आयोग ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है।’
बिहार मोदी के लिए क्यों अहम
अमेरिकी अख़बार ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ ने बिहार में नीतीश कुमार की जीत के बाद इस पहलू का विश्लेषण किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बिहार क्यों अहम है।
अखबार लिखता है, ‘कृषि-प्रधान राज्य बिहार का यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए काफी अहम था। अगले दो वर्षों में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और असम जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में होने वाले चुनावों और 2029 के आम चुनाव से पहले वे राजनीतिक रफ्तार हासिल करना चाहते थे।’
‘यह जीत केंद्र सरकार को मज़बूती दे रही है, जो पिछले साल के आम चुनाव में पूर्ण बहुमत न मिलने के बाद क्षेत्रीय सहयोगियों के समर्थन पर चल रही है।’
अखबार लिखता है, ‘मोदी की पार्टी ने जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के साथ मिलकर केंद्र में सरकार बनाई है। यही पार्टियां बिहार में भी उनके प्रमुख सहयोगी हैं।’
अखबार ने राजनीतिक विश्लेषक नीरजा चौधरी के हवाले से लिखा है, ‘बिहार को अपने कब्जे में रखना मोदी के लिए बहुत राहत देने वाला होगा। इससे केंद्र की सरकार को अधिक स्थिरता मिलेगी।’
अखबार ने लिखा है कि इससे मोदी का राजनीतिक गठबंधन और मजबूत होगा।
पटना, 18 नवंबर । बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में शामिल कांग्रेस ने अब चुनाव में पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने वाले नेताओं पर एक्शन लेना शुरू कर दिया है। इसके तहत मंगलवार को 43 नेताओं को कारण बताओ नोटिस भेजा गया है, इनमें पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री भी शामिल हैं। बताया गया कि बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी-विरोधी गतिविधियों में संलिप्त पाए जाने के कारण कांग्रेस पार्टी की अनुशासन समिति ने कई नेताओं को कारण बताओ नोटिस (शोकॉज नोटिस) जारी किया है। चुनावी अवधि में इन व्यक्तियों द्वारा मीडिया सहित अन्य सार्वजनिक मंचों पर पार्टी की आधिकारिक लाइन से हटकर बयान दिए गए थे, जिससे पार्टी की छवि, प्रतिष्ठा तथा चुनावी प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। प्रदेश कांग्रेस अनुशासन समिति के अध्यक्ष कपिल देव प्रसाद यादव के अनुसार संबंधित सभी व्यक्तियों को निर्देशित किया गया है कि वे 21 नवंबर को दोपहर 12 बजे तक अपना लिखित स्पष्टीकरण समिति के समक्ष प्रस्तुत करें।
उन्होंने स्पष्ट किया है कि निर्धारित समय-सीमा में उत्तर प्राप्त न होने की स्थिति में अनुशासन समिति विवश होकर कठोर कार्रवाई करेगी, जिसमें कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से लेकर छह वर्षों के लिए निष्कासन भी सम्मिलित है। प्रदेश कांग्रेस अनुशासन समिति ने कहा है कि पार्टी अनुशासन और एकता सर्वोच्च प्राथमिकता है तथा पार्टी को क्षति पहुँचाने वाले किसी भी प्रकार के कृत्य को गंभीरता से लिया जाएगा। जिन्हें नोटिस जारी किया गया है, उनमें पूर्व मंत्री अफाक आलम, पूर्व प्रवक्ता आनंद माधव, पूर्व विधायक छत्रपति यादव, पूर्व मंत्री वीणा शाही, पूर्व एमएलसी अजय कुमार सिंह, पूर्व विधायक गजानंद शाही उर्फ मुन्ना शाही, सुधीर कुमार उर्फ बंटी चौधरी, बांका जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष कंचना कुमारी, सारण जिला अध्यक्ष बच्चू कुमार बीरू, पूर्व युवा कांग्रेस अध्यक्ष राज कुमार राजन भी शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस छह सीटें जीत पाई। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम को भी इस चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। --(आईएएनएस)
अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायाधिकरण की ओर से मानवता के खिलाफ अपराध के आरोप में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मौत की सजा सुनाए जाने के बाद उनकी स्वदेश वापसी की राह और कठिन हो गई है. बीते साल से ही वो भारत में रह रही हैं.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट -
छात्र और युवा वर्ग के आंदोलन और इसके दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा और हत्या के दौर के बाद बीते साल पांच अगस्त को शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़ कर भारत में शरण लेनी पड़ी थी. उनकी गैरमौजूदगी में ही अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने पांच आरोपों का दोषी मानते हुए उनको मौत की सजा सुनाई है. विडंबना यह है कि जिस न्यायाधिकरण ने यह सजा सुनाई है उसका गठन युद्ध अपराधों की जांच के लिए खुद हसीना ने ही किया था.
इस फैसले के साथ ही हसीना के लिए समय का पहिया अपना चक्र पूरा कर चुका है. कभी अपनी पार्टी को फर्श से अर्श तक पहुंचा कर बीते करीब दो दशकों से लगातार सत्ता में बनी रही हसीना बांग्लादेश का पर्याय बन चुकी थी.
जटिल हुआ हसीना का राजनीतिक भविष्य
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया ने अगले साल फरवरी में आम चुनाव की बात कही है. हसीना की राजनीतिक पार्टी अवामी लीग पर पहले से ही पाबंदी लगा दी गई है. यानी वो चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकती. अब मौत की सजा सुनाए जाने का मतलब है कि निकट भविष्य में उनकी स्वदेश वापसी का रास्ता भी बंद हो गया है. नियमों के मुताबिक हसीना इस फैसले के खिलाफ अपील भी नहीं कर सकतीं.
शेख हसीना ने चेताया, उनकी पार्टी के बिना हुआ चुनाव दरार बढ़ाएगा
पूर्व प्रधानमंत्री ने भारत में जारी एक बयान में खुद पर लगे तमाम आरोपों को खारिज करते हुए इस फैसले को पक्षपातपूर्ण बताया है. उनका दावा है कि यह तमाम आरोप राजनीतिक मकसद से लगाए गए हैं और किसी भी मामले में कोई सबूत नहीं है. बांग्लादेश की आखिरी निर्वाचित प्रधानमंत्री को पद से हटाने और अवामी लीग को राजनीतिक रूप से खत्म करने के लिए ही यह फैसला सुनाया गया है.
हसीना के खिलाफ 586 मामले
बीते साल हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद विभिन्न अदालतों और थानों में उनके खिलाफ कम से कम 586 मामले दायर किए गए थे. पूरे 397 दिन यानी एक साल भी ज्यादा समय तक चली सुनवाई के बाद सोमवार को सजा का एलान किया गया. जिन आरोपों में उनको सजा सुनाई गई है उन मामलों में पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान और बांग्लादेश पुलिस के पूर्व आईजी चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून भी अभियुक्त थे. हसीना के अलावा पूर्व गृह मंत्री भी देश से बाहर रह रहे हैं.
जानकार सूत्रों का दावा है कि पूर्व गृह मंत्री ने भी हसीना की तरह भारत में ही शरण ली है. आईजी अल-मामून को उसी समय गिरफ्तार कर लिया गया था. बाद में वो सरकारी गवाह बन गए थे और बाकी दोनों अभियुक्तों के खिलाफ न्यायाधिकरण में गवाही दी थी. आज अदालत के फैसले के दौरान भी वो वहां मौजूद थे.
न्यायाधिकरण के समक्ष पेश आरोप पत्र में कहा गया था कि हसीना ने छात्रों और युवाओं के आंदोलन को दबाने के लिए उकसाने वाला बयान दिया था. उन्होंने शीर्ष अधिकारियों को घातक हथियारों का इस्तेमाल कर आंदोलनकारियों का सफाया करने का निर्देश दिया था. उन पर रंगपुर में रुकैया विश्वविद्यालय के छात्र अबू सईद की गोली मार कर हत्या का निर्देश देने का भी आरोप था. इसी तरह राजधानी ढाका के चंखारपुल इलाके में छह आंदोलनकारियों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. आशुलिया इलाके में छह लोगों को जिंदा जला कर मार दिया गया था.
हसीना ने ही बनाया था न्यायाधिकरण
जिस न्यायाधिकरण ने हसीना को मौत की सुनाई उसका गठन उन्होंने ही 25 मार्च 2010 को किया था. इसका मकसद बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के दौरान हुए अपराधों की प्राथमिकता के साथ जांच कर दोषियों को सजा सुनाना था.
बीते साल पांच अगस्त को हसीना के देश छोड़ने के बाद इस न्यायाधिकरण को पुनर्गठित किया गया था. उसके बाद उसी साल 17 अक्तूबर को उनके खिलाफ पहला मामला दर्ज कर सुनवाई शुरू हुई. पहले सिर्फ वहीं अकेली अभियुक्त थी. लेकिन इस साल 16 मार्च को आईजी (पुलिस) अल-मामून को भी अभियुक्त बनाया गया. 12 मई को न्यायाधिकरण ने मुख्य अभियोजक कार्यालय को जांच रिपोर्ट सौंपी थी. उस रिपोर्ट में पहली बार पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान के नाम का जिक्र किया गया था.
पहली जून को तीनों अभियुक्तों के खिलाफ आरोपपत्र दायर होने के बाद 10 जुलाई को औपचारिक तौर पर आरोप तय किए गए. अगस्त में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई और यह प्रक्रिया 23 अक्तूबर को पूरी हो गई. 13 नवंबर को न्यायाधिकरण ने 17 नवंबर को फैसला सुनाने का एलान किया. देश के विभिन्न संगठनों के अलावा अंतरिम सरकार के एडवोकेट भी सीमा को मौत की सजा सुनाने का मांग कर रहे थे.
अशांत बांग्लादेश
हसीना के मामले में सजा सुनाने की तारीख नजदीक आने के साथ बांग्लादेश में परिस्थिति एक बार फिर अशांत हो उठी थी. अवामी लीग के कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह हिंसा और आगजनी शुरू कर दी थी. इसे दबाने के लिए सरकार ने बड़े पैमाने पर सुरक्षा बलों को तैनात किया था. अकेले राजधानी ढाका में 15 हजार से ज्यादा जवानों को तैनात किया गया था. दंगाइयों पर काबू पाने के लिए सरकार ने हाई अलर्ट जारी करते हुए देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए थे.
'विश्वसनीय' चुनाव के लिए कैसी है बांग्लादेश की तैयारी
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चार बार प्रधानमंत्री रही बांग्लादेश के संस्थापक की बेटी शेख हसीना के सामने अब समय खास विकल्प नहीं बचा है. एक विश्लेषक शिखा मुखर्जी डीडब्ल्यू से कहती हैं, "इस फैसले की संभावना तो थी ही. लेकिन इसने निकट भविष्य में हसीना की वापसी के रास्ते बंद कर दिए हैं. अगर वो सुनवाई की प्रक्रिया में शामिल हुई होती या एक महीने के भीतर आत्मसमर्पण कर देती हैं तो इस सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अपील बेंच के समक्ष अपील कर सकती थीं. लेकिन देश के कानून के मुताबिक, अब उनके सामने यह विकल्प भी नहीं है."
एक अन्य विश्लेषक विश्वजीत घोष डीडब्ल्यू से कहते हैं, "खुद हसीना को भी इस सजा की आशंका थी. लेकिन फिलहाल इससे उनकी सेहत पर कोई अंतर नहीं पड़ेगा. वो लंबे समय तक भारत में ही रहने का मन बना चुकी हैं. भारत किसी भी स्थिति में हसीना को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को सौंपने के मूड में नहीं नजर आता."
श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल: जनाक्रोश ने कैसे पलट दी सरकारें
श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में चार साल के भीतर जनता के गुस्से ने सरकार पलट दी. इन तीनों देशों में एक जैसा पैटर्न देखने को मिला, जहां लोगों ने भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.
श्रीलंका में आर्थिक संकट और राष्ट्रपति का इस्तीफा
साल 2022 में श्रीलंका में आर्थिक संकट के कारण देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए. सरकार के खिलाफ जनता सड़कों पर उतर आई और उसने राष्ट्रपति भवन, संसद भवन को अपने कब्जे में ले लिया. महंगाई, बेरोजगारी, ईंधन और दवाइयों की किल्लत ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया था. लोगों ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे और राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को ना सिर्फ सत्ता से खदेड़ दिया, बल्कि उनके घरों को भी निशाना बनाया.
बांग्लादेश का छात्र आंदोलन, हसीना को देश छोड़ना पड़ा
बांग्लादेश में छात्रों के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन उन नियमों के खिलाफ शुरू हुए थे जो योग्यता के आधार पर सिविल सेवा नौकरियों की संख्या को सीमित करते थे. 2024 के जुलाई में ये विरोध प्रदर्शन एक बड़े पैमाने पर देशव्यापी विद्रोह में बदल गए, जिसके बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भारत भागना पड़ा, हिंसक विरोध प्रदर्शनों में सैकड़ों लोग, जिनमें ज्यादातर छात्र थे मारे गए.
नेपाल में जेन जी का विरोध, प्रधानमंत्री का इस्तीफा
नेपाल में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ युवा सड़कों पर उतर आए और 8 सितंबर, 2025 को हुई हिंसा में कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हुए. युवाओं के आंदोलन के तूफान में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार उखड़ गई. नेपाल के युवा सिर्फ सोशल मीडिया बैन के खिलाफ नहीं बल्कि वे बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के मुद्दे पर भी बेहद नाराज हैं.
इंडोनेशिया में भी विरोध प्रदर्शन
हाल के जन आंदोलन ने क्षेत्र के अन्य देशों को भी हिलाकर रख दिया है, इनमें इंडोनेशिया भी शामिल है, जहां अगस्त के आखिर में सांसदों के भत्तों के खिलाफ छात्र सड़कों पर उतर आए. इन विरोध प्रदर्शनों में कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई है.
क्यों नाराज हैं दक्षिण एशियाई देशों के युवा
दक्षिण एशिया में हर एक विरोध आंदोलन एक खास शिकायत से शुरू हुआ जो बाद में भड़क उठा और आखिर में सरकार या उसके नेताओं की अस्वीकृति पर समाप्त हुआ. कई मायनों में विरोध आंदोलनों में एक समानता है: सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग और एक जड़ राजनीतिक व्यवस्था के प्रति निराश लोगों का आक्रोश, जिसे वे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, बढ़ती असमानता और आर्थिक गैरबराबरी के लिए जिम्मेदार मानते हैं.
नेताओं और नीतियों से नाराज लोग
शिकागो विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर पॉल स्टैनिलैंड कहते हैं, "लोगों में सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग के बारे में यह धारणा कि वे भ्रष्ट हैं और आगे बढ़ने का उचित रास्ता दिखाने में अप्रभावी हैं. इसी कारण बड़े संकट पैदा हो रहे हैं."
विधानसभा चुनाव में आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल) ख़ुद को मिली करारी हार से उबर भी नहीं पाई थी कि पार्टी की फ़र्स्ट फ़ैमिली (लालू परिवार) में कलह की ख़बरें आने लगीं.
ऐसा लग रहा है कि इस परिवार में 'तेजस्वी बनाम सभी' की स्थिति बन गई है.
लालू प्रसाद यादव को किडनी देकर सुर्ख़ियों में आईं उनकी बेटी रोहिणी आचार्य ने राजनीति और परिवार छोड़ने की घोषणा की है.
उन्होंने आरोप लगाया कि उनके साथ परिवार में ख़राब व्यवहार किया गया.रोहिणी आचार्य ने आरोप लगाया, "मेरा कोई परिवार नहीं है. अब आप जाकर तेजस्वी, संजय और रमीज़ से पूछिए कि पार्टी का ऐसा हाल क्यों हुआ? मुझे मारने के लिए चप्पल उठाई गई और गंदी-गंदी गालियां दी गईं."
रोहिणी के इस बयान ने 18वीं विधानसभा यानी नई सरकार के गठन में व्यस्त बिहार में ख़बरों का एक दूसरा मोर्चा खोल दिया है.
वैसे इस साल ये पहला मौक़ा नहीं है, जब लालू-राबड़ी परिवार से किसी ने अपनी नाराज़गी सार्वजनिक तौर पर ज़ाहिर की हो.
कुछ ही महीने पहले तेज प्रताप यादव को आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित किया था और परिवार से भी बेदखल कर दिया था.
लालू प्रसाद यादव का परिवार पहले भी विवादों में रहा है.
साल 2019 में बहू ऐश्वर्या राय के साथ बदसलूकी के आरोप लगे थे. आरजेडी शासनकाल में साधु और सुभाष यादव के चलते भी लालू परिवार के भीतर उठापटक की ख़बरें आती थीं.
रिज़ल्ट आने के बाद विवाद
रोहिणी आचार्य ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, "रोहिणी जो बोलती है, सच बोलती है. जिसको मेरी बात ख़ारिज करनी हो वो मेरे सामने आकर करे. मेरे माता-पिता रो रहे थे. मेरी बहनें रो रही थीं. भगवान ने मुझे यह सौभाग्य दिया कि मुझे इस तरह के माता-पिता मिले."
"उन्होंने मेरा हमेशा साथ दिया. भगवान ना करे कि किसी के घर में रोहिणी जैसी बहन-बेटी हो. बेटी सारा बलिदान करे और जब वो सवाल पूछे तो कहा जाएगा कि ससुराल में जाओ, तुम्हारी शादी हो गई है."
रोहिणी ने एक्स पर भी लिखा, "मुझसे कहा गया कि मैं गंदी हूँ, मेरी किडनी गंदी है. मैंने करोड़ों रुपए लिए, टिकट लिया, तब लगवाई गंदी किडनी."
अभी तक इस मामले में लालू परिवार के किसी अन्य सदस्य, राज्यसभा सांसद संजय यादव, रमीज़ (जिनका नाम रोहिणी ले रही हैं) की तरफ़ से कोई टिप्पणी नहीं आई है.
लेकिन पार्टी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है, "ये पारिवारिक मामला है जिस पर परिवार के सदस्य बात करेंगे."
संजय यादव से नाराज़ रोहिणी आचार्य और तेज प्रताप
वैसे ये पहली बार नहीं है, जब रोहिणी आचार्य संजय यादव को लेकर नाराज़ हुई हों.
चुनाव से पहले बिहार अधिकार यात्रा के दौरान भी बस की फ़्रंट सीट यानी तेजस्वी यादव की जगह संजय यादव बैठ गए थे.
जिसे लेकर भी रोहिणी ने अपना विरोध दर्ज़ कराया था.
तेज प्रताप यादव भी संजय यादव को लेकर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते रहते हैं.
इस घटना के बाद तेज प्रताप यादव ने रोहिणी के समर्थन में कहा, "मेरे साथ हुए अपमान को मैं सह गया लेकिन बहन के साथ अपमान किसी भी परिस्थिति में असहनीय है. चंद चेहरों ने तेजस्वी की बुद्धि पर पर्दा डाल दिया है."
कुछ महीने पहले तेज प्रताप यादव को भी एक सोशल मीडिया पोस्ट के चलते पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था. इस पोस्ट में तेज प्रताप अपनी एक महिला मित्र के साथ थे.
पार्टी से निष्कासन के बाद कुछ दिनों तक तेज प्रताप यादव ने पार्टी और परिवार के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की. लेकिन बाद में उनके बयानों में पार्टी और तेजस्वी के प्रति तल्खी बढ़ती गई.
चुनाव से पहले उन्होंने जनशक्ति जनता दल नाम की पार्टी बनाई और 43 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे.
तेज प्रताप ख़ुद भी महुआ विधानसभा से चुनाव हारे और उनकी पार्टी खाता भी नहीं खोल सकी. अब तेज प्रताप एनडीए को 'जनशक्ति जनता दल' का नैतिक समर्थन देने की घोषणा कर चुके हैं.
2019 में जब ऐश्वर्या राय रोते हुए राबड़ी आवास से निकलीं
सितंबर 2019 में लालू प्रसाद यादव की बड़ी बहू ऐश्वर्या राय राबड़ी आवास से रोते हुए निकली थीं.
ऐश्वर्या राय और तेज प्रताप यादव का तलाक़ का केस अभी अदालत में विचाराधीन है.
उस वक़्त ऐश्वर्या राय ने राबड़ी देवी और परिवार के अन्य सदस्यों पर बदसलूकी का आरोप लगाया था.
हालाँकि, बाद में सुलह हुई तो ऐश्वर्या राय फिर से राबड़ी आवास वापस लौटी थीं. लेकिन ये सुलह ज़्यादा दिन नहीं चल सकी.
कभी साधु-सुभाष के चलते विवादों में था परिवार
आरजेडी का शासनकाल राबड़ी देवी के भाइयों साधु और सुभाष यादव के चलते भी विवाद में रहा है.
वरिष्ठ पत्रकार महेश सिन्हा जो वार्ता (यूएनआई की हिन्दी सर्विस) के पटना ब्यूरो थे, वो बीबीसी न्यूज़ हिन्दी से बताते हैं, "लालू यादव के जेल जाने और राबड़ी के शासन संभालने के बाद साधु-सुभाष काफ़ी शक्तिशाली हो गए थे.''
राबड़ी देवी का रुख़ उस वक़्त क्या था, इसका उल्लेख नीलम नीलकमल की किताब 'लालू प्रसाद यादव : अ कैरिस्मैटिक लीडर' में मिलता है.
नीलम नीलकमल, जनता दल की मुज़फ़्फ़रपुर की महिला विंग की अध्यक्ष थीं.
उन्होंने लिखा हैं, "एक बार लालू यादव ने एक राष्ट्रीय अख़बार में बयान दिया था- राबड़ी देवी रूसल बाड़ी, मांगत बानी बैंगन की सब्जी, भेजत बाड़ी टोमैटो की चटनी. (राबड़ी देवी नाराज हैं, मैं बैंगन की सब्जी मांग रहा और वो टमाटर की चटनी भेज रहीं.) राबड़ी देवी लालू यादव से नाराज़ थीं क्योंकि राबड़ी अपने भाई साधु यादव के लिए विधानसभा का टिकट चाहती थीं."
साल 2015 में लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटे तेज प्रताप और तेजस्वी यादव पहली बार विधायक बने.
उस वक़्त तेजस्वी यादव के क़रीबी मणि यादव और संजय यादव थे. मणि यादव साल 2017 आते-आते बेअसर हो गए लेकिन संजय यादव ताक़तवर होते गए.
उन पर पार्टी के सोशल मीडिया सेल की ज़िम्मेदारी थी. इस ज़िम्मेदारी ने संजय यादव का क़द बढ़ाया.
तेजस्वी को जब लालू प्रसाद यादव ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया तो पार्टी कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं को ये अपेक्षा थी कि तेजस्वी अपने पिता लालू प्रसाद यादव की तरह ही संपर्क रखेंगे.
लेकिन कई कार्यकर्ता कहते हैं कि तेजस्वी ने ख़ुद के चारों तरफ़ अपने ख़ास सलाहकारों का घेरा बना लिया, जिसमें संजय यादव अहम हैं.
आरजेडी के एक वरिष्ठ नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, "लालू यादव ने पार्टी बहुत संघर्ष से बनाई थी, लेकिन अभी जो तेजस्वी के सलाहकार हैं वो पार्टी के शुभचिंतक नहीं हैं."
साधु यादव ने नेटवर्क18 से रोहिणी यादव घटनाक्रम के बाद कहा, "प्लानिंग करके हम लोगों को परिवार में साइड किया गया ताकि लालू को कमज़ोर किया जा सके.''
लालू यादव का परिवार
लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की शादी 1973 में हुई थी. इनके नौ बच्चे हैं, सात बेटियाँ और दो बेटे.
सबसे बड़ी बेटी मीसा भारती हैं, जिन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई की है. वो फ़िलहाल पाटलिपुत्र से सांसद हैं.
मीसा की शादी शैलेश कुमार से हुई है. लालू यादव जब मीसा (मेंटेनेंस ऑफ इंटर्नल सिक्योरिटी एक्ट) के तहत गिरफ़्तार हुए थे, तब मीसा भारती का जन्म हुआ था और इसी वजह से उनका नाम मीसा रखा गया.
मीसा भारती के बाद रोहिणी आचार्य का जन्म हुआ. उसके बाद चंदा सिंह, जिनकी शादी पेशे से पायलट विक्रम सिंह से हुई है. चंदा के बाद रागिनी यादव, हेमा यादव, अनुष्का राव का जन्म हुआ.
छह बेटियों के जन्म के बाद तेज प्रताप यादव और तेजस्वी का जन्म हुआ. उसके बाद सबसे छोटी औलाद राजलक्ष्मी यादव का जन्म हुआ.
इनमें तेजस्वी, तेज प्रताप, मीसा भारती और रोहिणी आचार्य राजनीति में सक्रिय हैं. वहीं रागिनी यादव, अनुष्का राव और राजलक्ष्मी यादव की शादी राजनीतिक परिवारों में हुई है.
निशाने पर परिवार
रोहिणी यादव के परिवार से निकलने के बाद एनडीए के सभी दलों की प्रतिक्रियाएं आई हैं.
जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा, "लालू यादव नज़रबंद हैं, इसलिए रोहिणी प्रकरण पर कुछ बोल नहीं रहे हैं. रोहिणी के साथ भाषाई हिंसा हुई है और लालू यादव को अपनी बेटी को न्याय देने की फ़ुर्सत नहीं है."
वहीं बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा, "लालू परिवार के बीच चल रही उठापटक किसी से छिपी नहीं है. आरजेडी की हार का असली कारण कोई बाहरी चुनौती नहीं बल्कि तेजस्वी की नाकाम नेतृत्व क्षमता है."
लालू यादव के क़रीबी और आरजेडी में रहे शिवानंद तिवारी भी तेजस्वी पर आक्रामक हैं.
उन्होंने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा, "राजनीति लालू यादव और उनके परिवार के लिए व्यापार है. तेजस्वी सपनों की दुनिया में मुख्यमंत्री की शपथ ले रहे थे.''(bbc.com/hindi)
नई दिल्ली, 17 नवंबर । दिल्ली में यमुना नदी का प्रदूषण एक बार फिर सुर्खियों में है। आम आदमी पार्टी (आप) ने सोमवार सुबह भाजपा सरकार पर यमुना सफाई अभियान को लेकर बड़े आरोप लगाए और दावा किया कि सफाई को लेकर चलाया गया अभियान केवल दिखावा था, जो बिहार चुनाव खत्म होते ही बंद कर दिया गया। इस आरोप के समर्थन में "आप" के विधायक दल के चीफ व्हिप संजीव झा और कोंडली से विधायक कुलदीप कुमार ने कालिंदी कुंज क्षेत्र का वीडियो जारी किया, जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। दिल्ली प्रदेश संयोजक सौरभ भारद्वाज ने इसे लेकर भाजपा पर तीखा वार करते हुए कहा कि “बिहार चुनाव समाप्त होते ही भाजपा की यमुना सफाई की नौटंकी भी खत्म हो गई। अब नदी में सिर्फ झाग ही झाग दिखाई दे रहा है।”
कालिंदी कुंज पहुंचे विधायक संजीव झा ने दावा किया कि यमुना की मौजूदा स्थिति भाजपा सरकार की नाकामी का प्रमाण है। उन्होंने कहा, “ऊपर से देखने पर यह सफेद परत खूबसूरत लग सकती है, लेकिन झाग की चादर ने यमुना मां को ढक दिया है। रसायन छिड़काव और नावों से झाग हटाने का काम 25 दिन पहले रोक दिया गया। यह साफ संकेत है कि प्रदूषण खत्म करने की मंशा ही नहीं है।” झा ने मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को चुनौती देते हुए कहा कि यदि सरकार दावा करती है कि यमुना साफ है, तो वह कैमरे के सामने यमुना जल का आचमन कर दिखाएं।
उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा द्वारा जारी किया गया यमुना सफाई का वीडियो वास्तव में आम आदमी पार्टी सरकार के दौरान खरीदी गई मशीनों पर आधारित था। उन्होंने प्रदूषण नियंत्रण को लेकर भी सरकार पर हमले किए और कहा, “ एक्यूआई मॉनिटरिंग स्टेशनों पर पानी छिड़कवाने के बावजूद एक्यूआई 500 के पार है। प्रदूषण कम नहीं हो रहा, बल्कि डेटा छुपाया जा रहा है। इस दौरान विधायक कुलदीप कुमार ने कहा कि यमुना की सतह पर झाग की मोटी परत देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे नदी पर बर्फ जम गई हो।" उन्होंने कहा कि दिल्ली में भाजपा के झूठ की बरसात हो रही है। दिल्ली में एलजी, एमसीडी, डीडीए, केंद्र और राज्य हर संस्थान भाजपा के नियंत्रण में है, इसलिए अब जिम्मेदारी से बचने का कोई बहाना नहीं बन सकता। --(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 17 नवंबर । बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के मामले में फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने हसीना को मानवता के खिलाफ अपराध के मामले का दोषी ठहराया और कहा कि हसीना सबसे कठोर सजा की हकदार हैं। फिलहाल कोर्ट ने सजा का ऐलान नहीं किया है। कोर्ट ने फैसला सुनाने के दौरान कोर्ट ने वीडियो साक्ष्य का जिक्र किया, जिसमें हसीना पर लक्षित हत्या का आदेश देने, जुलाई-अगस्त के विरोध प्रदर्शनों के दौरान नागरिकों पर गोली चलाने और उन्हें निशाना बनाने के लिए हेलीकॉप्टरों और ड्रोनों का आदेश देने का आरोप लगाया गया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सबूत यह भी बताते हैं कि हसीना ने सरकार की आलोचना करने के कारण कई पत्रकारों, राजनेताओं और कार्यकर्ताओं को पद से हटा दिया था।
बांग्लादेश के आईसीटी ने मानवता के खिलाफ कथित अपराधों पर अपदस्थ अवामी लीग नेता के खिलाफ फैसला सुनाते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए अधिकतम सजा की हकदार हैं। कोर्ट ने शेख हसीना को मानवता के विरुद्ध अपराध का दोषी ठहराया। महीनों तक चले मुकदमे में उन्हें पिछले वर्ष छात्रों के नेतृत्व में हुए विद्रोह पर घातक कार्रवाई का आदेश देने का दोषी पाया गया था। बता दें, सुनवाई से इतर स्थानीय मीडिया के अनुसार, सोमवार सुबह तक, पिछले 36 घंटों में, बांग्लादेश पुलिस ने नारायणगंज जिले में अवामी लीग के कम से कम 21 नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है। इस घटना की पुष्टि करते हुए, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक तारेक अल मेहदी ने कहा कि कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पूरे जिले में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है।
बांग्लादेशी मीडिया के अनुसार, उन्होंने बताया कि ढाका के प्रमुख प्रवेश बिंदुओं, प्रमुख सड़कों और राजमार्गों पर नौ चौकियां स्थापित की गई हैं, जबकि 26 मोबाइल टीमें जिले में गश्त कर रही हैं। हसीना पर हत्या, अपराध रोकने में नाकामी और मानवता के खिलाफ अपराध के अलावा छात्रों को गिरफ्तार कर टॉर्चर करने, एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग, फायरिंग, और लीथल फोर्स का इस्तेमाल करने का आदेश देने समेत तमाम आरोप लगे हैं। बांग्लादेश के प्रॉसिक्यूशन ने शेख हसीना के दोषी पाए जाने पर उनके लिए मृत्युदंड की मांग की थी। बता दें, हसीना की गैरहाजिरी में उनके खिलाफ यह फैसला सुनाया जाएगा। कोर्ट ने 10 जुलाई को हसीना के खिलाफ सभी आरोप तय किए थे। -- (आईएएनएस)


