राष्ट्रीय
न्याय की उम्मीद में बीते दिन, महीने, साल...थानों और अदालतों के अनगिनत चक्कर.
निठारी हत्याकांड के पीड़ित परिवारों के लिए अब ये सब एक बेमानी की तरह है.
11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने निठारी हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त रहे सुरिंदर कोली को इस केस से जुड़े आख़िरी मामले में भी निर्दोष बताते हुए बरी कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि सुरिंदर कोली को जिन सबूतों के आधार पर पिछली अदालतों ने दोषी ठहराया और सज़ा दी, वह क़ानूनी तौर पर अवैध, अविश्वसनीय और विरोधाभासी थीं.
लेकिन जेल से रिहा होते सुरिंदर कोली की तस्वीरों को देखकर पीड़ित परिवार पूछ रहे हैं, ''अगर ये निर्दोष है, तो दोषी कौन है. हमारे बच्चों की जान किसने ली?''
इस मामले में एक और अभियुक्त रहे मोनिंदर सिंह पंधेर को अदालत पहले ही बरी कर चुकी है.
नोएडा के सेक्टर-31 स्थित निठारी गाँव में पीड़ित बच्चों के अब चार परिवार ही बचे हैं.
ज़्यादातर परिवारों ने गाँव के साथ-साथ अदालती लड़ाई से भी मुँह मोड़ लिया है.
जिन पीड़ित परिवारों से हमारी बात हुई, उनमें से एक ने जहाँ अपनी आठ साल की बेटी को खोया, तो एक की बेटी की उम्र 10 साल थी.
ये दोनों ही मामले बलात्कार और हत्या से जुड़े थे, इसलिए हम इन परिवारों की पहचान ज़ाहिर नहीं कर रहे.
वहीं रामकिशन का बेटा हर्ष महज़ साढ़े तीन साल का था
ये मामला किडनैपिंग और हत्या से जुड़ा था. इसलिए हम इस परिवार की पहचान उनकी सहमति से ज़ाहिर कर रहे हैं.
'उनके घर से सारे सबूत मिले'
10 साल की एक बच्ची का परिवार निठारी के एक झोपड़ी में रहता है.
जब हम वहाँ पहुँचे, तो वह हमें पहले से ही मीडिया के कुछ लोगों से बात करती नज़र आईं.
उनकी बातों में पीड़ा, क्रोध और हताशा साफ़ नज़र आ रहे थे.
वो कहती हैं, ''वह कहता है कि हम निर्दोष हैं. इसी के घर से कंकाल, कपड़े बरामद हुए, हमारी लड़की के चप्पल, कपड़े और खोपड़ी उसके घर के नाले के अंदर मिला. दो किलो वाली काली पॉलिथीन में केवल खोपड़ी निकली थी और तब भी कह रहा हम निर्दोष हैं.''
वो बताती हैं, ''हम तो यही सोचकर लड़ते रहे कि कैसे भी इसको फांसी लगे. जो था हमारे पास घर, ज़मीन सारा बेचकर केस में लगा दिया. पर आज क्या हाथ लगा? निराशा.''
केस लड़ते-लड़ते हुई माली हालत का ज़िक्र करते हुए उनकी आँखों से आँसू निकलने लगते हैं.
साड़ी के आंचल से आँसुओं को हटाते हुए वह कहती हैं, ''ये झोपड़ी है, इसमें किराए पर रहते हैं. ये कपड़े हैं. इससे 100-200 कमाते हैं और खाते हैं. उम्र जैसे-जैसे बढ़ रही है काम भी नहीं हो पाता.''
वहीं उनके पति और बच्ची के पिता पूछते हैं, ''आख़िर पंधेर नहीं दोषी था, कोली नहीं दोषी था तो कौन था? उसके घर में कौन ऐसा करता रहा. अब भगवान ही इसका फ़ैसला करेगा."
"इसके घर के बराबर में हड्डियाँ और सिर मिले, सारी चीज़ें उसके घर में मिलीं. और क्या सबूत चाहिए? उस वक़्त मीडिया जो दिखा रहा था, सब झूठ था? अगर ये ठीक से जाँच करें तो अब भी उनको फाँसी लगेगी, नहीं तो फिर भगवान है.''
'हमने तो मान लिया कि वह निर्दोष हैं'
निठारी हत्याकांड में अपने साढ़े तीन साल के बेटे को खोने वाली पूनम मोनिंदर पंधेर के चर्चित डी-5 बंगले से महज़ सौ मीटर की दूरी पर रहती हैं.
हम उनके पास दोपहर के तक़रीबन तीन बजे पहुँचे थे. उन्होंने हमसे ये कहते हुए बात करने से मना कर दिया कि उनके लिए अब इस केस के बारे में बात करना बहुत तकलीफ़देह है.
उनके पति राजकिशन ही बात करेंगे.
राजकिशन ने कहा, ''देश-दुनिया को निठारी हत्याकांड की सच्चाई पता है. इस हत्याकांड के सबूत सबने देखे हैं, पुलिस के सामने कबूलनामा हुआ है. सीबीआई ने फांसी की सज़ा सुनाई है. इन सबके बावजूद अगर कोर्ट को लगता है कि सुरिंदर निर्दोष है, तो हमने भी मान लिया है कि वह निर्दोष ही है. हम अब अपने जख़्मों को हरा नहीं करना चाहते. न ही इस केस को दोबारा शुरू करवाना चाहते हैं. हम न्याय का इंतज़ार करते-करते थक चुके हैं.''
हालाँकि सुरिंदर कोली ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को दिए अपने बयान में कहा था कि बच्चों की हत्या, रेप से जुड़े सभी कबूलनामे उनसे दबाव में करवाए गए थे.
'हमारे बच्चे भी चले गए और न्याय भी नहीं मिला'
निठारी हत्याकांड में अपने आठ साल की बच्ची को गँवाने वाली महिला पुलिस और सीबीआई की भूमिका पर सवाल उठाती हैं. उनका आरोप है कि जाँच ठीक से किया ही नहीं गया.
वह कहती हैं, ''डीएनए टेस्ट कराए हमारे, तो क्या अब हम मान लें कि वो हमारे नहीं कुत्ते-बिल्लियों के बच्चे थे. अब तो नौकर भी छूट रहा है, मालिक भी छूट गया. हमारे बच्चे भी चले गए और हमें न्याय भी नहीं मिला. हमारे काम-धंधे छूटे. एक साल भूखे-प्यासे भटके, कहाँ-कहाँ नहीं गए कोई हमसे पूछे. एक झटके में छोड़ दिया, निर्दोष बताकर...हमें दुख नहीं है?
अपनी नम आँखों से वह पूछती हैं, ''हमारे फूल जैसे बच्चे को किसने मारा? इतनी बेदर्दी से...ऐसे कोई जानवर को भी नहीं मारेगा..कितना दुख होता है, बताओ.''
क्या था मामला?
मोनिंदर पंधेर और सुरिंदर कोली दोनों को साल 2009 में बलात्कार, हत्या, सबूतों को नष्ट करने और अन्य आरोपों से जुड़े मामलों में ग़ाज़ियाबाद की एक सीबीआई अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई थी.
11 मामलों में कोली इकलौते अभियुक्त थे और दो मामलों में उन्हें पंधेर के साथ सहअभियुक्त बनाया गया था.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने साल 2023 में कोली को केस से जुड़े 12 मामलों में बरी कर दिया. साथ ही मोनिंदर भी अपने ख़िलाफ़ दर्ज दो मामलों में निर्दोष साबित हुए.
कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि जाँच ख़राब तरीक़े से की गई है और "सबूत इकठ्ठा करने के बुनियादी मानदंडों का खुलेआम उल्लंघन किया गया है."
कोर्ट ने अपने फ़ैसले में क्या कहा था?
कोर्ट के इस फ़ैसले को समझाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता पारस नाथ सिंह कहते हैं, ''इस केस में कोई परिस्थितिजन्य साक्ष्य नहीं थे. इसलिए कोली के जो भी क़बूलनामे सीबीआई ने दर्ज किए थे, उन्हें कोर्ट ने भरोसे के लायक नहीं माना. क़ानून के मुताबिक़ कबूलनामा ख़ुद से किया हुआ होना चाहिए, किसी डर या दबाव में नहीं.''
308 पन्ने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले की कॉपी के पेज नंबर 47 पर लिखा है, '' कोली 60 दिनों तक पुलिस कस्टडी में रहे लेकिन इन 60 दिनों में कभी भी उनकी मेडिकल जाँच नहीं हुई, जिससे शारीरिक प्रताड़ना जैसी संभावनाओं पर संशय बरकरार रहता है. केवल साल 2007 में एक मेडिकल सर्टिफ़िकेट लाया गया, जिसकी विश्वसनीयता को पुष्ट करने के लिए डॉक्टर को गवाही के लिए नहीं पेश नहीं किया गया."
फ़ैसले में लिखा गया है कि जिस मैजिस्ट्रेट के सामने कोली के कथित कबूलनामे दर्ज किए गए उन्होंने भी इस चीज़ को लेकर संतुष्टि नहीं ज़ाहिर की कि अभियुक्त ने ये बिना किसी के दबाव के कहा है.
हाई कोर्ट ने इस चीज़ को हाइलाइट किया कि अभियोजन पक्ष ने समय-समय पर अपने स्टैंड बदले.
शुरुआती केस कोली और हाउस नंबर डी-5 के मालिक मोनिंदर पंधेर के ख़िलाफ़ दर्ज किया गया था.
जो चीज़ें स्पॉट से मिलीं, उनके लिए भी दोनों को ज़िम्मेदार माना गया.
लेकिन समय के साथ सारी चीज़ों के लिए कोली को ही दोषी ठहराया जाने लगा.
जाँच के अलग-अलग स्तर पर अभियोजन पक्ष के सबूत भी बदलते रहे और आख़िर में केवल कोली का कबूलनामा ही इकलौता आधार रह गया, जिसकी विश्वसनीयता पहले से ही सवालों के घेरे में थी.
11 नवंबर को कोली के ख़िलाफ़ लंबित आख़िरी मामले में फ़ैसला सुनाते हुए सीजेआई बीआर गवई की बेंच ने कहा, "जिन सबूतों को कोर्ट ने अपर्याप्त और अविश्वसनीय बताकर कोली को पहले ही 12 मामलों में बरी कर दिया था. उन्हीं सबूतों के आधार पर एक मामले में उसे दोषी बनाए रखना संवैधानिक रूप से सही नहीं है."
कोर्ट ने माना कि निठारी में जो अपराध हुए वो बहुत डरावने थे और जिन परिवारों ने अपने बच्चे खोए, उनकी तकलीफ़ शब्दों में नहीं बयां की जा सकती. लेकिन इतनी लंबी जाँच के बाद भी असल अपराधी कौन है, यह पक्के सबूतों के साथ साबित नहीं हो पाया है.
कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा, ''क़ानून किसी को सिर्फ़ शक के आधार पर दोषी नहीं ठहरा सकता. चाहे शक कितना ही बड़ा क्यों न हो, अदालत को ठोस सबूत चाहिए. अदालत ने साफ़ कहा कि न्याय करने के दबाव में क़ानूनी नियमों को दरकिनार नहीं किया जा सकता.''
कोर्ट ने आख़िर में पुलिस और एजेंसियों की जाँच प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए.
कोर्ट ने कहा, ''अगर जाँच समय पर, पेशेवर तरीक़े से और संविधान के नियमों के मुताबिक हो, तो सबसे मुश्किल मामलों में भी सच सामने लाया जा सकता है. लेकिन निठारी मामले में ऐसा नहीं हुआ. लापरवाही और देरी ने पूरी जाँच को कमज़ोर कर दिया और उन रास्तों को भी बंद कर दिया जहाँ से असली अपराधी तक पहुँचा जा सकता था.''
नतीजा ये है कि मोनिंदर सिंह पंधेर और सुरिंदर कोली दोनों सभी मामलों में निर्दोष साबित हो चुके हैं और अब रिहा भी हैं.
लेकिन कोर्ट के फ़ैसले ने उन परिवार के लोगों को हताश और परेशान ज़रूर किया है, जिनके बच्चों की हत्या हुई.
वो सवाल कर रहे हैं कि आख़िर उनके बच्चों की जान किसने ली?
कोर्ट के इस फ़ैसले ने उनके ज़ख्मों को न केवल हरा कर दिया है बल्कि कई सवाल अब भी उन्हें परेशान कर रहे हैं.
क्या था निठारी कांड?
साल 2005 से 2006 के बीच दिल्ली से सटे नोएडा के निठारी गाँव में एक के बाद एक कई बच्चों और युवतियों के ग़ायब होने की घटना सामने आई थी.
इन बच्चों और बच्चियों के परिजनों ने स्थानीय थाने में इन मामलों से जुड़ी शिकायत की लेकिन पुलिस पर महीनों तक अनदेखी के आरोप लगे.
आख़िरकार पुलिस ने जाँच शुरू की, तो पंधेर के घर के पीछे के नाले से 19 कंकाल बरामद किए गए. मोनिंदर सिंह पंधेर और सुरिंदर कोली को गिरफ़्तार किया गया.
मामला सीबीआई तक पहुँचा, जाँच एजेंसी को अपनी खोजबीन के दौरान मानव हड्डियों के कुछ हिस्से और 40 ऐसे पैकेट मिले जिनमें मानव अंगों को भरकर नाले में फेंक दिया गया था.
जाँच आगे बढ़ी और साल 2009 में ग़ाज़ियाबाद की सीबीआई अदालत ने एक मामले में दोनों को फाँसी की सज़ा सुनाई.
लेकिन बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट से होते हुए मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा और कोर्ट ने अपने फ़ैसले में दोनों ही अभियुक्तों को निर्दोष बताया.


