दिनेश आकुला की विशेष रिपोर्ट-
हैदराबाद, 7 अगस्त। दिसंबर 2023 में तेलंगाना की खुफिया शाखा को एक गोपनीय पत्र मिलने के बीस महीने बाद, राज्य की राजनीति को हिला देने वाला फोन टैपिंग मामला अब निर्णायक स्थिति में पहुंच गया है। आठ अगस्त को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री बंदी संजय कुमार अपने स्टाफ के साथ हैदराबाद में विशेष जांच दल यानी एसआईटी के सामने पेश होंगे। यह गवाही पहले संसद सत्र की वजह से टल गई थी। अब उनसे यह उम्मीद की जा रही है कि वे केंद्र सरकार की खुफिया एजेंसियों से मिली जानकारी पेश करेंगे, जिसमें जजों, नौकरशाहों और आम नागरिकों के फोन की अवैध निगरानी से जुड़े सबूत हो सकते हैं।
यह पूरा मामला छह दिसंबर दो हजार तेईस को शुरू हुआ था, जब कांग्रेस ने राज्य की सत्ता संभालने के तीन दिन बाद रिलायंस जियो इंफोकॉम ने स्पेशल इंटेलिजेंस ब्रांच को एक गोपनीय पत्र भेजा। इस पत्र में पूछा गया था कि क्या विधानसभा चुनाव से पहले सोलह से तीस नवंबर तक जिन फोन नंबरों की कानूनी निगरानी की गई थी, उसे आगे बढ़ाया जाए या नहीं। कुछ अन्य टेलीकॉम कंपनियों ने भी इसी तरह के पत्र भेजे, जिसके बाद आंतरिक जांच शुरू हुई और यह बड़ा मामला सामने आया।
जिन करीब छह सौ फोन नंबरों की निगरानी की गई थी, वे किसी नक्सल या उग्रवादी गतिविधियों से जुड़े नहीं थे, जबकि एसआईबी का मूल उद्देश्य वामपंथी उग्रवाद की निगरानी करना है। जिन लोगों के फोन टैप किए गए, उनमें विपक्षी नेता, वरिष्ठ अधिकारी, एक वर्तमान हाईकोर्ट जज, कारोबारी और यहां तक कि कुछ राजनेताओं के पुराने मित्र और ड्राइवर तक शामिल थे। यह कोई सुरक्षा संबंधी अभियान नहीं था, बल्कि राजनीतिक विरोधियों पर नजर रखने की एक रणनीति थी, जिससे तत्कालीन सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति को चुनाव में फायदा पहुंचाया जा सके।
शिकायत से जांच और आरोपपत्र तक
यह मामला उस वक्त तेजी से आगे बढ़ा जब दस मार्च दो हजार चौबीस को एक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ने डिप्टी एसपी प्रणीथ राव के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। आरोप था कि उन्होंने गैरकानूनी तरीके से फोन टैप किए और उसके सबूत भी मिटा दिए। यही शिकायत आगे चलकर एसआईटी जांच का आधार बनी।
आठ जून को एसआईटी ने पांच वरिष्ठ पुलिस और खुफिया अधिकारियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया। इनमें पूर्व एसआईबी प्रमुख प्रभाकर राव, डिप्टी एसपी प्रणीथ राव, थिरुपथन्ना, भुजंगा राव और राधाकिशन राव शामिल हैं। इनके अलावा एक निजी टेलीविजन चैनल के संचालक श्रवण कुमार राव को भी आरोपी बनाया गया। चार अधिकारी फिलहाल जमानत पर बाहर हैं, जबकि श्रवण एक अन्य मामले में जेल में हैं।
जांच के दौरान एक और गंभीर तथ्य सामने आया। चार दिसंबर को यानी चुनाव नतीजे आने के अगले ही दिन एसआईबी दफ्तर से बासठ हार्ड ड्राइव नष्ट कर दी गईं। माना जाता है कि यह काम प्रभाकर राव के निर्देश पर हुआ, जिन्होंने उसी दिन पद से इस्तीफा दे दिया था। इनमें से कुछ हार्ड ड्राइव बाद में मूसी नदी से बरामद की गईं। एसआईटी का कहना है कि इनमें राजनीतिक प्रोफाइलिंग, कॉल रिकॉर्डिंग और अवैध निगरानी से जुड़ी संवेदनशील जानकारी मौजूद थी।
पूर्व टास्क फोर्स अधिकारी राधा किशन राव ने एसआईटी को बताया कि यह पूरा काम ‘पेद्दयिना’ के कहने पर किया गया था। जांचकर्ताओं का मानना है कि यह शब्द पूर्व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के लिए इस्तेमाल हुआ।
सुप्रीम कोर्ट की दखल
इसी मामले में उनतीस मई दो हजार पच्चीस को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश दिया। अदालत ने प्रभाकर राव को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी और उन्हें अमेरिका से भारत लौटकर जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया। साथ ही यह भी कहा गया कि जब तक अगली सुनवाई नहीं होती, तब तक पुलिस उनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं कर सकती। अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि आरोपी खुद लौटने को तैयार हैं, इसलिए प्रत्यर्पण की प्रक्रिया की जरूरत नहीं है।
राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों ने इसका विरोध किया था, यह कहते हुए कि राव पहले ही घोषित अपराधी घोषित किए जा चुके हैं।
राजनीति में गर्मी
यह मामला अब पूरी तरह राजनीतिक बहस में बदल गया है। बाईस जुलाई को बीआरएस नेता प्रवीण कुमार ने मामले की सीबीआई जांच की मांग की। उन्होंने मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी पर चुनावों के बाद निजी एजेंसियों और पेगासस स्पाइवेयर के जरिए फोन टैपिंग कराने का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी कहा कि गृह मंत्री अमित शाह को इस पर जानकारी थी और खुद उनके फोन की भी निगरानी की गई।
दो दिन बाद मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने जवाब दिया कि यह शिकायत कांग्रेस सरकार में नहीं, बल्कि बीआरएस शासन में ही दर्ज की गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि अगर एसआईटी उन्हें बुलाएगी तो वे पूरी तरह सहयोग करेंगे।
पच्चीस जुलाई को बीआरएस नेताओं ने आरोपों को और तेज करते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार ने सभी मौजूदा विधायकों और सांसदों के फोन हैकर्स के जरिए टैप करवाए। उन्होंने कहा कि एसआईटी कांग्रेस नेताओं को बचा रही है और बीआरएस नेताओं को निशाना बना रही है, जबकि खुद रेवंत रेड्डी पहले यह कह चुके हैं कि उनके फोन भी पिछली सरकार में टैप किए गए थे।
उधर, बीजेपी भी अब खुलकर सामने आ गई है। पार्टी की कानूनी इकाई ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर जांच सीबीआई को सौंपने की मांग की है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने की तैयारी की जा रही है।
अब जांच कहां तक पहुंची है
पूर्व मुख्य सचिव शांति कुमारी ने बाईस जून को एसआईटी के सामने बयान देते हुए कहा कि निगरानी की स्वीकृति देने वाली समिति को गुमराह किया गया था। उनके अनुसार करीब सोलह सौ फोन नंबरों की अवैध निगरानी की गई थी, जो अब एसआईटी की जांच के दायरे में हैं।
जून में बीजेपी सांसद एटाला राजेंदर और कोन्डा विश्वेश्वर रेड्डी ने बयान देकर बताया कि फोन टैपिंग की शुरुआत दो हजार अठारह से ही हो गई थी। छह जुलाई को एसआईटी ने स्पष्ट किया कि किसी फिल्म कलाकार की निगरानी के कोई सबूत नहीं मिले हैं और अब जांच पूरी तरह से राजनीतिक और प्रशासनिक व्यक्तियों पर केंद्रित है।