बिहार में कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले राज्य में स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न (एसआईआर) का अभियान चल रहा है.
राज्य के प्रमुख विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस ने मतदाता सूची में अनियमितता को लेकर एसआईआर के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है. रविवार से ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में वोट अधिकार यात्रा शुरू हुई है.
लेकिन इन सबके बीच विधानसभा चुनावों के लिए राजनीतिक पार्टियों की तैयारी भी जोर पकड़ रही है और राजनीतिक दल अपने-अपने गठबंधन को मजबूत बनाने और मुद्दों को धार देने में जुट गए हैं.
राज्य में सत्तारूढ़ एनडीए की सरकार के ख़िलाफ़ आरजेडी खुद को सबसे बड़ी चुनौती के रूप में पेश कर रही है. उसके निशाने पर एक तरफ़ नीतीश कुमार की सरकार की नीतियां हैं तो दूसरी तरफ़ नई पार्टी के साथ राजनीति में उतरे प्रशांत किशोर हैं.
आरजेडी नेता और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव अपने कार्यकाल के दौरान हुए कामों का श्रेय लेते रहे हैं और इसी बहाने नीतीश सरकार पर हमला बोलते रहे हैं.
लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी नीति क्या होगी, गठबंधन के समीकरण क्या होंगे और प्रशांत किशोर के सवालों से कैसे निपटेंगे... बीबीसी हिंदी के साप्ताहिक कार्यक्रम, 'द लेंस' में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़म मुकेश शर्मा ने इन्हीं मुद्दों पर उनसे चर्चा की.
इस चुनाव में क्या हैं मुद्दे?
सवालः इस बार के तीन बड़े वायदे क्या हैं?
जवाबः जो वादे हमने किए हैं, 17 महीने की सरकार में हमने उसे लागू किया. चाहे नौकरी देने का हो या और चीजें हों. और इसके बाद भी जितने वादे हम लोगों ने किए, नकलची सरकार ने उसकी नकल की.
चाहे फ्री में बिजली की बात हो, पेंशन की बात हो और डोमिसाइल की बात हो, सारे हमारे विज़न को ही इम्प्लिमेंट करना है. भले ही आप कॉपी कर सकते हो लेकिन आप विज़न नहीं ला सकते. वो विज़न हमारे पास है.
बिहार में सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी, पलायन, गरीबी और महंगाई है. यहां न कारखाना है, न इंडस्ट्री है, न एग्रीकल्चर बेस्ड इंडस्ट्रीज हैं. न फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट्स हैं, न शुगर मिल चालू हो रही है न जूट मिल.
लोग रोजगार, चिकित्सा और शिक्षा के लिए बाहर जाते हैं. तो मुद्दा है पढ़ाई, दवाई, कमाई. अगर हम नौकरी देने लगें, अच्छी शिक्षा, अच्छी चिकित्सा व्यवस्था अगर दें तो पलायन रुकेगा. हमारा ध्यान इसी पर है. हमारे पास विज़न है.
और जब लोगों के पास जाते हैं, जब गरीबी देखते हैं तो दर्द होता है. तो 20 साल की निकम्मी, नकलची और खटारा सरकार को बदलने का अब वक़्त आया है. अब नए लोगों को मौका मिलना चाहिए और जनता भी चाहती है कि इस बार परिवर्तन हो.
हमारा विशेष ध्यान, पढ़ाई, दवाई कमाई, सिंचाई, सुनवाई और कार्रवाई वाली सरकार देने पर रहेगा.
मुख्यमंत्री जी को 20 सालों में कोई इन्वेस्टमेंट लाते हुए देखा, विदेश जाकर इसका प्रयास करते देखा है?
ये तो नीति आयोग की बैठक में नहीं जाते, इन्वेस्टमेंट में नहीं जाते, तो थके हुए मुख्यमंत्री से कोई अपेक्षा नहीं की जा सकती है. इनके कोई केंद्रीय मंत्री देख लीजिए, कोई प्रयास नहीं करता है बिहार में.
टेक्सटाइल मिनिस्ट्री गिरिराज सिंह के पास है, टेक्सटाइल पार्क देश भर में दिए, बिहार को नहीं दिए. फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट चिराग पासवान जी के पास है. एक भी फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट बिहार में लगवाए हों तो बता दीजिए. इन लोगों को केवल सत्ता का सुख लेना है, बिहार की सेवा नहीं करनी है.
शराबबंदी पर क्या रहेगा रुख़?