संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : राम के चरित्र की व्याख्या ऐसे भला कैसे पूरी होगी?
11-Aug-2020 8:10 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : राम के चरित्र की व्याख्या  ऐसे भला कैसे पूरी होगी?

असम में कल दो केस दर्ज हुए हैं। वहां के भाजपा विधायक शिलादित्य देव पर आरोप है कि अयोध्या में शिलान्यास के दिन उन्होंने असम में हुए साम्प्रदायिक तनाव पर बोलते हुए वहां के एक कवि और उपन्यासकार सैय्यद अब्दुल मलिक को बुद्धिजीवी जेहादी कहा था। इस टिप्पणी के खिलाफ बहुत से संगठनों ने शिकायत दर्ज कराई थी। पद्मश्री स्व. सैय्यद अब्दुल मलिक का बड़ा सम्मान है, और उनके खिलाफ ऐसी ओछी बातें कहने पर राज्य की भाजपा सरकार मेें भी यह शिकायत दर्ज कराई गई है। भाजपा के कुछ नेताओं ने भी अपने इस विधायक के ऐसे बयान के खिलाफ बयान दिए हैं, और कांग्रेस ने कहा है कि यह भाजपा विधायक पागल है जिसे पागलखाने भेजना चाहिए। यह भाजपा विधायक इस तरह के मुस्लिम-विरोधी बयान देने के लिए ही पहचाना जाता है। पार्टी में पहले भी उसे ऐसे बयानों के खिलाफ चेतावनी दी हुई है। अब दूसरा मामला असम का ही है, और वहां पर एक प्राध्यापक अनिंद्य सेन के खिलाफ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक कार्यकर्ता ने शिकायत दर्ज कराई है कि अनिंद्य सेन की एक फेसबुक पोस्ट धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली है। इस फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि यह सारा नाटक उस व्यक्ति के लिए हो रहा है जिसने अपनी पत्नी को निकाल फेंका था। इस डर से कि लोग क्या कहेंगे।  इस पोस्ट में सवाल-जवाब की तर्ज पर आगे यह भी लिखा हुआ था कि अच्छा, यह श्रीरामचन्द्र के बारे में हैं? इस मामले में पुलिस ने कई धाराओं के तहत जुर्म दर्ज कर लिया है। शिकायतकर्ता ने यह भी लिखाया था कि अनिंद्य सेन देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री जैसे संवैधानिक पदों का भी अपमान करते हैं। 

हम असम में वहां के गुजर चुके विद्वान लेखक-कवि के बारे में अधिक नहीं जानते, लेकिन लगता है कि उनसे सभी पार्टियों के लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई थीं, और इसलिए जब उन्हें बुद्धिजीवी जेहादी कहा गया, तो उसके खिलाफ भाजपा तक में प्रतिक्रिया हुई। दूसरी तरफ दूसरी फेसबुक पोस्ट राम के बारे में हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में ही स्थापित एक सत्य या तथ्य को ही लिख रही है कि राम ने अपनी पत्नी को घर से निकाल दिया था। क्या यह तथ्य विवादास्पद है? क्या इस पर धार्मिक भावनाएं आहत होने का जुर्म थाने के स्तर पर तय होगा? अगर ऐसा है तो रामायण और रामचरित मानस की हर प्रति भावनाओं को आहत करने वाली है, और उन पर ठीक वैसी ही कार्रवाई होनी चाहिए जैसी कि किसी के घर पर नक्सल-साहित्य मिलने पर होती है। सच को इतना नकार देना भी कोई बात है कि खुद हिन्दू धार्मिक गं्रथों में, रामकथा वाले हर ग्रंथ में यह बात लिखी हुई है कि अपनी प्रजा के एक आदमी की कही हुई ओछी बात को सुनकर राम ने सीता को घर से निकाल दिया था। और यह निकालना भी उस वक्त था जब सीता गर्भवती थी, और बाद में लव-कुश का जन्म हुआ था। इस बात का जिक्र भारत में महिलाओं की स्थिति को बताने के लिए दर्जनों बार हमने इस अखबार में भी किया है। धार्मिक भावनाओं की इतनी तंग व्याख्या अगर की जाएगी, तो सबसे पहले तो सारे धार्मिक ग्रंथ ही प्रतिबंधित करने पड़ेंगे क्योंकि किसी में इस तरह की बेइंसाफी है, किसी और में किसी और देवता द्वारा किसी दूसरी महिला के साथ ज्यादती का जिक्र है, और बेइंसाफी तो कई किस्म की चारों तरफ धर्मग्रंथों में दर्ज है ही। तो क्या उसकी चर्चा ही न की जाए? यह पूरा सिलसिला इतना खतरनाक है कि लोग धीरे-धीरे धर्मग्रंथों से परहेज करने लगेंगे, उनकी चर्चा बंद करने लगेंगे। 

जिस दूसरी खबर का जिक्र किया गया है उसमें बयान के जिस हिस्से को लेकर बवाल खड़ा है, वह एक गुजरे हुए लेखक को बुद्धिजीवी-जेहादी कहने पर है। इन दोनों शब्दों के अलग-अलग अर्थ देखे जाएं, तो शाब्दिक अर्थ में तो यह बात साम्प्रदायिक नहीं है, लेकिन विवादास्पद भाजपा विधायक ने अपने लंबे इतिहास के मुताबिक जिस साम्प्रदायिक तनाव के बीच ऐसा बयान दिया है, उसे उसी की पार्टी, भाजपा ने वहां पर गलत माना है, और उसका विरोध करने की खुली चेतावनी दी है। ये दो शब्द जो कि किसी दूसरे संदर्भ में लोकतांत्रिक सीमा में माने जा सकते थे, वे भी एक साम्प्रदायिक तनाव के संदर्भ में हिंसा को बढ़ाने वाले दिखते हैं, एक गुजरे हुए लेखक-कवि के अपमान के तो माने ही गए हैं। 

राम हों या कृष्ण, या किसी और धर्म के दूसरे ईश्वर माने जाने वाले लोग, जिन धर्मों को लेकर खुली चर्चा की परंपरा रही है, उन धर्मों के लोगों की यह नई तंगदिली अधिक खतरनाक है। हिन्दुस्तान में जाने कितने ही विश्वविद्यालयों में रामचरित मानस के महिला चरित्रों पर पीएचडी हुई है। राम के चरित्र पर पीएचडी हुई है,  जिसमें अब तक सैकड़ों, हजारों जगह यह तथ्य लिखा गया है कि राम ने अपनी पत्नी को घर से निकाल दिया था, क्योंकि प्रजा के एक व्यक्ति ने एक संदेह जाहिर किया था, और राम का मानना था कि राजा को संदेह से परे होना चाहिए। जिस बात के लिए राम को महिलाविरोधी करार दिया जाता है, उसी बात के लिए राम को मर्यादा पुरूषोत्तम भी कहा जाता है। ऐसे में रामकथा की शुरुआत से ही जो निर्विवाद तथ्य उसमें चले आ रहा है, उसे लिखने पर धार्मिक भावनाएं आहत होने की बात किसी राजनीतिक दल को तो ठीक लग सकती है, लेकिन एक प्राध्यापक के खिलाफ इस बिना पर जुर्म दर्ज कर लेना कानून का बहुत ही बेजा इस्तेमाल है, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर परले दर्जे का हमला है। 

धार्मिक भावनाओं के आहत होने का तर्क बड़ा ही अजीब है। हिन्दुस्तान में हिन्दू धर्म के भीतर नास्तिकों की एक शाखा है जिसमें ईश्वर को न मानने वाले लोग हैं। जिस हिन्दू धर्म में अपने भीतर नास्तिकों को मान्यता देने का इतिहास है, उसी हिन्दू धर्म का बेजा इस्तेमाल करके लोग आज अपनी राजनीति की गोटी बिठा रहे हैं, लोगों पर हमले कर रहे हैं। दूसरे कई धर्म हिन्दू धर्म के मुकाबले अधिक कट्टर हैं, और उनमें कट्टरता का एक इतिहास पूरी दुनिया में है। लेकिन हिन्दू धर्म में पहले जो उदारता थी, वह पिछले कुछ दशकों में धीरे-धीरे खत्म की गई है, और चुनावी राजनीति का एक हथियार उसे बना लिया गया है। 

राम के चरित्र की व्याख्या अपनी पत्नी सीता को घर से निकाले बिना भला कैसे पूरी हो सकती है? (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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