उत्तरप्रदेश में चल रहे महाकुंभ की खबरों को देखें तो हैरानी होती है कि आस्था लोगों से कैसी-कैसी तकलीफें उठवा लेती है। न सिर्फ प्रयागराज के आसपास, बल्कि उत्तरप्रदेश से लगे हुए पड़ोसी प्रदेशों तक हाल यह है कि वहां से ही ट्रैफिक रोक देना पड़ रहा है। एक खबर बताती है कि प्रयागराज से ढाई सौ किलोमीटर पहले ही मध्यप्रदेश में पुलिस ने आगे बढऩा रोक दिया है, और बताया है कि प्रयागराज के चारों तरफ सातों सडक़ों पर कई किलोमीटर का जाम है, और इसमें अगले कई दिन तक कोई कमी नहीं आनी है। एमपी पुलिस ने बताया कि दो सौ-तीन सौ किलोमीटर का जाम लगा है, आगे बढऩा नामुमकिन है। कुछ दूसरी खबरें बताती हैं कि शहर के लोग अपने घरों से निकल नहीं पा रहे हैं, स्कूल-कॉलेज के इम्तिहान ऑनलाईन लेने पर विचार चल रहा है क्योंकि छात्र-छात्राओं का स्कूल-कॉलेज पहुंचना मुमकिन नहीं है। एमपी के रीवां में प्रयागराज हाईवे पर 72 घंटे से जाम है, और जाम में फंसे हुए श्रद्धालुओं का हौसला टूटने पर भी वे वापिस नहीं मुड़ सकते। कुछ लोगों ने बताया कि चार-चार लेन पर इंच-इंच पर गाडिय़ां जाम हैं, और महिलाओं के लिए सडक़ किनारे शौच के लिए जाना भी नहीं हो पा रहा है। स्टेशन पर भयानक भीड़ है, डिब्बों में किसी भी तरह से लोग घुस रहे हैं, और किसी रिजर्वेशन का कोई मतलब नहीं रह गया है। एमपी के सीएम मोहन यादव ने ट्विटर पर लिखा है कि कुंभ जा रहे मध्यप्रदेश व अन्य जगहों के श्रद्धालुओं का रीवां से लेकर जबलपुर, कटनी, सिवनी जिलों तक रास्ता रूक गया है, और वाहनों में ज्यादातर बुजुर्ग महिलाएं, और बच्चे शामिल हैं। उन्होंने सरकारी अमले के साथ-साथ श्रद्धालुओं और जनप्रतिनिधियों से भी सहयोग करने की अपील की है। लोगों का कहना है कि प्रयागराज के आसपास कई तरफ लोग 24 घंटे से लेकर 48 घंटे तक सिर्फ अपनी गाडिय़ों में फंसे हुए हैं।
इस महाकुंभ में हुई एक भगदड़ में करीब 30 लोगों के मरने की खबरें थीं, लेकिन यूपी की योगी सरकार ने कुछ रहस्यमय कारणों से मौतों की खबर ही जारी नहीं होने दी थी। जिस तरह दसियों हजार करोड़ रूपए लगाकर इस महाकुंभ का आयोजन किया जा रहा है, वह कई सवाल खड़े करता है। जिस यूपी में पैसों की कमी से हजारों स्कूलें बंद हो चुकी हैं, वहां पर एक धार्मिक आयोजन के लिए, तीर्थयात्रियों की संख्या का रिकॉर्ड कायम करने के लिए योगी ने पैसा बहा दिया है। अब क्या सचमुच इतने खर्च की जरूरत थी, या आस्था के बीच ऐसे किसी भी लोकतांत्रिक सवाल को उठाना आज जुर्म कहा जाएगा, यह सोचना कुछ मुश्किल है। यह बात बहुत साफ है कि महाकुंभ में करोड़ों आस्थावान खुद होकर पहुंचे रहते, लेकिन इस बार योगी सरकार ने जिस तरह सैकड़ों या हजारों करोड़ खर्च करके इसका प्रचार किया, उसकी वजह से आने वाले लोग भी बढ़े, और जो लोग इसके पहले अयोध्या के राम मंदिर नहीं जा पाए होंगे, उनके लिए यह दो तीरथ एक साथ करने का मौका भी था। लेकिन जितने लोगों के आने का अंदाज था, उनके हिसाब से भी तैयारी करना मुमकिन नहीं था, और सुरक्षित तो बिल्कुल भी नहीं था। एक दिन, एक वक्त, एक जगह पर करोड़ों लोगों का इकट्ठा होना एक बहुत बड़ी चुनौती थी, और न्यौता भेज-भेजकर इस चुनौती को और बड़ा किया गया था। वैसे तो आस्था का समझ से अधिक रिश्ता रहता नहीं है, फिर भी यह सवाल उठता है कि क्या किसी जिम्मेदार सरकार को इतनी भीड़ के खतरों को इस हद तक और बढ़ाना था?
सभी धर्मों में कुछ खास दिनों पर किसी तीर्थस्थान पर भीड़ जुटती ही है। नागपुर में हर बरस दीक्षा भूमि में 10 लाख से भी अधिक लोग एक जगह आते हैं। हज यात्रा में भी मक्का में एक वक्त 18-20 लाख लोग इकट्ठा होते हैं, और उनके बीच भगदड़ में कई बार बहुत लोग मारे गए हैं। कुछ बरस पहले एक ही दिन में 24 सौ लोग मरे थे। लेकिन कुंभ की भीड़ तो मानवीय क्षमता से मुमकिन इंतजाम के मुकाबले भी बहुत अधिक बड़ी रहती है। और जब ऐसी भीड़ निजी कारों में भी आने दी जा रही है, तो जाहिर है कि वह सडक़ और पार्किंग सबको अधिक घेरेगी। यह बात हमारी समझ से परे है कि सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने का यह दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा मौका था, और कुंभ के चारों तरफ सौ-दो सौ किलोमीटर से सिर्फ बसों में आवाजाही अगर की गई होती, तो पैसा, पर्यावरण, ट्रैफिक जाम, प्रदूषण, समय सब कुछ बचा होता। एक बस के लायक मुसाफिर 15-20 कारों में पहुंच रहे हैं, और सरकार यहां पर एक कल्पनाशीलता दिखा सकती थी।
अच्छा हो कि कुंभ का यह आखिरी हफ्ता बिना किसी हादसे के निपट जाए, लेकिन सरकार के भीतर इस बात पर विचार जरूर होना चाहिए कि ऐसी अपार भीड़ के क्या-क्या खतरे हो सकते थे, और किसी भी जिम्मेदार सरकार को ऐसी बेहिसाब भीड़ से बचना चाहिए जिसमें कोई भी अप्रिय नौबत आने पर पुलिस कुछ न कर सके। आस्था के साथ न बहस हो सकती, न तर्क-वितर्क हो सकता, इसलिए हम यह नहीं कहेंगे कि लोगों को कुंभ के गिने-चुने दिनों में गंदे हो चुके पानी में डुबकी लगाने के बजाय बाद में इत्मिनान से परिवार सहित वहां जाना चाहिए था, ताकि वे चैन से कुछ वक्त गुजार सकते, लेकिन आस्था के साथ यह सब बात नहीं हो सकती। सरकार को लोगों को उनकी आस्था तक सीमित रखना था, उसे महंगे प्रचार से लोगों की भीड़ को और नहीं बढ़ाना था। इतने बड़े पैमाने पर कोई सुरक्षा इंतजाम हो नहीं सकता था, आज भी यह माना जाना चाहिए कि बहुत बड़े हादसे के बिना अगर यह निपटा है, निपट रहा है, तो वह लोगों की मेहनत के साथ-साथ एक संयोग की बात भी है। पूरी दुनिया में इससे बड़ा कोई धार्मिक जमावड़ा होता नहीं है, और यह भी कहा जा रहा है कि 144 बरस बाद आया हुआ महाकुंभ था। ऐसे में महाकुंभ के इस आयोजन से अलग-अलग प्रदेशों की सरकारों को बहुत कुछ सीखने मिला होगा, हमने कुंभ शुरू होने के पहले ही यह सलाह दी थी कि सरकारों को, और आईआईएम जैसे मैनेजमेंट संस्थानों को अपने लोगों को यहां सीखने के लिए भेजना चाहिए था। हो सकता है कि उन्होंने इस मौके का फायदा भी उठाया हो। फिलहाल चाहे जायज खर्च से, चाहे नाजायज फिजूलखर्ची से, इतने बड़े इंतजाम को करने के लिए योगी सरकार और उनके अमले को तारीफ तो मिलनी ही चाहिए, और इसमें जितना और सुधार हो सकता था, उसका सबक भी लेना चाहिए।