संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इतनी नफरती बातों के बाद भी यह जज बना रहेगा हाईकोर्ट जज?
11-Dec-2024 3:38 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : इतनी नफरती बातों के बाद भी यह जज बना रहेगा हाईकोर्ट जज?

विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकीलों का एक कार्यक्रम अदालत के परिसर में ही हुआ, और उसमें हाईकोर्ट के दो मौजूदा जज भी शामिल हुए। एक जज तो सिर्फ कार्यक्रम का उद्घाटन करके चुप रह गए, उन्होंने कुछ कहा नहीं, लेकिन जस्टिस शेखर यादव ने वहां भारत में अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के बारे में जो कहा, उसके बारे में उन्होंने खुद ही यह भी कहा कि मीडिया को इसमें से जो छापना रहे छाप ले, और अब उनके भाषण के वीडियो सार्वजनिक होने के बाद सुप्रीम कोर्ट तक सनसनी फैली हुई है। एक संगठन, द कैम्पेन फॉर ज्युडिशियल  अकाऊंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (सीजेएआर) ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखकर एक हाईकोर्ट जज के भयानक बयान की जांच करने कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रेसनोट में यह कहा है कि उसने जस्टिस शेखर यादव के भाषण का संज्ञान लिया है, और इस पर जानकारी मांगी है।

इस पर आगे चर्चा के पहले यह जान लेना जरूरी है कि जस्टिस शेखर यादव ने आखिर कहा क्या है। उन्होंने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर कहा कि हिन्दुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यकों के अनुसार ही देश चलेगा। एक से ज्यादा पत्नी रखने, तीन तलाक, और हलाला के लिए कोई बहाना नहीं है, और अब ये प्रथाएं नहीं चलेंगीं। उन्होंने कहा कि भारत में जिस नारी को हमारे यहां देवी का दर्जा दिया जाता है, उसके बारे में आप नहीं कह सकते कि आपके यहां चार पत्नियां रखने का अधिकार है, आपके हलाला का अधिकार है, ये सब नहीं चलने वाला है। उन्होंने कहा कि उन्हें यह कहने में जरा भी झिझक नहीं है कि ये हिन्दुस्तान है, और यहां के बहुसंख्यकों के अनुसार ही देश चलेगा, यही कानून है। कानून तो बहुसंख्यक से ही चलता है, परिवार में भी देखिए, समाज में भी देखिए, जहां पर अधिक लोग होते हैं, जो कहते हैं उसी को माना जाता है। उन्होंने कहा कि कठमुल्ले देश के लिए घातक हैं। उन्होंने कहा कि यह शब्द गलत है लेकिन उन्हें यह कहने में कोई गुरेज नहीं हैं, क्योंकि वो देश के लिए घातक हैं, जनता को बहकाने वाले लोग हैं, देश आगे न बढ़े इस प्रकार के लोग हैं, उनसे सावधान रहने की जरूरत है।

देश के बहुत से लोगों ने हाईकोर्ट के एक मौजूदा जज के ऐसे बयान पर गंभीर आपत्ति की है, और उन्हें बर्खास्त करने की मांग की है। अलग-अलग बहुत सी पार्टियों के लोगों ने जस्टिस शेखर यादव के विश्व हिन्दू परिषद के कार्यक्रम में जाने, और वहां भाषण देने को न्यायपालिका की संवैधानिक निष्पक्षता के खिलाफ करार दिया है। एक प्रमुख मुस्लिम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने 1997 के एक कानून, न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनस्र्थापन, का हवाला देते हुए कहा है कि उसके मुताबिक कोई जज ऐसी सार्वजनिक बहस में शामिल नहीं होगा जो अदालत में लंबित मामलों पर है, या जिनके अदालत में आने की संभावना है। कुछ लोगों ने याद दिलाया है कि जस्टिस शेखर यादव इसके पहले भी धर्मान्धता की बातें अदालत में कह चुके हैं, उन्होंने एक मामले में कहा था कि गाय की सुरक्षा को हिन्दू समाज का मूलभूत अधिकार बना देना चाहिए, और गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि गाय एकमात्र पशु है जो ऑक्सीजन छोड़ती है।

इस देश में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में हमेशा ही धार्मिक मामलों को लेकर कोई न कोई केस चलते ही रहते हंै। ऐसे में जाहिर तौर पर साम्प्रदायिक बात करने वाली विश्व हिन्दू परिषद के कार्यक्रम का हाईकोर्ट परिसर में होना भी भयानक है, और जजों का उसमें जाना भी। फिर इससे भी भयानक यह है कि एक जज ने उसमें घोर साम्प्रदायिकता की बातें कहीं, और मुस्लिमों के लिए नफरत की जुबान का इस्तेमाल किया। सीजेएआर ने मुख्य न्यायाधीश को लिखी चिट्ठी में इस जज के बारे में जो लिखा है वह गौर करने लायक है कि इनका भाषण संविधान की धारा 14, 21, 25, और 26 के खिलाफ है, और धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी सिद्धांत को खत्म करता है। इससे जनता के बीच न्यायपालिका की निष्पक्षता की छवि खत्म होती है। और यह भाषण एक जज की संविधान की शपथ के भी ठीक खिलाफ है। इस चिट्ठी में लिखा गया है कि जस्टिस यादव ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ अक्षम्य भाषा का इस्तेमाल किया है, और इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज की कुर्सी को शर्मिंदा किया है। इस जज ने मुस्लिम समुदाय के बच्चों के बारे में खतरनाक और खराब टिप्पणी की है। इस संगठन ने लिखा है कि इससे उनके जज बनने की काबिलीयत पर गंभीर सवाल उठ खड़े होते हैं, खासकर एक संवैधानिक कोर्ट (हाईकोर्ट का जज बनने के लिए) मुख्य न्यायाधीश से मांग की गई है कि जब तक इस मामले की जांच न हो जाए, तब तक जस्टिस यादव को सभी मामलों की सुनवाई से अलग कर दिया जाए।

चूंकि अदालती कामकाज से जुड़े हुए एक प्रमुख संगठन ने ही इन मुद्दों को उठाया है, इसलिए हमें इनसे सहमत होते हुए इन्हें दुहराने की जरूरत नहीं है। देश में आज बहुत से जज अलग-अलग मौकों पर, अलग-अलग फैसलों में, या सुनवाई के दौरान जुबानी जमा-खर्च में ऐसी साम्प्रदायिक बातें करते हैं। दिक्कत यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने किसी हाईकोर्ट जज की साम्प्रदायिकता के खिलाफ कार्रवाई की कोई मिसाल पेश नहीं की है। अगर हाईकोर्ट के किसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलटा भी है, तो भी किसी जज के खिलाफ कार्रवाई की कोई सिफारिश याद नहीं पड़ती है। दूसरी तरफ किसी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जज को हटाना एक नामुमकिन सा काम है क्योंकि उसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई के बहुमत से एक प्रस्ताव पारित करना होगा, और फिर संसद राष्ट्रपति से ऐसे जज को हटाने का अनुरोध करेगा। अब सवाल यह उठता है कि जब लोकसभा में सत्तारूढ़ भाजपा का सांसद बसपा के एक मुस्लिम विधायक को साम्प्रदायिक गालियां देता है, आतंकवादी और दलाल कहता है, और उस पर उनकी पार्टी के बड़े-बड़े नेता वहीं बैठे हँसते रहते हैं, तो फिर ऐसी संसद में एक साम्प्रदायिक जज के खिलाफ महाभियोग की क्या गुंजाइश रह जाती है? लोकसभा के इस भाषण पर कश्मीर के उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि भारत में मुसलमानों के खिलाफ नफरत आज इस तरह मुख्यधारा में आ गई है जैसी पहले कभी नहीं थी। उन्होंने लिखा कि इस सांसद की जुबान से एक मुस्लिम सांसद के खिलाफ किस आसानी से गालियां निकल रही हैं।

हमारी नजर में यह मामला बिल्कुल साफ है। अगर इस देश में लोकतंत्र है, और सुप्रीम कोर्ट को अपने आपको अदालत मानने की जरूरत है, तो जस्टिस यादव को तुरंत ही बर्खास्त किया जाना चाहिए। इसकी महाभियोग से परे क्या तरकीब हो सकती है? और अगर बर्खास्तगी मुमकिन न हो, तो क्या सुप्रीम कोर्ट किसी जज को सारे काम से अलग कर सकता है? इस बारे में सोचना चाहिए। फिलहाल देश के जनसंगठन इस मुद्दे को लेकर संसद से भी खुली अपील कर सकते हैं, और अदालत में भी एक जनहित याचिका लगा सकते हैं। इस तरह के बढ़ते हुए मामले एक असाधारण कार्रवाई की जरूरत बताते हैं।    (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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