दो राज्यों में विधानसभा के चुनाव के नतीजे, और कई राज्यों में बिखरे हुए विधानसभा उपचुनावों के नतीजे भाजपा के लिए बड़ी खुशी लेकर आए हैं। महाराष्ट्र में भाजपा, शिंदे सेना, और अजीत पवार का गठबंधन भारी बढ़ोत्तरी के साथ सत्तारूढ़ गठबंधन बना रहेगा। एनडीए गठबंधन को 38 सीटें अधिक मिल रही हैं, जो कि कांग्रेस-उद्धव-शरद पवार गठबंधन की 19 सीटों, और अन्य की 19 सीटों की कीमत पर हासिल हो रही हैं। महाराष्ट्र में भाजपा शिंदे-सेना से दोगुने से अधिक सीटें पाते दिख रही है, और इसका जाहिर मतलब यह है कि वहां अगला मुख्यमंत्री भाजपा का ही रहेगा। लगे हाथों महाराष्ट्र के नतीजों का एक शुरूआती विश्लेषण करें, तो दो कुनबों के बंटवारे में कुनबों के मुखिया नुकसान में रहे, शरद पवार और उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी के बचे-खुचे हिस्से के साथ बहुत सी सीटें विभाजित हिस्से के हाथों गंवा चुके हैं, फिर भी दिलचस्प बात यह है कि अभी दोपहर की लीड के मुताबिक महाराष्ट्र में सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस का हुआ है जिसने पिछली बार के मुकाबले 26 सीटें खोई हैं, और भाजपा ने महाराष्ट्र में 22 सीटें अधिक पाई हैं। इस तरह पूरे देश में कांग्रेस और भाजपा को आमने-सामने रखकर तुलना करने की जो आम बात है, वह महाराष्ट्र में साफ दिख रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस के साथ गठबंधन में उद्धव ठाकरे और शरद पवार की सीटें दोपहर 12 बजे मामूली बढ़ते दिख रही हैं।
महाराष्ट्र की सत्ता जिस गठबंधन के हाथ थी उसी के हाथ बनी हुई है। दूसरी तरफ झारखंड को देखें तो वहां इंडिया-गठबंधन की सरकार जारी रहने के आसार दिख रहे हैं। वहां इसके 51 सीटों पर बढ़त के आंकड़े आ रहे हैं, और इस पल एनडीए 22 सीटों पर पीछे है। कुल 81 सीटों की विधानसभा में यह रूख झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन की सत्ता जारी रहने का रूख दिखा रहा है। दोनों ही राज्य जिन गठबंधनों के हाथ थे, उन्हीं गठबंधनों के हाथ रहते हुए दिख रहे हैं। दूसरी बात यह कि भाजपा की सीटें इन दोनों ही राज्यों में बढ़ रही हैं। दोनों ही राज्यों में इन दोनों गठबंधनों से परे की सीटें कम होते दिख रही हैं, और वे गठबंधनों में जा रही हैं। मतलब साफ है कि गठबंधनों के बाहर स्वतंत्र रूप से लडऩे वाली छोटी पार्टियां इस बार मतदाताओं ने किनारे कर दी हैं, और दो ध्रुवों के बीच चुनाव हुआ है। दो छोटी-छोटी और बातें चर्चा के लायक हैं, झारखंड में लालू की पार्टी आरजेडी छह सीटों पर लड़ी थी, और वह पांच पर जीतते दिख रही है। दूसरी तरफ बंगाल के उपचुनावों में सभी छह सीटें सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस जीत रही है। मतलब यह कि कम से कम इन तीन राज्यों में वोटर सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन के साथ है।
दोनों ही राज्यों में विधानसभा के चुनाव बहुत किस्म की अदालती कार्रवाई के साये में हुए हैं। केन्द्रीय जांच एजेंसियां लगातार चुनिंदा लोगों को निशाना बनाते हुए लगी हुई थीं, और महाराष्ट्र और झारखंड दोनों जगह एनडीए विरोधी नेता जेल भी आते-जाते रहे हैं। खासकर महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी में जिस तरह से विभाजन हुआ उसने राज्य की राजनीति को छिन्न-भिन्न कर दिया, और केन्द्र और राज्य दोनों जगह सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन मजबूत होता चले गया। चुनावी नतीजे पहली नजर में मतदाताओं का यह रूख भी बताते हैं कि उसने एक स्थिर सरकार बनाने के लिए महाराष्ट्र में एनडीए को वोट दिया है क्योंकि एनडीए से परे किसी गठबंधन की सरकार महाराष्ट्र में स्थिर और स्थाई नहीं रह पाती।
महाराष्ट्र में एनडीए छलांग लगाकर आगे बढ़ा है, और विपक्षी राज वाले झारखंड में भी उसकी लीड अभी पिछली बार से अधिक सीटों पर दिख रही है। भाजपा इन चुनावों में सबसे बड़ी विजेता बनकर सामने आई है। दोनों ही राज्यों में एनडीए के भीतर कमल छाप की सीटें भी बढऩे का रूझान है। कांग्रेस के लिए राहत की एक छोटी सी बात यह हो सकती है कि विधानसभा चुनावों से परे केरल के वायनाड में हुए लोकसभा उपचुनाव में राहुल की खाली की हुई सीट पर प्रियंका तीन लाख से अधिक वोटों की लीड से आगे हैं, और यहां पर सीपीआई को डेढ़ लाख वोट, और भाजपा को 84 हजार वोट अब तक मिले हैं। गांधी परिवार के लिए यह एक निजी खुशी और राहत की बात है कि उत्तर भारत में अपनी कुछ जड़ें खो चुका यह परिवार दक्षिण के एकदम किनारे के केरल में अभी लाखों वोट से जीत रहा है। कांग्रेस के लिए यह भी एक फायदे की बात होगी कि लोकसभा में भाई उत्तर भारत की तरफ से खड़ा होगा, तो बहन दक्षिण भारत की तरफ से। इससे कांग्रेस की उत्तर, दक्षिण दोनों तरफ मौजूदगी बनी रहेगी, और हो सकता है कि शायद मजबूत भी हो।
वोट बढऩे और सीट बढऩे से परे ये चुनाव यथास्थिति को जारी रखने वाले दिखते हैं। दोनों राज्यों में मौजूदा सरकारें जारी रहेंगी, केरल की लोकसभा सीट गांधी परिवार में बनी रहेगी, बंगाल की सीटें टीएमसी के पास बनी रहेंगी, और छत्तीसगढ़ के अकेले विधानसभा उपचुनाव में भी भाजपा की सीट भाजपा के पास आ चुकी है। कर्नाटक में भी सभी तीन उपचुनावों में सत्तारूढ़ कांग्रेस की जीत हुई है। यूपी में भी आधा दर्जन सीटें सत्तारूढ़ बीजेपी को मिली हैं। आने वाले दिनों में अलग-अलग प्रदेशों के राजनीतिक विश्लेषण से यह बात साफ होगी कि बारीक मुद्दे क्या रहे। लेकिन अभी हम आसमान पर उड़ते पंछी की नजरों से देश के नक्शे को एक नजर देख रहे हैं, तो यह भाजपा-एनडीए की बढ़ोत्तरी, और काफी हद तक यथास्थिति जारी रहने की नौबत है। दोनों ही पक्षों के पास खुशी मनाने को कुछ-कुछ है, और कुछ-कुछ गम गलत करने को भी है। शाम को बैठने वाले इन दोनों ही गठबंधनों के लोगों के मूड और मर्जी पर यह निर्भर करेगा कि वे खुशी मनाएंगे, या गम गलत करेंगे, वैसे मतदाता ने दोनों ही बातों के लिए गुंजाइश छोड़ी है।