संपादकीय
देश के बहुत से राज्यों में भर्ती घोटाला सामने आते रहता है। कभी किसी राज्य में, तो कभी किसी और में। अब ताजा मामला छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित पीएससी घोटाले का है जिसमें डिप्टी कलेक्टर से आईएएस बने, और फिर पिछली भूपेश बघेल सरकार के बनाए हुए पीएससी चेयरमैन को अब सीबीआई ने गिरफ्तार किया है। टामन सिंह सोनवानी ने अपने पूरे कुनबे को पीएससी के रास्ते राज्य शासन की सबसे बड़ी नौकरियों पर चुन लिया था, लेकिन बात यहीं तक सीमित नहीं थी। इससे आगे बढक़र सोनवानी ने प्रदेश के एक बड़े उद्योगपति एस.के.गोयल से भी अपने किसी एनजीओ के लिए सीएसआर मद से करीब आधा करोड़ ले लिया था, और एवज में गोयल के बेटा-बहू को भी डिप्टी कलेक्टर बना दिया था। सोनवानी के राज में पीएससी ने जिस बेशर्मी से उस वक्त की सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के नेताओं के कुनबों को नौकरी दी, और कुछ अफसरों के बच्चों को भी, वह देखने के बाद लगता है कि प्रदेश के लाखों बेरोजगार आखिर किस भरोसे और उम्मीद से पीएससी का इम्तिहान दे रहे थे, अगर उनके हक की कुर्सियों पर पूरी तरह भ्रष्टाचार से ही लोगों को छांटना था।
छत्तीसगढ़ को ऐसा लगता है कि अविभाजित मध्यप्रदेश से ही नौकरियों और दाखिलों में भ्रष्टाचार की परंपरा विरासत में मिली है। यहां राज्य बनने के बाद से ही पीएससी का घोटाला होते आ रहा है, और 20 बरस पुराने घोटाले पर भी हाईकोर्ट में सब कुछ साबित हो जाने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट में बरसों से कोई फैसला नहीं हुआ है, और शायद गलत चुने गए लोगों के रिटायर हो जाने, और हक खो बैठे बेरोजगारों के मर जाने के बाद अदालत में उनकी बारी आएगी। देश भर में दाखिला इम्तिहानों, और नौकरी के इस सिलसिले में भ्रष्टाचार पनपने की एक बड़ी वजह यह भी है कि पहले तो हर किस्म की सत्ता ऐसे कमाऊ जुर्म में शामिल हो जाती है, और फिर मुजरिमों को बचाने के लिए एक बार फिर नेता, अफसर, जज, कारोबारी सभी जुट जाते हैं, क्योंकि जब कद्दू कटा था, तो सबमें बंटा था। ऐसे देश-प्रदेश में होनहार और काबिल बेरोजगार की कोई गुंजाइश कहां बचती है? और जब कभी भी दाखिला या नौकरी का एक भ्रष्टाचार सामने आता है, गरीब प्रतिभाशाली नौजवानों का हौसला पस्त हो जाता है। उनके सामने उम्मीद की वह चर्चित और तथाकथित किरण नहीं रह जाती जिसे गिनाते हुए बहुत सारी सूक्तियां बनती हैं।
सीबीआई ने इस मामले की गहरी जांच करके जुर्म की पहेली के टुकड़ों को जोडक़र तस्वीर बना ली है, और इसके पहले का कभी का याद नहीं पड़ता कि रिश्वत देने वाले इतने बड़े कारोबारी को भी इस तरह गिरफ्तार किया गया हो। यह बात भी हैरान करती है कि करोड़पति कारखानेदार भी अगर अपने बेटे-बहू को डिप्टी कलेक्टर बनवाने पर उतारू हैं, और उसके लिए सीएसआर मद से एक किस्म की रिश्वत देते हैं, तो इन ओहदों से आगे उन्हें किस तरह कमाई की उम्मीद है? अब अगर 25-50 लाख रूपए लेकर एक-एक डिप्टी कलेक्टर बनाए जा रहे हैं, तो गरीब बेरोजगारों के होनहार रहने पर भी उनके मां-बाप किडनी बेचकर भी ऐसी रकम नहीं जुटा सकते। कुछ प्रदेशों में दाखिला इम्तिहानों के पर्चे आऊट करने के पेशेवर गिरोह साल भर जुटे रहते हैं, और अभी कुछ जगहों पर ऐसा करने वालों के लिए उम्रकैद का भी प्रावधान किया गया है। छत्तीसगढ़ को भी यह सोचना चाहिए कि दाखिले और नौकरी के इम्तिहानों में भ्रष्टाचार साबित हो जाने पर सजा कितनी कड़ी होनी चाहिए, और रिश्वत लेने वालों के साथ-साथ देने वालों के लिए भी कड़ी कैद का इंतजाम किया जाना चाहिए। देश के कानून से परे प्रदेशों को अपने स्तर पर नए कानून बनाने की छूट भी है, और छत्तीसगढ़ को इस पर सोचना चाहिए।
प्रदेश में पिछली सरकार चलाने वाली कांग्रेस पार्टी को इस बात पर भी जवाब देना चाहिए कि उसके नेताओं के बच्चे राज्य सेवा के सबसे बड़े ओहदों पर किस तरह पहुंच गए। यह नहीं हो सकता कि कांग्रेस सरकार ऐसे परले दर्जे के मुजरिमों को संवैधानिक कुर्सियों पर बिठाए, और वहां का ऐसा व्यापक संगठित भ्रष्टाचार सत्तारूढ़ पार्टी की भागीदारी से चलता रहे, और अब तमाम सुबूत सामने आने के बाद भी कांग्रेस सन्यास भाव से बैठी रहे। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी दसियों लाख बेरोजगार नौजवानों और छात्रों के प्रति जवाबदेह है कि उसके मनोनीत लोगों ने, उसकी निगरानी में, उसकी पार्टी के लोगों को कुछ ओहदे देकर बाकी जुर्म के लिए प्रोटेक्शन कैसे खरीद लिया था। जो लोग भी गरीब और होनहार लोगों का हक मारकर बेइंसाफी भरा ऐसा भ्रष्टाचार करते हैं, उन्हें उम्रकैद भी मिलनी चाहिए, और उनके कुनबे की तमाम अनुपातहीन सम्पत्ति जब्त करके कुर्क करनी चाहिए, और उससे लाइब्रेरी बना देनी चाहिए।
आज बीती पीढ़ी के बहुत से लोगों को नई टेक्नॉलॉजी की बात यह समझ ही नहीं आ रही है कि अब मोबाइल फोन, कम्प्यूटर, फोन की लोकेशन, बैंकों के लेन-देन की बातें इतनी जगह दर्ज होती हैं कि जुर्म का छूट पाना बड़ा मुश्किल रहता है। फिर एक हैरानी इस बात की भी होती है कि जिन लोगों को लाखों रूपए महीने की सरकारी नौकरी मिलती है, तमाम सहूलियतों वाला संवैधानिक ओहदा मिलता है, जिनकी मोटी पेंशन का इंतजाम रहता है, उनकी लार टपकना भी बंद क्यों नहीं होता। देश की अदालतों को भी इस बारे में सोचना चाहिए कि दाखिला और नौकरी के मामलों में फैसला इतनी देर से न आए कि वह इंसाफ ही न रह जाए। छत्तीसगढ़ के एक पुराने पीएससी घोटाले में 20 बरस बाद भी देश की आखिरी अदालत का फैसला न आना यह बताता है कि भ्रष्टाचार को लंबे वक्त तक बचाकर रखना भी मुमकिन है, और भ्रष्टाचार के शिकार लोगों को इंसाफ, हो सकता है कि उनकी जिंदगी रहने तक न मिल पाए। यह इंसाफ भी कोई इंसाफ है लल्लू?