संपादकीय

तस्वीर / ‘छत्तीसगढ़’
छत्तीसगढ़ में शराब के ग्राहकों के लिए सरकार ने एक मोबाइल ऐप लाँच किया है। मनपसंद नाम के इस एप्लीकेशन से ग्राहकों को अलग-अलग शराब दुकानों में किस ब्राँड की कौन सी शराब उपलब्ध है इसकी खबर भी लगेगी, और उसका दाम भी पता लग जाएगा। इस मोबाइल ऐप से लोग शिकायत भी कर सकेंगे कि कहां कौन सा ब्राँड नहीं मिल रहा है। इसके साथ-साथ ग्राहकों की मांग के मुताबिक ब्राँड मुहैया कराने पर भी सरकार ने समाधान निकालने की बात कही है। अभी कुछ दिन पहले ही छत्तीसगढ़ में गिने-चुने शराबखानों के अलावा बहुत से और रेस्त्रां को भी शराब पिलाने की छूट देना तय किया गया है। इन सब बातों को लेकर कुछ लोग सरकार का मजाक उड़ा सकते हैं, लेकिन यह समझने की जरूरत है कि शराब जिंदगी की एक हकीकत है, और छत्तीसगढ़ की आबादी का तीन चौथाई हिस्सा शराब पीता है। ऐसे में सरकार के इस पूरी तरह नियंत्रण वाले कारोबार को जुर्म की तरह पेश करना सही नहीं है, और इसीलिए ग्राहकों को सहूलियत देने में कोई बुराई नहीं है।
अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से छत्तीसगढ़ शराब के मामले में पूरी तरह सरकारी नियंत्रण से जकड़ा हुआ रहा है, और हमेशा से ही इस विभाग को अंधाधुंध भ्रष्टाचार के हिसाब से चलाया जाता रहा है। हालत यह है कि अभी पिछले पांच बरस छत्तीसगढ़ में लोगों को पसंद आने वाले ब्राँड सरकार दुकानों में रखती ही नहीं थी, और घटिया ब्राँड लोगों को मजबूरी में खरीदने पड़ते थे। सरकार ने शराब का पूरा कारोबार अपने कब्जे में ले लिया था, और अगर ईडी की बात पर भरोसा करें तो भूपेश बघेल सरकार के पांच साल इस राज्य में शराब कारोबार सत्ता के पसंदीदा और चुनिंदा लोग माफिया के अंदाज में चला रहे थे, और वह प्रदेश का एक सबसे बड़ा जुर्म भी था। इस धंधे को एक गिरोह ऐसे चला रहा था कि शराबखाने भी उसके कब्जे में थे, और अरबपति कारखानेदार टेलीफोन पर भी किससे बात करें, किससे न करें, यह हुक्म भी सत्ता का यह गिरोह ही देता था। अब अगर राज्य सरकार शराब कारोबार को ग्राहकों की सहूलियत के हिसाब से ढाल रही है, तो यह टैक्स देने वाले शराबियों को एक जायज हक देने की बात है। सरकार को टैक्स उतना ही मिलता है, लेकिन सरकार अगर एक माफिया के अंदाज में कारखानेदारों से उगाही करती है, तो उसका नतीजा शराबियों को महंगी, घटिया, और नापसंद शराब की शक्ल में चुकाना पड़ता है।
हमारा तो यह मानना है कि जो कारोबार सरकार और कानून के कागजों में जुर्म नहीं है, उसे कारोबार की तरह चलने देना चाहिए। किसी भी दूसरे सामान के मामले में लोग अपनी मर्जी का ब्राँड खरीदते हैं, और बाजार का कारोबार ग्राहक की इसी आजादी से आगे बढ़ता है। किसी भी राज्य में शराब के कारोबार में हजारों करोड़ सालाना टैक्स देने वाले ग्राहकों को घटिया शराब पिलाने से उनका कुछ भला नहीं होता, यह जरूर होता है कि सत्तारूढ़ लोगों को कुछ सौ करोड़ रूपए मिल सकते हैं। अब अगर छत्तीसगढ़ सरकार लोगों के लिए शराबखाने और शराब आसान कर रही है, तो इससे लोगों का पीना नहीं बढ़ेगा, सरकार का टैक्स नहीं घटेगा, लेकिन शराब के ग्राहकों को भी इंसान जैसा बर्ताव मिलेगा। आज हालत यह है कि गिने-चुने शराबखाने भी आबकारी विभाग के नियमों में ऐसे बंधे हुए हैं कि वे ग्राहकों की मर्जी और पसंद की शराब नहीं परोस सकते। जिस तरह कल ही हमने ट्रम्प की अगली सरकार में सरकारीकरण कम करने, सरकार का चंगुल ढीला करने की तैयारी की तारीफ की है, उसी तरह छत्तीसगढ़ में भी शराब का मोबाइल ऐप, या उसकी घर पहुंच सेवा, या उसकी दुकानों को बेहतर बनाना, शराबखानों की मौजूदगी बढ़ाना, इन सबको हम बेहतर तरीका मानते हैं। लोग दुकानों में धक्का-मुक्की करके, लंबा वक्त बर्बाद करके, रेट से अधिक पैसा देकर शराब लें, और फिर किसी तालाब के किनारे या बगीचे में बैठकर गैरकानूनी तरीके से उसे पिएं, इससे अच्छा यह है कि शहर में शराबखाने चार-छह गुना बढ़ जाएं, और वहां लोग अपनी भुगतान की ताकत के मुताबिक खा-पी सकें। जो लोगों का कानूनी हक है, और सरकार के नियंत्रण का कारोबार है, उसे किसी पाप या जुर्म की तरह चलाना जायज बात नहीं है।
आबकारी विभाग हमेशा से एक बदनाम विभाग रहा है। छत्तीसगढ़ में पहली बार एक बहुत अच्छी साख वाली काबिल और ईमानदार महिला आईएएस इसकी सचिव है, और खुद मुख्यमंत्री इसके विभागीय मंत्री भी हैं। यह मौका इस विभाग को सुधारने का है, और टैक्स देकर शराब पीने वाले लोगों को एक जायज और कानूनी हक देने का है। शराबखाने बढऩे से लोगों का पीना नहीं बढ़ेगा, लेकिन लोगों का सार्वजनिक जगहों पर हंगामा करना कम जरूर होगा। आज शहर के अधिकतर बगीचों में शाम के बाद महिलाओं का घूमना आसान नहीं रहता है क्योंकि वहां लोग बैठकर शराब पीते रहते हैं। देश के जिन प्रदेशों में शराब को जुर्म जैसा न बताकर एक नुकसान वाली जरूरत की तरह बताया जाता है, और उसके कारोबार को नियमों के आल-जाल से निकाला जाता है, वहां पर शराब से जुड़ा भ्रष्टाचार कम होता है। महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कोई भी व्यक्ति एक निर्धारित फीस जमा करके शराबखाना खोल सकते हैं, और मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ जैसे बहुत से राज्यों में इसे पूरी तरह राजनीतिक मेहरबानी का काम बनाकर रखा गया है। अब अगर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अगुवाई में आबकारी विभाग चीजों को आसान करने जा रहा है, तो यह किसी भी तरह से शराब के धंधे को बढ़ावा देने की बात नहीं है, यह ग्राहक को उसका हक देने की बात है, और टैक्स देने वाले को एक निहायत-नाजायज अपराधबोध से मुक्त करने की बात भी है। देखना है कि आने वाले बरसों में छत्तीसगढ़ में सरकार की शराब से जुड़ी हुई बहुत सी नीतियां कैसी साबित होती हैं, चूंकि मुख्यमंत्री खुद ही विभागीय मंत्री हैं, इसलिए सरकार की साख भी आबकारी नीतियों और उसके अमल से जुड़ी रहेगी। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)