विचार / लेख
-बादल सरोज
लड़कियां हमेशा लड़कियां ही रहती हैं।
वे कभी बड़ी नहीं होती। उनकी उम्र बच्ची से किशोर, युवती से माँ, पत्नी से नानी और दादी होते हुए अंकों का जोड़ भर बढ़ाती रहती है-वे हमेशा लडक़ी ही बनी रहती हैं ।
-‘घोड़ी की घोड़ी हो गई है दुष्ट, जाने कब बड़ी होगी’ की फटकार सुनते ही
-किशोरी हुई लडक़ी चुपके से अपनी चुन्नी के धागों में छुपा लेती है अपने अंदर की लडक़ी-
-स्वेटर के फंदों में बुन लेती है कभी तो नीम के पत्तों के साथ बक्से में रख दी गई रजाई की रूई के बीच धर देती है सम्हाल कर।
-रसोई में, बिस्तर में, कॉलेज में दफ्तर में, खेतों में, सडक़ों पर; रोते में हँसते में, सोते में जगते में; चौबीसों घंटे अपने साथ रखती है।
-तपाक से इमली के पेड़ पर चढक़र, छाँटकर, सिर्फ काम लायक इमली तोड़, माली के आने से पहले फटाक से नीचे उतरकर हाथ पीछे कर मुंह पर ब्रह्मांड के सबसे भोले प्राणी के भाव सजा लेने वाली नटखट लडक़ी-विदा होते समय अपनी आंखों के जब्त किए आंसुओं में सहेज कर ले जाती है वह उसे, नहलाती-सुलाती है हमेशा अपने साथ-खेलती है उसके साथ, रस्सी कूदती है; रास्ते से गुजरते हुए आंखों ही आंखों में नापती है सडक़ किनारे खड़े इमली और कैरी के पेड़ की ऊंचाई-एक विजयी आश्वस्त मुस्कान के साथ।
-कुल्फी और आइसक्रीम खाने पर अक्सर डांटने वाली माँ-नानी-दादी के भीतर की नटखट लडक़ी मौका मिलते ही बाहर आ जाती है और पूरी उमंग के साथ जीती है अपना बचपन! चुस्की लगाते, आवाज करके आइसक्रीम खाते हुए।
-लड़कियां हमेशा लड़कियां रहती हैं। वे कभी बड़ी नहीं होती, उस तरह तो कतई नहीं जिस तरह लडक़े बड़े होते हैं।


