विचार / लेख
संजय श्रमण
मैं ऐसे सैकड़ों लोगों को जानता हूँ जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं, जिनका समाज में बड़ा नेटवर्क यही और जो इस देश की व्यवस्था बदलने के लिए निर्णायक काम करना चाहते हैं।
लेकिन इन लोगों से बात करने पर पता चलता है कि ये लोग जानते ही नहीं कि असल बदलाव होता कैसे है। इनमें से अधिकांश लोग सच में ईमानदार हैं और उनके दिलों मे देश और अपने बच्चों के भविष्य की गहरी चिंताएं हैं।
ऐसे सभी लोगों से एक निवेदन मैं बार-बार करता रहा हूँ। आप इस देश के लोगों को नए तार्किक और वैज्ञानिक धर्म की तरफ ले जाइए। स्वयं बुद्ध का अनुशासन अपना लीजिए और ज्यादा से ज्यादा बहुजनों को बुद्ध के मार्ग पर ले आइए। इससे बड़ी और कोई क्रांति नहीं है।
भारत ही नहीं दुनिया में सभी बड़े बदलाव मूल रूप से धार्मिक बदलाव होते हैं। राजनीतिक या आर्थिक बदलाव सिर्फ कुकुरमुत्तों की तरह बारिश में उगकर खत्म हो जाते हैं। इसका उदाहरण आप भारत में देख सकते हैं।
औपचारिक रूप से कागज या सर्टिफिकेट की कोई जरूरत नहीं है, बल्कि उस तरह का धर्म परिवर्तन खतरनाक और नुकसान पहुंचाने वाला होता है।
आप दिल से और आचरण से बौद्ध बन जाइए। फिर देखिए कितनी तेजी से इस देश में बदलाव होता है। आप बहुत थोड़ी सी मेहनत से अपने मुहल्ले से शुरुआत करते हुए अपने गाँव या शहर में हजारों लोगों को एक साल के अंदर बुद्ध के मार्ग पर ला सकते हैं। आज के समाज में जिस तरह की असुरक्षा और घृणा का वातावरण बन रहा है उसको देखकर भारत के सभी बहुजन अपने जीवन में बड़ा बदलाव करने के लिए तड़प रहे हैं। इस तड़प को पहिचानिए और इसे एक निर्णय में बदल दीजिए।
अगर आप सच में कुछ बदलना चाहते हैं तो भारत के मनोविज्ञान को समझिए। राजनीति असल में एक लाठी है और धर्म एक तोप है। आप जब राजनीतिक आंदोलन की बात करते हैं तब आप असल में तोप को छोडक़र लाठी से लडऩे की बात कर रहे हैं।
बहुजनों को अब धर्म की तोप का इस्तेमाल करना सीखना चाहिए, अगर आप अपने प्राचीन शत्रुओं को धर्म की तोप का खुला इस्तेमाल करते हुए देखते हैं और खुद राजनीति की लाठी का इस्तेमाल करते हैं तो यकीन मानिए आप हारने की तैयारी कर रहे हैं।
अब सही समय आ चुका है। लाठी को कूढ़े में फेंकिए और तोप चलाना सीखिए।


