विचार / लेख

राजनीति की बिसात के आगे...
28-Aug-2020 7:07 PM
राजनीति की बिसात के आगे...

कनुप्रिया

महज दो लोगों के रिश्ते में भी गड़बड़ हो जाए तो किसी एक को सीधे-सीधे आरोपी ठहराना मुश्किल होता है। भले एक हाथ कम हिला हो तब भी ताली दोनो हाथों से ही बजती है। यदि मैं महज अपनी ही दूसरे लोगों से लड़ाईयों की बात करूँ तो मैं जानती हूँ कि मेरे करीबी मेरा ठीक पक्ष देखेंगे मगर जो मुझे नहीं जानते और चीजों को दूसरी तरह देखते हैं उन्हें मेरे पक्ष में कई खामियाँ नजर आ सकती हैं।

हमारे समाज में भी रिश्तों का बनना आदर्श रूप से दो परिवारों का मिलन या दो व्यक्तियों का प्रेम कहा जाता है, मगर इतनी आदर्श स्थितियाँ होती नहीं हैं, बहुत से दूसरे कारणों से रिश्ते बनते हैं, जहाँ परिवारों में दहेज़, जाति, स्टेटस, कमाई यह सब देखा जाता है, दो लोग भी अपनी अपनी नीड्स और अपने अन्य हितों का खयाल करते हैं, जिनमे करियर बूस्ट, इमेज बूस्ट, बड़े कॉन्टेक्ट्स, सोशल प्रिविलेज, सेक्सुअल या इकोनोमिकल नीड्स ऐसे कई कई अन्य कारण शामिल रहते हैं.

तब फिल्मी दुनिया जैसी घोर व्यवसायिक और व्यवहारिक दुनिया मे रिश्तों के बारे में जज करना तो और मुश्किल है।

कल रिया चक्रवर्ती का इंटरव्यू सुना न तो उसे सुनकर ये लगा कि यही मासूम है और न ये लगा कि सुशांत सिंह की हत्या/ आत्महत्या की यही जिम्मेदार है। उसकी बातों में भी कई लूपहोल्स थे जिनकी शुरुआत सुशांत सिंह के सपने में आकर इंटरव्यू देने को कहने से ही हो गई थी मगर उसे ही अपराधी बनाने को ततपर हमारे समाज का महीन स्त्रीद्वेष भी एक पहलू है।

हमारी मनोवैज्ञानिक आदत होती है कि हम ठीकरा फोडऩे के लिये सर ढूँढा करते हैं, वो सर मिल जाए, सारे आरोप उस पर लगा दिए जाएँ, उसे सज़ा हो और मामला दफ़ा हो। अक्सर लपेटे में छोटे सर ही आते हैं, बड़े सर निकल जाते हैं।

इसलिये ये भी अजीब है कि इंडस्ट्री के बड़े भारी किरदार जो इस कहानी का हिस्सा थे वो ग़ायब हो गए और रिया चक्रवर्ती ही अहम कड़ी हो गईं। यह भी अजीब है कि सुशांत सिंह के बहाने नेपोटिज़्म और ख़ुद के बहाने फेमिनिज़्म का परचम लहराने वाली कंगना के पास सभी एक्टर एक्ट्रेस के लिये शब्द हैं मगर आउटसाइडर और एक स्त्री रिया चक्रवर्ती के लिए नहीं।

गोलमाल है भई सब गोलमाल है

सोचती हूँ सुशांत सिंह राजपूत का अगर मालूम होता कि मरणोपरांत उसकी और उससे जुड़े लोगों की पब्लिकली इतनी छीछालेदर होनी है तो शायद वो यह कदम न उठाता।

बाकी जो है सो अब बिहार के चुनाव ही तय करेंगे, किसी की बिसात क्या राजनीति की बिसात के आगे।


अन्य पोस्ट