विचार / लेख
-मोहम्मद शाहिद
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आयात होने वाले सामान पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी है। इसके साथ ही उन्होंने रूस के साथ व्यापार करने को लेकर जुर्माने की भी बात कही है। यह कैसा और किस तरह का जुर्माना होगा, यह अभी तक साफ़ नहीं है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल को भारत समेत दुनिया के 100 देशों पर टैरिफ लगाने की घोषणा की थी।
डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि अगर कोई देश अमेरिकी सामान पर ज़्यादा आयात शुल्क लगाता है, तो अमेरिका भी उस देश से आने वाली चीजों पर ज़्यादा टैरिफ लगाएगा। ट्रंप ने इसे ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ कहा है।
अप्रैल में डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 26 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। उस समय ट्रंप ने कहा था कि भारत अमेरिका से ट्रेड डील कर सकता है।
पहले टैरिफ की डेडलाइन 9 जुलाई तय की गई थी, लेकिन बाद में इसे बढ़ाकर 1 अगस्त कर दिया गया। इस डेडलाइन के पूरा होने से दो दिन पहले ही ट्रंप ने भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा की है।
हालांकि, भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर बातचीत जारी थी, लेकिन कुछ क्षेत्रों को लेकर मतभेद बने हुए थे।
रिपोर्टों के मुताबिक़, भारत जेनेटिकली मॉडिफ़ाइड फसलें (जैसे सोयाबीन और मक्का) आयात करने का विरोध कर रहा था और घरेलू डेयरी बाज़ार विदेशी कंपनियों के लिए खोलना नहीं चाहता था।
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार
साल 2024 में भारत और अमेरिका के बीच 129 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था, जिसमें भारत का लगभग 46 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष (ट्रेड प्लस) था।
भारत अमेरिकी वस्तुओं पर सबसे ज़्यादा टैरिफ लगाने वाले देशों में शामिल है। भारत आयात पर सर्वाधिक औसतन 17 फीसदी टैरिफ लगाता है। वहीं अमेरिका का टैरिफ दो अप्रैल से पहले 3।3 फीसदी ही था।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में साल 1990-91 तक औसत टैरिफ दर 125त्न तक थी। उदारीकरण के बाद यह कम होती चली गई। साल 2024 में भारत की औसत टैरिफ दर 11.66त्न थी।
द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत सरकार ने टैरिफ के 150त्न, 125त्न और 100त्न वाली दरों को समाप्त कर दिया है।
ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद भारत सरकार ने टैरिफ रेट में बदलाव किया। भारत में लग्जरी कार पर 125त्न टैरिफ था, अब यह 70त्न कर दिया गया है।
ऐसे में साल 2025 में भारत का औसत टैरिफ रेट घटकर 10।65त्न हो चुका है।
आमतौर पर हर देश टैरिफ लगाते हैं लेकिन अन्य देशों की तुलना में भारत सबसे ज़्यादा टैरिफ़ लगाने वाले में से एक है। इसी वजह से ट्रंप बार-बार भारत को दुनिया के सबसे ज़्यादा टैरिफ लगाने वाले देशों में गिनते हैं।
ट्रंप चाहते हैं कि जिन देशों के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा है उसे ख़त्म किया जाए।
भारत के किन क्षेत्रों पर पड़ेगा असर?
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर भारत के ऊपर 25 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा तो की है, लेकिन इसमें किस-किस क्षेत्र पर कितना टैरिफ लगेगा इसका ब्योरा नहीं दिया है।
हालांकि जब अप्रैल में टैरिफ की घोषणा की गई थी तब साफ था कि भारत के किन-किन क्षेत्रों पर इसका असर होगा।
अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले उत्पाद खासतौर से भारत के 30 क्षेत्रों से आते हैं। इनमें से छह कृषि और 24 उद्योग क्षेत्र में आते हैं।
हालांकि उस समय सबसे ख़ास बात यह थी कि भारत के सबसे बड़े औद्योगिक निर्यात-फार्मा उद्योग (लगभग 13 अरब डॉलर) को इस टैरिफ से छूट दी गई थी।
इस बार ऐसा हुआ है या नहीं, यह अभी तक साफ नहीं है। इसके अलावा जिन क्षेत्रों पर सबसे ज़्यादा असर पडऩे के आसार हैं, वे जूलरी, कपड़ा, टेलीकॉम और इलेक्ट्रॉनिक सामान, ऑटोमोबाइल और कैमिकल से जुड़े हैं।
निकोर असोसिएट्स में अर्थशास्त्री मिताली निकोर कहती हैं कि इसे सिर्फ 25 फीसदी टैरिफ नहीं मानना चाहिए क्योंकि इसमें 10 फीसदी की पेनल्टी भी है, इसका मतलब टैरिफ 35 फीसदी हो गया है।
वह कहती हैं, ‘25 फीसदी बेस रेट और 10 फ़ीसदी टैरिफ तब तक लगता रहेगा जब तक हम रूस से तेल लेते रहेंगे। यह कुल 35 फीसदी का टैरिफ है।’
भारत से अमेरिका को 11.88 अरब डॉलर का सोना, चांदी और हीरा निर्यात होता है। इस क्षेत्र में निर्यात कम होने पर इसका असर छोटे कारीगरों और कारोबारियों पर पड़ेगा।
मिताली निकोर कहती हैं, ‘जेम एंड जूलरी सेक्टर पर सबसे ज़्यादा असर होगा। गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से सबसे ज़्यादा यह निर्यात होता है।’
भारत से अमेरिका को 4।93 अरब डॉलर का कपड़ा निर्यात होता है, इसलिए इस क्षेत्र पर भी पडऩे वाला है।
मिताली कहती हैं कि टेक्सटाइल उद्योग पर पडऩे वाला असर भारत के पड़ोसी मुल्कों पर लगने वाले टैरिफ से भी तय होगा। वह कहती हैं कि बांग्लादेश से काफी बड़ी तादाद में टेक्सटाइल एक्सपोर्ट होता है और वियतनाम अपनी ट्रेड डील अमेरिका के साथ कर चुका है।
‘अगर यह स्थिति रही तो भारत और बांग्लादेश से अमेरिका का होने वाला व्यापार अब वियतनाम की ओर जाएगा। इस सेक्टर में महिलाएं भी शामिल हैं तो उन पर बहुत असर पडऩे जा रहा है।’
भारत अमेरिका को 14.39 अरब डॉलर के मोबाइल, टेलीकॉम और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बेचता है। ज़ाहिर है अब इन पर भी असर पड़ेगा।
मिताली कहती हैं कि एपल जैसी कंपनियां भारत में आकर अपना काम कर रही थीं लेकिन इन टैरिफ के बाद वे भारत क्यों आएंगी। स्टील-एल्युमीनियम पर भी असर पड़ेगा।
भारत को कितना होगा नुकसान, अर्थव्यवस्था कहां जाएगी?
सिटी रिसर्च का अनुमान है कि टैरिफ लगने से भारत को सालाना 700 करोड़ डॉलर का घाटा होगा।
मिताली कहती हैं कि ‘7 अरब डॉलर के नुकसान का ये एक आंकड़ा हमारे सामने है लेकिन वर्तमान में इसका प्रत्यक्ष असर हमारे यहां के व्यापारियों के लाभ पर पड़ेगा।’
‘अगर इसके अप्रत्यक्ष असर की बात करें तो यह हमारी अर्थव्यवस्था पर होगा। अर्थव्यवस्था का सीधा सा नियम है कि जब निर्यात कम होता है तो उपभोग कम होता है, नौकरियां जाती हैं। इन सबकी वजह से वे लोग गऱीबी में ज्यादा जा सकते हैं जो अभी गऱीबी से बाहर निकले हैं।’
टैरिफ बढ़ोतरी का सीधा असर उत्पादन पर पड़ेगा और उत्पादन में कमी आने पर रोजगार में भी कमी आएगी। इससे कहीं न कहीं पूरा अर्थचक्र प्रभावित होगा।
वहीं अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार मंजरी सिंह कहती हैं कि अभी भारत की ओर से ट्रेड डील पर द्विपक्षीय बातचीत जारी है इसलिए पहले से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जाना चाहिए।
वह कहती हैं कि भारत का अमेरिका के साथ ट्रेड सरप्लस में है, हम जितना उन्हें निर्यात करते हैं उससे कम आयात करते हैं।
‘अगर 25 फीसदी का टैरिफ लग भी जाता है तो 45 अरब डॉलर के सरप्लस में कमी आएगी। हालांकि ऑटोमोबाइल और फ़ार्मा सेक्टर पर खासा असर पड़ सकता है।’
दोनों देशों के बीच ट्रेड डील न हो पाने की वजह भारत का कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए अपने दरवाज़े न खोलना बताया जा रहा है।
भारत में अमेरिकी कृषि उत्पादों पर औसतन 37.7त्न टैरिफ लगाया जाता है, जबकि अमेरिका में भारतीय कृषि उत्पादों पर यह दर 5.3त्न है। ट्रंप की ताजा घोषणा के बाद भारत से आने वाले उत्पादों पर यह टैरिफ़ 25त्नहो गया है।
मंजरी सिंह कहती हैं कि कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए बाज़ार खोलना भारत को भारी पड़ सकता है, इसलिए इस विषय पर सहमति नहीं बन पा रही है। उनका कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि की अहम भूमिका है। अगर अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पाद भारत में आए, तो इससे यहां के छोटे किसानों पर असर पड़ेगा।
राष्ट्रपति ट्रंप की घोषणा के बाद भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है कि ‘सरकार भारत के किसानों, उद्यमियों और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के कल्याण और हितों को सर्वोच्च महत्व देती है।’
भारत के पास क्या हैं रास्ते?
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि भारत और अमेरिका पिछले कुछ महीनों से एक निष्पक्ष, संतुलित और पारस्परिक रूप से लाभकारी द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं, और दोनों देश इस उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध हैं।
अमेरिका के टैरिफ के खिलाफ भारत के पास फिलहाल सबसे बड़ा विकल्प एक प्रभावी ट्रेड डील है।
अगर यह डील नहीं हो पाती है, तो भारत को अमेरिका के अलावा दूसरे निर्यात बाजार तलाशने होंगे या फिर अमेरिका को भेजे जाने वाले सामान का रूट बदलना होगा।
मिताली कहती हैं, ‘अगर अमेरिका हमें एक तरह से छोड़ रहा है, तो हमारे पास मौका है कि हम दूसरे रास्ते तलाशें। हमने हाल ही में ब्रिटेन के साथ फ्ऱी ट्रेड एग्रीमेंट किया है। इन मौकों को भी गंभीरता से देखा जाना चाहिए। अमेरिका से होने वाले घाटे को पाटने के लिए संभव है कि रूस और चीन के साथ व्यापार बढ़ाना पड़े। रूस के साथ हमारे रिश्ते अच्छे हैं, लेकिन चीन से संबंध दोबारा बनाने होंगे।’
वहीं, मंजरी सिंह का कहना है कि भारत के पास भी टैरिफ बढ़ाने का विकल्प मौजूद है। लेकिन अगर भारत ने टैरिफ बढ़ाया, तो अमेरिका भी उसी तरह प्रतिक्रिया देगा। उनके मुताबिक, इसके बजाय अपने बाजार को डायवर्ट करना बेहतर रणनीति हो सकती है।
वह कहती हैं, ‘चीन पर 100 फ़ीसदी से अधिक टैरिफ है, लेकिन उसने अपने उत्पादों का रुख़ यूरोप की ओर कर दिया। अब यूरोप के बाजार में चीन का माल पहले से मौजूद है, इसलिए भारत को वहां भी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा।’
‘भारत को चाहिए कि वह अपने उत्पादों को मिडिल ईस्ट और अफ्रीका के बाजारों की ओर मोड़े। हालांकि भारत और अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी को देखते हुए संभव है कि इस टैरिफ को आगे चलकर कम किया जाए।’
मिताली का मानना है, ‘भारत को टैरिफ नहीं बढ़ाना चाहिए। राष्ट्रपति ट्रंप से बैक चैनल के जरिए बातचीत करनी ही पड़ेगी। अमेरिका में यह धारणा तेज़ी से फैल रही है कि चीन और भारत तेज़ी से प्रगति कर रहे हैं, और इन्हें रोकना जरूरी है। इस सोच का भी कूटनीतिक स्तर पर जवाब देना होगा।’ (bbc.com/hindi)


